अन्ना हजारे, एनजीओ राजनीति और मीडिया का कटु सत्य

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

अन्ना हजारे वायदे के मुताबिक आज सुबह 10 बजे अनशन तोड़ देंगे और अपने ठीया पर चले जाएंगे। अन्ना हजारे का अनशन निश्चित रूप से एक सकारात्मक अनशन था। यह अनशन नव्य उदार राजनीति की दबाब की राजनीति का हिस्सा है। नव्य उदार राजनीति अनेक काम जनता के दबाब से करती है।सत्ता पर्दे के पीछे रहती है और आंदोलनकारी आगे रहते है। यह पॉलिटिक्स फ्रॉम विलो का खेल है। आम तौर पर जमीनी राजनीति प्रतिवादी होती है रीयलसेंस में। लेकिन नव्य उदार परिप्रेक्ष्य में काम करने वाले संगठनों के द्वारा सत्ता,संगठन और आंदोलन का दबाब की राजनीति के लिए इस्तेमाल हो रहा है। अन्ना हजारे का आमरण अनशन उसका ही हिस्सा है।

अन्ना हजारे ने जो कहा और किया है उस पर कम से कम इस आंदोलन के संदर्भ में गंभीरता के ताथ विचार करने की जरूरत है। अन्ना का मानना है लोकपाल बिल के लिए जो कमेटी बने उसका प्रधान किसी ऐसे व्यक्ति को बनाया जाए जो अ-राजनीतिक हो। आयरनी यह है कि अन्ना की तरफ से सह-अध्यक्ष के रूप में शांतिभूषण का नाम दिया गया जो आजीवन राजनीति करते रहे हैं ,देश के कानून मंत्री रहे हैं। वे वाम ऱूझान की राजनीति करते रहे हैं। अतः अन्ना की कथनी और करनी में अंतर है।

दूसरी बात यह कि एनजीओ की राजनीति करने वाले संगठनों में सूचना अधिकार रक्षा आंदोलन से जुड़े केजरीवाल भी राजनीति कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि वे किसी दल से जुड़े नहीं हैं। जनाधिकार,मानवाधिकार आंदोलनों से जुड़े प्रशांतभूषण पेशे से वकील है लेकिन मानवाधिकार राजनीति से जुड़े हैं। हां संतोष हेगडे राजनीति से जुड़े नहीं हैं। उससे भी बडा सवाल यह है कि एनजीओ वाले जिस अ-राजनीति की राजनीति की हिमायत करते हैं उसका लक्ष्य भी राजनीति है।

भारतीय लोकतंत्र में नामांकित लोकतंत्र नहीं चलता जैसा अन्ना हजारे और उनके जैसे समाजसेवी सोच रहे हैं। वे जानते हैं कि अमेरिका में सिविल सोसायटी आंदोलन बहुत ताकतवर है लेकिन वे लोकतंत्र में चुनाव नहीं जीत पाते।सिविल सोसायटी आंदोलन का आर्थिक स्रोत है कारपोरेट घराने। अन्ना हजारे और उनके समर्थकों को राजनीति की गंदगी को साफ करना है तो उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए। चुनाव लड़कर ईमानदार छवि के लोगों को जिताना चाहिए। वे यह भी देखें कि आम जनता कितनी उनकी सुनती है ? कितना उनके साथ है ?यह भी तय हो जाएगा कि मोमबत्ती मार्च और जनता के मार्च में कितना साम्य और बैषम्य है ? मोमबत्ती वाले युवा कितने टिकाऊ हैं ? कितने संघर्षशील है ?

 

अन्ना हजारे जानते हैं तथाकथित सिविल सोसायटी के नेतागण सिर्फ मीडियावीर हैं। जनता में बहुमत का समर्थन पाना उनके बूते के बाहर है। लोकतंत्र को हम सिविल सोसायटी के नाम पर ऐसे लोगों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ सकते जिनकी कोई राजनीतिक जिम्मेदारी नहीं है।भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबू जयप्रकाश नारायण का जनता पार्टी का प्रयोग पूरी तरह फेल हुआ है। केन्द्र में सत्ता मिलने के बाबजूद जनता पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल पास नहीं करवा पायी। उस सरकार में स्वयं शांतिभूषण भी थे। आज वही शांतिभूषण कह रहे हैं कि हम 1978 का लोकपाल बिल पास कराना चाहते हैं। अजब बात है जब स्वयं सत्ता में थे तो कर नहीं पाए और अब दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना चाहते हैं।

