अन्ना की नहीं 100 करोड़ जनता का अपमान है ?

इक़बाल हिंदुस्तानी

अगर नौकर मालिक की बात नहीं मानेंगे तो उनको हटाया जायेगा

एक सोची समझी योजना के तहत खोखला और बोगस लोकपाल बिल लाया गया जो तयशुदा नाटक के बाद राज्यसभा में बिना मतदान के बजट सत्र तक के लिये लटका दिया गया। पहले विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगा रहा था कि लोकपाल बिल संसद में पेश करना सरकार का काम है और अगर वह बिल पेश करती है तो विपक्ष बिल पास करायेगा लेकिन उसकी नीयत में खोट है जिससे वह बिल ला ही नहीं रही। अब सरकार विपक्ष पर आरोप लगा रही है कि उसने संसद में बिल प्रस्तुत कर दिया लेकिन विपक्ष ने उसे पास नहीं होने दिया। उसका यह भी दावा है कि लोकसभा से तो उसने बिल पास करा दिया लेकिन राज्यसभा में जब उसके पास बहुमत ही नहीं है तो वह विपक्ष के सहयोग के बिना कैसे बिल पास करा सकती है? यहां सरकार यह सच छिपा रही है कि उसने अपने घटक टीएमसी को भी लोकपाल के लिये सहमत नहीं किया था।

उधर माकपा तक इस बात पर तैयार थी कि अगर सरकार राज्यों में लोकायुक्त नियुक्ति का अधिकार ना ले और सीबीआई को लोकपाल के तहत सौंपने को तैयार हो जाये तो उनकी पार्टी बिल के समर्थन में वोट देने को तैयार है। लेकिन सरकार ने संशोधनों का हवाला देकर बिल पर मतदान को टाल दिया। उधर अन्ना ने अपनी तबीयत लगातार बिगड़ने और किडनी फेल होने की डाक्टरी चेतावनी के बाद अपना अनशन तीन दिन की बजाये बीच में ही स्थगित कर दिया। उन्होंने जेलभरो आंदोलन भी फिलहाल न करने का फैसला किया है। हालांकि उन्होंने अब असली और सटीक रास्ता पांच राज्यों में आने वाले चुनाव में जनता के बीच प्रचार करने का अपनाने का ऐलान किया है लेकिन नादान और सीधे सादे लोग उनके बारे में तरह तरह की बातें कर रहे हैं।

कोई कह रहा है कि मुंबई में अन्ना के अनशन में लोग बहुत कम जुटने से उनका आंदोलन फिलॉप हो गया और कोई कह रहा है कि अन्ना को संसद में लोकपाल पर चर्चा होने के दौरान अनशन नहीं करना चाहिये था। कुछ का कहना है कि कानून संसद में बनते हैं, सड़क पर नहीं जबकि कुछ का दावा है कि हमारे निर्वाचित सांसद अगर लोकपाल पास नहीं करना चाहते तो अन्ना कौन होते हैं उनको इसके लिये मजबूर करने वाले? कोई कांग्रेस के इस दावे को सही मान रहा है कि वास्तव में अन्ना के सम्बंध आरएसएस से रहे हैं अतः उनके आंदोलन का मकसद कांग्रेस का विरोध और भाजपा को चुनाव में लाभ पहुंचाना है। कहने का मतलब यह है कि जितने मुंह उतनी बातें सुनने को मिल रही हैं और भ्रष्ट सरकार और बेईमान राजनेता अंदर ही अंदर खुश हो रहे हैं कि चलो लोकपाल टल गया।

ऐसे लोगों से पूछा जा सकता है कि अगर अन्ना संसद में लोकपाल बिल पास नहीं होने के बाद आंदोलन करते तो क्या सरकार विशेष सत्र बुलाकर बिल पास कराती? नहीं बिल्कुल नहीं। सरकार का इरादा बिल को लटकाने का था सो उसने ऐसा ही किया। अगर सरकार पर दबाव ना बनाया जाता तो 43 साल से लटका लोकपाल अब भी संसद में पेश नहीं किया जाता। जहां तक कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह द्वारा अन्ना की तस्वीर आरएसएस नेता नानाजी देशमुख के साथ दिखाये जाने का सवाल है तो खुद उनकी तस्वीर भी किरण बेदी ने नानाजी के साथ जारी कर दी है।

अब सवाल उठता है कि अन्ना तो किसी दल के सदस्य नहीं है लेकिन आरएसएस के एजेंट होने के बावजूद दिग्विजय कांग्रेस में क्या कर रहे हैं? देश के अगर 20 करोड़ लोगों को भ्रष्ट या भ्रष्टाचार के पक्ष में होने के कारण अलग भी रखा जाये तो जो कुछ संसद में हुआ वह अन्ना का नहीं देश की 100 करोड़ जनता का अपमान है और अगर सांसद भ्रष्टाचार जारी रखने के लिये लोकपाल पास नहीं करेंगे तो वे जनसेवक यानी नौकर हैं और जनता असली मालिक है सो उनको चुनाव में हटाया जा सकता है।

