देश की सभी विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार के आगे 100 दिन में बौनी नजर आईं है

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100 दिन विपक्ष के लिये  चले अढ़ाई कोस
डॉ अजय खेमरिया
*मोदी सरकार को दुबारा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आये 100 दिन हो गए है सब दूर सरकार के बड़े फैसलों की चर्चा हो रही है खासकर जम्मू  कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाने के ऐतिहासिक निर्णय की।ट्रिपल तलाक के विरुद्ध कानून बनाने से लेकर पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग थलग कर देने वाली कूटनीति की।निसंदेह इस सरकार ने शुरुआत से ही अपने अटल इरादों के साथ काम करना आरंभ किया है जिसके नतीजे जनस्वीकार्यता के पैमाने से सार्थक नजर भी आ रहे है।लेकिन हमें लोकतांत्रिक सरकारों की जनक संसदीय राजनीति की चर्चा भी इन 100 दिनों के आलोक में करनी चाहिये।अटल जी कहा करते थे कि” विपक्ष का मतलब है विशेष पक्ष”जाहिर है संसदीय लोकतंत्र में जो दल सत्ता में होता है उसकी अपनी महत्ता औऱ स्वीकार्यता तो स्वयं सिद्ध है ही लेकिन विपक्ष की भूमिका भी एक विशिष्ट अर्थ धारण किये हुए।मोदी सरकार के पहले 100 दिन जहां बीजेपी के लिये उत्साह से भरे है ।वही ऐसा लगता है  विपक्ष के लिये ये 100 दिन  23 मई  2019 के जलजले से अभी तक उबार नही पाए है।इन 100 दिनों में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की हालत  किसी लावारिस की तरह दिखी है। उसके अध्यक्ष का पद तीन महीने तक परिवार औऱ उसके बाहर झूलता रहा।राहुल गांधी के दृढ़तापूर्वक अपने त्यागपत्र पर डटे रहने से एक बारगी लगा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का हुलिया अब बदल सकता है लेकिन जो कुछ हुआ वह सामने है।चंद्रबाबू नायडू एग्जिट पोल के बाद से ही गायब हो गए है 16 मई तक उनका सरकारी विमान दिल्ली से लेकर कोलकोता, पटना,रांची,भुवनेश्वर ,सहित सभी गैर बीजेपी शासित राज्यों की हवाई पट्टी पर लगातार लैंड होता सबने देखा था। अब वे कहां है किसी को खबर नही।उनकी पार्टी बीजेपी में विलय होने की तैयारियों में है ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने रात के अंधेरे में अपने श्वसुर  एनटी रामाराव का तख्तापलट कर सीएम की कुर्सी हथियाई थी।बिहार में महागठबंधन के नेता सामाजिक न्याय के नए राजकुमार तेजस्वी यादव को तीन महीने तक तलाशने के बाद थक हार कर बैठ गए है।ममता बनर्जी  मोदी अमित शाह को गरियाने की शैली लगता है छोड़ चुकी है औऱ उन्होंने अपना पूरा ध्यान बंगाल का किला कैसे बचाया जाए इस पर फोकस कर लिया है।कभी मोदी को टक्कर देने के लिये उतावले अरविन्द्र केजरीवाल को समझ आ चुका है कि लुटियन्स जोन में घुसने की कोशिशें कहीं उन्हें दिल्ली सचिवालय से ही बाहर न कर दें इसलिये वह 370 जैसे मुद्दे पर मोदी अमित शाह के पीछे खड़े नजर आए।अब आये दिन वे एलजी का रोना नही रो रहे है।कांग्रेस के साथ समझौता अगर विधानसभा में नही हुआ तो केजरीवाल की विदाई तय है यह खुद केजरीवाल को पता है।राहुल गांधी की अमेठी से हार होने पर सियासत छोड़ देने की घोषणा करने वाले नवजोत सिद्धू भी इन 100 दिनों में कहीं ठहाका लगाते किसी को नही दिखे उल्टे कैप्टन साहिब ने उन्हें ठिकाने जरूर लगा दिया।महाराष्ट्र की तीसरी बड़ी ताकत रही एनसीपी के घर मे अब गिनती के लोग बचे है इस राज्य में अमित शाह का यह कहना कि अगर उन्होंने दरवाजे पूरे खोल दिये तो दूसरे घर खाली हो जाएंगे कोई अतिश्योक्ति नही है।समझा जा सकता है कि महाराष्ट्र का सियासी मिजाज क्या कह रहा है।कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस का किला भी इन्ही 100 दिनों में जमीदोज हुआ है।हरियाणा में हुड्डा कब तक  और किस हद तक कांग्रेस का साथ देंगे यह अगले एक महीने में साफ हो जाएगा वैसे पिता पुत्र की हरियाणा में हुई हार ने उनकी सियासत पर सवाल खड़े कर दिये है इसलिए 370 पर मोदी सरकार का समर्थन करके  हुड्डा ने हरियाणा में स्पष्ट सन्देश दे दिया है जिसे कांग्रेस को समझ लेना चाहिये।यूपी में बुआ बबुआ की जोड़ी तो नतीजों के एक महीने बाद ही सड़क पर बिखर गई।मायावती ने जिस तरह से 370 पर मोदी का साथ दिया है उससे साफ है कि यूपी के खेल में अब सैफई खानदान के दिन लद गए है।100 दिन में सबसे अधिक राजनीतिक प्रभाव अगर किसी दल का कमजोर हुआ है तो वह समाजवादी पार्टी का यूपी में।लगातार दो प्रयोग कर अखिलेश यादव ने न केवल खुद को नोशिखिया साबित कर लिया बल्कि सपा के कैडर और प्रभाव को भी खत्म प्रायः सा करके रख दिया।आंध्र में अब खेल सिर्फ जगनमोहन और बीजेपी के बीच होगा क्योंकि खुद जगनमोहन चाहते है कि उनके पुश्तेनी दुश्मन चन्द्रबाबू की स्थाई विदाई इस राज्य से हो इसके लिये वह मौजूदा तेलगुदेशम के बीजेपी में विलय की कोशिशों को पर्दे के पीछे से मदद कर रहे है यानी आंध्र से नायडू का अस्तित्व संकट मे है इन 100 दिनों में तेलगू देशम के सभी बड़े नेता बीजेपी में आ चुके है।तेलंगाना में टीआरएस के सामने न कांग्रेस की चुनौती है न जगनमोहन और चन्द्र बाबू की यहाँ बीजेपी ने तेजी के साथ अपनी स्थिति मजबूत की है।अपने लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की समाप्ति के तत्काल बाद दिल्ली में प्रधानमंत्री ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी जिस दूरदर्शी और रणनीतिक तरीके से नियोजन और काम करती है उसका अंदाजा मीडिया के लोग कभी लगा नही सकते है।मोदी अमित शाह ने इसे साबित भी किया है मसलन बंगाल को भेदने के बाद अब इस जोडी के निशाने पर तमिलनाडू है जहां बीजेपी के लिये अभी तक कोई जमीन नही बन पाई है।इन्ही 100 दिनों के अंदर तमिलनाडू मिशन की झलक हम समझ सकते है जहां से प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष डॉ तमिलिसाई सुंदरराजन को तेलंगाना का राज्यपाल बनाया गया है।डॉ सुंदरराजन एक बड़े कांग्रेस घराने से ताल्लुक रखती है लेकिन बात सिर्फ इतनी भर नही है क्योंकि डॉ सुंदरराजन की नियुक्ति की रजनीकांत ने विशेष तारीफ की है उन्होंने इसे तमिलनाडू का सम्मान बढ़ाने वाला निर्णय बताकर इस राज्य में हलचल पैदा कर दी है।रजनीकांत ने  कश्मीर से 370 हटाने के मामले में भी मोदी की तारीफ की है संभव है  अमित शाह मिशन रजनीकांत पर ही काम कर रहे हो।डॉ सुंदरराजन नाडार जैसी पिछड़ी जाति से आती है जिसका तमिलनाडु में अच्छा प्रभाव है।कामराज जैसे दिग्गज इसी नाडार जाति से आते थे।समझा जा सकता है कि अमित शाह किस व्यापक और महीन रणनीति पर काम कर रहे है।केरल में आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल और पार्टी अध्यक्ष मुरलीधरन को केंद्र में मंत्री बनाकर इस राज्य में भी भविष्य के लिये रास्ता तैयार किया गया है।असल में मोदी अमित शाह ने इन 100 दिनों में न केवल कांग्रेस बल्कि सभी क्षेत्रीय दलों को भी अपने अपने ठिकानों में कैद कर दिया है।उनके लिये फिलहाल सोचने समझने के लिये स्पेस ही नजर नही आ रहा इस बीच हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड,जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव आ चुके है विपक्षी दल अभी तक लोकसभा की शिकस्त से उबर नही पाए ऊपर से 370,पाकिस्तान, ट्रिपल तलाक,जनसंख्या नियंत्रण, जैसे बड़े मुद्दों पर सरकार के एक्शन ने विपक्षियों को मुद्दों का टोटा खड़ा कर दिया है क्योंकि सबको पता है कि इन राज्यों में उनका मुकाबला वहां की सरकारों के साथ मोदी अमित शाह से भी होगा जिनकी दहाड़ में 100 दिनों की उपलब्धियां भी होगी।अंदाजा लगाया जा सकता है कि समूचे विपक्ष के पास आज कोई कार्ययोजना नजर नही आ रही है भविष्य के लिये। वही अमित शाह देश भर में पार्टी संगठन के चुनाव करा रहे है।12 करोड़ लोगों तक सदस्यता की दस्तक का दावा किया गया है इन दिनों मप्र,राजस्थान,यूपी,बिहार,बंगाल ,दिल्ली,हिमाचल,उत्तराखंड सहित उन सभी राज्यों में मंडल और जिला इकाइयों के चुनाव हो जहां अभी विधानसभा चुनाव नही होने जा रहे है।अधिकतर राज्यों में मंडल( यानी लगभग ब्लाक इकाई ) और जिला अध्यक्ष के लिये इस बार 35 से 40 साल कीआयु सीमा के लिये निर्देश जारी किए गए है।सदस्यता अभियान के लिये सभी बड़े नेताओं ने अपने अपने इलाकों से समाज के सभी वर्गों के लोगों को घर जाकर पार्टी से जोड़ा गया है।समझा जा सकता है की संगठन के स्तर पर इन 100 दिनों में बीजेपी ने किस व्यापक और दीर्धकालिक परिणाम केंद्रित कार्ययोजना पर काम आरम्भ किया है।बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कह चुके है कि बीजेपी 50 प्रतिशत वोट के लक्ष्य पर काम कर रही है और उसकी सत्ता की आयु 50 साल से कम नही होनी चाहिये।फिलहाल तो इस लक्ष्य में कोई खास ब्रेकर नजर नही आ रहा है। इसलिये100 दिन बीजेपी के उत्सव से ज्यादा भारत के सकल विपक्ष  की विवशता और किंकर्तव्यविमूढ़ता की आलोच्य अवधि अधिक निरूपित किये जा सकते है।

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