कुमार कृष्णन

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विगत तीस वर्षो से स्वतंत्र प​त्रकारिता, देश विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित

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लेख शख्सियत समाज साक्षात्‍कार

स्वामी सत्यानंद ने साकार किया मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न

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(102वीं जयंती 25 दिसम्बर  पर  विशेष ) कुमार कृष्णन स्वामी सत्यानंद सरस्वती देश के ऐसे संत हुए, जिन्होंने न सिर्फ योग को पूरी दुनिया में फैलाया बल्कि सामाजिक चिंतन के जरिए विकास के मॉडल को पेश किया। वे विशुद्ध आत्मभाव से प्रेरित एवं ‘लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’  के दिव्य भाव से संचालित थे।उनका वेदान्त शास्त्रीय अथवा किताबी नहीं , बिल्कुल व्यवहारिक, प्रयोगात्मक, उपयोगी एवं मानवतावादी है।उनका मानवतावाद आत्मभाव पर आधारित है।इसे उन्होंने आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन की एक सशक्त विचारधारा, उत्तम साधन एवं सर्वोपयोगी उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया।स्वामी सत्यानंद का योग जहां व्यक्तित्व के शोधन-शुद्धिकरण-परिष्कार, उन्नयन- उत्थान विकास तथा ईश्वरीकरण की दिशा निश्चित करता है,उनका क्रांति दर्शन सामाजिक- आर्थिक परिवर्तन के सिद्धांत का प्रतिपादन एवं उसके क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करता है। स्वामी सत्यानंद के अनुसार-‘ योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थय की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। योग दर्शन के अनुसार- मानव तीन आधारभूत तत्त्वों- जीवनी शक्ति, या प्राण, मानसिक चित्त शक्ति या चित्त और आध्यात्मिक शक्ति या आत्मा का सम्मिश्रण है।’ स्वामी सत्यानंदजी के जीवन प्रवाह में भी हम पाते हैं कि पढ़- लिख कर भरे-पूरे परिवार से आने वाला एक 20 वर्षीय युवक अध्यात्म की राह पर चल पड़ता है। वह गुरु सेवा में लीन होने के बाद नचिकेता का वैराग्य प्राप्त कर 12 वर्षों बाद एक परिव्राजक के रूप में देश दुनिया में योग के प्रसार में लग जाते हैं। याद करें 1960 के दशक में योग के यह भ्रामक धारणा प्रचलित थी कि यह साधु सन्यासियों का विषय है,गृहस्थों और महिलाओं को योग नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में स्वामी सत्यानंद ने योग की उपयोगिता सिद्ध की।आज जहां मुंगेर में विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय है, वह स्थान कर्णचौरा के नाम से जाना जाता था। किंवदन्ती के अनुसार राजा कर्ण इसी चबूतरे पर बैठकर प्रतिदिन सवा मन सोना दान करता था।उसी चबूतरे पर कई बार शयनकर रातें काटीं थीं। उस चबूतरे पर स्वामी जी को कई दिब्य अनुभव हुए।उन्होंने यहीं पर बैठकर  संकल्प लिया कि जहां राजा कर्ण बैठकर सोना दान करता था, वहां  से मैं विश्व को शांति बांटूंगा और योग को भविष्य की संस्कृति के रूप में विकसित करूंगा। दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों को भारत भूमि के प्राचीन योग विद्या से परिचित कराया, जिसका परिणाम है कि आज संयुक्त राष्ट्र ने योग को आधिकारिक मान्यता दी है। मुंगेर का गंगा दर्शन, पादुका दर्शन और देवघर के रिखियापीठ को देख यक्ष भाव मन में आता होगा कि परमहंस स्वामी सत्यानंद का जीवन वैभवपूर्ण रहा होगा, लेकिन स्वामी सत्यानंद ने अभावपूर्ण, कष्ट और विपन्नता का जीवन जीते हुए पुनः मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न साकार किया। पुनः 1988 में मुंगेर त्यागने के बाद रिखियापीठ में आकार 1991 से रिखिया के स्थानीय लोगों के शैक्षिक – सामाजिक -आर्थिक उत्थान के काम का बीड़ा उठाते है। एक ऐसी आर्थिक -सामाजिक व्यवस्था जो धारित विकास के मूल्यों का मॉडल विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता हो। आत्मिक विकास के साथ -साथ आर्थिक स्बाबलंबन के उनके प्रयास को वैश्विक अर्थव्यवस्था और ग्लोबल विलेज के परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 25 दिसंबर 1923 को जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती इस शताब्दी के महानतम संतों में से एक हैं, जिन्होंने समाज के हर क्षेत्र में योग को समाविष्ट कर, सभी वर्गों, राष्ट्रों और धर्मों के लोगों का आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित कर दिया। योग का तात्पर्य होता है जोड़ना. परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग का वैज्ञानिक रूप में पुनर्जीवन किया उस योग ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में जोड़ कर रखा है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक जिस योगलहर में योगस्नान कर रहा है उसके मूल में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का कर्म और उनके गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का वह आदेश है जो उन्होंने सत्यानंद को दिया था। गुरु के आदेशानुसार उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था- योगविद्या का प्रचार-प्रसार, द्वारे-द्वारे तीरे-तीरे। दरअसल इस शताब्दी में योग की कहानी 1940 के दशक से आरंभ होती है। उस समय तक लोग योग से अनजान थे। योग का अस्तित्व तो था त्यागियों वैरागियों और साधु सन्यासियों के लिए 1943 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ने ऋषिकेश में शिवानंद आश्रम की स्थापना की।उन्होंने दिव्य जीवन का ज्ञान और अनुभव प्रदान करने के लिए दो विधियों का उपयोग किया योग और वेदांत। स्वामी शिवानंद के साथ वे निरंतर रहे। परिव्राजक के रूप में बिहार यात्रा के क्रम में छपरा के बाद 1956 में पहली बार मुंगेर आये. यहां की प्राकृतिक छटा उन्हें आकर्षित करती थी।यहां उन्होंने चातुर्मास भी व्यतीत किया। यहीं उन्हें दिव्य दृष्टि से यह पता चला कि यह स्थान योग का अधिष्ठान बनेगा और योग विश्व की भावी संस्कृति बनेगी। 1961 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना की तब तक योग निंद्रा और प्राणायाम विज्ञान पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। ‘लेशन आॅन योग’ का अनुवाद योग साधना भाग-एक व दो आ चुके थे। सत्यानंद पब्लिकेशन सोसायटी नंदग्राम से- सत्यम स्पीक्स, वर्डस ऑफ सत्यम, प्रैक्टिस ऑफ त्राटक, योग चूड़ामणि उपनिषद, योगाशक्ति स्पीक्स, स्पेट्स टू योगा, योगा इनिसिएशन पेपर्स, पवनमुक्त आसन (अंगरेजी)में, अमरसंगीत, सूर्य नमस्कार, योगासन मुद्रावंध आदि पुस्तकें प्रकाशित हुईं। 1963 से अंगरेजी में योगा और योगविद्या निकालना आरंभ किया। परिव्राजक जीवन की समाप्ति के बाद वसंत पंचमी के दिन 19 जनवरी 1964 को बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने पूरी दुनिया में योग को लोगों के बीच पहुंचाया। दुनिया के 48 देशों की सघन यात्राएं कीं। अमरीका के बाहर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ग्रीस, कुवैत, ईरान, इराक से लेकर केन्या और घाना जैसे देशों में योग की आधारशिला रखी। फ्रांस, इंटली, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में तो सत्यानंद योग के पर्याय ही हो गये। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा बोए गये योग बीज आज वटवृक्ष का रुप ले चुके हैं ,जिनकी छांव में समस्त विश्व का जनमानस स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है ।परमहंस जी ने योगरुपी ऐसी अनुपम भेंट दी है जिससे स्वस्थ जीवन के साथ आध्यात्मिक ऊंचाईयों तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है ।आज भारत ही नहीं समस्त विश्व में परमहंस जी की “योग-निद्रा “का डंका बज रहा है। अपने परमगुरुदेव के पदचिन्हों पर चलते हुए  परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने उनकी योगविद्या को नई ऊंचाईयां प्रदान की । प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रदान किया गया योग पुरस्कार यह सिद्ध करता है कि “सत्यानंद योग” भारतवर्ष ही नहीं विश्व में सर्वश्रेष्ठ है ।  योग के माध्यम से विश्व विजय प्राप्त करने के बाद जब रिखिया वाले बाबा बने तो आसपास के ग्रामीणों की दयनीय दशा ने  सहज ही उनका ध्यान आकृष्ट किया।उनके अंदर के पूर्णतः जाग्रत ईश्वर ने उनसे कहा, ‘सत्यानंद,जो सुविधाएं मैंने तुम्हें प्रदान की,वे अपने पडो़सियों को भी उपलब्ध कराओ।’ इसी आदेश को पूरा करने के लिए सेवा, प्रेम और दान को व्यवहारिक रूप प्रदान करने के लिए देवघर के रिखिया में रिखियापीठ की स्थापना की। झारखंड के देवघर के निकट रिखिया नाम के इस गांव में योग गुरु सत्यानंद ने जो पर्णकुटीर बनाई थी, वह उनके तपोबल से इस पूरे क्षेत्र के कल्याण का माध्यम बन गई। सितंबर, 1989  जब सत्यानंद यहां पहुंचे तब चारों ओर घनघोर जंगल था। आस-पास थे आदिवासियों के बेहद पिछड़े गांव। न कोई सड़क थी और न बिजली। सत्यानंद दरअसल तप, साधना और सेवा के लिए इस दुर्गम स्थान में आए थे। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के अनुग्रह, आशीर्वाद तथा परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती एवं स्वामी सत्यसंगानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में संस्कार और मानव सेवा की तरंगों ने आश्रम के आसपास के इलाकों में बदलाव की बयार बहा दी। कभी गरीबी के कारण गांव के बच्चे पढ़ नहीं पाते थे। आज बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा मिल रही है। परिवर्तन ऐसा हुआ कि इलाके की बच्चियां फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं। शास्त्रीय संगीत और भरतनाट्यम में पारंगत हैं। 1995 में स्वामी सत्यानंद ने रिखिया में सीता कल्याणम शंतचंडी महायज्ञ आरंभ किया। यहीं से इलाके में विकास की लौ जल उठी। आश्रम के सामने बने मिडिल स्कूल के बच्चों को किताब-कॉपी, जाड़े में गर्म कपड़े व जूते देने की शुरुआत हुई। हर पर्व पर गांव के बच्चों व महिलाओं को नये वस्त्र वितरित होते हैं। बेटियों के विवाह में आर्थिक सहयोग सहित उपहार स्वरूप गृहस्थी की जरूरतों का सामान आदि आश्रम की ओर से प्रदान किया जाता है। क्षेत्र की वृद्धाओं, विधवाओं को हर माह 1200 रुपये पेंशन आश्रम से मिलती है। उनका काम यही है कि वे आश्रम के कीर्तन में शामिल हों। पंचायत के गरीबों को आत्मनिर्भर  बनाने के लिए आश्रम की ओर से रिक्शा, ठेला जैसे साजोसामान बांटे जाते हैं। क्षेत्र की लगभग हर बालिका के पास साइकिल है, जो आश्रम की ओर से दी जाती है जिन बच्चों, बालिकाओं को कंप्यूटर में रुचि थी, उनको कंप्यूटर व लैपटॉप दिए गए। ताकि वे बिना रुके आगे बढ़ते जाएं। सबसे बड़ी बात, यह आश्रम दान नहीं लेता बल्कि देता है। इसीलिए इसे दातव्य आश्रम कहा जाता है गरीबों के कल्याण को जो राशि खर्च की जाती है, वह योग विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं से प्राप्त होती है। 5 दिसंबर 2009 को शिष्यों की उपस्थिति में महासमाधि में लीन हो गए। भले ही वह आज नहीं हैं, लेकिन उनके योग आंदोलन का ही नतीजा है कि योग वैश्विक धरातल पर छाया हुआ है।  कुमार कृष्णन

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राजनीति

रॉयल्टी के मुद्दे पर झारखंड की राजनीति गरमाई