17 दिसंबर 2010 को टयूनीशिया के सीदी बौजीद शहर के उस मामले की एक बार फिर याद दिलाने की हमारे नेताओं को ज़रूरत है जिसमें 26 साल के सब्ज़ी बेचने वाले मुहम्मद बौजीजी को रिश्वत ना देने पर एक पुलिसवाले ने ना केवल अपमानित किया बल्कि उसकी पिटाई करके उसके चेहरे पर थूक दिया था। बौजीजी ने इस घटना की रिपोर्ट थाने में करानी चाही लेकिन उसको वहां से भगा दिया गया। इसके बाद बौजीजी ने हर तरफ से निराशा मिलने पर नगर के प्रशासनिक मुख्यालय के सामने खुद पर पेट्रोल डालकर आग लगा ली और अपनी जान दे दी।

इसके बाद वहां जो कुछ हुआ वह पूरी दुनिया के सामने है कि 23 साल से तानाशाह सत्ता चला रहे बेन अली को ना केवल सत्ता छोड़नी पड़ी बल्कि देश छोड़कर जान बचाने को वहां से भागना पड़ा। मिसाल मिस्र, सीरिया, मोरक्को, लीबिया, जॉर्डन, यमन, अल्जीरिया, बहरीन, की क्रांतियों की भी दी जा सकती है लेकिन हम यहां केवल इतना कहना चाहते हैं कि अप्रैल 2011 से पहले हमारे देश में कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि हमारे यहां भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आंदोलन हो सकता है। अन्ना ने यह चमत्कार कर दिखाया। अन्ना का आंदोलन कांग्रेस को सत्ता से हटाने के बाद भी ख़त्म नहीं होगा यह बात कम लोगों को पता है। अन्ना व्यवस्था बदलने का आंदोलन चला रहे हैं। उनको चुनाव नहीं लड़ना और उनका परिवार भी नहीं है जिससे उनपर किसी तरह का आरोप चस्पा नहीं हो पा रहा है। अन्ना का अब तक का जीवन ईमानदार और संघर्षशील रहा है। अन्ना ने महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार के रहते आधा दर्जन भ्रष्ट मंत्रियों को इस्तीफा देने को मजबूर किया है जिससे शिवसेना नेता संसद में बेशर्मी से कह रहे थे कि लोकपाल की कोई ज़रूरत नहीं है।

उधर लालू का यह कहना भी सही था कि लोकपाल उनके लिये डेथ वारंट है। मुलायम का डर भी सही है कि अगर लोकपाल पास हुआ तो उनको पुलिस गिरफतार कर लेगी। भ्रष्ट नेताओं को अगर कमज़ोर लोकपाल से इतना डर लग रहा है तो समझा जा सकता है कि मज़बूत जनलोकपाल से भ्रष्टाचारी कितना घबरा रहे होंगे। एक बात तय है कि अगर लोकपाल पास होता है तो इसका श्रेय अन्ना को जायेगा और नहीं होता है तो सरकार को चुनाव में इसकी कीमत चुकानी होगी।

आज ये दीवार पर्दे की तरह हिलने लगी,

शर्त लेकिन थी कि बुनियाद हिलनी चाहिये।

Previous articleगोभी के पकोड़े ; Gobhi ke Pakode Recipe
Next articleये गया कि वो गया!!
इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

9 COMMENTS

  1. अण्णाजी का आन्दोलन लोकपाल बिल तक सीमित रहा, उसका सामना सरकार ने सहज ही कर लिया. लोकपाल बिल, चाहे जैसा भी हो, प्रक्रिया मे है, और वह बिल कैसा हो इसमे राजनैतिक दलो मे मतभेद है, इसलिये लोग अब एकजुट नही हो रहे है. अण्णाजी की सर्वविरोधी टिप्पणियो के कारण उन उन दलो के, सन्गठनो के लोग भी दूर हो गये.
    लोकपाल बिल के स्थान पर भ्रष्टाचार दूर करने का आन्दोलन (अनशन से नही तो स्थान स्थान पर सभाये जुलूस जनजागरण, बार बार ग्यापन आदि से) और उससे महत्वपूर्ण सदाचार निर्माण करने का सकारात्मक, प्रचारात्मक, महिलाओ के बच्चो के सहयोग से भ्रष्टाचारी पुरुषो के विरुद्ध कार्यक्रम (संघ और सच्चे गांधीमार्गी तथा अन्यो को साथ लेकर) चलाना चाहिये था. अभी भी हो सकता है. ऐसा कार्यक्रम लम्बा होगा, किन्तु सफल अवश्य होगा.

  2. डाक्टर मीणा जी, आपने अपनी छोटी सी टिप्पणी में बहुत कुछ कहने का प्रयत्न किया है.आपकी इस टिप्पणी ने लम्बी टिप्पणी के बाद भी मुझे फिर से कुछ कहने का अवसर प्रदान किया,इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.इकबाल हिन्दुस्तानी जी ने बातें तो ठीक लिखी है ,पर एक बात वे भूल गए कि अन्ना सचमुच भारत के बहुमत का प्रतिनिधत्व नहीं करते ,क्योंकि भारत में मुखर वे लोग हैं,जो भ्रष्ट हैं.संपन्न और प्रतिष्ठित वे लोग हैं जो भ्रष्ट हैं. अगर बहुमत इमानदार भी है तो उसकी आवाज इन भ्रष्ट दिग्गजों ने दबा दी है.अन्ना तो भारत की सुचिता की आवाज हैं.यह आवाज भारत की गरिमा उसकी प्रतिष्ठा की आवाज है.अब सोचना उनलोगों को है जो भारत के नागरिकों के चरित्र के उज्जवल पक्ष को सामने लाने वाली इस आवाज को नहीं पहचानते.कुछ लोग कहते हैं कि इन्होने पिछडो के पक्ष में आवाज क्यों नहीं उठाई.वे भूल जाते हैं कि पिछडो के पिछड़ेपन के दूर न होने के पीछे भी भ्रष्टाचार ही है,दलित अगर आज अपनी अवस्था में अधिक सुधार नहीं पाते है तो इसके मूल में भी भ्रष्टाचार ही है.,जिसमे न केवल अन्य लोगों का बल्कि उनके अपनों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार भी शामिल है.अल्संख्यक अगर कह्ताहैकि दंगे के समय उनको बचाने के लिए अन्ना क्यों सामने नहीं आये तो एक तरह से वह स्वीकार करता है कि अन्ना से उम्मीदें कुछ ज्यादा ही है.उस वयोवृद्ध सज्जन ने लोगों के दिल में एक आशा की किरण प्रजव्लित की है.उसको वोट के रूपमे देखने की गलती मत कीजिये.अन्ना वृद्ध हैं.वे भी काल कवलित हो सकते हैं,पर उन्होंने जो अलख जगाया है,उसको तो आगे बढाईये.जो आज भ्रष्टाचार से लाभान्वित हैं ,वे भी कल इसके शिकार होसकते हैं.अत: सुचिता का मार्ग, पवित्रता का मार्ग सबके लिए लाभ दायक है.अन्ना टीम के आन्दोलन चलाने के तरीके में कुछ कमियाँ हो सकती है,जिनको अपने सुझाव देकर सही दिशा प्रदान की जासकती है,पर उसके उद्देश्य पर प्रश्न उठाना मेरे विचार से हमारे नैतिक पतन का प्रतीक है. वर्तमान भ्रष्ट भारत को अधिक भ्रष्ट बनाने की दिशा में धकेलना है.

  3. तेजवानी जी भ्रष्टाचार के खिलाफ १०० करोर लोग तो हैं ही कम से कम. आप बाकी २१ करोर में खुशी खुशी रह सकते हैं.

  4. सदा के सामान इकबाल जी का यह लेख तो उत्तम है ही, इस पर सबसे सार्थक और सही टिप्पणी रमेश सिंह जी की है. गागर में सागर समेट दिया है. इससे अधिक सर्वग्राही टिप्पणी शायद इस लेख पर न हो सके. लेखक और पाठक का अभिनन्दन.

