न छेड़ो चिंगारियों को आग लग जाएंगी
जलजले उठ जाएंगे सारी चमन जल जाएंगी
न समझो इन्सानियत को हमारे तुम बेकारगी
जो खड़े हो गए भारत मां के सच्चे सपूत तो आतंकियों तुम्हारी अस्तित्व ही मिट जाएंगी।…
न छेड़ो चिंगारियों को आग लग जाएंगी
जलजले उठ जाएंगे सारी चमन जल जाएंगी
न समझो इन्सानियत को हमारे तुम बेकारगी
जो खड़े हो गए भारत मां के सच्चे सपूत तो आतंकियों तुम्हारी अस्तित्व ही मिट जाएंगी।…
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।
AAP KI KAVITA MAST HAI, ISME SANDESH BHI HAI KI…..
KAM ME SAARA JOSH, KI UTTHO AUR KARO UDGHOSH
बेहद खुब्सूरत रचना ……जिसमे आवेग है भावानाओ का……सुन्दर
अमल जी
आप कविता भी लिखते हैं , यह जानकारी नहीं थी ।
उत्तम कविता है ।