 

अन्ना हजारे जानते हैं राजनीतिक दलों में वामपंथियों ने लंबे समय से लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री को भी शामिल करने की मांग की थी,उस समय इसका सभी ने विरोध किया। यहां तक बाबू जयप्रकाश नारायण भी पीछे हट गए।भाजपा और कांग्रेस ने भी विरोध किया था। खैर अब देखना होगा कि वामदलों की लोकपाल बिल के बारे में एक जमाने में सुझायी सिफारिशों के अलावा कौन सी नई चीज है जिसे नयी कमेटी सामने लाती है।

अन्ना हजारे का टेलीविजन चैनलों से जिस तरह धारावाहिक कवरेज हुआ है वह अपने आप में खुशी की बात है लेकिन इस कवरेज में एक बात साफ निकलकर आयी है लोग भ्रष्टाचार से दुखी हैं। वे इससे मुक्ति की आशा में ही आए थे,लेकिन लोकपाल बिल का आम जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध जन प्रतिनिधि के भ्रष्टाचार से है। सरकारी अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी ढ़ेर सारे कानून आज भी हैं और सबसे ज्यादा भ्रष्ट कौन हैं ? हमारे आईएएस-आईपीएस अफसरान ।

विगत 60 सालों में भ्रष्ट अफसरों की एक पूरी पीढ़ी पैदा हुई है। यह पीढ़ी भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के होते हुए पैदा हुई है। इनसे भी ज्यादा करप्ट हैं देशी-विदेशी कारपोरेट घराने जो येन-केन प्रकारेण काम निकालने के लिए खुलेआम भ्रष्ट तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। कारपोरेट भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे ने कोई मांग क्यों नहीं उठायी ? अन्ना जानते हैं कि सरकारी बैंकों का 80 हजार करोड़ रूपया बिना वसूली के डूबा पड़ा है और उसमें बड़ी रकम कारपोरेट घरानों के पास फंसी पड़ी है। क्या कोई समाधान है जन लोकपाल बिल में ?कारपोरेट करप्शन के 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में हाल के बरसों में टाटा-अम्बानी आदि का नाम आया है। क्या राय है अन्ना हजारे की ? किसने हल्ला मचाया करपोरेट लूट के खिलाफ ? राजनीतिक दलों ने।

 

देश के एनजीओ आंदोलन की धुरी है देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों का डोनेशन। इसके जरिए विभिन्न स्रोतों से 5 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा पैसा विदेशों से एनजीओ संगठनों को आ रहा है । क्या गांधी के अनुयायियों को यह पैसा लेना शोभा देता है ? गांधी ने भारत में आंदोलन के लिए विदेशी धन नहीं लिया था। लेकिन एनजीओ आंदोलन,सिविल सोसायटी आंदोलन , तथाकथित गांधीवादी,मानवाधिकारवादी,पर्यावरणपंथी संगठन विदेशी फंडिंग से चल रहे हैं।

सवाल यह है कि वे देश की जनता की सेवा के लिए यहां की जनता से चंदा लें,विदेशी ट्रस्टों,थिंकटैंकों,कारपोरेट धर्मादा दानदाता संस्थाओं से चंदा क्यों लेते हैं ? क्या यह गांधीवादी राजनीति के साथ राजनीतिक भ्रष्टाचार नहीं है ?यदि है तो अन्ना हजारे सबसे पहले एनजीओ संगठनों को विदेशी धन लेकर संघर्ष करने से रोकें। ध्यान रहे एनजीओ को विदेशी धन ही नहीं आ रहा , राजनीति करने के विदेशी विचार भी सप्लाई किए जा रहे हैं। वे विदेशी राजनीति की भारतीय चौकी के रूप में काम कर रहे हैं। काश अन्ना उसे रोक पाते !

