सुरेन्द्र नाथ गुप्ता

बहुत लम्बी प्रतीक्षा के पश्चात भारत की नई शिक्षा नीति कि घोषणा का हार्दिक स्वागत | इसमें भारत की शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन की संकल्पना दिखाई देती है |मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना सरकार के शिक्षा के प्रति भारतीय सोच को प्रकट करता है| मनुष्य को केवल संसाधन मानना विदेशी विचार है; भारतीय दृष्टी में शिक्षा मनुष्य को महामानव बनाकर उसके परम उद्देश्य की ओर लेजाने का माध्यम है| यह शिक्षा नीति पहली बार भारत केन्द्रित नीति बनी है| इसमें भारत की सकल घरेलू उत्पाद का 6% शिक्षा पर व्यय का प्रावधान, भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा को आधुनिकता के साथ जोडने का प्रयास और संस्कृत भाषा जो भारत में लगभग विस्मृत कर दी गई थी उसे पुनर्जीवित करने का प्रयास है और उसके साथ-साथ मातृभाषा व् क्षेत्रीय भाषाओं में स्कूली शिक्षा की व्यवस्था है ताकि अंग्रेजी भाषा के मकडजाल से बच्चों को मुक्त करके उनके विकास कि बाधाओं को दूर किया जा सके | वर्ष २०३० तक माध्यमिक शिक्षा १००% सर्व सुलभ बनाने का संकल्प सराहनीय है| छठी कक्षा से इंटर्नशिप और वोकेशनल ट्रेनिंग एक सकारात्मक नवाचार है|
उच्च शिक्षा में नामांकन वर्ष २०३५ तक ५०% करने का लक्ष्य एक बड़ी छलांग है | आर्ट्स, साइंस, कामर्स के बंधन से छात्रों को मुक्त करके उन्हें कोई भी विषय चुनने कि सुविधा और पूरे पाठ्यक्रम में किसी भी वर्ष में प्रवेश और किसी भी वर्ष के बाद बहार निकलने सुविधा देने से उच्च शिक्षा अत्यंत लचीली हो जायेगी | देश में स्थित सभी प्रकार के विश्वविद्यालयों को एक ही नियामक संस्था के अंतर्गत लाने से शिक्षा में असमानता दूर होगी और विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालों को 15 वर्ष के अन्दर समाप्त करके उन्हें स्वायत्त बनाने से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा | नई शिक्षा नीति में विश्व नागरिक का उल्लेख भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम सिद्ध हो सकता है |
भारत में शिक्षा नीतियाँ पहले भी बनी हैं परन्तु उनको ठन्डे बसते में डाल दिया गया और आजादी के बाद भारत में शिक्षा का स्तर दिनों दिन नीचे गिरता गया | देखना होगा कि इस नई नीति का क्रियान्वयन कितना होता है | मोदी सरकार के अभी तक के कार्य-कलापों को देखकर तो यही लगता है कि अब भारत शिक्षा के क्षेत्र में अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करने की ओर अग्रसर होगा |