धर्म-अध्यात्म लेख सांस्कृतिक जगत की महान उपलब्धि है एकात्मधाम September 21, 2023 / September 21, 2023 | Leave a Comment प्रायः समझा जाता है कि साधु-संन्यासियों का काम निर्जन वनों और पर्वत कन्दराओं में एकान्त साधना करना है किन्तु आदिशंकराचार्य ने संन्यास की जिस नयी चेतना से समाज का दिशा-दर्शन किया वह सामाजिक जीवन के सांस्कृतिक प्रवाह को अमर और अक्षय बनाने का नया विधान रचती है। भारतवर्ष के जिस सुविशाल भू-भाग को उसकी विविधताओं […] Read more »
राजनीति आत्ममंथन का अवसर है स्वतंत्रता दिवस August 15, 2022 / August 15, 2022 | Leave a Comment स्वतंत्र शब्द का सीधा अर्थ है ‘अपना तंत्र ‘। राजनीतिक संदर्भ में स्वतंत्रता समाज के अपने बनाए हुए तंत्र का अर्थ व्यक्त करती है। तंत्र से आशय किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निर्धारित किए गए व्यवस्थापन से है। परतंत्र भारत में शिक्षा, सुरक्षा, न्याय, चिकित्सा उद्योग, व्यवसाय आदि व्यवस्थाएं इस्लामिक आक्रांताओं और अंग्रेजों की अपनी […] Read more » 75th independence day azadi ka amrit mahotsav आत्ममंथन का अवसर है स्वतंत्रता दिवस
राजनीति समाज अराजक आपातकाल की ओर बढ़ता देश ! June 15, 2022 / June 15, 2022 | Leave a Comment विदेशी शक्तियों की दासता से मुक्त हुए पिचहत्तर वर्ष बीत रहे हैं। देश आजादी का अमृत-महोत्सव मनाने में मस्त है और देश विरोधी ताकतें आजादी के नाम पर उन्माद, आगजनी, भड़काऊ बयानबाजी, हिंसा और तोड़फोड़ में व्यस्त हैं। आम नागरिक डरा सहमा है और अपराधी तत्व निरंकुश हो रहे हैं। आंदोलनों और विरोध-प्रदर्शनों के नाम पर भीड़ एकत्रित कर जनजीवन को त्रस्त और अशांत बना देना कुछ लोगों के लिए आम बात हो गई है। भीड़ को पुलिस-प्रशासन का भय नहीं रह गया है, कानून की परवाह नहीं है और दंड की चिंता नहीं है क्योंकि हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ पर उतारू भीड़ जानती है कि उसके इन आपराधिक कुकृत्यों पर उसे दंडित करने वाली संवैधानिक प्रक्रियाएं इतनी लंबी हैं कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। बड़े-बड़े विपक्षी नेता उसके पक्ष में खड़े मिलते हैं और बड़े-बड़े वकील निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक उसकी सुरक्षा और उसके हितों की रक्षा के लिए कमर कसकर खडे़ हैं। जे.एन.यू. में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’जैसे देश विरोधी नारे लगाने वालों के समर्थन में खड़े बड़े नेताओं और दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में दंगाइयों के अवैध निर्माण ढहाने की सरकारी मुहिम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देकर विफल कर देने बाले कानून के रखवालों की कारगुजारियां इस तथ्य को दूर तक स्पष्ट करती हैं। जब शीर्ष नेतृत्व, कानून के मंजे हुए खिलाड़ी और दूर विदेशों तक सक्रिय भारत-विरोधी प्रचारतंत्र तथा गुमनाम आर्थिक शक्तियां इस उन्मादी भीड़ की पृष्ठभूमि में पूरी ताकत से सक्रिय हों तो प्रतिकूल विषम परिस्थितियों से पार पाना और भी कठिन हो जाता है। देश की चुनी हुई संवैधानिक लोकतांत्रिक केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के निर्णयों को उग्र