ललित गर्ग
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के सफल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद चीन बौखला गया है। पाकिस्तान की करारी हार एवं उसे दिये गये सबक को चीन पचा नहीं पा रहा है। चीन-पाक की सदाबहार दोस्ती के उदाहरण बार-बार सामने आते रहे हैं, हाल ही में सैन्य टकराव के दौरान चीन ने प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर पाकिस्तान का समर्थन ही नहीं किया, बल्कि सैन्य व आर्थिक मदद भी की। ऐसे ही संवेदनशील समय पर चीन ने भारतीय जमीन पर दावेदारी जताने एवं अरुणाचल के 27 स्थानों को चीनी नाम देने की कुचेष्टा की है। उसकी यह नापाक कोशिश भी पाक के साथ खड़े होने का ही प्रयास है। यह ध्यान रहे कि वह अरुणाचल एवं उसके अनेक क्षेत्रों, इनमें आवासीय क्षेत्रों के साथ पहाड़ और नदियां भी हैं, इनको पहले ही चीनी नाम दे चुका है। भारत सरकार ने अरुणाचल के भीतरी स्थानों को नए नाम देने के चीन के निराधार और बेतुके प्रयासों को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए इसकी निन्दा की है। चीन अपनी दोगली नीति, षडयंत्रकारी हरकतों एवं विस्तारवादी मंशा से कभी बाज नहीं आता। वह हमेशा कोई ऐसी कुचेष्टा करता ही रहता है जिससे भारत चीन बॉर्डर पर अक्सर तनाव रहता है। हालांकि भारत ने दो टूक जवाब देते हुए साफ कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और यह चीनी दुष्प्रचार के सिवाय कुछ नहीं है। चीन की इस हरकत ने यह साफ कर दिया है कि उससे संबंध सुधारने की भारत की तरफ से कितनी ही पहल हो जाए, वह सुधरने वाला नहीं है।
निश्चित ही चीन की ये दकियानूसी हरकतें पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं, यह उसके दुस्साहस एवं उच्छृंखलता का द्योतक है। नाम बदलने से इस स्पष्ट और निर्विवाद वास्तविकता को नहीं बदला जा सकता कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा। इस तरह की करतूतों, बचकानी एवं बेतूकी हरकतों से भारत को उकसाना चाहता है। इसी नीति के तहत वह भारत के पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बना कर पुलों, सड़कों, व्यावसायिक केंद्रों आदि का निर्माण कर भारत की सीमा पर तनाव पैदा करने की भी कोशिश करता रहा है। शायद उसने यह मुगालता पाल लिया है कि ताजा घटनाक्रम से भारत दबाव में आ जाएगा लेकिन भारत अब ऐसे किसी दबाव में न तो आयेगा, बल्कि इनका सक्षम एवं तीक्ष्ण तरीके से जबाव देने में भारत सक्षम है। चीन का अधिक बौखलाहट एवं खीज का बड़ा कारण भारत ने उसके एयर डिफेंस सिस्टम, ड्रोन, मिसाइल आदि की इस कदर पोल खोल कर रख दी कि अब उसके लिए दुनिया के निर्धन देशों को अपने दोयम दर्जे एवं घटिसा किस्म के चीनी हथियार बेचना कठिन होगा। पाकिस्तान ने जिस चीनी मिसाइल का इस्तेमाल किया था, उसे भारत ने नाकाम कर दिया।
चीन यह तो चाहता है कि भारत उसके हितों को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरते, लेकिन खुद उसकी ओर से भारत के प्रति अपेक्षित संवेदनशीलता को लगातार नजरअंदाज करता है। चीन भरोसे लायक देश नहीं है, चीन के प्रति कठोर रवैया जरूरी है। निस्संदेह नाम बदलने जैसी घटनाएं हमें सतर्क करती हैं कि चीन के साथ मैत्री संबंधों के निर्धारण के दौरान हमें सजग, सावधान व सचेत रहना चाहिए। अन्यथा चीन पीठ पर वार करने से नहीं चूकने वाला है। भारत को चीन के साथ अपनी तिब्बत नीति पर भी नए सिरे से विचार करना होगा। पिछले तीसरे साल में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के अनेक स्थानों के नाम बदले हैं। चीन अरुणाचल को जांगनान के नाम से दर्शाता है। वहीं इसे तिब्बत के दक्षिणी हिस्से के रूप में होने का दावा करता है। चीन किये गये वायदों एवं समझौतों से पीछे हटता रहा है, चीनी राष्ट्रपति ने दोनों देशों के बीच 1993, 1996, 2005 और 2013 में परस्पर भरोसा पैदा करने वाले समझौतों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने अपनी सेना को भारतीय दावे वाले इलाकों में अतिक्रमण करने का आदेश दिया। इसी का अंजाम रही जून 2020 में गलवान घाटी जैसी घटना। जिसमें उसके सैनिक गलवान घाटी में घुस आए थे, जिन्हें रोकने में खूनी संघर्ष हुआ। तबसे दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। भारत के हिस्से की जमीन पर कब्जा करने के इरादे से वह चोरी-छिपे और चालबाजी से घुसपैठ करने की कोशिशें करता रहता है। चीन की विस्तारवादी नीति भारत सहित सम्पूर्ण एशिया के लिये ही नहीं, पूरे विश्व के लिए बड़ा खतरा है।
