असम की समस्या – एक अनुत्तरित प्रश्न

विपिन किशोर सिन्हा

बांग्लादेशियों के कारण उत्पन्न असम की समस्या को बोडोलैण्ड, कोकराझार या स्थानीय समस्या समझना ऐतिहासिक भूल होगी। अखण्ड भारत और वर्तमान भारत में यह समस्या कितनी बार आई, इसकी गणना असंभव है। आज़ादी के पूर्व जिन्ना की मुस्लिम लीग के “डाइरेक्ट एक्शन” का परिणाम इतिहास के काले पृष्ठों में आज भी दर्ज़ है। आज जो समस्या लघु असम झेल रहा है, वही समस्या आज़ादी के पूर्व वृहद आसाम, पूरा बंगाल और आज के पाकिस्तान ने झेली थी जिसका परिणाम देश के विभाजन के रूप में सामने आया। अपने देश में विभिन्न धर्मावलंबी रहते हैं, लेकिन यदि एक विशेष धर्मावलंबी समुदाय शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व में विश्वास करना छोड़ दे और दूसरे धर्मावलंबियों के विश्वासों, परंपराओं और रहन-सहन को बलात परिवर्तित करना चाहे, तो क्या होगा? असम की समस्या, कश्मीर की समस्या और देशव्यापी इस्लामी आतंकवाद की समस्या के पीछे एक समुदाय विशेष की यही मानसिकता मूल कारण है। भारत ही नहीं, पूरा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है। रूस चेचेन्या से परेशान है, म्यामार बांग्लादेशियों से, चीन सिक्यांग से, फ़्रान्स बुरका से, पूरा यूरोप बढ़ती इस्लामिक कट्टरता से, अमेरिका तालिबान से, दो तिहाई अफ़्रिका फ़िरकापरस्तों से, मिस्र गरमपंथी-नरमपंथियों से, सीरिया तानाशाही बनाम इस्लाम से, इराक शिया-सुन्नी से और पाकिस्तान स्वयं निर्मित भस्मासुर से परेशान है। जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता है, उसका भूगोल बदल जाता है। इतिहास साक्षी है – अपने देश के जिस हिस्से में हिन्दू अल्पसंख्यक हुआ, वह हिस्सा ही देश से कट गया या कटने की तैयारी कर रहा है। भारत के भूगोल को सुरक्षित रखने के मामले में तुलनात्मक दृष्टि से यदि अध्ययन किया जाय तो हम पाएंगे कि अंग्रेज, कांग्रेस की तुलना में भारत के भूगोल के प्रति अधिक वफ़ादार थे।

इस समय पूरे देश में लगभग दो करोड़ बांग्लादेशी मुसलमान मौजूद हैं। बांग्लादेश की सीमा से लगे अपने देश के प्रत्येक जिले में इनलोगों ने स्थाई बसेरा बना लिया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के किशन गंज जैसे जिलों में आबादी का अनुपात अचानक बदल गया है। बांग्लादेशियों के थोक आवक के कारण स्थानीय हिन्दू अल्पमत में हो गए हैं। बात सिर्फ़ अल्पमत में ही होने की होती, तो भी कोई विशेष बात नहीं थी। मुश्किल तब होती है, जब स्थानीय हिन्दू आबादी को तालिबानी फ़रमान मानने के लिए बाध्य किया जाता है। इन बांग्लादेशी मुसलमानों की तुलना में सिन्ध और पाकिस्तानी पंजाब के मुसलमान ज्यादा सहिष्णु हैं। वोटों की लालच में कांग्रेसी सरकारों ने इन बांग्लादेशियों के नाम वोटर लिस्ट में डलवाए और राशन कार्ड तक बनवाए। आज की तारीख में यह पता करना कि कौन हिन्दुस्तानी है और कौन बांग्लादेशी, बहुत ही कठिन है। इसी से उत्साहित होकर बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना यह घोषणा करती है कि भारत में अवैध रूप से रहने वाला एक भी बांग्लादेशी मौजूद नहीं है। भारत सरकार इसका कोई प्रतिवाद नहीं कर पाती है क्योंकि पार्टी का हित राष्ट्र के हित पर हावी है। सत्तर के दशक तक जिस लोकतंत्र ने देश को विविधता में एकता का मंत्र दिया था, वही लोकतंत्र अब सत्ताधारी पार्टी के निहित स्वार्थों के कारण एकता में अनेकता के पाठ पढ़ा रहा है। सत्ता की राजनीति के लिए कांग्रेस कोई भी सौदा कर सकती है – देश का भी। १९४७ में किया भी है।