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कुमार कृष्णन  रॉयल्टी के मुद्दे पर झारखंड की राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है।इस मामले को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के निशाने पर केंद्र सरकार और कोयला कंपनियां हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव से ही यह एक बड़ा मुद्दा रहा है कि केंद्र सरकार झारखंड का रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ रुपये कब देगी। इसको लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। अब इसका जवाब केंद्र से मिल चुका है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में स्पष्ट किया है कि झारखंड का रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ रुपये केंद्र पर बकाया नहीं है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि झारखंड के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा रहा है। लोकसभा में निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने कोयला और खनिजों की रॉयल्टी से जुड़े इस मुद्दे को उठाते हुए सवाल किया था कि 1.36 लाख करोड़ रुपये झारखंड का केंद्र पर बकाया है। इस पर केंद्र सरकार ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बकाया राशि नहीं है।  रॉयल्टी के मुद्दे पर मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन आरंभ से ही केन्द्र पर दबाव बनाए हुए हैं। मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक के बाद मीडिया  से कहा कि केंद्र पर राज्य का 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया है जिसे वसूलने के लिए कानूनी कार्रवाई की जाएगी सोरेन ने यह भी कहा कि कोल इंडिया जैसी केंद्रीय कंपनियों से यह बकाया राज्य का अधिकार है और इसके न मिलने से झारखंड का विकास रुक रहा है। चौथी बार झारखंड की गद्दी पर सत्तासीन होने बाद से ही मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। उन्होंनें चेतावनी दी कि झारखंड सरकार कोयला की बकाया राशि वसूलने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ कानूनी कदम उठाएगी।  इससे पहले सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 2 नवंबर को झारखंड के बकाए की मांग की थी। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया था कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से वह फिर से अनुरोध करते हैं कि झारखंड का 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया चुकाया जाए क्योंकि यह राज्य के लिए बेहद जरूरी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि राज्य को खनन और रॉयल्टी बकाया वसूलने का अधिकार है। सोरेन ने बताया कि बकाया न मिलने से झारखंड के विकास और सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं पर बुरा असर पड़ रहा है।मुख्य मंत्री सोरेन ने इसी साल सितंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था झारखंड राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास मुख्य रूप से खनन और खनिजों से होने वाले राजस्व पर निर्भर करता है जिसमें से 80 प्रतिशत कोयला खनन से आता है। झारखंड में काम करने वाली कोयला कंपनियों पर मार्च 2022 तक राज्य सरकार का लगभग 1,36,042 करोड़ रुपये का बकाया है।प्रधानमंत्री  को भेजे गए पत्र में कोयला कंपनियों पर बकाया राशि की दावेदारी का ब्रेकअप भी दिया था। इसके अनुसार वाश्ड कोल की रॉयल्टी के मद में 2,900 करोड़, पर्यावरण मंजूरी की सीमा के उल्लंघन के एवज में 32 हजार करोड़, भूमि अधिग्रहण के मुआवजे के रूप में 41,142 करोड़ और इसपर सूद की रकम के तौर पर 60 हजार करोड़ रुपए बकाया हैं। मुख्य मंत्री  सोरेन ने प्रधानमंत्री  को भेजी गई चिट्ठी में कहा था कि जब झारखंड की बिजली कंपनियों ने केंद्रीय उपक्रम डीवीसी (दामोदर वैली कॉरपोरेशन) के बकाया भुगतान में थोड़ी देर की तो हमसे 12 प्रतिशत ब्याज लिया गया और हमारे खाते से सीधे भारतीय रिजर्व बैंक से डेबिट कर लिया गया।