राजनीति

संघ के नक्शे-कदम पर ………….

वीरेन्द्र सिंह परिहार

राहुल गांधी ने अभी गत दिनों कहा कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को आदर्श मानते हुए कांग्रेस को भी संघ के नक्शे-कदम पर ले जाएगे। अब कांग्रेस को संघ के नक्शे-कदम पर वह किस तरह से ले जाना चाहते है, इसका खुलासा तो उन्होने नही किया। पर अलबत्ता एक बात समझ में नही आर्इ कि जिस हिन्दुत्व एवं सघ के विरोध में राहुल गांधी इतनी दूर तक खड़ें थे कि वह उन्हे जेहादी आंतकवादियों अथवा लश्करे तोयबा से ज्यादा खतरनाक मानते थे, उसे उन्होने अनुकरणीय कैसे मान लिया? वैसे संघ के अनुकरण का यह पहला उदाहरण नही है। बहुत पहले कांग्रेस सेवा दल का गठन कुछ ऐसे ही उददेश्य के चलते किया गया था कि संघ की तरह एक संगठन खड़ा किया जावे। लेकिन ऐसा करने वालों की समझ में यह नही आया कि मात्र सत्ता राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञों द्वारा खड़ा किया गया कोर्इ संगठन कितना प्रभावी हो सकता है? उल्टे संघ किसी राजनीतिज्ञ द्वारा न खड़ा किया जाकर केेशव बलिराम हेडगेवार द्वारा खड़ा किया गया था, जिनका लक्ष्य कोर्इ सत्ता प्रापित न होकर राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र-निर्माण एवं राष्ट्र को परम-वैभव तक ले जाना था। इसी का नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस सेवा-दल मात्र कांग्रेसी नेताओं के लिए सलामी देने का माध्यम बनकर रह गया।

पर चलिए, देर आए, दुरूस्त आए। राहुल गांधी ने कही इस बात का एहसास तो किया कि संघ का रास्ता अनुकरणीय है। पर क्या राहुल गांधी को यह भी पता है-संघ का मार्ग कितना कंटकाकीर्ण है। संघ के स्वयं सेवक समाज-सेवा एवं राष्ट्र-निर्माण के लिए कितना कठोर जीवन जीते है। उनका लक्ष्य राजनीति एवं सत्ता के माध्यम से सुविधाएं न जुटाकर, पूरे देश में, यहां तक कि सुदूर वनवासी क्षेत्रों में कैसे भी यहां तक पैदल चलकर अनवरत काम करते है। हिन्दू समाज को जो इस देश का राष्ट्रीय समाज है, उसमें सामाजिक समरसता का भाव भरते हुए उन्हे एकता के सूत्र में पिरो रहे है। संघ में लाखों-लाख ऐसे स्वयं सेवक है,जो आजीवन अविवाहित रहकर एकाकी जीवन जीकर अपनी रक्त की एक-एक बूंद राष्ट्र के लिए समर्पित कर देते है। राष्ट्र जीवन के विशाल दु:ख-दैन्य के समक्ष अपने परिजनों की दु:ख-दैन्य उनके लिए गौण हो जाते है। परिवारवाद से उनका कोर्इ दूर-दूर का भी नाता नही होता, क्योकि वह अपने जीवन को राष्ट्रजीवन में एकात्म कर लेते है। विवेकानन्द के शब्दों में ‘मै भारतमाता की चिंता करू या अपने माता की चिंता करूं। और इस तरह से वह भारतमाता के लिए ही समर्पित होते है। अब क्या परिवारवाद एवं वंशवाद से बुरी तरह जकड़ी एवं ग्रस्त कांग्रेस, राहुल गांधी स्वत: जिसकी उपज है-क्या इस तरह से कांग्रेस को संघ के रास्ते पर ले जा सकते है?

अब कांग्रेस में सारे फैसले एक या दो व्यकित करते है, यानी की सोनिया गांधी और राहुल गांधी। कांग्रेस कार्य समिति की विस्तारित बैठक ही इसीलिए बुलार्इ जाती है कि सारे कांग्रेसी राष्ट्रपति के उम्मीदवार चुनने का अधिकार सोनिया गांधी को दें-दें। कुल मिलाकर सोनिया या राहुल की इच्छा के बगैर कांग्रेस में कोर्इ पत्ता भी नही खड़क सकता। सोनिया गांधी और राहुल गांधी चाहे जितनी गलितयां करें, पर किसी कांग्रेसी में इतनी हिम्मत नही है कि प्रतीकात्मक तौर पर या इशारों से ही इस संबंध में कोर्इ टीका-टिप्पणी पार्टी की बैठकों में भी कर सके। परन्तु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में सारे नीतिगत फैसले राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा करती है। यह बात भी सच है कि संघ में सरसंघ चालक का पद बहुत सम्मान का ही नही, निहायत श्रद्धा का भी होता है, क्योकि वह इसी स्तर के व्यकितत्व होते है। लेकिन वह कोर्इ तानाशाह नही होते। अपने स्वार्थो की दृषिट से वह संगठन का परिचालन नही करते, वरन व्यापक राष्ट्रीय हितों में ही कार्य करते है। संघ में कांग्रेस की तरह कार्यकर्ताओं से यह कतर्इ अपेक्षा नही की जाती कि वह किसी व्यकित या खानदान के प्रति पूर्णत: वफादार एवं निष्ठावान हो वरन उन्हे ध्येयनिष्ठ बनाने का प्रयाय किया जाता है। इसलिए संघ, व्यकित, पूजा, चापलूसी, किसी किस्म की तिकड़म एवं गुटबाजी से पूर्णत: मुक्त है।

अब बड़ा सवाल यह कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस को इस नक्शे-कदम पर ले जाने को तैयार है? पर इसके लिए उन्हे वंशवाद के आधार पर सत्ता का स्वभाविक हकदार न मानकर सर्वप्रथम एक सामान्य कांग्रेसी कार्यकर्ता की भूमिका में आना होगा? अपनी मां सोनिया गांधी से यह अपेक्षा करनी पड़ेगी कि वह संगठन के साथ सत्ता को भी अप्रत्यक्ष तौर से अपनी जेब में न रखे। राहुल गांधी को इसके लिए यह भी समझना पड़ेगा कि राष्ट्र के समक्ष उपसिथत ज्वलंत चुनौतियों पर खास तौर पर सशक्त लोकपाल एवं जेहादी आंतकवादियों जैसे मुददो पर चुप्पी साधकर इस लक्ष्य की ओर नही बढ़ा जा सकता।

अब राहुल गांधी को ऐसा लगता होगा कि संघ, भाजपा के माध्यम से राजनीति करता है। जैसा कि पहले कहां जा चुका है, कि संघ कोर्इ सत्ता की राजनीति स्वत: नही करता, रोजमर्रा की राजनीति में भी वह संलिप्त नही है। लेकिन वह इतनी राजनीति अवश्य करता है कि देश की सीमाएं सुरक्षित रहे, अंतकवाद का सफाया हो, राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अपनी विरासत के प्रति गौरव का भाव रखे देश के महापुरूषो का अपना महापुरूष माने। सत्ता में राष्ट्र-बोध से युक्त लेाग बैठे। इतना ही कहा जा सकता है कि संघ के चलते ही भाजपा कहीं-न-कहीं कमोवेश कांग्रेस एवं दूसरे राजनैतिक दलो से अलग है। राहुल गांधी यदि संघ के नक्शे-कदम पर चलने की बात गंभीरता से कह रहे हेै तो उन्हे सर्वप्रथम अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को अनुकरणीय मानकर कांग्रेस को घोटालेबाजों से मुक्त कराते हुए सशक्त लोकपाल एवं विदेशी बैंकों में जमा काला धन देश में लाने के लिए र्इमानदारी से प्रयास करना चाहिए। यदि वह ऐसा कर सकें तो यह माना जा सकता है कि उनकी संघ के नक्शे-कदम पर चलने की शुरूआत हो चुकी है।