हिंसक आंदोलनों के बल पर बदलने, वापस कराने का यह खतरनाक खेल देश की प्रगति, शांति और सुरक्षा के लिए जितना बड़ा खतरा है विपक्षी राजनेताओं के लिए भी उतना ही अशुभ और विनाशकारी है क्योंकि भविष्य के निर्वाचनों में यदि वे सत्ता में आए तो यही हिंसक उन्मादी भीड़ उनकी राजनीति का पथ भी कंटकाकीर्ण कर देगी और तब उनके लिए भी लोकतांत्रिक मानमूल्यों का संरक्षण करना कठिन होगा। अतः उग्र-हिंसक आंदोलनों को उकसाना, दंगे भड़काना किसी के भी हित में नहीं है– ना सत्तापक्ष के, ना विपक्ष के और ना जनता के। अब यह खतरनाक खेल बंद होना चाहिए। एक पुरानी फिल्म का गीत है ‘पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए’ । यही बात आज हमारे देश में उग्र-हिंसक आंदोलनों के संदर्भ में सत्य सिद्ध हो रही है। रोज किसी न किसी बहाने से उग्र-हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। कभी किसी राजनीतिक दल की शक्ति प्रदर्शनकारी रैली के नाम पर, कभी आरक्षण अथवा अन्य किसी मांग की पूर्ति के नाम पर, कभी एनआरसी, सीएए अथवा किसान आंदोलन के नाम पर तो कभी किसी धार्मिक उत्सव के अवसर पर चल समारोह के विरुद्ध एकत्रित की गई भीड़ ध्वंस का नग्न-नृत्य करती ही रहती है। हर बार भीड़ कुछ निर्दोषों की बलि ले लेती है, कुछ पुलिसकर्मी अधिकारी हत-आहत हो जाते हैं, फिर पुलिस फ्लैग मार्च निकालती है, एफ आई आर दर्ज होती हैं, कानून की चक्की धीमी गति से चलती है और तब तक केंद्र अथवा राज्य सरकार बदल जाने पर केस वापस ले लिए जाते हैं। प्रायः अपराधी अपराध करने के बाद भी दंडित नहीं हो पाते। ऐसी स्थितियों में भीड़ को एकत्रित कर उसे अपने निहित स्वार्थों के लिए देश के विरुद्ध एक प्रभावी शस्त्र के रूप में प्रयोग करना देश-विरोधी और सत्ता की प्रतिपक्षी ताकतों के लिए और भी सहज हो जाता है। इन्हीं कारणों से ये हिंसक प्रदर्शन बराबर बढ़ रहे हैं, बढ़ते ही जा रहे हैं। यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए तो इन्हें नियंत्रित कर पाना और भी कठिन हो जाएगा। हमारी संवैधानिक व्यवस्था में अपनी बात रखने का सबको बराबर अधिकार है किंतु झूठी बयानबाजी करने और मनमाने कृत्यों द्वारा दूसरों की भावनाओं को आहत करने की छूट किसी को नहीं है। भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा के जिस बयान को लेकर जुमे की नमाज के बाद देश में अनेक स्थानों पर उग्र प्रदर्शन हुए वह बयान भी इसी दृष्टि से विचारणीय है। यदि नूपुर शर्मा ने हजरत मोहम्मद साहब के विरुद्ध कोई मनगढ़ंत झूठी बात कहकर उनका अपमान करके संप्रदाय विशेष के लोगों की भावनाओं को आहत किया है तो उनके विरुद्ध भारतीय दंडविधान के अनुरूप न्यायिक कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए किंतु यदि उन्होंने इस्लामी पवित्र ग्रंथों में कथित किन्ही तथ्यों की ही पुनप्र्रस्तुति की है तो फिर इतना बवाल क्यों ? क्या संप्रदाय विशेष अपने ही ग्रंथों में उल्लिखित तथ्यों के प्रति आस्था और विश्वास नहीं रखता ? धार्मिक महापुरुषों और कथित पैगंबरों-अवतारों के जीवन सत्य को आज बदला नहीं जा सकता। उसे उसी रूप में स्वीकार करना होगा जिस रूप में वह उनसे संबंधित मूल प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। अतः