राजनीति

संघ के बहाने, चले वोट कमाने

-तरुणराज गोस्वामी

किसी गाँव में एक कुत्ता रहता जो खा–खाकर बहुत मोटा तगड़ा हो रहा था। उसने गाँव में अच्छी खासी धमक जमा रखी थी, उसने गाँव भर में फैला रखा था कि उसके पूर्वज ही हर प्रकार के हमलों से ग्रामीणों की रक्षा करते रहे हैँ और वही सबका रखवाला है ये अलग बात है कि अपनी धमक का इस्तेमाल करते हुये वह किसी भी घर किसी भी रसोई में अपना मुँह मार आता और गुर्राता अलग। उसके ऐसे कामोँ से गाँव में उसका सम्मान �¤ �र डर पहले जितने नहीं रह गये थे। अपनी आदतों को सुधारने की बजाय वह थोड़ा उदास रहने लगा, सोचते– सोचते वह गाँव में नये – नये रहने आये परिवार के पास जाकर दुम हिलाने लगा लेकिन वहाँ से भी फटकार दिया गया। वह पहले ही गाँव में अपनी घटती साख से परेशान था उस पर नये परिवार से भी तवज्जो न मिलने पर उसे अपने खाने पीने के लाले पड़ते नज़र आये। वह बैठा विचार कर ही रहा था कि अचानक उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी, उसे अपने पूर्वजो का अपनाया तरीका जो याद आ गया था। अगले दिन वह उस परिवार के पास पहुँचा और कहा कि गाँव में जंगल से एक शेर आता है जो तुम लोगोँ को ही नुकसान पहुँचा सकता है क्योँकि गाँव के अधिकांश लोगों को वह जानता है और उन पर हमला नहीं करता, इसलिये तुम मेरा ध्यान रखो मैं तुम्हारा, और हाँ हो सके तो अपने संबंधियों को भी इसी गाँव में रहने बुला लो। परिवार के मुखिया को बाते जम गयी, उसने कुत्ते को खूब खिलाया भी और अपने परिचितो को रहने बुलाया भी। आज सालो बाद उस गाँव में उसी कुत्ते के वंशजों की ही धाक है, साथ ही उस वक्त के नये परिवार के सदस्योँ की संख्या गाँव की आधी आबादी के लगभग है।

‘’तेरा वैभव अमर रहे माँ’’ के वाक्य को अपने प्राण – प्रण से आत्मसात करने वाला संघ एक बार फिर बिकाऊ मीडिया और खाऊ काँग्रेस के निशाने पर है। पूरे प्रकरण में सरकार की मतकमाऊ एजेंसियां सरकार ही के इशारे पर मुख्य भूमिका निभा रही है। भारत की कैसी घोर विडम्बना है कि एक चार्जशीट में एक कार्यकर्ता का एक बार नाम जाने भर से एक राष्ट्रभक्त संगठन पर ऊँगलियाँ उठाई जा रही है जबकि देश को गाली देने वालोँ से बात करने को मरी जा रही सरकार कमर झुकाये कश्मीर तक पहुँच रही है। थोक वोटों को अपने कब्जे में बाँधे रखने के लिये काँग्रेस किस हद तक गिर सकती है किसी से छुपा नहीं रह गया है। धर्मनिरपेक्षता की दुहाई दे देकर अपनी राजनीति को जिंदा रखने वाली पार्टियों की असलियत गाहे बगाहे सामने आती ही रहती है। लेकिन वर्तमान में ‘भगवा आतंकवाद’ का जो जुमला उछाला जा रहा है वह भारत के भविष्य के लिए कतई सुखद नहीं होगा। एक वर्ग में दूसरे प्रति नफरत का जहर भरने वाले, अनपढ़ अशिक्षितों को बरगलाने वाले बुद्धिजीवी राजनेताओं के पास कोई जवाब है कि बेगुनाहों का बेवजह खून बहाने वाले आतंक का कोई रंग हो सकता है क्या? लेकिन लगता है विभाजनकारी नीतियों की राजनीति करने वाले दलों की आँखों पर वोटों की पट्टी बँध गयी है और उन्हें आतंक जैसे घिनौने कृत्‍य में भी राजनीति करने में अपना लाभ नज़र आ रहा है। ये वही दल है जो कल तक ईशरत जहाँ को निर्दोष बताते नहीं थकते थे , ये वही दल जो नहीं चाहते कि अफ़जल या कसाब को फांसी हो, ये वही दल है जो वंदेमातरम् का विरोध करते हैं, ये वही दल है जो महीने दो महीने में आजमगढ़ पहुँचकर राष्ट्रद्रोहियों की चौखट पर नाक रगड़ते हैं, ये वही दल है जो देश के लिये अपने प्राण न्यौच्छावर करने वाले शहीदोँ का अपमान करने से भी नहीं चूकते, ये वही दल है जिनके लिये राष्ट्र से बढ़कर सत्ता है। इन्हीं दलों की सत्ता लोभ के कारण देश को विभाजन का दंश झेलना पड़ा और इन्हीं लोगों के कारण कश्मीर आज तक सुलग रहा है।

