असफिलाः चीन की विस्तारवादी नई चाल

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असफिलाः चीन की विस्तारवादी नई चाल
प्रमोद भार्गव

भारत और चीन के बीच तनातनी का नया मुद्दा उभरकर सामने आया है। जबकि अभी डोकलम विवाद ठीक से थमा भी नहीं है चीन ने अरुणाचल प्रदेश  के असफिला क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की नियमित गश्त  को लेकर कठोर आपत्ति जताई है। यह क्षेत्र अरुणाचल के सुबानसिरी जिले का हिस्सा है, जो चीन की सीमा से सटा है। चीन ने दोनों देशों  के बीच सीमाकर्मियों की हुई ‘बाॅर्डर पर्सोनेल मीटिंग‘ में कहा कि अफसिला क्षेत्र में भारतीय सेना की गश्त  उसकी जमीन पर अतिक्रमण है। इसके जवाब में भारतीय सेना ने दो टूक शब्दों में कहा कि ‘भारतीय सेना को वास्तविक नियंत्रण रेखा की जानकारी है इस लिहाज से उसने सीमा का उल्लघंन नहीं किया है। गोया, गश्त आगे भी जारी रहेगी।‘ दरअसल चीन 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद से ही अरुणाचल के बड़े हिस्से पर दावा जताता रहा है, जबकि विवादित इलाके भारत के अटूट हिस्सा हैं।
यही नहीं चीन ने अपनी दादागिरी एवं विस्तारवार नीति को अंजाम देते हुए लद्दाख क्षेत्र की पैंगोंग झील के ईद-गिर्द चीनी सैनिकों को घुसपैठ कराकर एक अन्य घटना को भी अंजाम दिया है। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा सामने लाई गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लद्दाख क्षेत्र में 28 फरवरी से 12 मार्च 2018 के बीच चीनी सैनिक तीन मर्तबा भारतीय सीमा में छह किमी तक घुसे चले आए थे। किंतु इन घुसपैठों को आईटीबीपी के जवानों ने सफल नहीं होने दिया। इस रिपोर्ट में रक्षा की जुम्मेबारी संभाल रहे सैनिकों ने घुसपैठों से निपटने के लिए चीन के विरुद्ध ठोस रणनीति अपनाने की मांग की है। इसके आलावा लद्दाख के दुर्गम क्षेत्रों में विकास कार्यों को गति देने की भी बात कही गई है। दरअसल, भारत चीन की सीमा लगभग 4000 किमी लंबी है। इसमें हिमालय के वे दुर्गम क्षेत्र भी हैं, जहां सीमा की  स्पष्ट  जा सकी है। चीन की विस्तारवादी मंशा  इसी अस्पष्टता  का लाभ उठाकर भारतीय सीमा में घुसपैठ की दखल करती रहती है। लद्दाख में दौलता बेग ओल्डी से लेकर डोकलाम तक चीन इसी मानसिकता से काम ले रहा है।
चीन की इस कुटिलता के चलते भारत के साथ भूटान भी परेशान हैं। जापान भी चीन की समुद्र में दखल को लेकर परेशान है। इसलिए उसने अब दक्षिण चीन सागर में ड्रेगन के दबदबे को आंखें दिखाते हुए अमेरिका की तर्ज पर मरीन कमांडों की फौज उतारी है। जमीन एवं समुद्र में दुशमन को धूल चटाने की दक्षता में  कुशल 2100 मरीन कमांडों ने पूर्वी चीन सागर से सटे जापानी द्वीप क्यूशू  पर एक भव्य समारोह आयोजित कर सैन्य अभ्यास भी  प्रदर्शित  किया। इस समारोह में आधुनिक टैंकों, लड़ाकू विमानों और कई अन्य घातक हथियारों का प्रदर्शन  भी किया। इन कमाडों को ‘रैपिट डिप्लाॅयमेंट ब्रिगेड‘ नाम दिया गया है। इस समारोह के द्वारा चीन को आंखें दिखाने की मंशा  तो अंतरनिर्हित है ही, साथ ही अपनी जंगी वेड़े में विस्तार करने की योजना भी निहित है। जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध  और हिरोशिमा-नागासाकी परमाणु बम धमाकों के करीब 73 साल बाद चीन के खिलाफ यह खुली रणनीति अपनाई है।
दरअसल चीन भारत के बरक्ष बहरूपिया का चोला ओढ़े हुए है। एक तरफ वह पड़ोसी होने के नाते दोस्त की भूमिका में पेश  आता है और दूसरी तरफ ढाई हजार साल पुराने भारत चीन के सांस्कृतिक संबंधो के बहाने हिंदी-चीनी भाई-भाई का राग अलाप कर भारत से अपने कारोबारी हित साध लेता है। चीन का तीसरा मूखौटा दुष्मनी का है, जिसके चलते वह पूरे अरुणाचल प्रदेश  पर अपना दावा ठोकता है। साथ ही उसकी यह मंशा  भी हमेशा  रही है कि भारत न तो विकसित हो और न ही चीन की तुलना में भारतीय अर्थवयवस्था मजबूत हो। इस द्रष्टि  से वह पाक अधिकृत कश्मीर , लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम और अरूणाचल में अपनी नापाक मौजदूगी दर्ज कराकर भारत को परेशान करता रहता है। इन बेजा हरकतों की प्रतिक्रिया में भारत द्वारा विनम्रता बरते जाने का लंबा इतिहास रहा है, इसी का परिणाम है कि चीन आक्रामकता दिखाने से बाज नहीं आता।