विवेचना का विषय यह होना चाहिए कि नूपुर शर्मा के कथन के स्रोत क्या हैं और उन स्रोतों की सत्यता विश्वसनीयता कितनी है ? सच को सामने लाए बिना केवल उग्र प्रदर्शन कर जनजीवन को अशांत करना आज के इक्कीसवीं शताब्दी के सभ्य समाज के मस्तक पर कलंक के सिवा कुछ भी नहीं है। इसे प्रदर्शनकारियों का बौद्धिक दिवालियापन ही कहा जा सकता है। यह भी अत्यंत रोचक और दुखद विषय है कि जिस संप्रदाय विशेष के लोग अपनी धार्मिक भावनाएं आहत होने के कारण उग्र हिंसक प्रदर्शन पर जब-तब उतर आते हैं वे समाज के अन्य संप्रदायों की भावनाओं के साथ निरंतर खिलवाड़ करते रहते हैं ? रांची में हिंसक भीड़ से बचने के लिए मौके पर तैनात पुलिसकर्मियों, पत्रकारों और अन्य धर्मावलंबियों ने मेनरोड स्थित महावीर मंदिर में शरण लेकर अपने प्राण बचाए तो उपद्रवियों ने मंदिर के बंद द्वार और छत पर पत्थर फेंक कर महावीर मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया। क्या महावीर मंदिर पर हुए इस आक्रमण के कारण इस मंदिर से जुड़े लोगों की भावनाएं आहत नहीं हुईं ? कैसी विडंबना है कि जो कट्टर मानसिकता पिछले 1000 वर्षों से भी अधिक समय से भारतवर्ष के पूजा स्थलों को नष्ट करती आ रही है, उनकी मूर्तियों को तोड़ती रही है, उनके अश्लील चित्र अंकित करके हर प्रकार से उन्हें अपमानित करने में ही स्वयं को गौरवान्वित मानती है वह अन्य धर्मावलंबियों द्वारा उनके पैगंबर के संबंध में कुछ कहे जाने मात्र से हिंसा पर उतर आती है। अपने महापुरुष, अपने पूजास्थल और अपनी संस्कृति के सम्मान के प्रति अत्यंत जागरूक इस समुदाय को अन्य धर्मों का सम्मान करना भी सीखना होगा, सीखना भी चाहिए अन्यथा अन्य पक्षों की रोषाग्नि उन्हें भी झुलसा सकती है। शिवाजी का आक्रोश औरंगजेब की सत्ता को कमजोर कर के उसे विनाश की ओर ही धकेलेगा। अनेक मीडिया चैनलों पर प्रसारित होने वाले तथाकथित डिबेट के ऐसे कार्यक्रम भी गंभीर चिंता का विषय हैं। धर्म आदि अत्यंत संवेदनशील ऐसे मुद्दे जो प्रशासनिक एवं न्यायिक स्तरों पर विचाराधीन हैं, उन पर ऐसी बहसों का आयोजन उनकी टीआरपी बढ़ाने की दृष्टि से भले ही उनके लिए लाभप्रद हो किंतु जनमानस पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डाल पाता क्योंकि इन विमर्शों का निष्कर्षहीन अंत कुछ ज्वलंत प्रश्न ही छोड़ता है, कोई सार्थक समाधान नहीं देता। सब जानते हैं कि जो प्रवक्ता जिस धर्म अथवा राजनीतिक दल की ओर से आया है वह हर प्रकार से अपने पक्ष का ही समर्थन करेगा। सत्य-असत्य से दूर जाकर तर्कों-कुतर्कों के सहारे प्रस्तुत होने वाली ये बहसें सच को सामने लाने के स्थान पर भ्रांतियां ही अधिक निर्मित करती हैं। सामंतवादी युग में तीतर-बटेर और मुर्गों की लड़ाई के प्रदर्शन जैसे यह डिबेट आयोजन समय और श्रम की बर्बादी के साथ-साथ जनता जनार्दन के मध्य वैमनस्य भी उत्पन्न करते हैं अतः इनकी आवश्यकता भी विचार का विषय है। नूपुर शर्मा का बयान और उस से उपजा बवाल इस दिशा में गंभीरता पूर्वक विचार की अपेक्षा करता है। यदि यह डिबेट नहीं हुई होती तो यह अनावश्यक बवाल भी नहीं होता। इस प्रकार के उग्र-हिंसक प्रदर्शन भी आतंक का ही एक रूप हैं जो समाज और शासन-प्रशासन पर अनुचित दबाव डालकर अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे दबाव स्वीकार नहीं किए जा सकते, किए भी नहीं जाने चाहिए क्योंकि इनसे राज्य-सत्ता की दुर्बलता प्रकट होती है और दबाव डालने वाली अलोकतांत्रिक ताकतों का मनोबल बढ़ता है। कृषि-विधेयक के विरोध में गणतंत्र दिवस के दिन लालकिले पर हुए तथाकथित किसानों का उग्र खालिस्तानी अलगाववादी प्रदर्शन, शाहीन बाग का प्रदर्शन, कोविड-19 के समय कुछ विशेष बस्तियों के लोगों द्वारा चिकित्सकों और नर्सों पर की गई पत्थरबाजी तथा जब तब भड़कते दंगों में पुलिस बल पर होने वाले हमले लोकतंत्र के आकाश पर मंडराते गहराते काले बादलों की ओर इशारा कर रहे हैं। सबका साथ और सबका विकास का नारा देकर सबको समान रूप से निशुल्क अन्न बांटने वाली, आवास और अन्य सुविधाएं देने वाली सरकार सब का विश्वास जीतने में अभी भी विफल है क्योंकि हैदराबाद से ओवैसी और कश्मीर घाटी से महबूबा मुफ्ती जैसे नेता अभी भी समुदाय विशेष को बहकाने-भड़काने में लगे हैं। परिस्थितियां विषम हैं। देश एक अघोषित अराजक आपातकाल की ओर जा रहा है। राजनेता अपने-अपने दलों का हित ध्यान में रखकर निर्णय ले रहे हैं अतः हम नागरिकों का दायित्व है कि वर्ग, धर्म आदि के खांचों में विभाजित राजनीति और उसके रहनुमाओं के चंगुल से निकलकर देशहित में स्वयं निर्णय लें और आपराधिक मानसिकता वाले कथित नेताओं के हाथों में हथियार बन कर अपने ही देश की देह लहूलुहान ना करें। राष्ट्र की एकता, अखंडता और स्वायत्तता के लिए समर्पित हों। डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र Read more » अराजक आपातकाल की ओर बढ़ता देश
राजनीति लोकतंत्र में सत्ता त्याग और सेवा का दुर्गम-पथ है January 25, 2022 / January 25, 2022 | 1 Comment on लोकतंत्र में सत्ता त्याग और सेवा का दुर्गम-पथ है Read more » In a democracy there is an inaccessible path of renunciation and service. लोकतंत्र में सत्ता त्याग सत्ता त्याग और सेवा
लेख श्रीकृष्ण की धर्म नीति August 31, 2021 / August 31, 2021 | Leave a Comment ‘‘नरोचित किन्तु क्या यह कर्म होगा ?नहीं इससे मलिन क्या धर्म होगा ?’’अर्जुन की इस जिज्ञासा पर कृष्ण का उत्तर विस्मयजनक है; अद्भुत है-‘‘हंसे केशव, वृथा हठ ठानता है,अभी तू धर्म को क्या जानता है ?कहूँ जो पाल उसको धर्म है यह।हनन कर शत्रु का सदधर्म है यह।।क्रिया को छोड़, चिंतन में फंसेगा,उलटकर काल तुझको […] Read more » श्रीकृष्ण की धर्म नीति
राजनीति जंग जारी है May 12, 2021 / May 12, 2021 | 2 Comments on जंग जारी है पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के वंशज परस्पर संघर्ष कर रहे हैं। हिंसा, हत्या और लूट का बाजार गर्म है। महमूद गजनबी तथा मोहम्मद गोरी के वंशधर मुस्कुरा रहे हैं, माल खा रहे हैं और धीरे-धीरे अपनी सैन्य-शक्ति (वोटबैंक) का संख्या बल बढ़ाते हुए भारतवर्ष की समस्त सनातन-परंपराओं को निर्मूल करने की दिशा में निरंतर सक्रिय […] Read more » सनातन भारतीय परंपराओं को चिरजीवी बनाना
कला-संस्कृति लेख वर्त-त्यौहार शिवत्व की प्रतिष्ठा में ही विश्व मानव का कल्याण संभव है March 10, 2021 / March 10, 2021 | Leave a Comment Read more » shivaratri शिव शिवत्व की प्रतिष्ठा
