धर्म-अध्यात्म वर्तमान शिक्षा में समग्र वैदिक विचारधारा को सम्मिलित करना सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास और देशोन्नति के लिए आवश्यक August 20, 2015 | Leave a Comment सभी नागरिकों, नेताओं व सुधी जनों का कर्तव्य हैं कि वह देश की अधिक से अधिक उन्नति पर विचार करें और अच्छे-अच्छे सुझाव समाज व देश को दें। देश में जो लोग व शक्तियां देश व सर्वहितकारी विचारों व योजनाओं का किसी भी कारण से विरोध करें, देश की शिक्षित प्रजा को मत-सम्प्रदाय-पन्थ आदि […] Read more »
धर्म-अध्यात्म धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय न करना August 17, 2015 | Leave a Comment अंधविश्वास को किसने जन्म दिया है? विचार करने पर ज्ञात होता है कि अविद्या और अज्ञान से अन्धविश्वास उत्पन्न होता है। अन्धविश्वास दूर करने का उपाय क्या है, इस पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि ज्ञान व विद्या से अन्धविश्वास दूर होते हैं। ज्ञान व अविद्या कहां मिलती है? इसका उत्तर है […] Read more » धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय
धर्म-अध्यात्म क्या अज्ञान, अन्धविश्वास, अन्धी श्रद्धा व आस्था का खण्डन अनुचित है? August 16, 2015 | 2 Comments on क्या अज्ञान, अन्धविश्वास, अन्धी श्रद्धा व आस्था का खण्डन अनुचित है? सभी मनुष्यों का धर्म एक है या अनेक? वर्तमान में सभी समय में प्रचलित अनेक मत व धर्मों में लोग किसी एक को मानते हैं। प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें धर्म व मत को जानना होगा। यथार्थ धर्म को जान लेने के बाद स्वयं उत्तर मिल जायेगा। धर्म मनुष्य जीवन में श्रेष्ठ […] Read more » अन्धविश्वास अन्धी श्रद्धा व आस्था का खण्डन अनुचित है?
विविधा स्वराज्य वा स्वतन्त्रता के प्रथम मन्त्र-दाता महर्षि दयानन्द August 15, 2015 | 2 Comments on स्वराज्य वा स्वतन्त्रता के प्रथम मन्त्र-दाता महर्षि दयानन्द महाभारत काल के बाद देश में अज्ञानता के कारण अन्धविश्वास व कुरीतियां उत्पन्न होने के कारण देश निर्बल हुआ जिस कारण वह आंशिक रूप से पराधीन हो गया। पराधीनता का शिंकजा दिन प्रतिदिन अपनी जकड़ बढ़ाता गया। देश अशिक्षा, अज्ञान, अन्धविश्वास, पाखण्ड व सामाजिक विषमताओं से ग्रस्त होने के कारण पराधीनता का प्रतिकार करने […] Read more » महर्षि दयानन्द स्वराज्य वा स्वतन्त्रता के प्रथम मन्त्र-दाता
धर्म-अध्यात्म ईश्वर की कृपा व वेदाध्ययन से ही नास्तिकता की समाप्ति सम्भव August 15, 2015 | Leave a Comment ‘खुदा के बन्दो को देखकर खुदा से मुनकिर हुई है दुनिया, कि जिसके ऐसे बन्दे हैं वो कोई अच्छा खुदा नहीं।।‘ आजकल संसार में सभी मतों के शिक्षित व धनिक मनुष्यों का आचरण प्रायः श्रेष्ठ मानवीय गुणों के विपरीत पाया जाता है जो मनुष्यों को नास्तिक बनाने में सहायक होता। इसका एक कारण ऐसे […] Read more » नास्तिकता की समाप्ति
धर्म-अध्यात्म मनुष्य का परम कर्तव्य ईश्वर के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान व उसकी उपासना August 14, 2015 | Leave a Comment प्रत्येक व्यक्ति के मन में इस सृष्टि को देखकर इसके बनाने वाले कर्त्ता का ध्यान आता है परन्तु वह ज्ञान की अल्पता में निर्णय नहीं कर पाता कि इसका बनाने वाला वस्तुतः कौन है? सृष्टि को देखकर शिक्षित व विवेकवान मनुष्य की बुद्धि कहती है कि वह एक महान, चेतन, सर्वव्यापक, निराकार, सूक्ष्मातिसूक्ष्म, अदृश्य, […] Read more » ईश्वर के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान मनुष्य का परम कर्तव्य
धर्म-अध्यात्म अविद्या दूर करने का एकमात्र उपाय वैदिक साहित्य का स्वाध्याय August 7, 2015 | 3 Comments on अविद्या दूर करने का एकमात्र उपाय वैदिक साहित्य का स्वाध्याय मनुष्य की आत्मा के अल्पज्ञ होने के कारण इसके साथ अविद्या अनादि काल से जुड़ी हुई है। इसका एक कारण जीवात्मा का एकदेशी, ससीम, राग-द्वेष व जन्म-मरणधर्मा आदि होना भी है। ईश्वर सर्वव्यापक, निराकार, सर्वान्तर्यामी एवं सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का तात्पर्य है कि वह जानने योग्य सब कुछ जानता है। वह जीवों के कर्मों की […] Read more » अविद्या वैदिक साहित्य का स्वाध्याय
धर्म-अध्यात्म ‘महर्षि दयानंद एवं गुरुकुल शिक्षा प्रणाली’ August 6, 2015 | Leave a Comment महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) ने प्रज्ञाचक्षु दण्डी गुरू स्वामी विरजानन्द सरस्वती, मथुरा से वैदिक आर्ष व्याकरण एवं वैदिक शास्त्रों का अध्ययन कर देश व संसार से अविद्या हटाने के लिए ईश्वरीय ज्ञान वेदों का प्रचार किया। उनके वेद प्रचार आन्दोलन का देश और समाज पर ही नहीं अपितु विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा। वह […] Read more » ‘महर्षि दयानंद .गुरुकुल शिक्षा प्रणाली’
धर्म-अध्यात्म जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर ही ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है। August 5, 2015 | 1 Comment on जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर ही ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है। ईश्वर को जानना व प्राप्त करना दो अलग-अलग बातें हैं। वेदों व वैदिक सहित्य में ईश्वर का ज्ञान व उसकी प्राप्ति के साधन बताये गये हैं। पहले ईश्वर के स्वरूप को जान लेते हैं और उसके बाद उपासना आदि साधनों पर चर्चा करेंगे। वेदों का स्वाध्याय साधारण अशिक्षित व अल्पशिक्षित मनुष्यों के लिए कुछ […] Read more » ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है। जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर
धर्म-अध्यात्म वैदिक धर्म व संस्कृति का उद्धारक, रक्षक व प्रचारक सत्यार्थ प्रकाश August 4, 2015 | Leave a Comment संसार में समस्त धार्मिक ग्रन्थों में वेद के बाद सत्यार्थप्रकाश का प्रमुख स्थान है। इसका कारण इन दोनों ग्रन्थों का मनुष्य जीवन के लिए सर्वोपरि महत्व है। वेद ईश्वर प्रदत्त अध्यात्म व सांसारिक ज्ञान है। यह बताना आवश्यक है कि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वान्तर्यामी ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि कर […] Read more » रक्षक व प्रचारक सत्यार्थ प्रकाश वैदिक धर्म व संस्कृति का उद्धारक
धर्म-अध्यात्म सर्वव्यापक व सदा अवतरित होने से ईश्वर का अवतार नहीं होता August 3, 2015 | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य भारत में मूर्तिपूजा का प्रचलन बौद्ध व जैन मत से आरम्भ हुआ है। बौद्ध मत के बढ़ते प्रभाव व वैदिक धर्म में ऋषियों व आप्त पुरूषों की कमी व अभाव के कारण अज्ञानता के कारण मूर्तिपूजा प्रचलन में आई है। रामायण एवं महाभारत काल में भारत में मूर्तिपूजा का प्रचलन नहीं था। […] Read more » ईश्वर का अवतार
धर्म-अध्यात्म ‘सब सत्य विद्याओं का दाता व अपौरूषेय पदार्थों का रचयिता परमेश्वर है’ August 3, 2015 | Leave a Comment जीवन में जानने योग्य कुछ प्रमुख सूत्रों की यदि चर्चा करें तो इनमें प्रथम ‘सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उनका सब का आदि मूल परमेश्वर है’ सिद्धान्त को सम्मलित किया जा सकता है। इस सिद्धान्त का संसार में जितना प्रचार अपेक्षित है, उतना नहीं हुआ। यह सूत्र महर्षि […] Read more » ‘सब सत्य विद्याओं का दाता अपौरूषेय पदार्थों का रचयिता परमेश्वर है’