धर्म-अध्यात्म मानवता का रक्षक व पोषक होने से गोवर्धन पर्व एक महान पर्व November 1, 2016 | Leave a Comment वर्तमान परिस्थितियों में गोरक्षकों, पशुप्रेमियों और मानवतावादियों को गोवर्धन पर्व के दिन गोरक्षा करने, गोहत्या न होने देने, गोपालन करने, गोदुग्ध का ही सेवन करने व गोहत्या के विरोध में प्राणपण से प्रचार करने का प्रण व संकल्प लेना चाहिये। इसी में इस पर्व की सार्थकता है और ऐसा करके ही विश्व में मनुष्यता स्थापित होगी और विश्व सुरक्षित रह सकेगा। हम यह भी अनुभव करते है कि गोरक्षा करना प्रत्येक गोभक्त का जन्म सिद्ध मौलिक अधिकार है। Read more » गोवर्धन पर्व
धर्म-अध्यात्म ऋषि दयानन्द का बलिदान सत्य की विजय व असत्य की पराजय November 1, 2016 | Leave a Comment 30 अक्तूबर, 1883 दीपावली के दिन ऋषि दयानन्द ने अपने देह का भले ही त्याग कर दिया परन्तु उनकी आत्मा आज भी ईश्वर के सान्निध्य में रहकर ईश्वरीय आनन्द वा मोक्ष का अनुभव कर रही है। सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, ऋग्वेदभाष्य, यजुर्वेदभाष्य,, संस्कारविधि, आर्याभिविनय और अपने अन्य ग्रन्थों के कारण आज भी वह अपने अनुयायियों के मध्य विद्यमान हैं और अपने ग्रन्थों व जीवन चरित तथा पत्रव्यवहार आदि के द्वारा उनका मार्गदर्शन करते हैं। उनके मानव सर्वहितकारी कार्यों से सारा संसार लाभान्वित हुआ है। Read more » ऋषि दयानन्द
धर्म-अध्यात्म वैदिक जीवन और यौगिक जीवन परस्पर पर्याय हैं October 30, 2016 | Leave a Comment सत्य का मण्डन और असत्य का खण्डन भी योगी के लिए आवश्यक होता है। जो मनुष्य असत्य का खण्डन करने के स्थान पर अपनी लोकैषणा व अन्य अवगुणों के लिए दुष्टों व दुर्दान्तों के प्रति भी अहिंसा का पोषण करता है वह योगी व सच्चा मनुष्य नहीं कहा जा सकता। श्री राम, श्री कृष्ण व ऋषि दयानन्द, इन तीनों महापुरुषों का जीवन ही आदर्श जीवन था जिनका पूरा पूरा अनुकरण योगी को करना चाहिये। योगी के लिए योग दर्शन सहित वेद, उपनिषद, दर्शन व वेदानुकूल मनुस्मृति आदि ग्रन्थों का अध्ययन व उसके अनुरूप व्यवहार भी आवश्यक है। Read more » यौगिक जीवन वैदिक जीवन
प्रवक्ता न्यूज़ अथर्ववेदीय चिकित्सा शास्त्र का परिचय October 30, 2016 | 1 Comment on अथर्ववेदीय चिकित्सा शास्त्र का परिचय ‘स्वामी ब्रह्ममुनि रचित एक नये महत्वपूर्ण प्रकाशन -मनमोहन कुमार आर्य आर्य समाज के साहित्य के प्रमुख प्रकाशकों में एक नाम है श्री ‘घूडमल प्रहलादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डौन सिटी-322230’ (सम्पर्क दूरभाषः 09414034072/ 09887452959) जिनका एक नया प्रकाशन है ‘अथर्ववेदीय चिकित्सा शास्त्र’। इस ग्रन्थ के रचयिता आर्यजगत के उच्च कोटि के विद्वान सन्यासी स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक, […] Read more »