  5. अन्ना को चुनौती देने वाले यह नही समझ पा रहेहै की अन्ना एक व्यक्ति नही बल्कि एक विचार है.अन्ना एक आस्था का नाम है.अन्ना जो कर रहा है है उससे उसको व्यक्तिगत लाभ क्या होगा?यह चौहतर वर्ष का वृद्ध ऐसा करके क्या हासिल कर लेगा,जो उसे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है?अन्ना जैसे लोग नहीं असफल होते हैं.असफल होता है वह राष्ट्र,उस राष्ट्र के वाशिंदे जो अन्ना जैसे लोगों को समझ नहीं पाते.ऐसा पहले भी हुआ है.आज भी हो रहा है और आगे भी होता रहेगा.दुर्भाग्य यह है स्वार्थी लोग यह सोच ही नहीं पाते हैं कि कोई निःस्वार्थी भी होसकता है.अन्ना का न कोई प्रचार तन्त्र है और न कोई साम्राज्य जिसकी सुरक्षा के बारे में उसे सोचना है.मैं अन्ना के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ जानकारी नहीं रखता.मेरे जैसे करोड़ों इस भारत में होंगे जिन्हें अन्ना के व्यक्तिगत जीवन के बारे में नही पता है.कुछ लोग अन्ना की तुलना महात्मा गांधी से करते हैं.पता नहीं वे सही हैं या गलत ,पर मेरी दृष्टि में अन्ना की तुलना किसी से न होसकती है और न इसकी आवश्यकता है.अन्ना के विचार धारा के अनुसार भारत का एक नागरिक भी चलने लगे और भ्रष्टाचार से किनारा कर ले तो अन्ना सफल हैं.अगर कोई भी उसके अनुसार नहीं चले तो भी अन्ना को कोई हानि नहीं होगी.नफा या नुकशान उसको होता है जिसके पास खोने या पाने के लिए कुछ हो,पर अन्ना के पास वैसा भी तो कुछ नहीं है.
    अगर अन्ना का यह आन्दोलन इस समय असफल होगा तो यह भारत के लिए दुर्भाग्य पूर्ण होगा.मेरा मानना है कि वर्तमान में अगर असफलता भी मिलती हैतो भ्रष्टाचारियों के कफ़न में यह एक बड़ा कील तो साबित होगा ही.

  6. अन्ना को चुनौती देने वाले यह नही समझ पा रहेहै की अन्ना एक व्यक्ति नही बल्कि एक विचार है.अन्ना एक आस्था का नाम है.अन्ना जो कर रहा है है उससे उसको व्यक्तिगत लाभ क्या होगा?यह चौहतर वर्ष का वृद्ध ऐसा करके क्या हासिल कर लेगा,जो उसे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है?अन्ना जैसे लोग नहीं असफल होते हैं.असफल होता है वह राष्ट्र,उस राष्ट्र के वाशिंदे जो अन्ना जैसे लोगों को समझ नहीं पाते .ऐसा पहले भी हुआ है.आज भी हो रहा है और आगे भी होता रहेगा.दुर्भाग्य यह है स्वार्थी लोग यह सोच ही नहीं पाते हैं कि कोई निःस्वार्थी भी होसकता है.अन्ना का न कोई प्रचार तन्त्र है और न कोई साम्राज्य जिसकी सुरक्षा के बारे में उसे सोचना है.मैं अन्ना के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ जानकारी नहीं रखता.मेरे जैसे करोड़ों इस भारत में होंगे जिन्हें अन्ना के व्यक्तिगत जीवन के बारे में नही पता है.कुछ लोग अन्ना की तुलना महात्मा गांधी से करते हैं.पता नहीं वे सही हैं या गलत ,पर मेरी दृष्टि में अन्ना की तुलना किसी से न होसकती है और न इसकी आवश्यकता है.अन्ना के विचार धारा के अनुसार भारत का एक नागरिक भी चलने लगे और भ्रष्टाचार से किनारा कर ले तो अन्ना सफल हैं.अगर कोई भी उसके अनुसार नहीं चले तो भी अन्ना को कोई हानि नहीं होगी.नफा या नुकशान उसको होता है जिसके पास खोने या पाने के लिए कुछ हो,पर अन्ना के पास वैसा भी तो कुछ नहीं है.
    अगर अन्ना का यह आन्दोलन इस समय असफल होगा तो यह भारत के लिए दुर्भाग्य पूर्ण होगा.मेरा मानना है कि वर्तमान में अगर असफलता भी मिलती हैतो भ्रष्टाचारियों के कफ़न में यह एक बड़ा कील तो साबित होगा ही.

  7. दर असल दिल्ली में मिली कामयाबी के बाद अन्ना टीम ने कई गलतियाँ की थी. अग्निवेश को लम्बे समय तक साथ रखा. रामदेव के साथ दगाबाजी, प्रशांत का कश्मीर विवाद. बार-बार अनावश्यक रूप से संघ को कोसना आदि. ऐसे में एक-एक करके लोगो का अन्ना से मोह भंग हो गया है.
    अंतत: फूट डालो और राज करो की अपनी नीति में कोंग्रेस सफल हुई और अन्ना अलग-थलग. जो काफी गलत हुआ है.
    अन्ना भले ही १०० करोड़ भारतीयों के प्रतिनिधी नहीं हो लेकिन समाज के एक बहुत बड़े स्वर तो है ही.

  8. ये किसने कह दिया कि अन्ना सौ करोड जनता के प्रतिनिधि हैं, अगर ऐसा ही है तो आगामी चुनाव में उतरें, सब पता लग जाएगा कि कितनी जनता साथ है

Leave a Reply to rajesh kapoor Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here