डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
निःसन्देह अन्ना हजारे सीधे, सज्जन, ईमानदार, सादगीपसन्द, निःस्वार्थ समाजसेवी हैं। वह देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना चाहते हैं। शक्तिशाली जनलोकपाल निर्माण की उनकी माँग इसी के अन्तर्गत है। केन्द्र सरकार इस दिशा में कारगर कदम उठाने के लिए तत्पर नहीं है। पहले भी इस अभियान को विफल करने, टालने की उसकी योजना थी। जनलोकपाल के संबंध में सकारात्मक प्रगति दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में अन्ना का व्यथित होना स्वाभाविक है। केन्द्र की सरकार कांग्रेस के नेतृत्व मे चल रही है। वह शक्तिशाली जनलोकपाल विधेयक तैयार करने और उसे संसद में प्रस्तुत करने की समयबध्द योजना से बच रही है। अन्ना की कांग्रेस से नाराजगी स्वाभाविक है। किन्तु यह नहीं माना जा सकता कि वह अपने भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्रव्यापी अभियान को दलगत सीमाओं में बाँधना चाहते हैं। उनका कोई राजनीतिक उद्देश्य भी नहीं होगा। वह किसी पद की इच्छा नहीं रखते। जनमानस में उनका जो स्थान बना है वह ‘पद’ से बहुत ऊपर है। वह नीचे उतरना नहीं चाहेंगे। दलगत राजनीति करने वालों के लिए इस स्थिति तक पहुँचना दुर्लभ होता है। कांग्रेस से उनकी नाराजगी जनलोकपाल विधेयक पर हो रही देरी को लेकर है। कांग्रेस के विरोध का लाभ उसी को मिल सकता है, जो ईमानदारी या भ्रष्टाचार से मुक्ति के प्रति आश्वस्त कर सके। इसका दावा कौन कर सकता है? जहाँ तक कांग्रेस को चेतावनी देने, सावधान करने की बात है, उसे अनुचित नहीं कहा जा सकता। लेकिन यह विचार करना होगा कि कांग्रेस को वोट ना देने की अपील का दूरगामी प्रभाव होगा। इसका अन्ना के आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
अन्ना ने कांग्रेस को वोट न देने की अपील निःस्वार्थ भावना से दी। लेकिन इसने स्वार्थ में डूबे दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को मौका मिला। उन्होंने देर नहीं की। अपना आरोप दोहराया। कहा कि अन्ना के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था। संघ सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है। राष्ट्रहित के मुद्दों पर संघ के स्वयंसेवक सक्रिय रहते हैं। इसके लिए संघ ने ‘षार्टकल नीति’ पर कभी विश्वास नहीं किया। यह मुद्दा अलग है। दिग्विजय जैसे नेता इस तथ्य को नहीं समझ सकते।
भ्रष्टाचार व्यवस्था से जुड़ा मसला है। कांग्रेस देश का शासन चला रही है। उसने व्यवस्था में सुधार का प्रयास नहीं किया, जिससे भ्रष्टाचार कम हो। इसके विपरीत भ्रष्टाचार, घोटालों को पनपने का मौका मिला। किन्तु कांग्रेस को वोट न देने की अपील मात्रा से व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो सकता। वस्तुतः अपील यह होनी चाहिए कि मतदाता बेदाग प्रत्याशियों का चयन करें। मतदाता ऐसा करने लगे तो व्यवस्था बदलने वाले लोग ही उसके प्रतिनिधि बनेंगे। लेकिन यह सब अभी इतना आसान नहीं है। इसके लिए व्यवस्था परिवर्तन की लम्बी यात्रा तय करनी होगी। कई प्रदेशों में तो फिलहाल विकल्पहीनता की स्थिति है।
