लेख क्यों आवश्यक है महाराज दाहिर का पुण्य-स्मरण ? June 16, 2020 / June 16, 2020 | 1 Comment on क्यों आवश्यक है महाराज दाहिर का पुण्य-स्मरण ? अरबों के आक्रमण की विपद-बेला में भारतवर्ष के सिंहद्वार सिंध की रक्षा के लिए वीरगति पाने वाले रणबांकुरे राजा दाहिर की भारतीय इतिहास और समाज में विस्मृति आहत करती है। महाराज दाहिर के महान कृतित्व की चर्चा इतिहास के विलुप्त प्राय पृष्ठों तक सीमित है। कदाचित अपने इतिहास के बलिदानी महापुरुषों की उपेक्षा और ऐतिहासिक […] Read more » महाराज दाहिर महाराज दाहिर का पुण्य-स्मरण
राजनीति आखिर क्यों केजरीवाल ने की भेदभाव की राजनीति ? June 10, 2020 / June 10, 2020 | 1 Comment on आखिर क्यों केजरीवाल ने की भेदभाव की राजनीति ? हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के संघीय ढांचे की एक बड़ी कमी तब उभरकर सामने आयी है, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली के अस्पतालों में केवल दिल्लीवासियों को ही उपचार उपलब्ध कराने का शासनादेश निर्गत कर वहाँ के समस्त प्रवासियों को महामारी के इस विकट संकटकाल में चिकित्सा सुविधा से वंचित कर दिया। […] Read more » केजरीवाल भेदभाव की राजनीति
राजनीति ‘धर्मराज युधिष्ठिर और महात्मा गांधी’ October 1, 2019 / October 1, 2019 | Leave a Comment जम्मू-कश्मीर राज्य से धारा 370 हटाए जाने के उपरांत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके मंत्री भारत को बार-बार परमाणु युद्ध की धमकियां दे रहे हैं। आज फिर एक ओर पाकिस्तानी क्षितिज से भारतीय सीमाओं पर भीषण युद्ध के विनाशकारी बादल उमड़ रहे हैं और दूसरी ओर भारत सहित संपूर्ण विश्व महात्मा गांधी की […] Read more »
राजनीति हिंदी दिवस राष्ट्र की प्रगति के लिए हिन्दी की सर्वस्वीकार्यता आवश्यक September 24, 2019 / September 24, 2019 | Leave a Comment मनुष्य के जीवन की भाँति समाज और राष्ट्र का जीवन भी सतत विकासमान प्रक्रिया है । इसलिए जिस प्रकार मनुष्य अपने जीवन में सही-गलत निर्णय लेता हुआ लाभ-हानि के अवसर निर्मित करता है और सुख-दुख सहन करने को विवश होता है उसी प्रकार प्रत्येक समाज और राष्ट्र भी एक इकाई के रूप में अपने […] Read more » acceptance of hindi countrywide हिन्दी की सर्वस्वीकार्यता
समाज लोकतंत्र का भविष्य समन्वय में है संघर्ष में नहीं ’ August 14, 2018 / August 14, 2018 | Leave a Comment डाॅ. कृष्णगोपाल मिश्र लोकतंत्र में प्रयुक्त ‘लोक‘ शब्द अपने अपार विस्तार में समस्त संकीर्णताओं से मुक्त है । ‘लोक’ जाति-धर्म-भाषा-क्षेत्र-वर्ग आदि समूह की संयुक्त समावेशी इकाई है, जिसमें सहअस्तित्व का उदार भाव सक्रिय रहकर ‘लोक‘ को आधार देता है। ‘लोक‘ में सबके प्रति सबकी सहानुभूति का होना आवश्यक है। इसी से ‘लोक‘ एक इकाई […] Read more » Featured ईमेल दूरदर्शन लोकतंत्र का भविष्य समन्वय में है संघर्ष में नहीं ’ समाचार-पत्र सोशल मीडिया
समाज ‘संतान के लिए सुरक्षा-कवच है पिता’ June 15, 2018 / June 15, 2018 | Leave a Comment डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र ‘पिता’ शब्द् संतान के लिए सुरक्षा-कवच है। पिता एक छत है, जिसके आश्रय में संतान विपत्ति के झंझावातों से स्वयं को सुरक्षित पाती है। पिता संतान के जन्म का कारण तो है ही, साथ ही उसके पालन-पोषण और संरक्षण का भी पर्याय है। पिता आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति की गारंटी है। पिता शिशु […] Read more » ‘नचिकेता’ ‘भीष्म’ ‘श्रवणकुमार’ ‘संतान के लिए सुरक्षा-कवच है पिता’ Featured बागवान’ राम वृद्धाश्रमों संतान सहृदय-संवेदनशील