लेख हिंदी दिवस सत्ता की संकल्प-शक्ति से ही हिन्दी बनेगी राष्ट्रभाषा September 13, 2020 / September 13, 2020 | Leave a Comment भाषा व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य अथवा दो समूहों के मध्य केवल संपर्क का ही माध्यम नहीं होती। वह संपर्क से आगे बढ़कर उनके मध्य स्नेह का सूत्र भी सुदृढ़ करती है, उनमें अंतरंगता स्थापित कर उनके बीच भ्रातृत्व-भाव का विकास और मैत्री-भाव की पुष्टि भी करती है। इसीलिए नेतागण जिस क्षेत्र विशेष में वोट मांगने […] Read more » Hindi Diwas hindi rshtrabhasha Hindi will become the national language only with the power of determination हिन्दी बनेगी राष्ट्रभाषा
लेख विविधा समाज शिक्षा एक गंभीर सामाजिक दायित्व-बोध है September 4, 2020 / September 4, 2020 | Leave a Comment भारतवर्ष की सनातन सांस्कृतिक परंपरा में ‘शिक्षा’ स्वयं में बहुअर्थगर्भित शब्द है। यहाँ शिक्षा का अभिप्राय साक्षरता अथवा शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की उपलब्धता मात्र नहीं है। शिक्षा यहां मानव-मन को शुभसंस्कारों से सज्ज करने का माध्यम है; मनुष्य को मनुष्य बनाने की कला है; उसमें सामाजिक दायित्वबोध का जागरण है और उदात्त मानव-मूल्यों की प्राप्ति का […] Read more » Education is a serious social responsibility शिक्षा शिक्षा एक गंभीर सामाजिक दायित्व-बोध है
कला-संस्कृति पर्व - त्यौहार लेख वर्त-त्यौहार राजनीति के आदर्श-प्रतिमान : श्रीकृष्ण August 10, 2020 / August 10, 2020 | Leave a Comment ‘महाभारत’ के ‘सभापर्व’ में राजनीतिक व्यक्ति (राजा) में छः गुण ( व्याख्यान शक्ति, प्रगल्भता, तर्ककुशलता, नीतिगत निपुणता, अतीत की स्मृति और भविष्य के प्रति दृष्टि अर्थात दूरदर्शिता) आवश्यक माने गए हैं। जो राजा इन छः गुणों से युक्त होता है, उसकी राजनीति ही सुफलवती बनती है। महाभारतकालीन राजनीति में राजनीति की उपर्युक्त समस्त अर्हताएं श्रीकृष्ण […] Read more » Model of politics Shri Krishna राजनीति के आदर्श-प्रतिमान श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण
राजनीति राममंदिर पर ओवैसी के विरोध का सच July 30, 2020 / July 30, 2020 | Leave a Comment ए.आई.एम.आई.एम. (ऑल इंडिया मजलिस ए एतिहाद उल मुसलमीन) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर राममंदिर के विरुद्ध स्वर मुखर करने का असफल प्रयत्न किया है। ओवैसी परतंत्र भारत में बनी उस राजनीतिक पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष हैं जो धर्म की एकांकी छद्म राजनीति पर टिकी है, जिसमें भारतीयता अथवा संपूर्ण भारतीय समाज के […] Read more » राममंदिर पर ओवैसी
राजनीति शस्त्र के बिना शौय-प्रदर्शन कठिन है July 3, 2020 / July 3, 2020 | Leave a Comment 15 जून की रात को चीनी और भारतीय सैनिकों के मध्य हुई हिंसक झड़प के संदर्भ में 23 वर्षीय भारतीय सैनिक गुरुतेज सिंह की शौर्य-गाथा का लोमहर्षक विवरण भारतीय मीडिया ने प्रस्तुत किया। थर्ड पंजाब की घातक प्लाटून के सैनिक गुरुतेज सिंह ग्राम मानसा पंजाब के निवासी थे। जब चार चीनी सैनिकों ने एक साथ […] Read more » शस्त्र के बिना शौय-प्रदर्शन शहीद गुरुतेज सिंह