कविता

कभी अण्डा भी उडता है?


डॉ. मधुसूदन

किसी खूँटे से बंध कर,
मुक्त हुआ नहीं जाता।
संदूक में बंद हो कर ,
बाहर  देखा नहीं जाता।
॥१॥
अण्डा फोडकर निकलता है,
गरूड का बच्चा बाहर;
अंडे में कैद हो, अंबर में,
कभी उडा नहीं करता।
॥२॥
किताबी  ज़ंज़ीर से,
जकड-बंध बंदों को,
दुनिया का खालिस नज़ारा,
दिखलाया नहीं जाता।
॥३॥
अंडे में बंद, जो सदियों से,
उन्हें, किस भाँति समझाएँ ?
अंडे के अंधेरे में बैठ,
सच दिखलाई नहीं देता।
॥४॥
चिराग ले, ढूंढ कर लाओ ,
सारी दुनिया में, प्यारा  देस,
जहाँ सम्मान से जी पाओ,
भारत-सा देस नहीं मिलता।
॥५॥
अण्डा फोड, बाहर आओ,
फिर तर्क दे समझाओ,
अण्डे के अंदर रहने का,
फायदा क्या,  कुछ होता?
॥६॥
बदलते मौसम के साथ,
जो बदला, वही जीता,
डायनासौर का संदेस.
क्या समझ, नहीं आता।
॥७॥
पनडुब्बी में, जीनेवालों,
कभी सूंघो, मधुबन के फूल?
पनडुब्बी डूब जाने पर,
फिर, चेताया नहीं जाता।
॥८॥