विविधा परीक्षा में विलीन होती शिक्षा July 3, 2011 / December 9, 2011 | Leave a Comment चैतन्य प्रकाश बारहवीं की परीक्षा में आपके कितने परसेंट मार्क्स थे?” ”अच्छे ही थे!” दो खूब परिचित सहकर्मियों की बातचीत के बीच का यह छोटा सा हिस्सा है। परीक्षा के अंकों को लेकर पैदा होता मानसिक संकोच लगभग ‘शख्सियत’ का हिस्सा बनता जाता है। आज की शिक्षा प्रणाली की क्या यह स्वाभाविक निष्पत्ति है कि […] Read more » Education परीक्षा शिक्षा
विविधा पहल में ही ‘हल’ छिपा होता है June 9, 2011 / December 11, 2011 | Leave a Comment चैतन्य प्रकाश क्या आपने कभी छलांग भरी है? गङ्ढे, खाई, नाले, दीवार से या यों ही मैदान में छलांग भरते हुए चलना वाकई एक रोमांचक अनुभव होता है। कुलांचे भरते हुए हिरणों के बच्चे कितने आकर्षक लगते हैं। छोटे बच्चे का पांव उठाकर चलना स्वावलंबन और संतुष्टि के एकात्म अनुभव की प्राथमिक मिसाल है। सचमुच […] Read more » Inspiration पहल प्रेरणा
राजनीति आखिर लोकतंत्र कहां है? May 25, 2011 / December 12, 2011 | Leave a Comment चैतन्य प्रकाश मैक्स ईस्टमैन ने 1922 में कहा था ”मैं कभी ऐसा अनुभव करता हूं कि पूंजीवादी और साम्यवादी तथा प्रत्येक व्यवस्था एक दैत्याकार यंत्र बनती जा रही है, जिसमें जीवन मूल्यों की मृत्यु हो रही है”। लैंग के विचार में इस भौतिकवादी संसार में सफलता का मूल्य हमें स्वत्व के संकट के रूप में […] Read more » Democracy लोकतंत्र
महिला-जगत असंयम से बदलाव नहीं, बवाल होगा May 16, 2011 / December 13, 2011 | Leave a Comment चैतन्य प्रकाश पिछली पूरी सदी मनुष्य जाति के इतिहास में ‘वस्त्र सभ्यता’ की तरह बीती है। वस्त्रें से शरीर ढंकने, कम ढंकने, उघाड़ने या ओढ़ने पर बड़ा जोर रहा है। बट्रर्ड रसल ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ”विक्टोरियन युग में स्त्री के पैर का अंगूठा भी दिखता था तो बिजली दौड़ जाती थी, अब […] Read more » change
विविधा बहिर् ने खींचा, अंतर ने सींचा February 1, 2011 / December 15, 2011 | 1 Comment on बहिर् ने खींचा, अंतर ने सींचा चैतन्य प्रकाश सर्दी में त्वचा के खिचाव का अनुभव किसे नहीं होता? यही अनुभव शायद खिंचाव के संबंध में मनुष्य का प्राथमिक अनुभव है। कहावत ही बन गई है- ‘जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।’ खिंचाव पीड़ा की उपस्थिति का प्रमाण है। जीवन में भी खिंचाव, तनाव के अर्थ में व्यक्त […] Read more » अंतर ने सींचा बहिर् ने खींचा
विविधा जीवन संवारने की तीन कलाएं January 23, 2011 / January 23, 2011 | 1 Comment on जीवन संवारने की तीन कलाएं चैतन्य प्रकाश बदलाव लगातार है। थोड़ा गहरे से देखें तो यह बदलाव हर पल हो रहा है। सृष्टि का, संसार का अगर ठीक गुणवाचक नाम खोजा जाए तो शायद ‘गति’ होगा। गति सर्वत्र है, फिर स्थिति कहां है? जिनको हम स्थिर मानते हैं, उन सब पदार्थों के भीतर अणुओं – परमाणुओं में होने वाली इलेक्ट्रानों […] Read more »