लेख साहित्य धर्मपालन के आदर्श प्रतिमान हैं – श्रीराम March 26, 2018 | Leave a Comment रामचरित के प्रथम गायक आदिकवि वाल्मीकि ने राम को धर्म की प्रतिमूर्ति कहा है। उनके अनुसार -‘रामो विग्रहवान धर्मः।’ अर्थात राम धर्म का साक्षात श्री-विग्रह हैं। धर्म को मनीषियों ने विविध प्रकार से व्याख्यिायित किया है। महाराज मनु के अनुसार -धृति, क्षमा, दमन (दुष्टों का दमन), अस्तेय (चोरी न करना), शुचिता, इन्द्रिय-निग्रह (समाज विरोधी, परपीड़नकारी […] Read more » श्रीराम
समाज नारी के सशक्तिकरण से ही पुरुष का सशक्तिकरण संभव है ’ March 8, 2018 | Leave a Comment स्ंासार की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः विश्व की सुख-शांति और समृद्धि में उनकी भूमिका भी विशेष रुप से रेखांकनीय हैं। भारतीय-चिन्तन-परम्परा में यह तथ्य प्रारंभ से ही स्वीकार किया जाता रहा है। इसलिए भारतीय-संस्कृति में नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरुपा है ; देवी रुप में प्रतिष्ठित है। मानव समाज में शक्ति के तीन रुप हैं- […] Read more » Empowerment of men empowerment of women. Featured सशक्तिकरण
धर्म-अध्यात्म सामान्य भारतीय जन के प्रतीक हैं– शिव February 13, 2018 | Leave a Comment त्याग और तपस्या के प्रतिरुप भगवान शिव लोक-कल्याण के अधिष्ठाता देवता हैं। वे संसार की समस्त विलासिताओं और ऐश्वर्य प्रदर्शन की प्रवृत्तियों से दूर हैं। सर्वशक्ति सम्पन्न होकर भी अहंकार से मुक्त रह पाने का आत्मसंयम उन्हें देवाधिदेव महादेव – पद प्रदान करता है। शास्त्रों में शिव को तमोगुण का देवता कहा गया है, किन्तु […] Read more » शिव सामान्य भारतीय जन के प्रतीक हैं
राजनीति नेतृत्व की शुचिता पर ही जनतंत्र का निर्वाह निर्भर है January 24, 2018 | Leave a Comment वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था के संदर्भ मंे अमेरिकन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को उद्घृत करते हुए कहा जाता है कि ‘ जनतंत्र जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन है।’ सिद्धान्ततः यह कथन आंशिक रुप से सत्य भी है क्योंकि इसमें जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता के लिए कल्याणकारी योजनाएं क्रियान्वित करते हैं। इस दृष्टि […] Read more » Democracy democracy depends only on the purity of leadership Featured purity of leadership The dependence of democracy जनतंत्र जनतंत्र का निर्वाह निर्भर नेतृत्व की शुचिता
विविधा युवा के ताप में तप का सन्निवेश करना होगा January 13, 2018 | Leave a Comment ( युवा-दिवस पर विशेष ) ‘ युवा ’ संस्कृत शब्द स्रोत से प्राप्त ‘युवन’ शब्द का समासगत रुप है। ‘वृहत् हिन्दी कोश’ में युवा से संबंधित पुरुषवाचक संज्ञा शब्द ‘युवक’ का अभिप्राय तरुण, जवान और सोलह से तीस वर्ष तक की आयु का पुरुष है। और इसी संदर्भ मंे स्त्री के लिए ‘युवती’ शब्द […] Read more » Featured Youth day युवा
विविधा कर्मयोगी श्रीकृष्ण August 15, 2017 | 2 Comments on कर्मयोगी श्रीकृष्ण लोक में कृष्ण की छवि ‘कर्मयोगी’ के रूप में कम और ‘रास-रचैय्या’ के रूप में अधिक है। उन्हें विलासी समझा जाता है और उनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ बताकर उनकी विलासिता प्रमाणित की जाती है। चीर-हरण जैसी लीलाओं की परिकल्पना द्वारा उनके पवित्र-चरित्र को लांछित किया जाता है। राधा को ब्रज में तड़पने […] Read more » Featured sri krishna कर्मयोगी श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण