चिंतन न करें उत्सवी परम्पराओं की हत्या August 29, 2012 / August 29, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य न करें उत्सवी परम्पराओं की हत्या सामाजिक सांस्कृतिक हों या परिवेशीय भारतीय संस्कृति की तमाम परंपराएं वैज्ञानिकता की कसौटी पर इतनी खरी और ऋषि-मुनियों द्वारा परखी हुई हैं कि जब तक उनका अवलम्बन होता रहेगा, तब तक मानवी सृष्टि को किसी भी बाहरी आपदाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। बात धार्मिक, आध्यात्मिक, […] Read more »
समाज जो हो गुणग्राही और निरपेक्ष August 26, 2012 / August 26, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य मूल्यांकन वही कर सकता है जो हो गुणग्राही और निरपेक्ष आजकल हर कहीं दो प्रकार की बातों पर मानसिक तनाव और उद्वेग रहने लगा है। एक वे लोग हैं जो पूरी ईमानदारी और कत्र्तव्यनिष्ठा के साथ अपने दायित्वों को निभाने में समर्पित भाव से जुटे हैं। दूसरी किस्म में वे लोग हैं […] Read more »
चिंतन पराभव के दिनों का आगमन August 25, 2012 / August 27, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य सज्जनों से दूरी का मतलब है पराभव के दिनों का आगमन हमारा जीवन सिर्फ अपनी आत्मा और शरीर से ही संबंध नहीं रखता है बल्कि हमारे आस-पास रहने वाले लोग और परिवेशीय हलचलें भी हमारे जीवन से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण पहलुओं में निर्णायक साबित होती हैं और इन्हीं के आधार पर हमारे […] Read more »
पर्यावरण गहरा रिश्ता है मनु-हरित कुल का August 24, 2012 / August 24, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य गहरा रिश्ता है मनु-हरित कुल का परंपरागत प्रजातियों का संरक्षण जरूरी प्रकृति और मनुष्य के बीच सनातन रिश्ता सदियों पुराना और गहरा है। यों कहा जाए कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं तब भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जैसी प्रकृति होगी, जिस तरह का परिवेश होगा, उसी प्रकार की स्थानीय सृष्टि का […] Read more » human and nature परंपरागत प्रजातियों का संरक्षण
समाज पहचानें और दूरी बनाए रखें August 24, 2012 / August 24, 2012 | Leave a Comment पहचानें और दूरी बनाए रखें अपनी बिरादरी के कैंकड़ों से डॉ. दीपक आचार्य मनुष्य, पशु-पक्षियों, प्रकृति और परिवेशीय हलचलों का पारस्परिक गहन संबंध तभी से रहा है जब से पंचतत्वों से सृष्टि का आविर्भाव हुआ है। इन सभी के जीवन से जुड़े व्यवहारों में भी न्यूनाधिक रूप से प्रभाव सभी में परिलक्षित होता है। कभी […] Read more »
व्यंग्य मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की August 20, 2012 / August 20, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की वरना ये मर भी न पाएंगे चैन से भूखे की भूख शांत करना दुनिया का सबसे बड़ा पुण्य है। इसके मुकाबले कोई दूसरा पुण्य हो ही नहीं सकता। यों देखा जाए तो भूख इतना विराट और व्यापक शब्द है जो कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय […] Read more »
व्यंग्य ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते August 19, 2012 / August 18, 2012 | 2 Comments on ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते डॉ. दीपक आचार्य कलियुग में ईमानदारों पर भौंकते और गुर्राते हैं कुत्ते वह जमाना अब चला गया जब त्रेता युग में कुत्ते भी मनुष्य की वाणी बोलते थे। वो जमाना भी करीब-करीब चला ही गया है जिसमें चोर-उचक्कों और संदिग्धों को देख-सूंघ कर भौंकते थे कुत्ते। युधिष्ठिर का जमाना भी गुजर गया जब वफादारी दिखाने […] Read more »
विविधा भुला बैठे हैं स्वाधीनता का स्वाद August 17, 2012 / August 17, 2012 | Leave a Comment भुला बैठे हैं स्वाधीनता का स्वाद दासता के नवाचार हो रहे हावी डॉ. दीपक आचार्य जिस ज़ज़्बे के साथ स्वाधीनता पाने के लिए हमारे पुरखों ने संघर्ष और बलिदान का इतिहास कायम किया है वह ज़ज़्बा स्वाधीन होने के बाद एक तरह से खत्म सा होता जा रहा है। स्वाधीनता का स्वाद अब फीका पड़ने […] Read more »
चिंतन व्यक्तित्व को ढालना है हमारे हाथ August 12, 2012 / August 12, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य व्यक्तित्व को ढालना है हमारे हाथ रचनात्मक बनायें या विध्वंसात्मक व्यक्तित्व का निर्माण व्यक्ति के अपने हाथ में होता है। इसे वह चाहे जिस साँचे में ढालने को स्वतंत्र है। वंशानुगत संस्कारों, पारिवारिक माहौल, मित्रों के संसार और परिवेश तथा परिस्थितियों आदि सभी प्रकार के कारकों का व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। […] Read more » रचनात्मक विध्वंसात्मक
समाज स्त्रियों का आदर करें August 3, 2012 / August 3, 2012 | 2 Comments on स्त्रियों का आदर करें डॉ. दीपक आचार्य आधे आसमाँ को दें पूरा सम्मान स्त्रियों का आदर करें मनुष्य के जीवन में सफलता के लिए पुरुष और प्रकृति का पारस्परिक सहयोग, सहकार और समन्वय सर्वाधिक जरूरी कारक है जिसके बगैर सृष्टि में समत्व, आनंद और शाश्वत संतोष की कल्पना कदापि नहीं की जा सकती है। सृष्टि में हर वस्तु या […] Read more » pay respect to women स्त्रियों का आदर करें
समाज रिटायरमेंट के बाद August 2, 2012 / August 1, 2012 | 1 Comment on रिटायरमेंट के बाद रिटायरमेंट के बाद ही होता है नौकरशाहों का असली मूल्यांकन डॉ. दीपक आचार्य समूची व्यवस्था में तरह-तरह के बाड़े हैं जिनमें घुसे हुए लोग कभी पांच साला जिन्दगी जीने के बाद बाहर कर दिए जाते हैं कभी इनकी विलासिता आयु इन प्राणियों के कर्म और व्यवहार को देख कर बढ़ती है, कभी शून्य में खो […] Read more » life after retirement
वर्त-त्यौहार मौलिकता खो रहा है रक्षाबंधन पर्व August 1, 2012 / August 1, 2012 | Leave a Comment डॉ. दीपक आचार्य बाजारवादी दिखावों की भेंट चढ़ी राखी मनुष्य के जीवन में उत्साह, उमंग और उल्लास की सरस धाराओं से आप्लावित करने वाले पर्व-उत्सव एवं त्योहारों का महत्त्व हर कोई जानता और समझता है। यही कारण है कि ये दिन हर व्यक्ति के जीवन की तमाम विषमताओं, समस्याओं और पीड़ाओं से मुक्ति दिलाकर पुनः […] Read more » rakshabandhan रक्षाबंधन पर्व