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- योगेश कुमार गोयल
तीखे तेवरों के साथ आम आदमी की आवाज को बुलंद करने के लिए विख्यात नेशनल अकाली दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष परमजीत ंिसह पम्मा वैसे तो विगत 25 वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रामलीला मैदान सहित अन्य प्रमुख स्थलों पर धरने-प्रदर्शन करते रहे हैं लेकिन ज्यादा चर्चा में वह उस समय आए थे, जब 2015 में एक प्रमुख सोशल मीडिया साइट ने देशभर में कराए एक व्यापक सर्वे के बाद उन्हें ‘देश का सबसे गुस्सैल आदमी’ का खिताब दिया था। उस समय बीबीसी सहित देश के तमाम बड़े मीडिया समूहों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। बीबीसी ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में लिखा था, ‘‘बीबीसी ने आखिरकार सबसे ग़ुस्सैल आदमी को खोज निकाला और यह व्यक्ति हैं परमजीत सिंह पम्मा, जो ‘दिल्ली की सड़कों पर विरोध की आवाज’ हैं और कुछ वर्षों से तमाम तरह के मुद्दों पर दिल्ली की सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन करते रहे हैं।’’
महज पांच फुट के छोटे से कद के पम्मा पिछले 25 वर्षों से आतंकवाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने के अलावा देश के आम लोगों की आवाज बनकर भी उभरे हैं। पैट्रोल, डीजल, रसोई गैस की बढ़ती कीमतें हों या फल-सब्जियों के आसमान छूते दाम अथवा टीवी पर बढ़ती अश्लीलता या जन-सरोकारों से जुड़े ऐसे ही अन्य मुद्दे, वह सदैव हर राजनीतिक दल की सरकार के खिलाफ आम आदमी के हक में उनकी आवाज बनकर सामने आए। समाज से सामाजिक बुराईयों के निवारण के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहे हैं। बच्चों के भविष्य को खराब होने से बचाने के लिए उन्होंने पब्जी सहित अन्य ऑनलाइन खेलों को बंद करवाने के लिए भी आवाज बुलंद की। हालांकि 25 साल पूर्व वर्ष 1996 में उन्होंने सिख राजनीति में पैर जमाने के लिए ‘नेशनल अकाली दल’ का गठन किया था लेकिन भ्रष्टाचार में डूबी अकाली दल की राजनीति उन्हें रास नहीं आई, इसीलिए अपने पिता जत्थेदार त्रिलोचन सिंह के पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होंने अपनी राह राजनीतिक दलों से अलग कर आम लोगों की आवाज बनने का फैसला किया।
वर्ष 1995 में पम्मा ने 16 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ अपने पहले विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था और उसके बाद से वे निरन्तर जनता के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। समाज की भलाई के लिए उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की बदौलत अनेक सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने तो उन्हें सम्मानित कर उनका और उनके साथियों का समय-समय पर हौंसला बढ़ाया ही है, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित अनेक दिग्गज राजनीतिज्ञ भी उनके सामाजिक कार्यों की सराहना कर चुके हैं। कुछ वर्ष पूर्व ब्रिटेन में सिख समाज की पगड़ी के मुद्दे को लेेकर पम्मा और उनके संगठन ने महारानी एलिजाबेथ के भारत आगमन पर उन्हें काले झंडे दिखाए थे, जिसके बाद अंततः ब्रिटेन सरकार ने उनको पत्र लिखकर कहा था कि उनकी मांग को स्वीकार कर पगड़ी का सम्मान किया जाएगा। वह 2010 में भारतीयों पर हुए नस्ली हमलों के खिलाफ आस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रड