मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की

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डॉ. दीपक आचार्य

मिटाएँ भूख इन कुंभकर्णों की

वरना ये मर भी न पाएंगे चैन से

भूखे की भूख शांत करना दुनिया का सबसे बड़ा पुण्य है। इसके मुकाबले कोई दूसरा पुण्य हो ही नहीं सकता। यों देखा जाए तो भूख इतना विराट और व्यापक शब्द है जो कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय उत्पन्न हो सकता है और इसे शांत करने के लिए आदमी से लेकर जानवर तक सारे के सारे हर नाजायज-जायज मार्ग अपनाते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।

यह भूख ही है जिसकी वजह से आदमी और समाज का अस्तित्व है। भूख की आयु भी लम्बी होती है और आकार भी बड़ा। कुछ लोग पीढ़ियों और युगों से भूखे होते हैं और कुंभकर्ण की मानिन्द एक साथ उदरस्थ कर लेने के बाद भी डकार नहीं लेते।

इसके बावजूद कुंभकर्ण का युग अच्छा था क्योंकि कम से कम छह माह तक तो लोग और समाज निश्चिंत रहा करते थे। पर आज के कुंभकर्ण रात को भी नहीं सोते। उनकी भूख दिन-रात बनी रहने लगी है। आखिर कैसे इनकी भूख को शांत करने के जतन किए जाएं, यह आज के युग की सबसे बड़ी समस्या बन कर सामने खड़ी है।

भूख के बारे में आम धारणा यही होती है कि इसका संबंध पेट से है और प्यास का संबंध हलक से। मगर अब ऎसा नहीं रहा। अब भूख भी भ्रष्टाचार की तरह कई-कई रूपों में हमारे सामने दौड़ने लगी है।

पेट की भूख और गले की प्यास तो अब गौण हो गई है, उन बेचारों को कोई पूछने वाला नहीं है जिन्हें ये भूख-प्यास सताती है, ये लोग तो बेचारे राम के भरोसे किसी भी तरह जी लेते हैं। बात तो उन भूख और प्यास वालों की है जिनका संबंध न पानी से है, न अनाज से।

आजकल किसम-किसम की भूख अपना दिग्दर्शन कराने लगी है। जब भूख की व्यापकता बढेगी तो भूखों और प्यासे लोगों की संख्या का भी अनगिनत विस्तार होना जरूरी है। आखिर ये ही तो वे भूखे-प्यासे हैं जो दिन-रात भूखे और प्यासे होने की दुहाई देते हुए कभी इधर डाका डाल लेते हैं, कभी उधर याचना करते हुए गिड़गिड़ाने लगते हैं।

ये भूखे एक सीमा तक गिड़गिड़ाते हुए याचना करते हैं और इसके बाद जैसे-जैसे भूख मिटाने के स्रोतों की खबर पाते जाते हैं, ये उन सभी कलाओं में माहिर होते जाते हैं जिनसे भूख मिटाने के दूसरे रास्तों, गलियों और सुराखों की शुरूआत होती है जहां कभी रात के अंधेरे में चुपचाप तो कभी दिनदहाड़े अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए ये लोग सेंध लगा लेते हैं।

भूख अब नए-नए रूपों और आकारों में सामने आ गई है। जनपथ से लेकर राजपथ तक यह भूख श्रृंखलाबद्ध रूप से पसरी हुई है। इस भूख को मिटाने के फेर में आदमी उन सभी बातों को पूरी तरह भुला बैठा है जिसके लिए उसने धरा पर अवतरण लिया था।

अब आदमी का मकसद भूख मिटाना ही रह गया है और इस भूख मिटाने की यात्रा में उसके लिए कोई भी कर्म या क्रियाकर्म वज्र्य नहीं रह गया है। भूख मिटाने के लिए मददगार होने वाले सभी तरह के रास्तों को इखि़्तयार करने में ही आदमी अपनी और आने वाली पीढ़ियों की भलाई समझने लगा है।

गली-कूचों से लेकर हर चौराहों, सर्कलों, रास्तों, और राजमार्गों से लेकर धर्म-अध्यात्म की ओर जाने वाले सभी रास्तों पर भूखों के डेरे सजे और पसरे हुए हैं जहाँ हर किस्म की भूख शांत करने के नायाब नुस्खे, ईल्म और तिलस्मों का साया पसरा हुआ है।

इन रास्तों पर मदारियों, बहुरुपियों, जमूरों, जादूगरों और विचित्र वेशभूषाधारियों का बोलबाला है जो भूख को भुनाते हुए अपनी भूख को दूर करने के तमाम हथकण्डों का इस्तेमाल करने में सिद्धहस्त हैं। मामा मारीच की तरह स्वर्ण मृग का भ्रम दिखाकर मर्यादाओं की सीताओं के हरण में माहिर इन लोगों का रुतबा इतना कि बड़े-बड़े भूखे भी इनका सान्निध्य पाकर निहाल हो रहे हैं।

कोई जेब का भूखा है कोई जिस्म का, कोई खबरों का भूखा होकर छपास रोगी बना हुआ है, किसी को रोज खबरों और फोटो में अपना चेहरा देखने की दरकार है तो कोई पोस्टरों, बेनरों और फ्लेक्स पर फबने का भूखा है।

किसी को दौलत की भूख है, किसी को सम्मान और आदर की। इन तमाम किस्मों के भूखों के चलते हर कहीं भूखे ही भूखे नज़र आते हैं। इस भूख को मिटाने कोई कहीं डाका डाल रहा है, कोई एक-दूसरे को लूट रहा है, कोई किसी की जेब काट रहा है तो कोई कहीं सेंध लगाने में दिन-रात भिड़ा हुआ है।

हर जगह भूखों के दर्शन हो रहे हैं। अजीब किस्म के इन भूखों में सामान्य से लेकर असामान्य और अद्र्ध सामान्य भूखों की छवि दिख रही है। कोई छुरा चला रहा है तो कोई पेन की नीब से कटिंग कर रहा है। कोई चिड़िया बिछाकर हाथी का कत्ल कर रहा है तो कोई व्हेल का।

भूखों में कई प्रजातियां हैं। इनमें कई पूरे भूखे हैं, कोई पहले से भरे हुए हैं फिर भी भूखे हैं और कोई थोड़े-थोड़े भूखे। भूख ही ऎसी सार्वजनीन है जिसे हर किसी में देखा जा सकता है। भूख के लिए कोई जात-पात या छोटा-बड़ा नहीं होता है। भूखे हर जगह पाए जा रहे हैं।

भूख की इस घोर व्यापकता ने अब कई सूक्ष्म रूप धारण कर लिए हैं। किसी का मस्तिष्क भूखा है, आंखें प्यासी हैं, होंठ और मुंह भूखे हैं, किसी का दिल भूखा है तो शेष में और अंगों की भूख। कई-कई तो ऎसे भूखे हैं कि इनकी तमाम ज्ञानेन्दि्रयां और कर्मेन्दि्रयां ऎसा व्यवहार करती हैं जैसे युगों से भूखी हों।

समाज में अपराधों की अभिवृद्धि के लिए भी ये भूखे ही जिम्मेदार हैं। भूख न हो तो भला कोई अपराध करें ही क्यों। फिर हमारे शास्त्र भी यही कहते हैं – बुभुक्षितं किं न करोति पापम्। भूखों को शास्त्रों ने भी बख्श रखा है फिर आप और हम क्या हैं। आखिर भूख के चलते भजन तक नहीं हो पाने की बातें भी कही गई हैं।

इन भूखों ने देश और दुनिया में हमें कितना गौरव दिया है, इसे हम से अधिक और कौन जान सकता है। भूखों का साम्राज्य निरन्तर पसरता जा रहा है। इन सारे हालातों में हमारा भी नैतिक फर्ज हो जाता है कि भूखों के प्रति दया और करुणा भाव रखें और ईश्वर से इनकी भूख शांत करने के लिए प्रार्थनाएं करें।

ऎसा अभी हम नहीं कर पाए तो बेचारे ये भूखे चैन से मर भी न पाएंगे। और ऎसा ही हो गया तो मोक्ष या नवीन देहधारण से वंचित रह जाने वाले ये भूखे क्या कर गुजरेंगे, इस बारे में कल्पना तक नहीं की जा सकती।

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