आखिर आप चाहतीं क्या हैं ?

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राजीव गुप्ता

उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधान सभा के चुनावी दंगल में लगभग सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत के साथ अपना – अपना बिगुल बजा दिया है ! कोई रथ यात्रा कर रहा है , कोई वहां की जनता को ” भिखारी ” कहकर जगा रहा है तो कोई मुस्लिम आरक्षण के लिए प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखने के साथ – साथ विकास के नाम पर पूरे उत्तर प्रदेश को ही चार भागों में पुनर्गठन करने की दांव चल रहा है ! राजनीतिक उठापटक के बीच सब के सब राजनैतिक दिग्गज अपने राजनैतिक समीकरण बैठाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं ! होना भी ऐसे चाहिए क्योंकि यही तो एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है ! अभी तक के चुनावी दावों में उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्से में विभाजित करने का ऐसा तुरुप का इक्का चला है की किसी भी पार्टी को उसका तोड़ नहीं मिल रहा है ! लगता है कि उनके इस तुरुप के इक्के के आगे सभी राजनीतक पार्टियाँ मात खा गयी !

अभी तेलंगाना को अलग राज्य बनाये जाने की मांग ठंडी हुई भी नहीं थी कि मायावती जी ने वर्तमान उत्तर प्रदेश को चार भागों पश्चिमी प्रदेश ( संभावित राजधानी : आगरा ) , बुंदेलखंड ( संभावित राजधानी : झांसी ) , अवध प्रदेश ( संभावित राजधानी : लखनऊ ) और पूर्वांचल प्रदेश ( संभावित राजधानी : वाराणसी ) में बाँटने का खाका पेश कर दिया ! इस पुनर्गठन के पीछे सुश्री मायावती और उनकी पार्टी बसपा का तर्क है कि छोटे राज्यों में कानून – व्यवस्था बनाये रखने के साथ – साथ विकास करना आसान होता है ! चूंकि वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार वहां की जनसँख्या लगभग २० करोड़ के पास है जो कि देश की आबादी का लगभग १६ प्रतिशत है इसलिए समुचित प्रदेश के विकास के लिए प्रदेश को छोटे राज्यों में पुनर्गठन करना जरूरी है !

सैद्धांतिक रूप से लोकतंत्र में छोटे – छोटे राज्यों से जनता की भागीदारी अधिक होती है , इसलिए राहुल सांस्कृत्यायन ने भी एक बार ४९ राज्यों के गठन की बात कही थी ! मेरा व्यक्तिगत मत है कि अलग राज्यों की मांग उठने के पीछे कही न कहीं केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां जिम्मेदार है क्योंकि मांग उठाने वालों लोगों को लगता है कि उनके साथ भाषा , जाति, क्षेत्र के आधार पर उनके साथ न्याय नहीं होता है ! ज्ञातव्य है कि भाषा के आधार राज्य कर पुनर्गठन का श्रीगणेश तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए १९५२ में तेलगू भाषी राज्य की मांग मानकर किया था ! क्योंकि मैंने ऐसा पढ़ा है कि समय रहते हस्तक्षेप न करने के कारण एक समाजसेवी श्रीरामुलू के ५८ दिन के आमरण अनशन के बाद १६ दिसम्बर १९५२ में मृत्यु हो जाने के उपरान्त आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए और आनन-फानन में नेहरू जी ने मात्र तीन दिन के अन्दर अलग राज्य की संसद में घोषणा कर दी !

एक लेख के अनुसार , दिसंबर १९५३ न्यायाधीश सैय्यद फजल अली की अध्यक्षता में पहला राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया ! सितम्बर १९५५ इस आयोग की रिपोर्ट आई और १९५६ में राज्य पुनर्गठन अभिनियम बनाया गया , जिसके द्वारा १४ राज्य और ६ केन्द्रशासित राज्य बनाये गए ! १९६० में राज्य पुनर्गठन का दूसरा दौर चला , परिणामतः बम्बई ( वर्तमान मुंबई ) को विभाजित कर महाराष्ट्र और गुजरात बनाया गया ! १९६६ में पंजाब का बंटवारा कर हरियाणा राज्य बनाया गया ! इसके बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम १९७१ के अंतर्गत त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर का गठन किया गया ! १९८६ के अधिनियम के अंतर्गत मिजोरम को राज्य के दर्जे के साथ १९८६ के केन्द्रशासित अरुणाचल प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश को भी पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया ! १९८७ के अधिनियम के तहत गोवा को भी पूर्ण दर्जा दिया गया ! अंतिम पुनर्गठन वर्ष २००० में उत्तराखंड, झारखंड और छतीसगढ़ को बाँट कर किया गया !

छोटे राज्यों के पुनर्गठन की वकालत करने वालों का मत है है कि भारत में जनसंख्या के आधार पर और क्षेत्रफल के आधार विषमता बहुत है ! एक तरफ जहां लक्षद्वीप का क्षेत्रफल ३२ वर्ग कि.मी. मात्र है तो वही राजस्थान का क्षेत्रफल लगभग ३.५ लाख वर्ग कि.मी. है ! जनसँख्या में जहा उत्तरप्रदेश लगभग २० करोड़ की संख्या को छूने वाला है तो वही सिक्किम की कुल आबादी ६ लाख मात्र है ! परन्तु यहाँ पर यह भी जानना बेहद जरूरी है कि अभी हाल में ही पुनर्गठित हुआ झारखंड राज्य अपने नौ सालों के इतिहासों में लगभग ६ मुख्यमंत्री बदल चुका है ! उसके एक और साथी राज्य छत्तीसगढ़ में किस तरह नक्सलवाद प्रभावी हुआ है यह लगभग हम सबको विदित है ! प्रायः हम समाचारों में देखते व सुनते भी है कि मिजोरम , नागालैंड और मणिपुर आज भी राजनैतिक रूप से किस तरह अस्थिर बने हुए है ! गौरतलब है कि असम से अलग हुए राज्य ( जो कि अपनी जनजातीय पहचान के कारण अलग हुए थे ) नागालैंड , मेघालय, मणिपुर और मिजोरम में कितना समुचित विकास हो पाया यह अपनेआप में ही एक प्रश्नचिंह है !

अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के लिए किस तरह से दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री श्री ब्रहम प्रकाश ने दिल्ली , हरियाणा , राजस्थान के कुछ हिस्से और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मिलाकर ‘बृहत्तर दिल्ली’ बनाना चाहा था क्योंकि इससे वो लम्बे समय तक अपने ‘जाट वोटों’ के जरिये राज कर सकते थे ! समय रहते तत्कालीन नेताओं जैसे गोविन्द बल्लभ पन्त ने उनकी महत्वकांक्षा को पहचान कर उनका जोरदार विरोध कर उन्हें उनके मंतव्य में सफल नहीं होने दिया ! और समय रहते उनकी मांग ढीली पड़ गयी ! वर्तमान समय में फिर एक प्रदेश मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के पुनर्गठन की मांग उठाई है ! गौरतलब है कि मात्र छोटे राज्यों के गठन से विकास नहीं होता है ! किसी भी राज्य का विकास वहां की राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ -साथ सुशासन से होता है ! राज्यों की पंचायत व्यवस्था को दुरुश्त किया जाय , जिसके लिए गांधी जी ने ‘पंचायती राज’ व्यवस्था की पुरजोर वकालत कर देश के संतुलित विकास की रूपरेखा बनाकर गाँव को समृद्ध बनाने के लिए लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास का सपना देखा था ! एक लेख में मैंने पढ़ा है कि अगर हम उत्तर प्रदेश पर एक नजर दौडाएं तो पाएंगे कि पूर्वी भाग के कई जिलों में आज भी उद्योगों का सूखा पड़ा है ! चीनी मीलों के साथ – साथ खाद व सीमेंट के कारखाने बंद पड़े है ! सिर्फ पश्चिमी भाग में जो कि दिल्ली से सटा हुआ है , थोडा विकास जरूर हुआ है ( फार्मूला रेस -१ का आयोजन ) ऐसा कहा जा सकता है ! ऐसे में सवाल यह उठता है कि माननीय मुख्यमंत्री जी आखिर आप चाहती क्या है ? प्रदेश का समुचित विकास अथवा खालिश राजनीति !

 

4 COMMENTS

  1. हालत बहुत खराब होते जा रहे हैं यह नेता अपनी कुर्सी के लीए आज एक राज्य के चार भाग कर रहे हैं कल इनका ललच बड़े गा और यह नेता हर राज्य को हर देश बनाने की माँग कर इस देश में इतने प्रधान मंत्री बना कर इस देश को भाग कर दे गें सवाल यह है जो राज्य एक मुख्य मंत्री का कर्च बर्दाश नही कर सकता वो चार मंत्री काnullकर्च बर्दाश करnullले गा अपने स्वार्थ के लिए देश को बर्बाद कर रहे हैं

  2. राजनीती तो वोटों के लिए ही होती है और यह इलेक्शन के पास आने पर तेज़ भी हो जाती है. सभी दल ऐसा ही करते हैं लिहाज़ा छोटे राज्ये बनाना बी स प चाहती है यह तो मन्ना ही पड़ेगा. इस दों से कांग्रेस और बी ज प फँस गयी हैं. संपादक पब्लिक ऑब्ज़र्वर, नजीबाबाद

  3. उत्तर प्रदेश का छोटे राज्यों में विभाजन एक बड़ी प्रशासनिक आवश्यकता है.रा. स्व.सं. के द्वारा वर्षों पूर्व अपने संगठन के द्रष्टिकोण से उ.प्र. को सात भागों में बाँट दिया था. जिसमे से एक उत्तराखंड 2000 में अलग राज्य बनकर अच्छी आर्थिक प्रगति कर रहा है. शेष उ.प्र.को यदि छ:राज्यों में बाँट कर एक एक दर्जन जिलों का एक एक प्रदेश बनाकर उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार तरक्की का मौका देना चाहिए. लेकिन उससे पहले इस विषय पर एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करके सभी लोगों के सुझाव प्राप्त करके स्पष्ट रिपोर्ट प्राप्त की जाये. बेहतर होगा की विदर्भ, तेलंगाना व कुछ अन्य राज्यों की मांग के परिप्रेक्ष एक राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया जाये.और उसकी सिफारिश के आधार पर संविधान संशोधन करके राजों का पुनर्गठन किया जाये.मायावती का वर्तमान प्रस्ताव केवल चुनावी शिगूफा मात्र है जिसका उद्देश्य अपने खिसकते जनाधार को पुनर्प्राप्ति है, संभवतः उन्हें प्राप्त होने वाला नहीं है.

  4. ||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक एक..प्रकृति के नियम-क़ानून सबके लिए एक
    चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाय…….
    साँसों की मुरली की धुन में गुंजत साईं नाम |
    प्राणों की रक्षा करता दुःख भंजन साईं राम ||
    ||ॐ साईं ॐ ||
    मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
    हिन्दू भाई बहन फेस बुक पर हिंदुत्व और हिन्दू रक्षा की बात करते है…….यदि हिन्दुस्तान की इतनी ही चिंता है तो तुरंत प्रभाव से क्रिश्चन और मुस्लिम स्कूल कालेजो से अपने बच्चो को निकाल लो ….साल भर में बच्चो के भविष्य पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा….किन्तु इन स्कूल कालेजो के संचालक भूखो मर जायेगे….और इन्हें १ घंटा रोजाना गीता और रामायण की क्लास शुरू करनी ही पड़ेगी….और सरकार को भी देश की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को ख़त्म करना पडेगा….कितने हिन्दू भारतीय संस्कृति को पश्चिमी नंगी संस्कृति से बचाना चाहते है ?

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