का पुतला जलाते हुए बड़ा विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। इसके अलावा 2012 में उन्होंने अमेरिका के विस्कॉन्सिन में एक गुरुद्वारे में हुई गोलीबारी के खिलाफ प्रदर्शन करके भी अपने गुस्से को दुनिया के समक्ष अभिव्यक्त किया था। कुछ वर्ष पूर्व एक प्रमुख भारतीय टीवी न्यूज चैनल ने उनकी जीवन यात्रा पर एक वृत्तचित्र प्रसारित किया था और हाल ही में कुछ पंजाबी गीतकारों और गायकों ने उनके व्यक्तित्व पर कुछ गीत भी फिल्माए हैं।
भारत के सबसे एंग्री मैन का खिताब दिए जाने के बारे में बात करने पर पम्मा बताते हैं कि उनके गुस्से की वजह सिस्टम है और उनके अंदर सिस्टम के खिलाफ गुस्सा है। दरअसल आज देश का किसान, जवान मर रहा है, आम आदमी परेशान है, बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा है, पैट्रोल, डीजल तथा सभी खाद्य पदार्थ महंगे हो रहे हैं, इन सब मामलों पर उन्हें गुस्सा आता है। वह एक आम आदमी हैं और जब कोई आम आदमी किसी भी वजह से परेशान होता है तो उन्हें ग़ुस्सा आता है। आम आदमी की ऐसी ही परेशानियों के विरोध में आक्रामक तरीके से किए जाने वाले विरोध प्रदर्शनों में उनका यही गुस्सा परिलक्षित होता रहा है और इसी गुस्से के साथ दिल्ली की सड़कों पर लगातार आम आदमी की आवाज बुलंद करने के कारण ही उन्हें देश के सबसे गुस्सैल व्यक्ति के खिताब से नवाजा गया। वह बताते हैं कि उनका गुस्सा लोगों पर निर्देशित नहीं है बल्कि यह सिस्टम पर, सरकार पर और मुद्दों पर निर्देशित होता है। वह कहते हैं कि अब सरकारों की आदत बन गई है कि जब तक कोई परेशान होकर आवाज नहीं उठाता, वह नहीं सुनती।
सामाजिक कार्यों के प्रति उनकी ईमानदारी और समर्पण को देखते हुए हालांकि उन्हें दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों सहित कई राजनीतिक दल अपनी पार्टी में शामिल होने का न्यौता कई अवसरों पर दे चुके हैं लेकिन पम्मा का कहना है कि उनका उद्देश्य सीधे तौर पर किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होकर अपने राजनीतिक हित साधना नहीं है बल्कि जनता के हित की आवाज सड़कों पर उठाकर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयास करके ही उन्हें मानसिक सुकून मिलता है। प्रत्येक नागरिक को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना, प्रत्येक छात्र के लिए महाविद्यालय में प्रवेश का प्रावधान करना, युवाओं के लिए सोशल मीडिया का दुरूपयोग बंद करना इत्यादि उनके एजेंडे में प्रमुख रूप से शामिल हैं। बातचीत के दौरान वह बताते हैं कि इन ढ़ाई दशकों में विरोध प्रदर्शनों के कारण उन्होंने कई बार पुलिस की लाठियां खाई हैं, वाटर केनन की मार झेली है, अपने साथियों के साथ अनेक बार गिरफ्तारियां दी हैं लेकिन वे अपने इरादों पर अडिग रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि उन्हें सबसे ज्यादा गुस्सा किस पर आता है, वह तपाक से कहते हैं ‘पाकिस्तान’। दरअसल उनके मुताबिक उन्हें दो चीजों पर सबसे ज्यादा गु्स्सा आता है, पहला, महंगाई और दूसरा, जब पाकिस्तान हमारे फौजियों को शहीद करता है। पम्मा कहते हैं कि वह पूरे दिल से विरोध-प्रदर्शन करते हैं और जब मामला पाकिस्तान का आता है तो उनकी आवाज सबसे तेज होती है और वह शब्दों में बयान नहीं कर सकते कि जब वह पाकिस्तान के खिलाफ या भारतीय सेना से जुड़े किसी मुद्दे पर प्रदर्शन करते हैं तो कितने ग़ुस्से में होते हैं।