शख्सियत समाज आर्यसमाज को समर्पित एक प्रेरणादायक वरणीय जीवन: डा. धर्मवीर October 26, 2016 / October 26, 2016 | 1 Comment on आर्यसमाज को समर्पित एक प्रेरणादायक वरणीय जीवन: डा. धर्मवीर ६ अक्टूबर २०१६ को दिवंगत ‘वेद, ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को समर्पित एक प्रेरणादायक वरणीय जीवन: डा. धर्मवीर’ मनमोहन कुमार आर्य ऋषि भक्त डा. धर्मवीर जी आर्यसमाज के बहुमुखी प्रतिभा के धनी शीर्षस्थ विद्वान थे। आप आर्यसमाज के प्रगल्भ वक्ता, प्रतिष्ठित लेखक, सम्पादक, पत्रकार, वेद-पारायण यज्ञों का ब्रह्मत्व करने वाले यज्ञ मर्मज्ञ, धर्मोपेदेशक, आर्यसमाज के […] Read more » आर्यसमाज को समर्पित एक प्रेरणादायक वरणीय जीवन डा. धर्मवीर’
लेख ऋषि दयानन्द के भक्तों की प्रशंसा और पौराणिक छात्र को फटकार और पुराणों की आलोचना October 25, 2016 | Leave a Comment आर्यजगत के विख्यात विद्वान और राष्ट्रपति से सम्मानित संस्कृत के विद्वान पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी जिज्ञासु जी के साथ तिवारी जी से पढ़ने जाते थे। यह संस्मरण उन्होंने अपनी आत्म-कथा में दिया है। ऐसे अनेक प्रेरणाप्रद संस्मरण उनकी आत्म कथा में और भी हैं। Read more » ऋषि दयानन्द
शख्सियत समाज मानव सेवा का अद्भुत प्रेरणादायक उदाहरण : पं. रुलिया राम October 25, 2016 | Leave a Comment प्रा. जिज्ञासु जी ने इस घटना पर लिखा है कि डाक्टर दीवानचन्द जी ने पं. रलाराम जी का पुण्य स्मरण करते हुए लिखा है कि ‘प्लेग के रोगियों की सेवा में उन्हें उतनी-सी ही झिझक होती थी जितनी ज्वर के रोगियों से हमें होती है।’ पण्डित जी की लोक-सेवा की प्यास कभी बुझती ही न थी। एक लेखक ने उनके पवित्र भावों के विषय में यथार्थ ही लिखा है ‘पण्डित जी में त्याग था, उत्साह था, प्रचार के लिए जोश था परन्तु एक गुण पण्डित जी को परमात्मा की ओर से ऐसा मिला था जो किसी-किसी को ही मिलता है। वह है प्रबल एवं निष्काम सेवा-भाव।’ उनके जीवन काल में किसी सज्जन ने कहा था, ‘रुलिया राम जी को प्रत्येक दिन शरीर व आयु की दृष्टि से वृद्ध तथा दुर्बल बनाता है परन्तु प्रत्येक आनेवाला दिन उनके सेवा-भाव को जवान बना देता है।’ Read more » पं. रुलिया राम मानव सेवा का अद्भुत प्रेरणादायक उदाहरण
धर्म-अध्यात्म बलिवैश्वदेव महायज्ञ के उद्देश्य, विधि एवं होने वाले लाभों पर विचार October 22, 2016 / October 22, 2016 | Leave a Comment बलिवैश्वदेव यज्ञ का अन्तिम विधान करते हुए ऋषि दयानन्द जी ने ‘शुनां च पतितानां च श्वपचां पापरोगिणाम्। वायसानां कृमीणां च शनकैर्निर्वपेेद् भुवि।।’ को प्रस्तुत कर लिखा है कि बलिदान के 16 मन्त्रांे के बाद छः भागों को लिखते हैं। इस श्लोक का भाषार्थ करते हुए ऋषि लिखते हैं कि कुत्तों, कंगालों, कुष्ठी आदि रोेगियों, काक आदि पक्षियों और चींटी आदि कृमियों के लिए छः भाग अलग-अलग बांट के दे देना और उनकी प्रसन्नता सदा करना। Read more » बलिवैश्वदेव महायज्ञ
धर्म-अध्यात्म नारी के पति के प्रति व्रत व कर्तव्य विषयक ईश्वर की वेदाज्ञा October 22, 2016 | Leave a Comment वेदों व वैदिक साहित्य में किन्हीं विशेष तिथियों पर भूखे रह कर व्रत व उपवास करने का विधान नहीं पाया जाता। न तो ईश्वर न अन्य कोई ऐसा चेतन व जड़ देवता है जिसे व्रत व उपवास अर्थात् दिन में एक बार भोजन न कर प्रसन्न किया जा सकता हो। व्रत कहते हैं किसी बड़े कार्य को सम्पन्न करने के लिए संकल्प को धारण करने के लिए जिससे वह संकल्प रात दिन हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहे और वह संकल्पित कार्य शीघ्र पूरा हो सके। Read more » नारी नारी के पति के प्रति व्रत
धर्म-अध्यात्म योग साधना से ईश्वर की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य October 19, 2016 | Leave a Comment ऋषि दयानन्द योग विषयक अपने व्याख्यान में सत्यार्थप्रकाश के सप्तम् समुल्लास में कहते हैं कि जो उपासना (अर्थात् योग) करना चाहे, उसके लिये यही आरम्भ है कि वह किसी से वैर न रक्खे। सर्वदा सब से प्रीति करे। सत्य बोले। मिथ्या कभी न बोले। चोरी न करे। सत्य व्यवहार करे। जितेन्द्रिय हो। लम्पट न हो और निरभिमानी हो। अभिमान कभी न करे। Read more » ईश्वर की प्राप्ति मनुष्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य योग योग साधना
धर्म-अध्यात्म लोकभाषा हिन्दी में धर्म प्रचार करने वाले प्रथम धर्म प्रचारक स्वामी दयानन्द October 17, 2016 | Leave a Comment महर्षि दयानन्द के धर्म प्रचार काल में देश में मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, मृतक श्राद्ध सहित सामाजिक कुरीतियां, सामाजिक असमानता एव समाज के लोगों में जन्मना जातिवाद, छुआ-छूत वा अस्पर्शयता, ऊंच-नीच आदि भेदभाव, बाल विवाह, सतीप्रथा, बाल विधवाओं की दुर्दशा, बेमेल विवाह आदि प्रथायें एवं परम्परायें प्रचलित थी जिससे समाज सुदृण न होकर रूग्ण, बलहीन व प्रभावहीन हो गया था जिसका लाभ मुगल व अंग्रजों ने उठाया और देश को गुलाम बनायाा। Read more » धर्म प्रचारक स्वामी दयानन्द हिन्दी में धर्म प्रचार हिन्दी में धर्म प्रचार करने वाले प्रथम धर्म प्रचारक स्वामी दयानन्द
धर्म-अध्यात्म महर्षि दयानन्द सत्य के ग्रहण और असत्य के त्याग के आदर्श उदाहरण October 13, 2016 | Leave a Comment महर्षि दयानन्द जी अपने वैदिक सिद्धान्तों व विचारों के पक्के थे। यदि उनका कोई भक्त व अनुयायी उनके हित का कोई प्रस्ताव करता था जिससे उनके जीवन को हानि होने की आशंका होती थी तो वह अपने अनुयायियों द्वारा किसी स्थान विशेष की यात्रा न करने के सुझाव को स्वीकार नहीं करते थे। ऐसा ही जोधपुर में वैदिक धर्म के प्रचार के लिए जाते समय हुआ था। Read more » असत्य के त्याग महर्षि दयानन्द सत्य सत्य के ग्रहण