चिंतन धर्म-अध्यात्म साफ कह चुका है केदार बंद करो यह बलात्कार वरना …. June 24, 2013 | Leave a Comment देव भूमि उत्तराखण्ड में अचानक जो कुछ हो गया, वह रौंगटे खड़े कर देने वाला है। इसके बाद जो कुछ हो रहा है वह भी कोई कम दुःखी करने वाला नहीं है। अकस्मात शिव का तीसरा नेत्र खुल उठा और ताण्डव मचा गया। महामृत्युंजय के आँगन में मौत का ऐसा ताण्डव… लोग बह गए… लाशें […] Read more » साफ कह चुका है केदार बंद करो यह बलात्कार वरना ...
चिंतन धर्म-अध्यात्म दरिद्री और दुःखी रहते हैं मितव्ययताहीन मूकदर्शक June 21, 2013 / June 21, 2013 | 1 Comment on दरिद्री और दुःखी रहते हैं मितव्ययताहीन मूकदर्शक जो लोग अपने जीवन में मितव्ययता नहीं बरतते हैं वे जीवन भर दुःखी और दरिद्री रहते हैं और इन लोगों का कोई इलाज नहीं है। ऐसे लोगों के दो प्रकार की किस्मे होती हैं। एक वे हैं जो खुद का पैसा बचाने के लिए ही मितव्ययी हैं, दूसरों का पैसा पानी की तरह बहा देने […] Read more » दरिद्री और दुःखी रहते हैं मितव्ययताहीन मूकदर्शक
चिंतन अविश्वसनीय होते हैं बात-बात में कसम खाने वाले June 20, 2013 | 2 Comments on अविश्वसनीय होते हैं बात-बात में कसम खाने वाले आदमियों की कई सारी किस्मों में से एक किस्म उन लोगों की है जो बात-बात में कसम खाया करते हैं और उन लोगों को अपनी किसी भी बात को पुष्ट करने या आधार प्रदान करने के लिए किसी न किसी की सौगंध खाने की जरूरत पड़ती है और जब तक वे किसी की शपथ न […] Read more » अविश्वसनीय होते हैं बात-बात में कसम खाने वाले
चिंतन धर्म-अध्यात्म असली आनंद मिलता है, कर्त्तव्य निर्वाह के बाद ही June 19, 2013 / June 19, 2013 | 1 Comment on असली आनंद मिलता है, कर्त्तव्य निर्वाह के बाद ही कर्म और जीवन के आनंद के बीच गहरा रिश्ता है। आनंद ही अपना चरम लक्ष्य हो और कर्त्तव्य कर्म गौण या उपेक्षित हो तो वह आनंद मात्रा आभासी एवं क्षणिक ही होता है जबकि कर्त्तव्य कर्म का निर्वाह हमारी प्राथमिकता में हो तब इसके बाद जिस आनंद की प्राप्ति होती है वह चिरस्थायी, शाश्वत और बार-बार […] Read more » असली आनंद मिलता है कर्त्तव्य निर्वाह के बाद ही
चिंतन धर्म-अध्यात्म जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा June 17, 2013 / June 17, 2013 | 1 Comment on जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा दुनिया में जहां मानवीय मूल्यों को प्रधानता प्राप्त है वहाँ लोक सेवा, परोपकार और सदाशयता के साथ ही तमाम नैतिक मूल्यों और आदर्शो को महत्त्व प्राप्त है। लेकिन जहाँ-जहाँ किसी भी अंश में व्यवसायिक मनोवृत्ति या स्वार्थ पूर्ण मानसिकता आ जाती है वहाँ-वहाँ न धर्म-कर्म है, न सामाजिक विकास की स्वस्थ परंपराएं और न ही […] Read more » जहाँ व्यवसायिक मनोवृत्ति वहां न धर्म-कर्म न समाजसेवा
चिंतन धर्म-अध्यात्म भोग-विलास से तृप्ति असंभव वासनाओं को मोड़े अध्यात्म की ओर June 6, 2013 / June 20, 2013 | Leave a Comment तृप्ति और संतोष का सीधा संबंध मन से है और जब तक मन तृप्त नहीं होता है तब तक जीवन में न संतोष आ सकता है, न आनंद का अनुभव ही संभव हो पाता है। दुनिया के सारे भोग-विलास और वैभव हमारे कब्जे में आ जाएं, विलासिता का भरपूर इस्तेमाल हम करने लगें, अकूत धन […] Read more » भोग-विलास से तृप्ति असंभव वासनाओं को मोड़े अध्यात्म की ओर
