ऋषि दयानन्द के भक्तों की प्रशंसा और पौराणिक छात्र को फटकार और पुराणों की आलोचना

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काशी के प्रसिद्ध  पौराणिक विद्वान पं. देवनारायण तिवारी

द्वारा ऋषि दयानन्द के भक्तों की प्रशंसा और

पौराणिक छात्र को फटकार और पुराणों की आलोचना’

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

पं. देवनारायण तिवारी काशी के संस्कृत के विख्यात व्याकरणाचार्य थे। आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध विद्वान और भारत के राष्ट्रपति जी से सम्मानित पं. ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी काशी में श्री तिवारी जी से व्याकरण पढ़ते थे। जिज्ञासु जी के साथ उनके प्रसिद्ध शिष्य पं. युधिष्ठिर मीमांसक सहित उनके अन्य कुछ और शिष्य भी तिवारी जी से व्याकरण पढ़ते थे। एक दिन जब तिवारी जी जिज्ञासु जी को व्याकरण पढ़ा रहे थे तो तिवारी जी के एक पौराणिक छा़त्र ने उनसे कहा, ‘आप इन नास्तिकों को क्यों पढ़ाते हैं?’ उन दिनों पौराणिक लड़के आर्य विद्यार्थियों को नास्तिक कहकर लांछित करते रहते थे। उक्त छात्र की बात सुनकर पूज्य तिवारी जी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उस छात्र से कहा, ‘‘तू नास्तिक, तेरी सात पीढ़ी नास्तिक। तू सच बता, तू सेवेरे संध्या और विश्वनाथ जी पर जल चढ़ाकर आया है? तिवारी जी ने यह प्रश्न इस लिये किया था क्योंकि वह जानते थे कि वह यह कृत्य करके नहीं आया था।  उन्होंने उस छात्र को कहा कि तू जिन्हें नास्तिक कहता है, ये नित्य संन्ध्या-अग्निहोत्र करके पढ़ने आते हैं। ये नास्तिक हैं या तू?’’

 

तिवारी जी को कुपित देखकर बहुत से अध्यापक और छात्र एकत्र हो गये। अब तिवारी जी पुराणों के विषय में बोलने लगे–‘‘विष्णु पुराण में शिव की निंदा है और शिव पुराण में विष्णु की। सभी पुराण एक-दूसरे देवता को गाली देते हैं। कौन-सा ऐसा देवता है जिसकी पुराणों में निंदा न की गई हो? ये लोग (आर्यसमाजी) निराकार ब्रह्म के उपासक हैं। हम जिन महादेवादि को पूजते हैं, उनका चरित्र क्या पुराणों के अनुसार भ्रष्ट नहीं है?’’

 

आर्यजगत के विख्यात विद्वान और राष्ट्रपति से सम्मानित   संस्कृत के विद्वान पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी जिज्ञासु जी के साथ तिवारी जी से पढ़ने जाते थे। यह संस्मरण उन्होंने अपनी आत्म-कथा में दिया है। ऐसे अनेक प्रेरणाप्रद संस्मरण उनकी आत्म कथा में और भी हैं।

 

एक शीर्ष पौराणिक विद्वान द्वारा आर्यसमाज के अनुयायियों की प्रशंसा और पुराणों की आलोचना का यह प्रशावशाली उदाहरण हैं। आशा है पाठक इसे पसन्द करेंगे।

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