राम मंदिर निर्माण कार्य का ऐलान

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अनिल अनूप

द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने 21 फरवरी से राम मंदिर निर्माण की शुरुआत का ऐलान किया है। इस तारीख पर साधु-संत अयोध्या की ओर कूच करेंगे और जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर की आधारशिला रखेंगे। साधु-संत चार शिलाएं लेकर अयोध्या जाएंगे। उनका कहना है कि अब उन पर गोलियां चलाई जाएं या लाठियां भांजी जाएं, वे राम मंदिर का शिलान्यास करके ही रहेंगे। यह धर्मादेश शंकराचार्य के नेतृत्व वाली परम धर्मसंसद में पारित किया गया है। सवाल यह है कि क्या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की ऐसी शुरुआत की जा सकती है? शंकराचार्य इसी ऐलान तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने नई स्थापना दी है कि अयोध्या में जिस भवन का विध्वंस 1992 में किया गया था, वह मस्जिद नहीं, मंदिर था। कारसेवकों ने उन्माद में मंदिर के भागों को ही तोड़ा था। उस विवादित जगह पर मस्जिद थी ही नहीं। शंकराचार्य का दावा है कि उन्होंने उस विवादित इमारत के भीतर जाकर देखा था, जहां मस्जिद होने के चिह्न या अवशेष ही नहीं थे। शंकराचार्य की इस स्थापना ने अयोध्या विवाद की समूची बहस को ही बदल दिया है। उन्होंने इतिहास और यथार्थ को ही झुठलाने की कोशिश की है। इसके पीछे उनका मन्तव्य क्या हो सकता है, फिलहाल यह एक अनुत्तरित सवाल है, लेकिन शंकराचार्य की उद्घोषणा में भी एक अहम सवाल निहित है-क्या ऐसे अहिंसक, सविनय और अवज्ञा आंदोलन के जरिए राम मंदिर की आधारशिला भी रखी जा सकती है? क्या साधु-संतों का यह प्रयास ‘असंवैधानिक’ नहीं होगा, क्योंकि विषय और विवाद अब भी सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन हैं? स्वरूपानंद सरस्वती की स्थापना के बाद इतिहास और तमाम तथ्य ही अप्रासंगिक हो गए हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिन दस्तावेजों और प्रमाणों के आधार पर विवादित जमीन के बंटवारे का फैसला सुनाया था, वह भी गलत था! राम जन्मभूमि और कथित बाबरी मस्जिद से जुड़े आंदोलन भी बेमानी साबित हुए हैं। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा कराई गई खुदाई और उनसे हासिल निष्कर्षों को ही असत्य करार देने की कोशिश की गई है! प्राचीन और शोधपरक किताबें आज कागज का पुलिंदा साबित हो रही हैं! सवाल यह भी है कि राजीव गांधी सरकार ने किसका ताला खुलवाया और शिलान्यास कराया था? अभी तक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेताओं से लेकर आम मुसलमान तक कौन-सी मस्जिद की ‘शहादत’ की बात करते रहे हैं। क्या बाबरनामा से रामायण तक सभी ग्रंथ आज झूठे हैं? दरअसल किसी भी धर्मसंसद को ऐसे धर्मादेश जारी करने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? क्या यह मुस्लिम फतवों सरीखी नहीं है? एक और धर्मसंसद कुंभ में ही हो रही है, जिसका संचालन विहिप-संघ कर रहे हैं। यह संपादकीय लिखने तक उनके निष्कर्ष सामने नहीं आए थे, लिहाजा उन पर टिप्पणी संभव नहीं है। माना जा सकता है कि यदि उस धर्मसंसद ने कोई अलग  प्रस्ताव पारित कर लिया, तो क्या स्थिति होगी-एक राम, एक धर्म, लेकिन दो धर्मसंसद…! एक नया टकराव पैदा हो सकता है। सवाल कानून-व्यवस्था,अराजकता, तनाव,हिंसा और सांप्रदायिक विभाजन की नौबत का भी है, क्योंकि साधु-संतों के साथ आम जनता की भीड़ भी अयोध्या जाने को उद्वेलित है। लिहाजा यह धर्मादेश मोदी-योगी सरकारों के लिए भी चिंता और चुनौती का सबब बन सकता है। भाजपा और संघ परिवार के हाथों से राम मंदिर का संवेदनशील मुद्दा छिन सकता है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय प्रस्तावित धार्मिक आंदोलन को अनुमति दे सकता है? उसके निर्देश हुए, तो इस अभियान को सरकारों और प्रशासन को रोकना ही पड़ेगा।

2 COMMENTS

  1. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के धर्मादेश का निहित उद्देश्य यही है कि अयोध्या में योगी सरकार संतो को रोकने का प्रयास करे और यह सिद्ध किया जा सके कि भा. ज. पा. राम मंदिर निर्माण कराना ही नहीं चाहती।

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