चिंतन पर्यावरण पर्यावरण रक्षा सर्वोपरि फर्ज प्रकृति नहीं तो सब है बेकार June 5, 2013 | Leave a Comment हमारे पास सब कुछ है लेकिन पर्यावरणीय सौन्दर्य नहीं है तो सारे संसाधन, भौतिक संपदा और जीवन व्यवहार सब निरर्थक है। प्रकृति के खुले आँगन में रहते हुए जिन तत्वों और नैसर्गिक ऊर्जाओं के निरन्तर पुनर्भरण की प्रक्रिया अहर्निश चलती रहती है वही वस्तुतः जीवन है। इसके अलावा जो कुछ है सब जड़ है। प्रकृति […] Read more » पर्यावरण रक्षा सर्वोपरि फर्ज प्रकृति नहीं तो सब है बेकार
सिनेमा अभिनय की दुनिया में जाना-पहचाना नाम है श्री सवाई बिस्सा April 24, 2013 / April 24, 2013 | Leave a Comment – डॉ. दीपक आचार्य किसी एक ही शख्स में खूब सारे किरदार देखने हाें तो वह हैं श्री सवाई कुमार बिस्सा। उम्र के नन्हें पड़ावों से ही अपनी बहुआयामी प्रतिभाओं का दिग्दर्शन कराने वाले बिस्सा कला संस्कृति और साहित्य के साथ ही मातृभूमि की सेवा के लिए वह समर्पित व्यक्तित्व हैं जिनकी प्रतिभा […] Read more » श्री सवाई बिस्सा
कला-संस्कृति लोक रंगों का महामेला – बेणेश्वर February 25, 2013 / February 25, 2013 | Leave a Comment विशेष सामग्री संदर्भ: बेणेश्वर मुख्य मेला माघ पूर्णिमा-25 फरवरी 2013 लोक लहरियां उमड़ाती हैं आनंद का समंदर डॉ. दीपक आचार्य बेणेश्वर धाम…… दूर-दूर तक फैला टापू, अथाह पानी और संगम, खुला आसमान… जहाँ अहर्निश बहा करती हैं संस्कृति की जाने कितनी धाराएँ, उपधाराएँ और अन्तः सरणियाँ। वह नाम जिसमें समाए हुए हैं लोक संस्कृति, […] Read more » लोक रंगों का महामेला - बेणेश्वर
व्यंग्य गायब हुआ गण का सुकून,तंत्र हथिया रखा है तांत्रिकों ने January 27, 2013 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य आज के दिन हर कहीं, हर बार मचता है शोर, और दो-चार दिन की धमाल के बाद फिर खो जाता है, बिना पेड़ों वाली पहाड़ियों के पार। आजादी के इतने सालों बाद भी गण को जिस तंत्र की तलाश थी उसका गर्भाधान तक नहीं हो सका अब तक, या कि लाख प्रयासों […] Read more »
चिंतन ऊँचाइयां पाने की तमन्ना हो तो, अपने संस्कारों से नीचे न गिरें January 15, 2013 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य जीवन के निर्माण में संस्कारों और आदर्शों का जितना महत्त्व है उतना और किसी का नहीं। अपनी आनुवंशिक परंपरा और पूर्वजों से प्राप्त संस्कारों के साथ ही हमारे शैशव में प्राप्त एवं स्थापित होने वाले संस्कारों के माध्यम से ही हमारे व्यक्तित्व की नींव का निर्माण होता है। इस नींव में जितने […] Read more »
सार्थक पहल पुराने वर्ष को जरूर विदा करें ,मगर अपनी बुराइयों के साथ December 31, 2012 / December 31, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य पूरी दुनिया साल भर बाद आज फिर पुराने वर्ष को विदा देने के लिए जबर्दस्त उतावली और आतुर है। इसी दौड़ में हम भारतीय भी पिछलग्गू बने हुए सन् 2012 को अलविदा कहने के लिए क्या-क्या नहीं कर गुजर रहे। कई दिनों से हमने जाने कितने जतन किये हैं अपने इस वर्ष […] Read more » New Year new year 2013