10 वीं बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक बनाने का औचित्य? : डॉ. राजेश शर्मा

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kapilमानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने 10 वीं परीक्षा समाप्त करने तथा आंतरिक मूल्याँकन लेकर परीक्षा परिणाम विद्यालय स्तर पर घोषित करने की इच्छा जाहिर की है। एक माह पूर्व दिए गए इस तरह के संकेत के बाद लगातार मानव संसाधन विभाग से जुडे अधिकारी अपने मंत्री महोदय की इच्छा पूर्ण करने में पिछले एक महीने से दिन-रात जुटे हुए हैं। इन्होंने देशभर में प्राचार्यों-अभिभावकों और विद्यार्थियों के बीच इस विषय को लेकर संवाद प्रकि’या भी प्रारंभ कर दी है।

अपने पक्ष में लेने के लिए इन आला अधिकारियों ने जो प्रश्न सूची तैयार की है वह ऐसी बनाई है कि कोई अनपढ अथवा शिक्षा जगत से इतर व्यक्ति भी इस प्रश्नावली के अनुसार पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हाँ में ही देगा। सवाल यह है कि आखिर मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ऐसा क्यों चाहते हैं? जबकि वह जानते हैं कि 10 वर्षों तक अध्ययन के बाद योग्यता की श्रेष्ठता को परखने तथा उसमें और अधिक निखार लाने के लिए निरपेक्ष मूल्याँकन किया जाना कितना आवश्यक है। यह तो हुई सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं की बात।

राज्यों के स्तर पर कक्षा 5,8 बोर्ड की परीक्षाएँ कुछ साल पहले तक अपनी-अपनी सुविधानुसार राज्यों में आयोजित की जाती रही हैं। यदि कपिल सिब्बल सीबीएसई पाठ्यक’म में 10 वीं बोर्ड समाप्त करने में सफल रहे तब निश्चित ही आगे मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्य भी 10 वीं को बोर्ड के मूल्यांकन से मुक्त कर दे। आज भारतीय मेधा दुनिया में अपना लोहा मनवाने के लिए प्रसिद्ध है। हाल ही में न केवल अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के राष्ट्र्पति बराक ओबामा ने स्वीकारा है, बल्कि पश्चिम सहित एशिया के सभी देश यह मानते हैं कि भारतीय शिक्षा प्रणाली की कार्य कुशलता और उसकी अधोसंरचना के परिणाम से ही हिन्दुस्तानी योग्यता पूरे विश्व पर छाने को तैयार हो रही है। यदि पिछले दिनों बराक ओबामा के द्वारा दिए गए भाषण पर गौर किया जाए तो वे अमेरिका में चल रही शिक्षा प्रणाली से संतुष्ट नहीं हैं। भारतीयों जैसी उच्च प्रतिभाओं के निर्माण हेतु उन्होंने हिन्दुस्तानी शिक्षा व्यवस्था की प्रशंसा की है।

भारतीय शिक्षा प्रणाली से सम्बन्धित प्राचीन कथा पर मानव संसाधन मंत्री विचार करते तो शायद इस आशय का वक्तव्य वह कभी नहीं देते कि बोर्ड परीक्षाओं को खासकर 10 वीं बोर्ड समाप्त कर दिया जाए। कथा का सार यह है कि जब प्राचीन भारत में नालन्दा विश्वविद्यालय था उसमें एक शिष्य 12 वर्षों तक शिक्षा ग’हण करने के बाद अपने घर जाने की आज्ञा लेने गुरू के पास पहुँचा। जिस पर गुरू ने शिष्य से केवल यही कहा था कि गुरूकुल के चारों ओर के वृक्षों-वनस्पितयों का अध्ययन कर बेकार पौधा मेरे पास लेकर आओ। सभी जानते हैं कि काफी मशक्कत व खोजबीन करने के बाद शिष्य खाली हाथ गुरू के पास लौट आया और उसने अपने गुरू से कहा कि सभी वनस्पतियों में औशधीय गुण है। यह सुनकर प्रसन्ननित हुए गुरू ने उसे घर जाने की आज्ञा दी थी। यह था प्राचीन भारतीय गुरूओं का परीक्षा लेने का तरीका। क्या आधुनिक भारत में ऐसा संभव है? यदि नहीं तब फिर कोई न कोई ऐसी व्यवस्था चाहिए जिसमें छात्र की योग्यता का समुचित विकास हो सके और वह भावी भारत के निर्माण में अपना योगदान दे। जब परीक्षा लेने का यह तरीका भी समाप्त हो जाएगा फिर भला योग्यता की परख कैसे संभव है? यदि बोर्ड परीक्षाएँ समाप्त कर दी जाएँ तब बच्चे जो बोर्ड परीक्षाओं के कारण अपने अच्छे रिजल्ट आने की आशा में परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे रहते हैं, वे क्या फिर बिना तैयारी के आगे बढ पायेंगे? और क्या वह वैश्विक स्तर पर आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने में सक्षम रहेंगे?