१९७७ के पूर्व पूरे देश में कांग्रेस का एकछत्र राज था। जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति के बाद केन्द्र और लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस की चूलें हिल गईं। लोकतंत्र के माध्यम से आए इस परिवर्तन को कांग्रेस ने कभी हृदय से स्वीकार नहीं किया। जिस तरह देश के अधिकांश मुसलमान आज भी बाबर, अकबर और औरंगज़ेब को याद करते हुए हिन्दुस्तान को अपनी जागीर मानते हैं, उसी तरह कांग्रेसी भी खंडित भारत को नेहरू, इन्दिरा और सोनिया की जागीर मानते हैं। अपनी इस जागीर को बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने तरह-तरह के तिकड़म किए। पंजाब में राष्ट्रवादी शक्तियों को हराने के लिए इन्दिरा गांधी ने भिन्डरवाला जैसे आतंकवादी को जन्म दिया। कुछ ही समय में योजनाबद्ध ढंग से पंजाब को आतंकवाद के गिरफ़्त में जाने दिया गया। आतंकवादी किसी के नहीं होते हैं। इसके भस्मासुर ने इन्दिरा गांधी की बलि ले ली। कांग्रेस को तब भी समझ में नहीं आया। पूरे देश में सिख विरोधी दंगे कराए गए जो देश के विभाजन के समय हुए दंगों की भांति भयावह थे। कांग्रेसियों ने खड़े होकर सिखों का कत्लेआम कराया। हत्यारों को मंत्री पद देकर सम्मानित किया गया। राजीव गांधी ने भी यही खेल खेला। तमिलनाडु में अपनी खोई जमीन प्राप्त करने के लिए भारत भूमि पर लिट्टे को प्रशिक्षण दिया गया। कालान्तर में लिट्टे के भस्मासुर ने ही उनके प्राण लिए। सत्ता की राजनीति के लिए देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज को टुकड़ों में बांटने के लिए अगड़ा, पिछड़ा, दलित, आदिवासी, उत्तर, दक्खिन – न जाने कितने कार्ड खेले गए। दुख होता है कि संपूर्ण क्रान्ति की कोख से जन्मे अनेक राजनेता भी कांग्रेस की गोद में जा बैठे।

कश्मीर घाटी से सभी हिन्दू भगा दिए जाते हैं, सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। गोधरा में अयोध्या से आती साबरमती के डिब्बों में आग लगाकर सैकड़ों हिन्दू ज़िन्दा जला दिए जाते हैं, कुसूरवार मोदी को माना जाता है। अफ़जल गुरु और कसाब को फ़ांसी की सज़ा के बाद भी बचाया जाता है, बाबा रामदेव और बालकृष्ण को झूठे मुकदमों में फ़ंसाया जाता है। म्यामार में बांग्लादेशियों पर कथित ज्यादतियों के लिए मुंबई में योजनाबद्ध दंगे किए जाते हैं, पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। पुणे और बंगलोर में निवास करने वाले पूर्वोत्तर के भारतीय नागरिकों को जान से मारने की धमकी दी जाती है, सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती। मैसूर में तिब्बती तथा पुणे में पूर्वोत्तर के छात्रों पर जानलेवा हमले किए जाते हैं, पुलिस के हाथ अपराधी तक नहीं पहुंच पाते। पूर्वोत्तर के नागरिकों को इन शहरों में सुरक्षा की गारंटी देने के बदले केन्द्र सरकार उनके पलायन की व्यवस्था कर रही है। गौहाटी ले लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। केन्द्र और केरल में मुस्लिम लीग के सहयोग से चल रही कांग्रेसी सरकार से इससे ज्यादा की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है?

सवाल आज की समस्या का नहीं, हिन्दुस्तान के भविष्य का है। अगर देश में तथाकथित अल्पसंख्यकों की आबादी आयात और उत्पादन से इसी तरह बढ़ती गई, तो सिर्फ़ श्रीकृष्ण ही इसकी रक्षा कर सकते हैं। कश्मीर घाटी से निष्कासित हिन्दू जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में हैं, लेकिन पच्चीस साल बाद हिन्दुस्तान से निष्कासित हिन्दू किस देश के शरणार्थी शिविर में शरण लेंगे?

8 COMMENTS

  1. समस्या आपने बताई पर निदान नहीं
    निदान है की हिन्दू हम दो हमारे दो के सिद्धांत को छोड़े(अब आपमें कोई मुझसे यह नहीं पूछें की मेरे तो एक भी नहीं, सिन्हा जैसे लोगों की कृपा है की डाक्टरनी देवीजी ने NMO _RSS के पचड़े में पड़ने से अच्छा मुझ ही छोड़ना पसंद किया)
    फिर पंडित रामचंद्र शर्मा ‘वीर’ की याद आती ही की उन्होंने कहा था १९६६-६७ के आसपास(जब मैं ११-१२ वर्ष का था) ‘तुम हिन्दू युवकोंमे (मैं युवकों के बीच एक बच्चा था) जो किसी मुस्लिम वा इसी लडकी से शादी करेगा, मैं शादी करने स्वयम आयुन्गा’ (वैसे मैं अपनी एक क्र्रिस्तियन मलयाली मित्र से शादी का प्रस्ताव नहीं रख पाया घर के घोर ब्राह्मणवादी माहौल के कारण)
    हम्मे अनेक अखंड भारत की बात करते नहीं थकते हैं (२२ वर्ष की उम्र में मैंने एक सभा की अच्छी अद्य्क्षता की थी जब एक कुलपति जीने अध्यक्षता करना था कार्यक्रम के अंत में आये और थोड़ा बोले और मेरी अध्यक्षता भाषण सुन कार्यक्रम के बाद मेरा पीठ भी ठोके ) पर यदि वह आज हो जाये तो क्या होगा?/ तब बंगलादेश नहीं रहेगा और घ्स्पैथियों के आंकड़े बेमानी होंगे
    अधुना विज्ञानं यह कहता है की यदि कोई समाज गरीब है तो उसकी प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है यानी मुस्लिम्गारीब हैं इसलिए भी बच्चे अधिक उनके होते (पारसी अमीर तो वे घाट रहे हैं)
    अमीर मुस्लिमों के भी बच्चे कम ही होते – इस पर आंकड़ा अना चाहिए
    गोलवलकर साहेब कहा करते थे जनसंख्या विस्फोट से डरना नहीं है- वे जापान का उदहारण देते थे (इसी क्रम में मैं केरल का उदहारण भी दूंगा जहाँ मध्य में क्रिस्स्चिअनोन की आबादी स्थिर हो गयी है कोचीन, कोट्टायम, अलाल्पुधा, आ दी में वाही उत्तरमे मालाबार कोज्हिकोद, कन्नोर, मंजेरी में मुस्लिमों के चलते बढ़ रही है )
    पंजाब की आबादी स्थिर हो गयी है – बिहार, उत्तर प्रदेश आ दी गरीब प्रान्तों की बढ़ रही है – वहां के गरीब हिन्दू ही हिन्दुस्तान को बचायेंगे दिल्ली का इंडिया नहीं
    खासकर हिन्दुओं में कन्या भ्रूण ह्त्या के कारण हिन्दुओं की संख्या घटती रहेगी
    संख्या का कर्क महिला है पर उसकी बढ़ती उम्रमे शादी वा बिना शादी के रहना हिन्दुओं की संख्या को और घटायेगी
    हिन्दू समाज की सोच को बदलने की जरूरत है- जो दो पाल सकती हैं वे तीन या चार क्यों नही ? जो पढ़े लिखे हैं उनके बच्चे अधिक होंगे तो अधिक कमाएंगे , समाज को देंगे, याद रखें आंबेडकर और रबिन्द्रनाथ अपने पिता-माता की १४ वीं संतान थीं . मैं स्वयं सभी स्वस्थ ९ भाई बहनों में चौथा हूँ इसलिए ४ की वकालत कर रहा हूँ की मेरे जैसे किसी को दुनिया में आने दीजिये
    वैसे अभीके चश्मे में मेरी बात खरब लगेगी पर याद रखें की जिस देश में cradle से अध्हिक coffin बनते वह देश कब्रगाह में ही बदलेगा.
    मैंने एक बार ह्य्देराबाद से बंगलोरे जाती दो ब्रह्माकुमारी सगी बहनों को कहा था यदि आफीके समान श्वेत हंसों की तरह सभी महिलायें हो जाएँ तो दुनिया सृष्टी थोड़ी समय के बाद कह्तं हो जायेगी
    यदि बच्चों के संख्या घटेगी तो औसत बुद्धि भी घटेगी – इसीलिए २० वीं सदी ने १९ वा सदी जैसे जिनिउस पैदा नहीं किया
    सरकार कितना रोकेगी गरीब बंग्लाद्शी को घुसने से और तब जब भोट का सवाल हो – याद रखें की हिमालय के नीचे पुनजब से अस्सं तक एक मुग्लिस्तान बनाने की योजना है – अंगरेजी में लेख ही किन्ही का भेज सकता हूँ यदि कोई अनुवाद छापें – उसे रोकने के लिए गरीब मिथिला एक मजबूत प्रांत के रूप में उभर कर आना चाहिए – मुस्लिम्परस्त बिहारी नेता के बूते की बात नहीं है जिसके तलवे सहलाने को तथाकथित राष्ट्रवादी लगे हुए हैं सत्ता की भागीदारी के नाम .(मेरे नाम से और मिथिला के काम से उनकी नीद उड़ जाती है पर पूर्वी भारतमे हमही ब्रेक लगा सकते हैं -चाहे कोई माने या नहीं )

