‘अमेरिका के प्रो. सतीश भटनागर का गुरुकुल पौन्धा एवं तपोवन आश्रम का भ्रमण’

मनमोहन कुमार आर्य,

डा. सतीश भटनागर, आयु 79 वर्ष, अमेरिका में फिजिक्स, गणित आदि विषयों के प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि वहां रिटायरमेन्ट नहीं होता और मनुष्य जब तक स्वस्थ रहता है, कार्य कर सकता है। डा. भटनागर आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध संन्यासी स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी के भांजे हैं और उनकी गतिविधियों से बहुत निकटता से जुड़े रहे हैं। वह विगत 40 वर्ष से अधिक समय से अमेरिका में रह रहे हैं। आजकल वह देहरादून में आये हुए हैं। आज हमारी उनसे दूसरी बार भेंट हुई। हम दोनों ने पहली भेंट में 1 जुलाई, 2018 को आर्ष गुरुकुल पौंधा-देहरादून और वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून जाने का कार्यक्रम निश्चित किया था। आज हम पहले आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के सत्संग में सम्मिलित हुए। वहां देहरादून के दयानन्द ऐंग्लो वैदिक महाविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. नवदीप कुमार का व्याख्यान सुना और उसके बाद डा. सतीश भटनागर जी के निवास स्थान पर पहुंचे। कुछ देर बाद टैक्सी आ गई। हमने गुरुकुल पौंधा के आचार्य धनंजय जी को फोन किया। वह हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। लगभग 1 घंटे बाद हम गुरुकुल पौंधा पहुंचे। मार्ग में हम भारतीय वन अनुसंधान संस्थान तथा भारतीय सैन्य अकादमी के मुख्यालयों के सामने से गुजरें। इन दोनों संस्थानों के विशाल एवं भवन अंग्रेजों के समय के बनें हुए हैं जो आज भी बड़े भव्य हैं जिन्हें देखकर मनुष्य की रचनात्मक शक्ति पर आश्चर्य होता है। गुरुकुल पहुंच कर डा. धनंजय जी हमें मिले, उनके साथ हम उनके स्वागत कक्ष में बैठे और अनेक विषयों पर वार्तालाप किया। डा. धनंजय जी ने स्वामी दीक्षानन्द जी के अपने अनेक संस्मरणों से डा. सतीश भटनागर जी को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली में जब पहली बार वेद पारायण यज्ञ हुआ था तो स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी ने ही कराया था। अपने विद्यार्थी जीवन में अनेक बार आचार्य धनंजय गुरुकुल गौतम नगर, दिल्ली में स्वामी दीक्षानन्द जी की सेवा में रहे। उन्होंने डा. सतीश भटनागर जी को बताया कि कि सन् 2001 में वह स्वामी जी के साथ महाराष्ट्र के एक गुरुकुल के उत्सव में भी गये थे। सतीश जी ने बताया कि वह भी उस उत्सव में सम्म्लिित हुए थे। दोनों महानुभावों ने इस स्थान के अपने पुराने संस्मरणों को एक दूसरे को बताया। डा. सतीश जी ने बताया कि इसके बाद स्वामी दीक्षानन्द जी का स्वास्थ्य बिगड़ गया था। बहुत कहने पर स्वामी जी ने वहां एक होम्योपैथी के चिकित्सक को चैकअप कराया। उसने बताया था कि रोग बढ़ा हुआ है, अतः वह चिकित्सा नहीं कर सकते। स्वामी जी को उन्होंने किसी अच्छे एलोपैथी के चिकित्सालय में उपचार कराने की सलाहा दी थी। उसके बाद दिल्ली में आकर स्वामी जी ने अपने परिचित एक आयुर्वेदिक चिकित्सक को अपनी समस्या बताई। उन्होंने भी स्वामी जी को कहा कि आपका रोग बहुत बढ़ा हुआ है। आयुर्वेदिक पद्धति से आपकी चिकित्सा नहीं हो सकती। उसके बाद दिल्ली के प्रसिद्ध बतरा अस्पताल में स्वामी जी का चैकअप कराया गया। वहां पता चला कि स्वामी जी को हृदयघात हुआ है। चिकित्सा हुई और स्वामी जी को कुछ लाभ हुआ। सन् 2003 में स्वामी दीक्षानन्द जी का सम्भवतः उसी रोग से देहावसान हो गया।