इन्हीं दलों ने निश्चित ही रणनीति बना रखी होगी कि अयोध्या पर अदालत के निर्णय के बाद देश में कैसे आग लगाना है लेकिन संघ की संतुलित प्रतिक्रियाओं से इनको अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का अवसर नहीं मिल पाया। बिहार चुनाव से ठीक पहले मिली इसी हताशा का ही परिणाम रहा होगा कि इन तथाकथित धर्मनिरपेक्षियों के युवराज संघ और सिमी को एक सा बताने पर ऊतारु हो गये। ये राजनीति का ओछापन या मानसिक दिवालियापन ही हो सकता है कि राहुल अपनी उम्र से ज्यादा पुराने संगठन को जाने बिना उस पर ऐसी ओछी टिप्पणी करते, सभी ने ऐसा ही सोचा होगा। लेकिन अगर गहराई से चिंतन किया जाये और वर्तमान में चल रहे संघ संबंधी विवादों को देखा जाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि गाँधी उपनाम की बैसाखियोँ के सहारे चलते राहुल के पास जब बड़े– बड़े डिग्रीधारियोँ की फौज सलाहकार के रुप में आगे पीछे दौड़ती है तब वही राहुल ऐसी बचकानी हरकत कैसे कर सकता है लेकिन अब तो सभी को स्पष्ट हो जाना चाहिये कि बिहार के साथ आने वाले चुनावोँ में अपने युवराज की डूबती नैया को बचाने के लिये काँग्रेस परदेँ के पीछे कैसे कैसे षड्यंत्र रच रही है।

संघ जो विश्व का सबसे बड़ा स्वंयसेवी संगठन है और अपने अनुषांगिक संगठनों के माध्यम से सालों से समाज सेवा कर रहा है और राष्ट्रभक्ति जिस संघ की रग रग में रची बसी है, उस संघ पर ऐसे घिनौने आरोप मढ़ना किसी बड़े राजनैतिक षड्यंत्र का हिस्सा ही हो सकता है। लगता है काँग्रेस की रणनीति इस मुद्दे को और ज्यादा आगे तक ले जाने की है, जिससे कि काँग्रेस बढ़ती महँगाई, नक्सलवाद, आतंकवाद, कश्मीर की अस्थिर स्थिति और अन्य रुपों में सरकार की विफलता को ढँककर आमजन का ध्यान भटका सके साथ ही साथ काँग्रेस बाँटकर रखने के अपने पुराने खेल से विभिन्न पार्टियों में बिखर चुके अपने थोक वोट बैँक को फिर पा सके, नहीं तो काँग्रेस अपने युवराज को महाराज कैसे बना पायेगी। लाखों – करोड़ो लोगों को संस्कार देने वाले संघ पर सवाल खड़े करने के बहाने काँग्रेस केवल अपने खोये वोट को फिर कमाना चाहती है, काँग्रेस की ऐसी हरकतो से कभी – कभी शंका होती है कि काँग्रेस बंग्लादेशियोँ, पाकिस्तानियोँ को भारत लाकर बसा सकती है अगर उसे विश्वास हो जाये कि ये वोट उसे ही मिलेंगे, ठीक ऊपर लिखी कहानी के कुत्ते की तरह।