दरअसल चीन का लोकतंत्रिक स्वांग उस सिंह की तरह है जो गाय का मुखैटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे प्रणियों का अविष्कार करने का काम करता है। इसका नतीजा है कि चीन 1962 में भारत पर आक्रमण करता है और पूर्वोत्तर सीमा में 40 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प लेता है। कैलाश  मानसरोवर जो भगवान शिव के आराध्य स्थल के नाम से हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में दर्ज हैं, सभी ग्रंथों में इसे अखंड भारत का हिस्सा बताया गया है। लेकिन भगवान भोले भंडारी अब चीन के कब्जे में हैं। यही नहीं गूगल अर्थ से होड़ बररते हुए चीन ने एक आॅनलाइन मानचित्र सेवा शूरू की है। जिसमें भारतीय भू-भाग अरुणाचल और अक्षाई चिन को चीन ने अपने हिस्से में दर्शाते  हुए अरुणाचल प्रदेश  को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया गया है, जिस पर चीन का दावा पहले से ही बना हुआ है। वह अरुणाचलवासियों को चीनी नागरिक भी मानता है। यही नहीं चीन की एक साम्यवादी रुझान की पत्रिका में वहां की एक कम्युनिस्ट पार्टी के नेता का लेख छपा था कि भारत को पांच टुकड़ों में बांट देना चाहिए। अब सवाल उठता है कि भारत इस कुटिल मंशा  का जबाव किस लहजे और  भाषा में दे ?
चीन की दोगलाई कूटनीति तमाम राजनीतिक मुद्दों पर साफ दिखाई देती है। चीन बार-बार जो आक्रामकता दिखा रहा है, इसकी  प्रष्ठभूमि  में उसकी बढ़ती ताकत और बेलगाम महत्वाकांक्षा है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। दुनिया जानती है कि भारत-चीन की सीमा विवादित है। सीमा विवाद सुलझाने में चीन की कोई रुची नहीं हैं। वह केवल घुसपैठ करके अपनी सीमाओं के विस्तार की मंशा हुए है। चीन भारत से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तब भारत ने तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा के नेतुत्व में तिब्बतियों को भारत में शरण दी थी। जबकि चीन की इच्छा है कि भारत दलाई लामा और तिब्बतियों द्वारा तिब्बत की आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई की खिलाफत करे। दरअसल भारत ने तिब्बत को लेकर  शिथिल व असंमजस की नीति अपनाई हुई है। जब हमने तिब्बतियों को शरणर्थियों के रूप में जगह दे दी थी, तो तिब्बत को स्वंतत्र देश  मानते हुए अंतराष्टीय  मंच पर सर्मथन की घोषणा  करने की जरुरत भी थी ? डाॅ राममनोहर लोहिया ने संसद में इस  आशय का बयान भी दिया था। लेकिन ढुलमुल नीति के कारण नेहरु ऐसा नहीं कर पाए ?
चीन कूटनीति के स्तर पर भारत को हर जगह मात दे रहा है। पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर  का 5180 वर्ग किमी क्षेत्र चीन को भेंट कर दिया। तब से चीन पाक का मददगार हो गया। चीन ने इस क्षेत्र में कुछ सालों के भीतर ही 80 अरब डाॅलर का पूंजी निवेश  कर दिया। चीन की पीओके में शूरू हुई गतिविधियां सामाजिक  द्रष्टि  से चीन के लिए हितकारी हैं। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की जुगाड़ में जुट है। इसी क्षेत्र में चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहंुचने के लिए काराकोरम सड़क मार्ग भी तैयार कर लीया है। इस दखल के बाद चीन ने पीओके क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा भी मानना शूरू कर दिया है। यही नहीं चीन ने भारत की सीमा पर हाइवे बनाने की राह में आखिरी बाधा भी पार कर ली है। चीन ने समुद्र तल से 3750 मीटर की उंचाई पर बर्फ से ढके गैलोंग्ला पर्वत पर 33 किमी लंबी सुरंग बनाकर इस बाधा को दूर कर दिया है। यह सड़क सामारिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बत में मोशुओ काउंटी भारत के अरूणाचल का अंतिम छोर है। अभी तक यहां कोई सड़क मार्ग नहीं था।

चीन की लगातार जारी हरकतों को देखते हुए लगने लगा है कि अब उसे माकूल जबाव दिया जाए। यह उत्तर कूटनीति, सामरिक और कारोबारी स्तर पर दिया जाना जरूरी हो गया है। चीनी आक्रामकता के विरुद्ध वैश्विक  ताकतों को भी साझा रणनीति अमल में लानी होगी। तभी चीन का मुकबला करना संभव हो सकेगा। क्योंकि चीन ने दक्षिण चीन सागर में सैनिक अड्डा बनाकर अमेरिका की भी नींद हराम कर दी है। हिंद महासागर में वर्चस्व कायमी की द्रष्टि   से मालद्वीव में भी सैन्य ठिकाना बना लिया है। आर्थिक गलियारे के निर्माण को लेकर जहां पाकिस्तान उसके चंगुल में है, वहीं नेपाल और श्रीलंका में भी बड़े पूंजी निवेश  के बहाने चीन अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। चीन की ये ऐसी नीतिगत करतूतें हैं, जिनसे स्पष्ट  होता है कि चीन भारत को चैतरफा घेरे रखकर पूरे एशिया  महाद्वीप में अपना परचम फहराए रखना चाहता है।

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