तमिलनाडु में डी. एम. के. और ए. आई. ए. आई. डी.एम. के. के बीच द्विदलीय मुकाबला है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दोनो एक ही धरातल पर है। अकाली-कांग्रेस के बीच मुकाबला होता है। यहाँ अपील कितनी कारगर हो सकती है। उत्तर प्रदेश मे कितने विकल्प हैं। सत्तापक्ष और मुख्य विपक्षी पार्टी के बीच कितना अन्तर है। हरियाणा भी अलग नहीं। यहाँ कांग्रेस और चौटाला के लोकदल के बीच मुख्य मुकाबला होता है। हार-जीत से क्या अन्तर पड़ सकता है। अन्ना की अपील पहली बार हरियाणा के हिसार लोकसभा उपचुनाव में देखने को मिली। यहाँ कांग्रेस के मुकाबले में पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पुत्र कुलदीप, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाष चौटाला के पुत्र अजय चौटाला थे। भजन और ओमप्रकाश चौटाल खास छवि के मुख्यमंत्री थे। अनेक क्षेत्रीय पार्टियों के क्षत्रपों ने इनसे प्रेरणा ली। इनके पुत्रो का अलग कोई महत्व नहीं। वह भ्रष्टाचार के साथ-साथ वंश-परम्परा की विरासत के प्रतीक रहे है।
अपील कितनी फलदायी हो सकती थी। इससे किस प्रकार के बदलाव की आशा की जा सकती है। अच्छे लोग चुनावी राजनीति से धीरे-धीरे उदासीन हो रहे है। बाहुबली, घनबलियो का वर्चस्व बढ़ रहा है। विभिन्न राजनीतिक दलो मे ऐसे लोग पहली पसन्द होते है। कही अधिक, कही कम, इनसे मुक्त कोई भी नहीं है। ऐसे मे अन्ना की अपील अपरिपक्व स्थिति में समय पूर्व दी गई। यह बड़े उद्देश्य तक पहुँचने के अभियान को सार्थक बनाने में बाधक हो सकती है।
* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं अध्यापन से जुड़े हैं।
ऐसे डाक्टर अग्निहोत्री का कहना सही है कि भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन कांग्रेस विरोधी आन्दोलन में तब्दील हो रही है और यह इस आन्दोलन के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है.यह भी सही है कि हिसार में कांग्रेस विरोध से जिसको लाभ हुआ ,वह शायद कांग्रेस उम्मीदवार से जयादा पाक साफ़ नहीं है.पर जब कांग्रेस स्वयं ही अपने को भ्रष्टाचार का पर्यायवाची मानने लगी है,जैसा उनके विभिन्न नेताओं,खासकर उनके भोंपू दिग विजय के व्यान से स्पष्ट होता है तो अन्ना टीम का यह कदम उतना भी गलत नहीं लगता,फिर भी आन्दोलन के भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि त्वरित लाभ के लिए सिद्धांत से न हटा जाए.जब यह सिद्धांत रूप में स्वीकार किया जा चुका है कि टीम अन्ना और उनके सहयोगी, पार्टियों का ध्यान न रख कर उम्मीदवारों की ईमानदारी के अनुसार मत देने के लिए जनता से अपील करेंगे तो उन्हें इस पर कायम रहना चाहिए..
वाह क्या बात है, अन्ना ने कांग्रेस को वोट न देने की अपील निःस्वार्थ भावना से दी। दुनिया में कोई भी काम बिना स्वार्थ के नहीं होता
कांग्रेस का विरोध बिलकुल सही रणनीति है, चिंता मत कीजिये दिग्विजय क्या कह रहे हैं. उनको सत्ता में रहना हो तो वः करना होगा जो जनता चाहती है. और फ़िलहाल जनता व्ही चाहती है जो अन्ना बोल रहे है. बीजेपी को इसका लाभ देना है या नहीं यह बात कांग्रेस को सोचनी है. हमें या आपको नहीं. फ़िलहाल तो सर्कार दोनों तरह से फँस चुकी है.इकबाल हिन्दुस्तानी संपादक पब्लिक ऑब्ज़र्वर नजीबाबाद.