  2. कश्मीर घाटी से निष्कासित हिन्दू जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में हैं, लेकिन पच्चीस साल बाद हिन्दुस्तान से निष्कासित हिन्दू किस देश के शरणार्थी शिविर में शरण लेंगे?

  3. आसाम दंगे इन सब के पीछे मनमोहन सिंह का हाथ है ‘ क्यूंकि कांग्रेस को ज्यादा वोटर की ज़रूरत है जो उनको सत्ता तक पहुंचा सकते है !
    भातर में न जाने कितने शरणार्थी रह रहे है फिर इसी भारत को अपना निशाना बनाते है
    बूखमारी कैसे बदती है इसी बजह से ‘ भारत सरकार भारत की जनता को तो 32 रु० दे कर उनको आमिर बना देती है इन शरणार्थियों का एक दिन का एक आदमी के भोजन का कितना खर्च है इसकी भी रिपोर्ट बनानी होनी चाहिएऔर कितने आदमी है इसकी भी’ कब तक शिवर मे रहेगे कब तक सरकार उनको खिलाती रहेगी ! भारत में जो भी हो रहा है उसके लिए सीधा -२ वर्तमान सरकार जिम्मेवार है !
    कड़वी बात है लेकिन है सच
    नाकामयाब सरकार ?

  4. यह सब के पीछे मनमोहन सिंह का हाथ है ‘ क्यूंकि कांग्रेस को ज्यादा वोटर की ज़रूरत है जो उनको सत्ता तक पहुंचा सकते है !
    भातर में न जाने कितने शरणार्थी रह रहे है फिर इसी भारत को अपना निशाना बनाते है
    बूखमारी कैसे बदती है ‘ कब तक शिवर मे रहेगे कब तक सरकार उनको खिलाती रहेगी !
    कड़वी बात है लेकिन है सच

  5. Good article but from where did ”’sree krishna” came in between ? I krishna is so much reliable then what ia the use of bullying the govt. Or writing here,,,go in temple and pray…that’s all the solution of all problems. Tum patrakar hote hue bhi inse nahi ubar pa rahe ho ? Do we have any existence of their existence ?

    • आप समझने का प्रयास कीजिए, सबकुछ साफ़ हो जाएगा। इस लेख में श्रीकृष्ण शब्द भगवान के लिए प्रयुक्त हुआ है।

    • मेकाले के कारखाने से निकले कुछ ऐसे प्राणी सामने आ रहे है जिनके अनुसार मंदिर जाना भगवान की पूजा करना शब्द व्यर्थ है उन्हें तो यहाँ तक हिंदी भी बोझ लगने लगी है संस्क्रत तो बहुत दूर की बात है ………………………..

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