पंकज कुमार नैथानी
सफल गणतंत्र वही है जहां “तंत्र’’ पर ‘’गण’’ का पूरा भरोसा हो… इसी भरोसे को कायम रखने और लोकतंत्र की मजबूती के लिए तीन आधारभूत स्तंभ बनाए गए…कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका…इन तीनों मे श्रेष्ठ कौन यह तय करना मुश्किल है…लेकिन इतना जरूर है तीनों में से कोई भी कड़ी कमजोर हुई तो लोकतंत्र का पूरा ढांचा गड़बड़ा जाता है… अपने लोगों के लिए कानून और कल्याणकारी योजनाएं बनाने से लेकर उन्हें लागू करने और उनकी निगरानी करने में तीनों अंग ठीक वैसी ही भूमिकाएं निभाते हैं…जैसा कि ब्रह्मांड के संचालन में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश अपना काम करते हैं…खैर त्रिदेवों में कभी सार्वजनिक मतभेदों की बात सामने तो नहीं आई…लेकिन हकीकत में कई मुद्दों में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका में टकराव देखने को मिलते हैं… लेकिन जब कार्यपालिका अपने उद्देश्य से भटक जाए तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है
सुस्त पड़ी कार्यपालिका और कुछ भी करने पर आमादा नेताओं के खिलाफ न्यायपालिका ने शुक्रवार को ऐसा ही एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए वोटरों को राइट टु रिजेक्ट का रास्ता साफ कर दिया है… सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश मे कहा कि जिस तरह वोट देना मतदाताओं का संवैधानिक अधिकार है…उसी तरह राइट टु रिजेक्ट भी एक मौलिक अधिकार है…यानि अगर अपने चुनाव क्षेत्र में कोई भी प्रत्यशी हमें पसंद नहीं आता तो हम उसे आधिकारिक रूप से नकार सकते हैं… अब तक भी इसके लिए फॉर्म 49-ओ के तौर पर व्यवस्था थी…लेकिन यह काफी लंबी प्रक्रिया थी और इसके प्रति बहुत कम लोगों में जागरुकता था…फॉर्म 49-ओ भरने के लिए पीठासीन अधिकारी से गुहार लगानी पड़ती थी..और फिर अपनी जानकारी सार्वजनिक करने के बाद ही इसे भरा जा सकता था… लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब वोटर को ईवीएम मशीन में एक ऐसा बटन मिलेगा जिस पर ‘’इनमें से कोई नहीं“ यानि ( None of Above) लिखा होगा जिसे दबाकर हम सभी उम्मीदवारों को नकार सकते हैं… इस आदेश के कई दूरगामी असर होंगे.
मसलन अगर किसी भी चुनाव में कुल मतों का तीस प्रतिशत वोट राइट टू रिजेक्ट पर किया जाता है तो वहां पर चुनाव को रद्द कराकर दोबारा मतदान किया जाएगा…एक बार तीस प्रतिशत नेगेटिव वोटिंग हो जाती है तो वहां पर मतदान खारिज होने के साथ ही वह प्रत्याशी भी पांच वर्षो के लिए अयोग्य करार दे दिए जाएंगे जो चुनाव में खड़े होंगे…एक और बात ये है राइट टू रिजेक्ट के डर से ही सही राजनीतिक पार्टियों पर सही उम्मीदवारों को चुनाव में उतारने की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी… बहरहाल देखना वाली बात ये है कि चुनाव आयोग कब इसे लागू करता है…वैसे भारत पहला ऐसा देश नहीं है जहां पर यह प्रावधान हो…दुनिया के 13 देशों जिनमें पाकिस्तान औऱ बांग्लादेश भी शामिल है में राइट टु रिजेक्ट का प्रावधान है…फिर लोकतांत्रिक हिंदुस्तान में राइट टु रिजेक्ट लागू करने में इतनी देरी होना हैरानी की बात है
एक दूसरा अहम मसला दागी नेताओं से संबंधित कानून का है….सुप्रीम कोर्ट ने दो साल तक की सजा पाए नेताओं की सदस्यसता खत्म करने के लिए आदेश पारित किया तो सफेदपोशों के पैरों तले जमीन खिसक गई…सरकार ने भी अपने चहेते माननीयों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी…लेकिन कोर्ट ने जब इसे भी खारिज कर दिया तो सरकार ने इसे नाक का सवाल बना दिया और आनन फानन मे अध्यादेश लाकर कोर्ट के फैसले को निष्क्रिय करने की कोशिश की… सरकार के इस अलोकतांत्रिक कदम की कड़ी आलोचना हुई… तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई पार्टी नेता इसकी खिलाफत करने लगे… बहरहाल जीत सच की होती है… अन्ना हजारे और अन्य समाजिक संगठनों की जिन मांगों को सरकार ने अनसुना कर दिया था… उस पर न्यायपालिका ने गौर फरमाया है… दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर बैन लगाने का आदेश हो या राइट टु रिजेक्ट का अधिकार देना…मकसद सिर्फ इतना ही है कि राजनीति में अपराधीकरण रोका जा सके… कम से कम देश की आवाम तो यही चाहती है और शायद इसीलिए और न्यायपालिका इतनी एक्टिव नजर आ रही है….
. ई.वी. एम में राई.ट टू रिजेक्ट का समावेश करके सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को एक ऐतिहासिक कदम उठाने के लिए निर्देश दिया है,पर इसमे अभी भी एक कमी है.यह साफ़ नहीं है कि अगर “किसी को वोट नहीं” वाले कालम में अधिई. वी एमकतम मतदान होगा तो क्या उस चुनाव क्षेत्र का चुनाव रद्द हो जाएगा? अगर ऐसा नहीं होता है,तो इस प्रावधान का कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं