पत्रकारिता  के अपराधीकरण का  दौर

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कुमार कृष्णन 

राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण इस देश में विमर्श का बड़ा मुद्दा रहा है लेकिन पत्रकारिता के अपराधीकरण पर कभी कोई चर्चा नहीं होती। हां,शोर तब मचता है जब कोई पत्रकार वसूली या भयादोहन करते, अपराधियों या पुलिस के साथ मिलकर अपहरण,फिरौती या रंगदारी जैसे संगीन जुर्म मे पकड़ा अथवा शामिल पाया जाता है।

पत्रकारिता में  आला दर्जे के ब्लैकमेलर, बदमाश, लफूआ व पत्रकारिता के नाम पर ठेकेदारी करने वालों लूटेरों की फौज आ गई है जो गांधी ,अम्बेडकर,माखनलाल जी की इस पवित्र पत्रकारिता का भी नाश करने में लगे हैं। मुझे याद है कि  एक प्रतिष्ठित अखबार के कार्यलय में अचानक एक कट्टर ईमानदार भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आक्रोशित मुद्रा में प्रधान संपादक के कार्यालय में घुस गए. उक्त आक्रोशित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ने कड़े शब्दों में उनके अखबार में लिखित समाचार का खंडन किया और संपादक ने शांत मुद्रा में उनकी बातों को सुना क्योंकि उन्हें सच्चाई मालूम हो गई थी। अब सवाल उठता है कि राज्य में कितने ऐसे अधिकारी हैं जो संपादक के कार्यालय में जाकर अपना आक्रोश प्रकट कर सकें और यहीं सवाल कितने पत्रकारों से भी है कि क्या आप में इतना दम है कि एक ईमानदार अधिकारी के आक्रोश को झेल लें, उत्तर नहीं है । ये बाते लिखने का मतलब क्या है? आज का अधिकारी और आज का पत्रकार, दोनों समझ गये हैं कि दोनों क्या है? दोनों भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। दोनों एक दूसरे के पोषक हो गये हैं?

बिहार में मुंगेर जिले के पत्रकार खतरनाक अपराधियों से सुपारी लेकर  हत्याकांड को अंजाम दे रहे हैं। इसका खुलासा मुंगेर के पुलिस अधीक्षक  सैयद इमरान मसूद ने किया है कि मनजीत मंडल और उसके वाहन चालक चंदन मंडल की हत्या  में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है उसमें एक पत्रकार को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। गिरफ्तार किए गए पत्रकार हैं अभिषेक कुमार ,पिता गुणानंद ठाकुर, सकिन  जगन्नाथ टोला, गांव फ़रदा,थाना सफियासराय, जिला मुंगेर। हाल में ही जिला प्रशासन ने एक पखवारा पूर्व मैराथन दौड़ के सफल आयोजन में महत्वपूर्ण भागीदारी के लिए उसे अन्य पत्रकारों का साथ सम्मानित भी किया था । 

जिन अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया है उसमें यह सफिया सराय  थाना क्षेत्र के जगन्नाथ टोला फ़रदा ग्राम निवासी अमरजीत उर्फ डेविड, पिता अशोक सिंह और सन्नी उर्फ भानु ,पिता प्रमोद कुमार और मुफ्फसिल थाना क्षेत्र के नया टोला मुबारकचक गांव निवासी नवीन तांती उर्फ लुला, पिता प्रेम प्रकाश गांधी।

पुलिस अधीक्षक ने  कहा है कि सभी गिरफ्तार चारों अभियुक्तों ने पुलिस के समक्ष स्वीकार किया है कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के लिए उन लोगों ने खतरनाक अपराधी पवन मंडल से पांच पांच लाख रुपए की सुपारी ली थी। इस सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड में अभी दोनों शूटर फरार चल रहे हैं जिनकी तलाश पुलिस कर रही है। विदित है कि 13 जुलाई 2024 को दिनदहाड़े मुंगेर भागलपुर सड़क मार्ग में मुफस्सिल थाना क्षेत्र के संगीता लाइन होटल के पास मनजीत मंडल और उसके चालक चंदन मंडल  की हत्या गोलियों से अपराधियों ने भून कर कर दी थी। मंजीत मंडल को यह पता नहीं था कि उसका दोस्त ही उसके हत्या की पटकथा लिख देगा। उसने अपने खास दोस्त पत्रकार  अभिषेक कुमार को कुख्यात पवन से मिलाया था जिसने पवन के इशारे पर पैसे के लिए अपने ही दोस्त मंजीत के हत्या की पूरी पटकथा तैयार कर दिया। यह किसी ओर ने नहीं बल्कि गिरफ्तार अभिषेक ने पुलिस को दिये अपने स्वीकारोक्ति बयान में बताया है।

अभिषेक ने अपने स्वीकारोक्ति बयान में बताया कि वर्ष 2021 में पवन मंडल की बहन रूबी कुमारी की शादी हुई थी। उस समय मंजीत और पवन में गहरी दोस्ती थी। मंजीत ने ही पवन मंडल के बहन की शादी का कार्ड अभिषेक को देकर शादी में आमंत्रित किया था। इस शादी में अभिषेक ने मंजीत के साथ भाग लिया था जहां उसकी पहचान पवन मंडल से हुई थी जिसके बाद धीरे-धीरे पवन और अभिषेक के बीच दोस्ती गहरी हो गयी। इसी बीच जमीन कारोबार में हिस्सेदारी और रूपयों के लेन -देन को लेकर पवन और मंजीत की दोस्ती में दरार हो गया। पवन ने अभिषेक को

अपने पक्ष में लेकर मंजीत की हत्या करने के लिए तैयार किया क्योंकि अभिषेक दोनों का दोस्त बना हुआ था जिसका फायदा उठा कर अभिषेक ने मंजित मंडल हत्याकांड की पूरी पटकथा लिख दी।

जब मंजीत मंडल हत्याकांड की पूरी पटकथा तैयार हो गयी तो उसे पूरा करने के लिए रूपयो की जरूरत हुई। अभिषेक ने अपने स्वीकारोक्ति बयान में बताया है कि पवन मंडल का भाई सुधीर मंडल उर्फ सुब्बा ने 5 लाख रूपया अभिषेक को दिया। 5 लाख की रकम गिरफ्तार मुफस्सिल थाना क्षेत्र के नयाटोला मुबारकचक निवासी नवीन तांती उर्फ लुल्हा को दिया गया था।

अभिषेक ने अपनी स्वीकारोक्ति बयान में बताया कि पवन मंडल किसी कांड में पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो गया जिसके बाद पवन मंडल से उसकी बहन रूबी उसकी बात कराती थी। जब भी जरूरत होता तो पवन व अभिषेक की बात रूबी अपने मोबाइल से कराती थी। उसी बातचीत में पूरे हत्याकांड की साजिश रची गयी जिसके बाद दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया गया। अभिषेक ने अपने स्वीकारोक्ति बयान में बताया कि वह दोनों शूटरों को पहचानता जरूर है  लेकिन उसमें एक ही शूटर का नाम वह जानता है जिसका नाम बबलू मंडल है। वह कहां का रहने वाला है वह यह नहीं जानता है। दूसरे शूटर का वह नाम भी नहीं जानता है। प्रेस क्लब के ग्रुप में जब इसका फोटो आया तो प्रेस क्लब के महासचिव संतोष सहाय ने स्पष्ट किया कि उसे पत्रकारों का ग्रुप से हटा दिया गया है। जिस दिन अभिषेक की गिरफ्तारी हुई उस दिन पुलिस अधीक्षक ने कहा कि कई पत्रकार प्रशासन की रडार पर  है। 

निसंदेह अखबारों में या समाचार माध्यमों में रखे जानेवाले लोग साफ सुथरी छवि के  होते थे लेकिन हाल के दो दशक पूर्व से अखबार हो या क्षेत्रीय न्यूज चैनल, वो अपने किसी मुलाजिम को संवाददाता बना देते है तो किरदार की अपेक्षा व्यर्थ है। कुछ दिन पूर्व एक प्रतिष्ठित अखबार के संवाददाता का वीडियो भी सामने आया था। सवाल सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से भी होना चाहिए कि आखिर ऐसे लोगों को एंट्री कैसे दी जाती है। हालत यह है कि अब अखबारों के ब्यूरों चीफ का  कई जिलों में पैसों के लेन देन का खेल चल रहा है। कई तो अपने संवाददाताओं से ही थानेदार की तरह वसूली कर रहे हैं। जाहिर है ऐसे में खबरों के साथ न्याय नहीं हो पाता है. सिर्फ टारगेट बनाने का खेल जारी है। दो साल पहले एक अखबार का ब्यूरो चीफ को शराबबंदी वाले राज्य में कानून की अवज्ञा करने के मामले में हटा दिया था। एक ब्यूरो चीफ तरह तरह का एजेंडा चलाते हैं। उनसे  त्रस्त  एक नेताजी को अपना सोफा तक देना पड़ा। एक तथाकथित पत्रकार  पास के भागलपुर जिले के सुलतानगंज में डीलर के  यहाँ चेकिंग करने पहुंचा तो स्थानीय लोगों ने बंधक बनाकर प्रखंड कार्यालय का हवाले कर दिया था। भागलपुर में काफी पहले एक निजी चैनल के संवाददाता पर मोजाहिदपुर थाना में रंगदारी का मामला दर्ज हुआ था। पत्रकार संगठनों का हाल भी अच्छा नहीं है। एक नेशनल यूनियन में भाँति -भाँति के पत्रकार हैं। करीब दशक भर पहले एक बड़े पुलिस अधिकारी ने एक मुलाकात के दौरान आधा दर्जन ऐसे पत्रकारों की सूची दिखायी थी जो अपहरण और फिरौती का गिरोह संचालित करनेवाले अपराधियों से जुड़े थे। वे सब एक ही जिले से थे। वे सभी पुलिस की मुहिम या योजना लीक कर अपराधियों को देते थे। उन्हें पुलिस की दबिश से बचाते थे। कभी-कभी पुलिसवालों से उनका सौदा भी कराते थे। इतना ही नहीं वांटेड अपराधियों को एनकाउंटर से बचाने के लिए उनके दबोचे जाने की गुप्त खबर अखबार में छापकर सार्वजनिक कर दिया करते थे। अगले दिन पुलिस हाथ मलते रह जाती थी। अपराधियों के खिलाफ स्टोरी लिखनेवाले पत्रकारों की गतिविधियां अपराधियों को बताना, धमकी भरे फोन काल करवाना अथवा दफ्तर में घुसकर धमकाने-हड़काने जैसे हथकंडे अपनाना उनके मुख्य काम थे। उन पुलिस अधिकारी ने कहा था कि जिस सूची को आप देख रहे हैं, वह पूरी छानबीन के बाद बनायी गयी है। अपराधी गिरोहों के साथ पत्रकारों के रिश्तों को स्थापित करने के लिए उनके फोन काल डिटेल और मेल-जोल के ब्योरे तैयार किये गये थे।

दरअसल ,यह रिपोर्ट तब बनी जब कई बड़े अपहरण के मामलों को ट्रैक करने के दौरान पुलिस को अपनी योजना लीक होने का संदेह हुआ और छानबीन की गयी।

पत्रकारिता के अपराधीकरण का यह नमूना एक शहर का है लेकिन यह ट्रेंड कमोबेश पूरे बिहार में पसरा है। दशक भर पहले की यह बीमारी अब दूसरे रूपों में नजर आती है। मसलन, ठेका,पट्टा, लैंड डिलिंग,लैंड ग्रैबिंग, इमेज बनाना या बिगाड़ना आदि. ठेकेदारों और नेताओं के इशारे पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ आधारहीन स्टोरी प्लांट करने की घटनाएं पुरानी नहीं हैं। ऐसे कामों में रिस्क कम और मुनाफा अधिक है। बहुत हद तक प्रबंधन भी ऐसे तत्वों को तरजीह देता है क्योंकि ऐसे लोग कारोबारी हितों के रक्षक मान लिए जाते हैं।

भारत में नैतिक मानदंडों और सिद्धांतों के उल्लंघन के मामलों जैसे- पेड न्यूज़ से लेकर, फेक न्यूज़ का प्रसार, सनसनीखेज खबरें बनाना, सामान्य प्रकृति की खबरों को अतिशयोक्तिपूर्ण रूप से पेश करना, भ्रामक सुर्खियाँ बनाना, निजता का उल्लंघन, तथ्यों का विरूपण आदि में कई गुना वृद्धि हुई है।

जिस प्रकार राजनीति का अपराधीकरण हुआ, वैसे ही पत्रकारिता का अपराधीकरण हो गया, राजनीति के अपराधीकरण होने से भ्रष्टाचार धीरे-धीरे फैलता हैं, पर पत्रकारिता के अपराधीकरण से भ्रष्टाचार में गति आ जाती है, और ये गति ही उस राज्य व देश की समाप्ति के लिए पूर्णाहूति का कारण बन जाती हैं, राज्य सरकार को चाहिए कि पत्रकारिता का अपराधीकरण करने वालों पर सख्ती दिखाये और माफिया ,ब्लेकलिस्टेड ,व्यापरियों के चैनल व समाचार पत्रों को विज्ञापन न दे वार्ना ये दीमक समाज के साथ साथ सत्ता को भी ख़त्म कर देगी ?

 पत्रकारिता के लगभग सारे एथिक्स और मूल्य बहुत पहले ही किनारे कर दिए गए थे, लेकिन अब उनकी रिपोर्टिंग खुद अपराध की सीमा छूने और कुछ मामलों में उसे पार भी करने लगी है।

कुमार कृष्णन 

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