कविता
September 5, 2009 / December 26, 2011 by अमल कुमार श्रीवास्तव | 3 Comments on अमल कुमार श्रीवास्तव……..की कविता
न छेड़ो चिंगारियों को आग लग जाएंगी
जलजले उठ जाएंगे सारी चमन जल जाएंगी
न समझो इन्सानियत को हमारे तुम बेकारगी
जो खड़े हो गए भारत मां के सच्चे सपूत तो आतंकियों तुम्हारी अस्तित्व ही मिट जाएंगी।…
AAP KI KAVITA MAST HAI, ISME SANDESH BHI HAI KI…..
KAM ME SAARA JOSH, KI UTTHO AUR KARO UDGHOSH
बेहद खुब्सूरत रचना ……जिसमे आवेग है भावानाओ का……सुन्दर
अमल जी
आप कविता भी लिखते हैं , यह जानकारी नहीं थी ।
उत्तम कविता है ।