15 COMMENTS

  1. आदरणीय जगदीश्वर जी के लेख का पुरे सारा के बहुत मतलब निकलते है. श्री अन्ना हजारे जी का नाम नया नहीं है. स्कूल की किताबो में इनके बारे में विस्तार से पाठ्य जाता है. डॉ. कपूर जी ने इनके बारे में लिख दिया है.
    अन्ना जी ने लोकपाल बिल के द्वारा आम आदमी पर होने वाले और आम आदमी द्वारा किया जाने वाले भ्रस्ताचार के खिलाफ लोगो को जागरूक किया है. हमारे देश में सभी चाहते है की भ्रष्टाचार ख़त्म हो किन्तु कौन शुरुआत करे. इस बिल के द्वारा भ्रस्ताचार ख़त्म होगा तो छोटे स्तर (क्लर्क बाबु) से लेकर आई.ए.स./ मत्री स्तर तक ख़त्म होने लगेगा और हर सरकारी योजना का लाभ निचे तक पह्चेगा. एक दिन ८० लाख करोड़ भी वापस आएगा. अगर नहीं आया तो आगे से बाहर नहीं जाएगा.
    हमारे देश में कई लाख NGO काम करते है. कुछ बहुत अच्छा काम भी कर रहे है और पैसा बाहर से नहीं लेते है. श्री जगदीश्वर जी से आग्रह है की जो NGO बाहर से पैसा ले रहे है और विदेशी विचार भी सप्लाई किए जा रहे हैं उनका नाम उजागर करे तो कम से कम लोग उनके बारे में जानेंगे तो.

  2. नोट : नीचे लिखी टिप्पणी केवल आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी को ही सम्बोधित हैं और उन्हीं से प्रतिउत्तर की भी अपेक्षा है, यद्यपि आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी प्रतिउत्तर लिखने के लिये बाध्य नहीं हैं| अन्य सम्माननीय पाठकों को इस बारे में टिप्पणी करने का हक है, जिसका मैं समर्थन भी करता हूँ, लेकिन साथ ही विनम्र आग्रह भी है कि कृपया आदरणीय श्री डॉ. कपूर जी को ही टिप्पणी करने दें| अन्य कोई पाठक आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी की टिप्पणियॉं पूर्ण होने तक इस बारे में अपनी राय व्यक्त करके मुझसे अपनी टिप्पणी के बारे में प्रतिउत्तर की अपेक्षा नहीं करें तो बेहतर होगा| इसके लिये मैं आप सभी का आभारी रहूँगा| आगे आप सबकी इच्छा सर्वोपरि है|

    धन्यवाद|

    आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी, आप दूसरों को योग और शान्ति की की शरण में जाने की और योग तथा शांति के बहाने बाबा रामदेव तथा रवि शंकर को अपना हितैषी मानाने की शिक्षा देते रहते हैं| जबकि ये दोनों ही भारत के नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (आर एस एस) के शुभचिंतक हैं!

    इसके ठीक विपरीत आपकी जगह-जगह पर प्रदर्शित टिप्पणियों को पढकर तो ऐसा लगता है कि आपके मनोमस्तिष्क पर विद्वेष, घृणा, पूर्वाग्रह, जातिवाद, वर्णवाद, साम्प्रदायिता, धार्मिक उन्माद, दलित-आदिवासी और पिछड़ों की प्रगति के प्रति विरोध आदि मानसिक विकृतियों का कब्ज़ा है तथा आपके दिमांग में अल्पसंख्यकों के प्रति भयंकर वितृष्णा भरी हुई है और लगता है कि आप अनेक मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं| (काश मेरी यह सोच गलत हो और आप स्वस्थ हों)

    अत: बेहतर होगा कि आप दूसरों को सलाह देने से पूर्व अपना मानसिक उपचार करावें| आप जगह-जगह दूसरों को ललकारते रहते हैं| ( यह भी इस बात का संकेत है की आपके मनोमस्तिष्क पर मानसिक विकृतियों का कब्ज़ा है) आपकी टिप्पणियों को पढ़ने पर एक सामान्य व्यक्ति को ऐसा लगता है, मानों विद्वता, सुसंस्कृतता और देशभक्ति का ठेका अकेले आपने ही ले रखा है|

    अनेकों स्थानों पर आपने मेरा (यदि आपकी टिप्पणियों में डॉ. मीना/मीणा लिखने का मतलब मुझसे ही है तो) उल्लेख करके मुझसे अकारण टिप्पणी मांगी हैं, लेकिन मेरे उन आलेखों पर आपकी एक भी टिप्पणी नहीं हैं, जिनपर टिप्पणी करते ही आप जैसों को मुखौटे उघड़ जाने का खतरा नजर आता है|