आचार्य डा. धनंजय जी ने साहिबाबाद स्थित स्वामी जी द्वारा स्थापित समर्पणानन्द शोध संस्थान की भी चर्चा की। आचार्य जी ने कहा कि स्वामी दीक्षानन्द जी के लिखित, प्रकाशित व अप्रकाशित ग्रन्थों, यदि कोई हो, तो उनकी रक्षा व प्रकाशन की व्यवस्था की जानी चाहिये। डा. सतीश जी ने डा. कुसुमलता जी द्वारा पुरुष सूक्त पर पी.एच-डी. करने विषयक कुछ संस्करण भी हम सब से साझा किये। हमने भी डा. कुसुमलता जी के शोध प्रबन्ध को पढ़ा है। यह वैदिक साहित्य का उच्च कोटि का ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को पढ़कर डा. कुसुमलता जी की योग्तया के दर्शन होते हैं। आर्यसमाज के सभी विद्वानों को इस ग्रन्थ का अध्ययन करना चाहिये। इसमें वेद व वैदिक साहित्य से प्रमाण प्रस्तुत कर उनकी गम्भीर समीक्षा की गई है जिसे पढ़कर तथ्यों के प्रस्तुतीकरण व लेखिका महोदया की योग्यता का अनुभव कर पाठक की आत्मा आह्लादित हो जाती है। जब हम उसे पढ़ रहे थे तो हमें यह लग रहा था कि अवसर मिलने पर हम इस ग्रन्थ को एक बार और पढ़ेंगे। सतीश जी ने बताया कि इस ग्रन्थ के प्रकाशित हो जाने पर स्वामी दीक्षानन्द जी जहां भी जाते थे, इसे अपने पास रखते थे और आर्यसमाज के विद्वानों आदि से इसकी चर्चा करते थे। डा. धनंजय जी और डा. सतीश भटनागर जी का वार्तालाप हमने गुरुकुल के पुस्तकालय भवन में बैठकर किया। सतीश जी ने वहां विद्यमान ग्रन्थों पर भी एक दृष्टि डाली। तीनों ने वहां गुरुकुल की गोशाला के दुग्ध का पान भी किया। वार्तालाप समाप्त कर हम भोजन के लिए गुरुकुल के भोजन कक्ष में पहुंचे और भोजन किया।

भोजन के बाद गुरुकुल में ही बनावाई अपनी कुटिया में रह रहे आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक 90 वर्षीय पं. ओम्प्रकाश वम्र्मा, यमुनानगर से भी कुछ देर स्वामी दीक्षानन्द जी की चर्चा की। पंडित ओम्प्रकाश वर्मा जी ने स्वामी दीक्षानन्द जी से जुड़े अपने कुछ संस्मरण सुनायें। इन संस्मरणों में आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध विद्वान पं. शिवकुमार शास्त्री, सांसद के संस्मरण भी सुनने को मिले। वम्र्मा जी ने बताया कि वह जीवन के आरम्भ काल में आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के भजनोपदेशक रहे। उन्हें पंजाब के समाजों में ही जाकर प्रचार करना होता था। उन्होंने कहा कि लोग उनसे पूछते थे कि तुम घास पार्टी में हो या मांस पार्टी में हो। यह प्रश्न मुझे परेशान करता था। उन्होंने कहा कि मैं इस प्रश्न के उत्तर में कहता था कि मैं गाय का दूध पीने वाली पार्टी में हूं। उन्होंने बताया कि अनुकूल वातावरण न होने के कारण मैंने सभा के भजनोपदेशक पद से त्यागपत्र दे दिया था। स्वामी दीक्षानन्द जी को जब इसका पता चला तो उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और पूछताछ करने के बाद मुझे कहा कि आप मेरे साथ प्रचार पर चला करें। इसके बाद मैं अनेक वर्षों तक उनके साथ प्रचार पर जाता रहा और देश के कोने कोने में जाकर प्रचार किया। एक बार हैदराबाद की यात्रा में अचानक आर्यसमाज सुलतानबाजार, हैदराबाद पहुंचने पर वम्र्मा जी इन पंक्तियों के लेखक को वहां मिले थे। वम्र्मा जी देश की आजादी से पहले आर्यसमाज के भजनोपदेशक बने थे। उन्होंने अपने जीवन में 60 वर्ष से भी अधिक प्रचार किया।