विविधा स्रोत विच्छिन्न जीवन January 21, 2011 / December 16, 2011 | Leave a Comment चैतन्य प्रकाश शाम के धुंधलके में घोंसले की ओर लौटते पंछियों की व्यग्रता, भीतर से उठती उदासी और पत्तों की हल्की-हल्की सरसराहट के बीच फलक पर कभी इन्द्रधनुष दिख जाता है तो आत्मा के तल पर एक नैसर्गिक आनंद की अनुभूति होती है। रंगों का प्राकृतिक वैविध्य सौन्दर्य रचता है। संसार को रंगमंच कहकर पुकारा […] Read more »
विविधा आकाश का दुलार January 16, 2011 / December 16, 2011 | 1 Comment on आकाश का दुलार -चैतन्य प्रकाश शिखर और सागर दोनों मनुष्य को आनंदित करते हैं मनुष्य की लगभग सारी यात्राएं शिखरों और सागरों की ओर उन्मुख रही हैं। मानवी सभ्यता के दो आत्यंतिक उत्कर्ष बिन्दुओं-धर्म और विज्ञान के विकास में शिखर और सागर सदैव प्रमुख सहयोगी रहे हैं। किसी शिखर (पहाड़) की तलहटी से या सागर के तट से […] Read more » Sky आकाश
खेत-खलिहान किसान बुद्ध का आह्नान! January 13, 2011 / December 16, 2011 | 1 Comment on किसान बुद्ध का आह्नान! चैतन्य प्रकाश विराट सूना आकाश क्रीड़ांगन बन गया है। काले मेघों की चपल किल्लोल जारी है। जलभरे बादलों से पटा आकाश मनुष्यता के सौभाग्य का समर्थ प्रतीक बना है। सूरज और चांद भी छिप-छिप कर इस खेल का मजा ले रहे हैं। धरती मां का अखण्ड जलाभिषेक हो रहा है। धरत्रि उर्वरा है, पुनर्नवा है, […] Read more » Farmer किसान
कहानी कहानी : प्रैक्टिकल January 12, 2011 / December 16, 2011 | 1 Comment on कहानी : प्रैक्टिकल -चैतन्य प्रकाश “यह सब झूठ है, बेबुनियाद है, मेरे राजनैतिक विरोधियों की चालबाजी है।” फोन पर उत्तर देते हुए श्याम सुंदर ने कहा। उसके चेहरे पर प्रतिक्रिया थी, जिसमें घबराहट और भय भी छुपे हुए थे। टेबिल पर आज सुबह के अखबार थे। सारे अखबारों में एक घोटाले की खबर प्रमुख थी, इस घोटाले में […] Read more » Story कहानी
विविधा क्या यह खबर नहीं है? January 11, 2011 / December 16, 2011 | 2 Comments on क्या यह खबर नहीं है? चैतन्य प्रकाश उत्तर भारत में ठंड का मौसम बूढ़े लोगों के अंतिम दिनों को काफी नजदीक ला देता है। सड़क पर, फुटपाथ पर रहने वाले शहरी गरीब ऐसी ठंडक से बचने के लिए छोटे-मोटे अपराध कर जेलों में चले जाते हैं। जो नहीं जा पाते हैं, वे किसी सवेरे ठंड से अकड़ कर दम तोड़ […] Read more » Cold ठंड
राजनीति राजनीति किस लिए? October 13, 2010 / December 21, 2011 | 3 Comments on राजनीति किस लिए? -चैतन्य प्रकाश बहुत सारे व्यवसायियों, उद्यमियों के दफ्तरों में या निजी बैठकखानों में एक पोस्टर लगा दिख जाता है, जिसमें शेर के चित्र के नीचे अंग्रेजी में लिखा होता है- No Politics Please! बहुत बार मुद्दों के बारे में बात करते हुए लोग कहते हैं कि इसमें राजनीति हो रही है या अमुक मुद्दे का […] Read more » politics राजनीति