    आदरणीय आप उम्र और अनुभव में (सम्भवत:) मुझसे बड़े हैं, इसलिये मैं आपको आपकी भॉंति ललकारूँगा नहीं, बल्कि आपसे निवेदन की भाषा में ही आग्रह करना चाहूँगा कि आप प्रवक्ता पर प्रकाशित मेरे आलेख ‘‘हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दुवादी सरकार?’’ पर अपनी समग्र और ईमानदार टिप्पणी बिन्दुबार विस्तार से करके दिखावें| फिर आपसे संवाद को आगे बढाना मुश्किल नहीं होगा|

    आपसे विनम्र आग्रह है कि आप जिन भी संस्कारों में पले-बढे हों, लेकिन आप अपने आपको भारतीय संस्कृति का वाहक और संरक्षक मानने का दम्भ भरते हैं, परन्तु दु:ख के साथ लिखने को विवश हूँ कि आपकी टिप्पणियॉं भारतीय संस्कृति और बहुसंख्यक (अनार्य) भारत को अपमानित और बदनाम करने वाली होती हैं!

    आशा है कि आप मेरे विनम्र निवेदन पर विचार करेंगे और मेरे आलेख ‘‘हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दुवादी सरकार?’’पर अपनी टिप्पणी विस्तार से लिखेंगे| जिससे कि आगे से संवाद कायम करे|

    यदि आपको मेरी भाषा के कारण तकलीफ हुई हो या आपको किसी प्रकार का आघात पहुँचा हो तो उसके लिये मैं कोई क्षमायाचना नहीं करूँगा, क्योंकि आप इसी प्रकार की टिप्पणी प्राप्त करने के पात्र हैं|

    किसी भी व्यक्ति को वही मिलता है, जिसकी वह आकांक्षा करता है| संसार का सनातन सत्य है कि दूसरों का अहित चाहने वाला या दूसरों को स्वयं से निम्नतर समझने वाला कभी सुख, शान्ति, स्वास्थ्य और सम्पन्नता का रसास्वादन नहीं कर सकता|

    यदि आप शान्ति चाहते हैं तो दूसरों को शान्त रहने दें| यदि अपने धर्म का भला चाहते हैं तो दूसरों के धार्मिक मामलों में अनाधिकार हस्तक्षेप नहीं करें| यदि इस देश के दस प्रतिशत आर्य ९० प्रतिशत अनार्यों पर शासन करना चाहते हैं तो अनार्यों को अपमानित और तिरस्कृत करना बन्द करें|

    परमात्मा सभी को शान्ति, स्वास्थ्य, सुद्बुद्धि, सुख और सम्पन्नता प्रदान करें|

    सभी का शुभाकांक्षी
    सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  3. में तो पहले भी कह रहा था चतुर्वेदी जी केवल लाल चश्मा पहनके दुनिया को देखते है,हालांकि वे हम सब लोगों के हिसाब से वे मात्र दया के पात्र हैं, अन्ना ने ने जो कुछ किया हो भले ही मिडिया अपने हिसाब से इसे दिखाए लेकिन यह भी सच है की पूरी दुनिया को इस बात की जानकारी तो हो गयी की इस देश के कार्यकर्ता कितने भ्रष्ट हैं.चतुर्वेदी जी आप मत ध्यान दो इन बातों पर आप केवल पठन पाठन पर ध्यान दो आप की समाजवादी की परिकल्पना कभी साकार होने वाली नहीं है.

  4. अन्ना हजारे दुवरा भर्ष्टाचार विरोधी मुहीम व पुरे देश की जनता का एक साथ खड़ा होना किसी चमत्कार से कम नही था वास्तव में देस की जनता भर्ष्ट विवस्था से पूरी तरहे दुखी हए

  5. sir ji desh ek anna ke hone kaam nahi chalega………………… pure desh ko anna ki vichar dharo ke satha chalna hoga ……….. tabhi desh me bhirasthachar mitega ……………… nahi to kahi na kahi hum bhi iske liye doshi hai …………… kisi kaam ke liye jab hum jate hai to hum hi log in netao se paiso ko baat karte hai aapna kaam karwane ke liye