उन्होंने कहा कि अगर हम कोयला कंपनियों पर बकाया राशि पर साधारण ब्याज 4.5 प्रतिशत के हिसाब से जोड़ें तो राज्य को प्रति माह केवल ब्याज के रूप में 510 करोड़ रुपये मिलने चाहिए।उन्होंने कहा है कि इस बकाया का भुगतान न होने से झारखंड राज्य को अपूरणीय क्षति हो रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, स्वच्छ पेयजल और अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी जैसी विभिन्न सामाजिक योजनाएं फंड की कमी के कारण जमीन पर उतारने में दिक्कत आ रही है। रॉयल्टी के मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने इस संबंध में भू-राजस्व विभाग के द्वारा कोल इंडिया को पत्र के माध्यम से 15 दिन के अंदर जवाब देने को कहा है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में तत्कालीन कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि झारखंड की रॉयल्टी का बकाया पैसा लौटाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट रूप से कहा था कि रॉयल्टी का पैसा टैक्स के दायरे में नहीं आता है। सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार झारखंड से गुजरने वाली रेल माल गाड़ियों पर भी रॉयल्टी वसूलने की तैयारी में है। यह सरकार झुकने वाली नहीं है। कोयला कंपनियों को भी सख्त लहजे में सुप्रिया भट्टाचार्य ने कहा कि कंपनी के अधिकारी पहले राज्य सरकार को पैसा दें, उसके बाद खनन कार्य करें। झारखंड से भाजपा के सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों पर सवाल खड़ा करते हुए सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि इस गंभीर मुद्दे पर वे चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? मुख्य मंत्री सोरेन ने झारखंड के भाजपा सांसदों से अपील की है कि वे झारखंड की इस मांग पर आवाज बुलंद करें। दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झामुमो के प्रेस वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि सर्वप्रथम झारखंड की जनता को झामुमो को बकाया राशि का वर्ष वार ब्यौरा जारी करना चाहिए। यह बताना चाहिए कि जिस समय शिबू सोरेन कोयला मंत्री थे, उस समय अगर कोयला की रॉयल्टी का कोई बकाया राशि बचा था तो उन्होंने कितना पैसा झारखंड को दिलवाया। प्रतुल ने हेमंत सरकार के गठबंधन दलों से यह भी जानना चाहा कि 10 वर्ष तक यूपीए सरकार जब शासन कर रही थी तो उस समय का कितना बकाया था और उस बकाया राशि में कितने का झारखंड को भुगतान हुआ?प्रतुल ने कहा कि अब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चुनाव पूर्व जिन योजनाओं की घोषणा की है, उसके लिए शायद ढाई लाख करोड रुपए से भी ज्यादा की जरूरत हो। आंतरिक स्रोत से पैसा हो नहीं पा रहा जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मईया सम्मान राशि की 2500 की किस्त अभी तक नहीं जारी होना है। तो अब झामुमो जनता से सहानुभूति बटोरने के लिए बहाने बना रही हैं।प्रतुल ने कहा कि झारखंड भाजपा झारखंडियों के हित के लिए जो भी उचित कदम हो वह उठाने को तैयार है। केंद्र और राज्य की सहमति से जो भी सही बकाया राशि सामने आएगी ,उसका भुगतान करने के लिए झारखंड भाजपा भी सकारात्मक कदम उठाएगीलेकिन सरकार को फर्जी नेरेटिव और आंकड़ों की बाजीगरी का खेल बंद करना चाहिए। सरकार को सबसे पहले यह सार्वजनिक करना चाहिए कि यह जो 1,36,000 करोड़ का दावा कर रही है वह किस वर्ष में किस विभाग से संबंधित है ।पूरा विस्तृत ब्यौरा देना चाहिए। राज्य सरकार के सिर्फ कहने से कि कोयला का बकाया, समता जजमेंट का बकाया और भूमि अधिग्रहण का बकाया है, से बात नहीं बनेगी। इनको एक-एक चीज़ का सिलसिलेवार तरीके से विस्तृत विवरण देना चाहिए। कुमार कृष्णन

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