अभी आईआईएम, आईआईजी, केट जैसी उच्चस्तरीय प्रवेश परीक्षाओं में विद्यार्थियों को बोर्ड परीक्षा देने के कारण पढाई का 35 प्रतिशत लाभ मिलता है। वह क्या आगे मिल सकेगा? दुनिया में जब सर्वाइकल ऑफ दि फिटेस्ट की थ्योरी आई थी उसके पूर्व प्रकृति के निर्माण के साथ ही यह नियम आया था कि जो समय के साथ तालमेल करने में सफल रहेगा वही जीव जीवित रहने के साथ उत्तरोत्तार आगे बढेंगे। एक तरफ दिन-प’ति-दिन वैश्विक दबाव भारत पर पर बढ रहा है, दूसरी और हम अपने बच्चों की योग्यता कम करने का प्रयत्न करें, यह कहाँ तक उचित माना जाएगा।

सीबीएसई 10 वीं बोर्ड समाप्त करने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इसके कारण बच्चों को अधिक तनाव होता है। कुछ छात्र तो परीक्षाओं के कारण आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं। तब क्या इसके लिए केवल बोर्ड परीक्षाएँ ही जिम्मेदार हैं? या कि बच्चे का कमजोर व्यक्तित्व, उसकी सामाजिक-पारिवारिक पृष्ठभूमि उसे भावनात्मक स्तर पर मिलने वाला अपनत्व का सहयोग क्या कहीं जिम्मेदार नहीं? एक प्रश्न और उठता है कि जिस मूल्याँकन व्यवस्था के लागू करने की बात मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर रहा है क्या अभी उसके लिए देश के विद्यालय तैयार हैं? उनके पास वे सभी आमूलचूल सुविधाएँ हैं जिनकी अपरिहार्य आवश्यकता मंत्रालय ने सुनिश्चित की है।

पुरानी कहावत है ”करत-करत अभ्यास जडमति होत सुजान” भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अभी बार-बार अभ्यास पर जोर दिया जाता है। प्राचीन काल से यहाँ श्रुति परंपरा चली आ रही है जिसके महत्व को आज भी कोई नकार नहीं सकता है। प्राय: शिक्षा प्रणाली अधिकतर रटने और याद करने पर निर्भर है जिसके कारण हमारे छात्र अपना केंद्र बिन्दु निर्धारित कर पढाई करते हैं। आज जरूरत बोर्ड परीक्षाओं की समाप्ति की नहीं वरन ऐसे वातावरण के निर्माण की है जिसमें कि अन्य प्रकार की प्रतिभाओं को उभरने का अवसर मिले। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को इन बिन्दुओं पर भी विचार करना चाहिए।

2 COMMENTS

  1. श्री शर्मा जी नॆ अपनॆ लॆख मै जिस विशय का उल्लॆख किया है, वह् सराहनीय है

  2. इंसान की महत्वाकांक्षा और उसका स्वार्थ उसे किसी भी स्तर तक गिरा सकता है ! जब इंसान के दिलोदिमाग में कोई ऐसा फतूर घर कर जाए कि बिना ज्यादा मेहनत किये, कुछ ऐसा कर दिखाए कि लोग लम्बे समय तक जब भी उस बारे में बात हो, उसको याद करे, कि ऐसा उसके कार्यकाल के दौरान हुआ था, ( चाहे वो गालिया निकल कर ही क्यों न उसका स्मरण करे, उससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता ) ! इसका समाज पर आगे चलकर क्या असर पडेगा इससे उसे कुछ नहीं लेना देना होता है ! और फिर भारतीय नेतावो के तो क्या कहने ? ये जीते जी अपनी मूर्ती खडी कर देते है तो यह तो कुछ भी नहीं ! इनका इरादा आगे चलकर एक पढ़े लिखे मूर्खो की फौज देश में खडा करना मात्र है !

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