  6. Hello India…..
    Sabse pahale mai anna hajare ko sadhuwad deta hun. aour ye bhi kahata hun ki unhe bharat ratna bhi milane me bhi koi shak nahi…aour chatuvedi ji ki soch me ek us bhartiya ka dard chhupa huaa hai jo kai aise mouke ko dekh chuka hai aour thaga gaya hai… Anna ji ne jo sarthak kadam uthya hai kani unhi ke anuyaee hi unhe kutharagaat na kar de aour lokpaal to dur hame ees aandolan ko bhulane ke liye rajneta naye ghatana ko badawa de kar janta ko gumraha karne me koi gurej nahi karenge…chaturvedi ji ka ye kahana ki shntibhushan ji jo khud ek kanoon mantri rahe hai aise rajneta ko aour aise anya ko anna ji ko badawa nahi dena chahiye ..anyatha hum fir thge jayenge..eesliye jo uawa mombati uthaye nara laga rahe the yadi usme se kewal 10 pratishat sachhe ho kar aandolan me bhaag le to bharat ka bhawishya sudhar jayega …kyonki us marchpast me aadhikansh N G O ke karmchaari the…aour hamare india me n g o kitane paksaaf hai sab log achhe se jaante hai…isliye mai kahata hun ki abhi bhi wakt hai uawano ko aage aana hoga….See More

  7. अन्ना हजारे में तो दस दोष नज़र आ रहे है पर हसन अली जैसे अपराधियों के कहने से चलने वाली सरकार और अपराधियों के रक्षक इन महां भ्रष्ट नेताओं में तो कोई दोष नहीं है न ?
    – अरे भाई अगर नीयत ठीक है तो बेईमानों के विरुद्ध जो एक मजबूत आन्दोलन आकार ले रहा है, उसे बल प्रदान करो . वरना ये प्रवाह अब रुकने वाला नहीं. जो रुकावट बनेगा सो मिटेगा. जन सैलाब के आगे कोई टिक न सकेगा.
    – कुछ अता-पता भी है या यूँही हवा में तलवार घुमा रहे हो ? जिन अन्ना हजारे पर उंगली उठा रहे हो वे ३५ साल से रालेगन सिंदी में इमानदारी से अद्भुत विकास और सुधार का काम बड़ी इमानदारी के साथ कर रहे हैं. इन्हें पद्म विभूषण किसी बेईमान नेता की सिफारिश से नहीं मिला.महाराष्ट्र सरकार इनसे यूँही नहीं डरती., उसे कई बार नकेल डाल चुके हैं.
    – एक और खतरनाक सूचना इनके बारे में देदूं. इनके ग्रामों में कोई कुत्ता, बिल्ली घुसे तो घुसे; नेता नहीं घुस सकता. उनके लिए ग्राम की सीमा से बाहर ही एक अतिथि गृह बना है. वहाँ तक जाओ, अपनी रागिनी गाओ और वापिस जाओ; गाँव में घुसने का कुअवसर राजनैतिक नेता को कभी नहीं देते.
    – ३०-३५ साल से इनके विकसित ग्रामों में बीडी, सिगरेट, शराब आदि दुर्व्यसन (और नेता) घुस नहीं सके.
    – अना हजारे का एक और कमाल बतालादूं जिस से सज्जनों का साहस बढे और दुर्जनों के हौंसले पस्त हों. ३५ साल पहले जब ये सेना से वापिस आये तो इनके गाँव में लगभग ४० शराब निकालने के गैरकानूनी अड्डे थे. खेतीबाड़ी की जगह शराब और अपराध ही धंधा था. गरीबी, भुखमरी, गन्दगी का राज्य था. इनके व्यक्तित्व का जादू है कि अब उस गाँव में व आसपास के ग्रामों में समृधी, सफलता, प्रेम बरसता है. छुआ-छूत नाम की बिमारी कहीं नहीं. ( डा. मीना जी को जानकार काफी कष्ट होगा )
    – आज इनका ग्राम देश के सबसे समृद्ध ग्रामों में से एक है. आसपास के ग्राम भी इनके माडल पर तेज़ी से विकसित हुए और हो रहे हैं.
    – ऐसे महामानव के द्वारा देश के कल्याण के प्रयासों में अडंगा लगाने वाले देश के दुश्मन नहीं तो और क्या हैं? देसी-विदेशी अपराधियों के छुपे एजेंट हो सकते हैं न ? या फिर अति नासमझ, नकारात्मक सोच के स्वामी जो देश ही नहीं , अपने खुद के भी दुश्मन होते हैं.
    – अतः ऐसों से सावधान रहना होगा, बच कर रहना होगा. ऐसों की समय-समय उपेक्षा व भर्त्सना करते रहना ज़रूरी है. ईश्वर इन्हें सदबुधि प्रदान करे.
    – और सबसे ज़रूरी है कि अपने क्षुद्र स्वार्थों से थोड़ा ऊपर उठ कर जापानी, इस्राईली, जर्मन कि तरह अपने देश और समाज के सुधार, विकास, कल्याण के किसी भी एक-आध काम में कुछ न कुछ योगदान ज़रूर करें. तभी आपको कुछ कहने- बोलने का अधिकार है. केवल उपदेश और आलोचना से हमारे, आपके व देश के हालत सुधारने वाले नहीं.
    – शक्ति, साहस, सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ‘ आर्ट ऑफ़ लिविंग’ ; ‘ पतंजलि योग पीठ’ आदि किसी से साधना-योग-प्राणायाम का प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए.
    – किसी के प्रति द्वेष कि भावना से नहीं, सबके कल्याण कि कामना से लिखा है. किसी को इससे कष्ट हो तो क्षमा. इति शुभम.

  8. अगर लेखक वामपंथी ना होते तो इनके लेख को कम से कम समय काटने के लिए पढ़ा जा सकता था,

  9. Really it is matter of concern but there is vaccum of leadership and at least Anna Hazare has given a voice to people of India and brought the curruption on centre stage. corruption has become the cancer in society and individual honesty is required to fight because we have to change our mindset where money is dominating and other qualities has bcome secondry in the society.

  10. डा. चतुर्वेदी जी जैसे पूर्वाग्रही व दुराग्रही वामपंथी सज्जन (?) से कुछ कहना समय का दूर उपयोग है. पर हमारे लिए उन मुद्दों को समझ लेना ज़रूरी है जिन के द्वारा देश की जनता को भटकाने, भ्रमित करने के प्रयास भारतीय जागरण और शक्तिकरण के शत्रु कर रहे हैं व करेंगे.
    – अन्ना हजारे जैसे पाक साफ़ नेता पर आरोप लगाने की असभ्यता की गयी है की उनकी कथनी-करनी एक नहीं है. इस से कहने वाले की सोच, नीयत व स्तर का पता चल रहा है. इस बात पर कोई और टिपण्णी करने की ज़रूरत ही नहीं.
    -सज्जन शक्ति द्वारा देश हित में राजनीती किये जाने पर इन दुर्बुधि जीवियों को ऐतराज़ है, पर महान भ्रष्ट नेता देश की जनता के हितों को पुरी बेशर्मी से बेच रहे हैं. उस पर तो इन्हें कोई ऐतराज़ नहीं? ठीक है, सज्जन शक्ति देश की राजनीति को संचालित करे, जनता को कोई ऐतराज़ नहीं. तुम्हें हो तो होता रहे , हमारी बला से.
    – अगली बात है की चतुर्वेदी जी ने इन सज्जन शक्तियों का आह्वान किया है की वे चुनाव लड़ कर दिखाएँ . ज़रूर, देखते जाईये ये सज्जन शक्ति चुनाव लड़ेगी भी और लड़ाएगी भी और जीत कर भी दिखाएगी. तब हाथ मलते रहना.
    – जिस सिविल सोसाइटी को मीडिया वीर कह रहे हो उसकी लोकप्रियता आंखे खोल कर देखो मेरे भाई. दुर्लभ घटना घटी है जो तुम लोगों ने अनदेखी कर दी. बिना आह्वान के लाखों लोग भूख हड़ताल पर श्री हजारे के समर्थन में बैठ गए. करोड़ों ने समर्थन संदेह दिए. हुआ है कभी इस देश में ऐसा ?
    ये अंधी, बहरी और विदेशी एजंट सरकार तभी तो जगी, न न , जगी नहीं डरी और मांग मान ली. पर नीयत तो खोटी ही है, ज़रूर धोखा करेगी.
    -वाम पंथियों ने कभी मांग की थी की लोकपाल बिल पास हो. बड़ी अछि बात है, पर अब क्यों सांप सुघ गया? गूंगे होगये क्या, बिल्ली रास्ता कट गयी ? यानी सब नाटक था. अब हलवा-मांडा पूरा मिल रहा है. जब रुकावट आएगी, तब फिर कोई मुद्दा उठा लेगे. थोड़ी भी ईमान डारी और शर्म है तो दबाव बना कर बिल पास करवाना था.
    – महोदय अगर में कहूँ की विदेशी सहायता में सबसे अधिक पैसा इसाई संगठनों को और उसके बाद मुस्लिम संगठनों को आता है तो आप कीलेखनी को निश्चित रूप से लकवा मार जाएगा. आपको तो केवल और केवल देशभक्त और हिन्दू संगठनों के विरुद्ध लिखने की नौकरी करनी है न.
    ** चिंता नहीं, जनता है, अब ये सब जानती है. ढोल की पोल पहचानती है.

  11. (अन्ना हजारे अनशन तोड़, अपने ठीया तो नहीं जा पाए; अनशन के कारण अस्वस्थ हुए, पहुंच गए किरण बेदी के निवास)
    अन्ना आन्दोलन पॉलिटिक्स फ्रॉम विलो का खेल है; लेखक के अनुसार अन्ना इस कारण झूठे और खतरनाक हैं:
    (१) सह-अध्यक्ष के रूप में शांतिभूषण आजीवन राजनीति करते रहे हैं, देश के कानून मंत्री रहे हैं
    (२) केजरीवाल भी राजनीति कर रहे हैं
    (३) प्रशांतभूषण वकील लेकिन मानवाधिकार राजनीति से जुड़े हैं
    (४) लोकपाल बिल का आम जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार से कोई संबंध नहीं है
    (५) मोमबत्ती वाले युवा न टिकाऊ; न संघर्षशील है.
    (६) ५ हजार करोड़ रूपये से ज्यादा पैसा विदेशों से एनजीओ संगठनों को आ रहा है. गांधी के अनुयायि यह पैसा ले रहे है. एनजीओ आंदोलन, सिविल सोसायटी आंदोलन, गांधी वादी, मानवाधिकार वादी,पर्यावरण पंथी संगठन विदेशी फंडिंग से चल रहे हैं.
    (७) एनजीओ को विदेशी धन ही नहीं आ रहा, राजनीति करने के विदेशी विचार भी सप्लाई किए जा रहे हैं
    (८) कारपोरेट भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे ने कोई मांग नहीं उठायी. यह गांधीवादी राजनीति के साथ राजनीतिक भ्रष्टाचार है.

    यह सब देखकर आपको क्या प्रतीत होता है ?

  12. हम होंगे कामयाब एक दिन ……….
    आज पूरा देश सच्चे मन से अन्ना जी के साथ खड़ा होना चाहता है
    हो भी क्यों न देश मैं बढता भ्रस्ट्राचार एक महामारी की तरह फेल रहा है
    हम जिन्हें विधायक ,मंत्री नेता बनाते हैं वे ही हमारे शोषण की नीव
    रखते हैं जो चुनाब से पहले साधारण होते थे वे चुनाब के बाद असाधारण
    रूप से अरबपति हो जाते हैं जनता की गाढ़ी कमाई का सारा पैसा बिना डकार
    लिए डकार जाते हैं , उनका साथ देने के लिए उनके चमचे व पी .ए. भी
    करोड़ पति बन जाते हैं .कोर्ट मैं हम जिन पर विस्वास दिखाते हैं ,परिणाम
    देते वक्त वे भी बिके हुए नजर आते हैं , पुलिस मैं बिना दिए रिपोर्ट नहीं
    लिखा पाते हैं कोण है कसूर वार, किसकी शह पर फेल रहा है भ्रस्ट्राचार
    जनता को जगाओ मित्रो भ्रस्त्रचारियो को नेस्तनाबूद कर दफन कर दो
    यह अत्याचार
    शैलेन्द्र सक्सेना “आध्यात्म”
    संचालक -असेंट इंग्लिश स्पीकिंग कोचिंग
    स्वतंत्र लेखक ,पत्रकार व सवसे पहले
    आम नागरिक गंज बासोदा
    जिला विदिशा म.प्र.
    ०९८२७२४९९६४

  13. खुद विदेशी विचारों और प्रतीकों पर निर्भर लोग अन्ना को सलाह दे रहे है, हा हा हा हा हा …………..

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