ललित गर्ग

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लेखक - ललित गर्ग - के पोस्ट :

राजनीति

लालबत्ती के आतंक से मुक्ति की नई सुबह

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उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने ऐसे अनेक साहसिक निर्णय लिये एवं कठोर कदम उठाये है और अब केंद्र सरकार ने आगे बढ़कर मोटर वीइकल्स ऐक्ट के नियम 108 (1) और 108 (2) में बदलाव करके लाल बत्ती वाली गाड़ियों को ट्रैफिक नियमों से छूट देने की व्यवस्था ही खत्म कर दी। लेकिन मोदी एवं योगी से आगे की बात सोचनी होगी। देश में सही फैसलों की अनुगूंज होना शुभ है, लेकिन इनकी क्रियान्विति भी ज्यादा जरूरी है। वीआईपी कल्चर खत्म करने के नफा-नुकसान का गणित उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण यह है कि इससे आम लोगों के मन से खास लोगों का खौफ कुछ कम जरूर होगा।

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विविधा

गरीबों के हित में दवा नीति का बनना

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नामी-गिरामी कंपनियों की दवाओं की कीमत काफी अधिक होती हैं। जबकि उन्हीं रासायनिक सम्मिश्रणों वाली दवाएं अगर जेनरिक श्रेणी की हों तो वे काफी कम कीमत में मिल सकती हैं। ये दवाएं वैसा ही असर करती हैं जैसा ब्रांडेड दवाएं। समान कंपोजीशन यानी समान रासायनिक सम्मिश्रण होने के बावजूद इनके निर्माण पर बहुत कम खर्च आता है। इनके प्रचार-प्रसार पर बेहिसाब धन भी नहीं खर्च किया जाता, इसलिए भी इनकी कीमतें काफी कम होती हैं। लेकिन दवा बाजार पर निजी कंपनियों के कब्जे का जो पूरा संजाल है, उसमें जेनरिक दवाओं की उपलब्धता इतनी कम है कि उसका लाभ बहुत-से जरूरतमंद लोग नहीं उठा पाते।

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धर्म-अध्यात्म

आचार्य वसन्त सूरिजी : कठोर तप की पूर्णता के पचास वर्ष

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आचार्य वसंत सूरीश्वरजी के पास लोककल्याणकारी कार्यों की एक लंबी सूची है। चाहे हस्तिनापुर में अष्टापद का निर्माण हो या जीर्ण-शीर्ण ऐतिहासिक जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार, प्रसिद्ध जैन तीर्थ पालीताना में कमल मंदिर की कल्पना हो या देश के विभिन्न हिस्सों में शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना, दिल्ली में भव्य वल्लभ स्मारक हो या सेवा के विविध आयाम- अस्पताल, गौशाला, कन्या छात्रावास- उनकी प्रेरणा के ये आयाम जन-जन के कल्याण के लिए, संस्कार निर्माण के लिए, शिक्षा, सेवा और परोपकार के लिए संचालित हैं। उन्होंने गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में संचालित सुखी परिवार अभियान के आदिवासी उन्नयन एवं उत्थान के साथ-साथ परिवार संस्था मजबूती देने के संकल्प में भी निरंतर सहयोग एवं आशीर्वाद प्रदत्त किया है।

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विविधा

गौरक्षा एवं भक्ति हिंसक क्यों?

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देश में समय-समय पर गौहत्या के विरोध में आन्दोलन हुए हैं। 1967 में गौ-हत्या को लेकर उग्र आन्दोलन हुआ, संसद भवन को साधु-सन्तों ने घेरा था तो पुलिस ने उन पर बल प्रयोग किया था और लाठी-गोलियां भी चलाई थीं। तत्कालीन गृहमन्त्री स्व. गुलजारी लाल नन्दा को इस्तीफा देना पड़ा था। तत्कालीन इन्दिरा सरकार ने भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक आस्था से जुड़े इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। क्योंकि गाय भारत की आत्मा है, जन-जन की आस्था का केन्द्र है।

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राजनीति

वंदे मातरम्-विवाद नहीं, विकास का माध्यम बने

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मुसलमानों को ‘वन्दे मातरम्’ गाने पर आपत्ति इसलिये भी बतायी जा रही है, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। जबकि यह गान किसी देवी नहीं, बल्कि धरती माता की पूजा की बात कहता है। माता भी कौन-सी? पृथ्वी। जो जड़ है। इसमें भारत को माता कहा गया है। वंदे-मातरम् में भारत के जलवायु, फल-फूल, नदी-पहाड़, सुबह-शाम और शोभा-आभा की प्रशंसा की गई है। किसी खास देवी की पूजा नहीं की गई है। वह कोई हाड़-मासवाली देवी नहीं है। वह एक प्रतीक है। विभिन्न मुस्लिम देशों में भी वहां राष्ट्रीय गीतों में मातृ-भूमि का यशोगान गाया गया है।

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