आखिर यूपी बिहार ही क्यों?

-रवि श्रीवास्तव-

bihar up

भारत के अखण्डता का प्रतीक माना जाता है। यहां हर धर्म जाति के लोग बड़ी खुशी से रहते हैं। इन सभी धर्मों के लिए एक बात कही गई है, हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में सब भाई-भाई। पर ये भाईचारा इस राजनीति में फंसकर टूटता नज़र आ रहा है। हर तरफ धर्म जाति और क्षेत्रवाद की राजनीति हो रही है। यूपी बिहार के लोगों को घृणा से पता नहीं क्यों देखते हैं। हर तरफ विकास के रूकावट का उन्हें ही जिम्मेदार बताया जाता है। ये राजनीतिक दल जब चुनाव आता है तो ज़नता के सच्चे हितैशी बन जाते हैं। हाथ जोड़कर वोट मांगने की बात को सत्ता में आने के बाद ऐसे भूल जाते हैं कि अब क्या हमें गम़ है पांच साल के राजा हम हैं। इन पर भरोसा करना खुद को मूर्ख समझने के बराबर है। आखिर हम कब सुधरेंगे। ठोकर लगती जाती है और हम भूलते जाते हैं। इन सब बातों का जिक्र मैं इसलिए कर रहा हूं क्योंकि अभी कुछ महीनों पहले आम चुनाव समाप्त हुए हैं, जिसमें कांग्रेस को करारी हार और बीजेपी को सत्ता प्राप्त हुई है। कहते हैं कि दिल्ली में सत्ता प्राप्त करने का रास्ता उत्तर प्रदेश और बिहार से जाता है। लोकसभा चुनाव में यूपी बिहार की सफलता से भाजपा को ये सुख प्राप्त हुआ है। बीजेपी के प्रमुख नारे को सबका साथ, सबका विकास को अब इनके नेता भूल रहे हैं। सब कुछ भूल अब क्षेत्रवाद की राजनीति पर आ गए हैं। बहुत पहले महाराष्ट्र में एक बात सुनाई पड़ती थी, यूपी बिहार के लोग को यहां से वापस भेजो, इन्हें यहा से भगाओ। मुम्बई में कई जगहों पर इनका शोषण भी शुरू हो गया था। ये तो महाराष्ट्र की बात हुई। अब भाजपा के नेता विजय गोयल ने राज्यसभा ने यही बात कह दी कि यूपी बिहार के लोगों को दिल्ली आने से रोकना होगा, तभी दिल्ली का विकास हो सकता है। एक बार फिर मुम्बई की यादें ताजा हो गईं। किसी नेता को ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान देना क्या शोभा देता है ? जैसा कि मैंने पहले लोकसभा चुनाव का जिक्र किया था। बस यही बात बतानी थी, कल तक जो नेता यूपी बिहार में घर-घर घूमकर अपने पार्टी के लिए वोट मांग रहे थे। आज सत्ता में आने के बाद बदलते नजर आ रहे हैं। अपनी जिम्मेदारी को दूसरो पर आरोप लगाकर साफ बच निकल जाना चाहते हैं। दिल्ली के चुनाव को लेकर एक क्षेत्रवाद की रणनीति तैयार की जा रही है। बात अगर करें, दिल्ली के विकास की तो यूपी बिहार के मजदूर यहां दिन रात खटते हैं। पर आज उन पर ही आरोप मढ़ा जा रहा है। आखिर कोई इनसे पूछे कि शहर में बन रही बड़ी-बड़ी इमारतों में मेट्रो में मज़दूरी करने वाले लोग कहां के हैं। कम्पनियों में निम्न स्तर से बड़े स्तर तक के लोग अधिकतर कहां के हैं। एक बात तो साफ है कि किसी को देश में कुछ जगहों को छोड़कर कहीं भी रहने व्यापार करने की पूरी स्वतंत्रता है। अगर ऐसा किया जाता है तो ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। दिल्ली मूलनिवासी के कुछ घरों का चूल्हा भी इन्हीं यूपी बिहार के लोगों से चलता है। घर के कमरे को किराए पर उठाकर ऐश भरी जिंदगी ये आराम से गुजारते हैँ। इनसे दिल्ली के विकास कार्य में मजदूरी तो हो नहीं पाएगी, तब पता चल जाएगा इन्हें कोसने का।

जिस दिन इन्हें यहां आने से रोका जाएगा, उस दिन से देश के उद्य़ोग पति यूपी बिहार में अपना वर्चस्व बनाना शुरू कर देंगे। अगर आप चाहते है कि यूपी और बिहार के लोग अपना राज्य छोड़कर न जाए तो कुछ ऐसा कर दिखाइए कि अपने घर परिवार का पेट पालने के लिए उन्हें अपने परिवार से इतनी दूर न आना पड़े। फिर आसानी से दिल्ली का विकास करते रहिए। कहते है कि पहले आकर झुग्गी बनाते है फिर अवैध कालोनियां। पर जब ये झुग्गी बनाते हैं तो सरकार और एमसीडी दोनों सोई रहती है। तब क्रिया-प्रतिक्रिया का कदम क्यों नहीं उठाते। तब यूपी बिहार के लोग बुरे नहीं लगते, जब कड़ी मेगनत और लगन से किसी सरकारी प्रोजेक्ट में काम करते हैं। अगर झुग्गी और अवैध कालोनी से ऐजराज है तो कुछ ऐसा काम किया जाए कि इनको रहने का इंतजाम हो जाए और सरकार को आर्थिक फायदा भी। केंद्र में सत्ता प्राप्त करने के लिए यूपी बिहार के जो सांसद हैं, उनके बारे में क्या ख्याल है। जो मूलत: यूपी ऐर बिहार के निवासी है। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा का नारा था, सबका साथ, सबका विकास, ऐसे में विजय गोयल का दिया गया ये बयान क्या तर्कपूर्ण है। सत्ता प्रप्त करे दो महीने ही बीते हैं और नेताओं को रटाए गए, ये स्लोगन नेता भूल रहे हैं। अब सबका साथ, सबका विकास कहां गया। कहां से क्षेत्रवाद की ये भावना ने जन्म ले लिया है। सत्ता का नशा अच्छा भी होता है और बुरा भी। बड़ी मेहनत के बाद सत्ता आप के झोली में आई है, कुछ ऐसा काम करों कि फिर दोबारा कायम रहो। एक बात समझ में नहीं आती है, आखिर क्या दुश्मनी है। जो हर कोई इन्हें ही निशाना बनाता है। इस तरह कि क्षेत्रवाद की राजनीति से क्या मिलेगा। सिर्फ नुकसान होगा।

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