चीन भारत की बढ़ती ताकत एवं रूतबे से परेशान है। भारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक ताकत चीन को चुभती रही है, इसलिए वह चोरी, चालाकी और चालबाजी से भारत को कमजोर करने की चालें चलता रहता है। दरअसल, सीमाओं को लेकर नित नए विवादास्पद तथ्य लाना चीन की फितरत में शामिल है। अरुणाचल प्रदेश ही नहीं, अक्साई चिन, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर पर भी चीन अपना दावा जताता रहा है। शातिर और चालबाज चीन अरुणाचल के किसी दस्तावेज पर भारत का नाम स्वीकार नहीं करता। कुछ मौकों पर तो वह अरुणाचल को अपने नक्शे में शामिल कर दुनिया के सामने साबित करने की कोशिश कर चुका है कि वह उसका इलाका है। मगर भारत की तरफ से मिले सख्त प्रतिरोध की वजह, सामरिक शक्ति और रणनीतिक सूझ-बूझ से उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी है।
भारत को अनेक मोर्चों पर चीन को आडे हाथ लेना होगा, सबसे जरूरी है चीन सामान का बहिष्कार, इस पर सरकार के साथ हमारे उद्योग जगत एवं आम जनता को भी गंभीरता से सोचना होगा। ऐसा करके ही चीन की कमर को तोड़ा जा सकता है, आज दुनिया के अनेक देश चीनी सामान का बहिष्कार कर रहे हैं, हमें भी कठोर कदम उठाने होंगे। भारत ने जब भी पाकिस्तान में पनाह पाए आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डलवाने का प्रयास किया, चीन संयुक्त राष्ट्र में अपने वीटो का प्रयोग कर उसे रोकने की कोशिश करता रहा है, जबकि पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का समर्थन करती रही है। जिससे पता चलता है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने तथा व्यापार-कारोबार बढ़ाने की बात करने वाला चीन भारत के प्रति कैसी दुर्भावना रखता है। वह वैश्विक संगठनों व मंचों पर भारत के साथ खड़ा होने का दावा एवं ढोंग ही करता है।
भारत एवं चीन दोनों देशों के बीच संबंधों में आने वाली तल्खी की बड़ी वजह भी चीन की नीयत में खोट, उच्छृंखलता एवं अनुशासनहीनता ही है। चीन ने एक बार फिर अपनी इस हरकत से भारत के प्रति शत्रुता को ही जाहिर किया है। भारत के साथ चीन का बर्ताव हमेशा दोगला एवं द्वेषपूर्ण रहा है। इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकते कि चीन किस तरह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ मोहरे की तरह इस्तेमाल करता रहा है। जाहिर बात है कि चीन ने ऐसा न केवल चुनौतीपूर्ण समय में भारत का ध्यान भटकाने के लिये किया है, बल्कि पाकिस्तान के साथ एकजुटता दिखाने के लिये भी किया है। अपनी आर्थिक शक्ति के नशे में चूर अहंकारी चीन अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को जिस तरह धता बता रहा है, उससे वह विश्व व्यवस्था के लिए खतरा ही बन रहा है। अब यह भी किसी से छिपा नहीं कि वह गरीब देशों को किस तरह कर्ज के जाल में फंसाकर उनका शोषण कर रहा है। चीन भूल गया है कि अब भारत 1962 वाला भारत नहीं है, यह नया भारत है और आज का भारत चीन को मिट्टी में मिलाने की ताकत रखता है। भारत की रणनीति साफ है, स्पष्ट है। आज का भारत समझने और समझाने की नीति पर विश्वास करता है लेकिन अगर हमें आजमाने की कोशिश होती है तो जवाब भी उतना ही प्रचंड देने में वह समर्थ हैं। भारतीय सेना में सरहदें बदल देने की क्षमता है, दुश्मनों को इरादों को ध्वस्त करने का मादा है इसलिये चीन अपने नक्शे में भले ही छेड़छाड़ करता रहे, लेकिन भारत की भूमि पर कब्जाने की उसकी मंशा अब कभी साकार नहीं होगी।