वम्र्मा जी से मिलकर हम वैदिक साधन आश्रम तपोवन की ओर चले। दोनों संस्थाओं के बीच मार्ग की लम्बाई लगभग 21 किमी. है। लगभग 2 बजे हम तपोवन पहुंच गये। वहां हमने आश्रम के कार्यालय, उसका सभागार, उसमें लगे भव्य चित्रों जिसमें स्वामी दीक्षानन्द जी का भी भव्य चित्र लगा है, आश्रम की यज्ञशाला आदि स्थानों को देखा और उसके चित्र लिये। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी आज प्रातः देहरादून में आर्य महिला आश्रम, देहरादून के वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में उपस्थित रहे। वहां से निवृत्त होने के बाद वह आश्रम पहुंच गये। वहां कार्यालय में बैठकर हमने परस्पर वार्तालाप किया। वैदिक साधन आश्रम तपोवन स्वामी दीक्षानन्द जी का प्रिय आश्रम था। यहां वह अक्सर आते रहते थे और उत्सवों में वृहद यज्ञों का पौरोहित्य करते थे। उनकी मधुर वाणी को स्मरण कर आज भी मन में प्रसन्नता का अनुभव होता है। हम सौभाग्यशाली है कि हम उनके द्वारा तपोवन आश्रम में कराये वृहद यज्ञ सहित देहरादून के गांधी पार्क के वृहद यज्ञ में भी सम्मिलित हुए थे। अनेक बार स्वामी दीक्षानन्द जी के प्रवचनों को भी हमने सुना था। श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने डा. सतीश भटनागर जी को बताया कि आश्रम में प्रत्येक वर्ष स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती का जन्म दिवस उत्सव के रूप में वृहद स्तर पर मनाया जाता है और उनकी स्मृति में आर्य विद्वानों को पुरस्कार भी दिये जाते हैं। शर्मा जी ने हम सबको जलपान कराया। डा. सतीश जी ने आश्रम व गुरुकुल दोनों संस्थाओं को अपनी ओर कुछ धन दान दिया। शर्मा जी ने बाहर आकर डा. सतीश जी को विदाई दी।

यहां से हम आश्रम की पहाड़ियों पर स्थित तपोभूमि आश्रम में गये। वहां हमने अतिथि महानुभाव को वृहद यज्ञशाला, वृहद सभागार व अतिथि कक्षों को दिखाया और उन्हें बताया कि यहां वर्ष में अनेक बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती के सान्निध्य में चतुर्वेदपारायण यज्ञ सहित प्राकृतिक चिकित्सा शिविर व आश्रम के उत्सव आदि को वृहद स्तर पर मनाया जाता है। स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी आज आश्रम से बाहर गये हुए थे। वहां उपस्थित एक वानप्रस्थी जो हमसे परिचित हैं। वह आश्रम में साधना करने सहित आश्रम को अपनी सेवायें दे रहे हैं, उन्होंने भी स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के वैदिक धर्म व यज्ञों के प्रति त्याग भावना का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया। उन्होंनें बताया कि यहां जो चतुर्वेद पारायण यज्ञ होता है उसमें लगभग 10 से 12 क्विंटल शुद्ध गो घृत लगता है। स्वामी जी कभी किसी से दान नहीं मांगते। जो देना चाहे अपनी इच्छा से ही देता है। सभी कामों की पूर्ति वह अपने परिवार से धन लेकर करते हैं। यहां तक लोगों को प्रेरित करते हैं कि तुम वृहद यज्ञों का आयोजन करो, उसकी घृत व सामग्री की व्यवस्था वह करेंगे। वानप्रस्थी महानुभाव ने हमें यह भी बताया कि आश्रम के यशस्वी मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी आगामी 18 अगस्त, 2018 को वानप्रस्थ ले रहे हैं। वानप्रस्थ संस्कार के बाद वह अपने घर में न रहकर आश्रम में ही रहा करेंगे। यह निर्णय आसान नहीं है। आश्रम वनों के बीच में है जहां आसपास कोई बस्ती व वाहनों की हल चल नहीं है। गोबाइल का नैटवर्क भी ठीक से वहां आता नहीं है। श्री शर्मा जी इस वर्ष होली पर्व से पूर्व आयोजित चतुर्वेद पारायण यज्ञ में यजमान के रूप में एक माह तक उपस्थित रहे थे। यहां अधिकांश समय मौन भी रहना पड़ता है। एक माह तक चले यज्ञ में अनेक कठोर बन्धनों का उन्होंने पालन किया था।

वहां कुछ समय बिताकर और आश्रम के भवन व कुटियाओं आदि को देखकर हम दोनों वहां से अपने अपने निवासों पर लौट आये। डा. सतीश भटनागर जी ने बताया कि वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आने की उनकी वर्षों पुरानी इच्छा आज पूरी हुई है। इससे वह सन्तुष्ट हैं। इसके लिए उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद किया। गुरुकुल पौंधा देखकर भी वह अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुए।

1 COMMENT

  1. आदरणीय लेखक श्री मनमोहन कुमार आर्य जी.
    नमस्कार.
    एक सांस्कृतिक व्यक्तित्व का परिचय कराता सुंदर आलेख लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
    एक प्रार्थना:
    यदि प्रोफ़ेसर श्री भटनागर जी उचित समझे तो उनका सम्पर्क मुझे इ मैल पते पर भेजने की कृपा करें.
    अवसर मिलने पर सम्पर्क और भेंट करना चाहूँगा.
    मेरा इ. मैल: mjhaveri@umassd.edu
    High Priority शीर्षक तले भेजिएगा.
    डॉ. मधुसूदन

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