समाज अन्तहीन दर्द से गुजरता ‘बुजुर्ग’ June 13, 2019 / June 13, 2019 | Leave a Comment (15 जून- विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस विशेष) निर्भय कर्ण अंत भला तो सब भला…ये कहावत बिल्कुल सत्य है। मानव जिंदगी कई मोड़ से होकर गुजरता है और अंत में बुढ़ापा ही वो अंतिम मोड़ है जिस पर जिसने विजय पा लिया, उसका जीवन धन्य और सफल माना जाता है। बचपन से लेकर जवानी तक हम वो […] Read more » elderly going throygh pain अन्तहीन दर्द से गुजरता ‘बुजुर्ग’
राजनीति बीजेपी ने विरोधियों को किया पस्त, प्रचंड बहुमत से बनने जा रही है सरकार May 24, 2019 / May 24, 2019 | Leave a Comment निर्भय कर्ण आएगा तो मोदी ही और मोदी आ ही गया। मोदी का चेहरा, नीतियों के चरित्र और शाह की चाल से बीजेपी ने 2014 की लहर को 2019 में सुनामी में तब्दील कर दिया जिसकी वजह से बीजेपी अपने दम पर 300 के करिश्माई आंकड़ा को पार कर गयी। यह एक ऐतिहासिक जीत है […] Read more » bjp election 2019 landslide victory opposition win by major victory
पर्यावरण जैव विविधता पर मंडराता खतरा May 21, 2019 / May 21, 2019 | Leave a Comment निर्भय कर्ण हमारी पृथ्वी काफी बेहतरीन व सुन्दर है जिसमें सभी जीव-जंतुओं का अपना-अपना अहम योगदान व महत्ता है। हरे-भरे पेड़-पौधे, विभिन्न प्रकार के जव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, पठार, नदियां, समुद्र, महासागर,आदि सब प्रकृति की देन है, जो हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए आवश्यक है। पृथ्वी हमें भोजन ही नहीं वरन् जिंदगी जीने के […] Read more » Bio-diversity Environment many threats on bio diversity
समाज संकट के दौर से गुजर रहा संयुक्त परिवार May 14, 2019 / May 14, 2019 | Leave a Comment (15 मई- अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस) निर्भय कर्ण किसी ने यह सच ही कहा है कि ‘‘दिल छोटा और बड़ा अहंकार, जिसने बिखेर कर रख दिया एक बड़ा सुखी परिवार। टुकड़ों में सब जीते हैं अब, गम के घुट अकेले पीते है सब। याद करते उन पलों को जब साथ में सब रहते थे, मिलजुल कर […] Read more » Joint Family संयुक्त परिवार
विविधा विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर May 1, 2019 / May 1, 2019 | Leave a Comment (1 मई- अंतर्राष्ट्रीय श्रम/मजदूर दिवस) निर्भय कर्ण मजदूर दिवस/मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है जिसके कंधों पर सही मायने में विश्व की उन्नति का दारोमदार होता है। कर्म को पूजा समझने वाले श्रमिक वर्ग के लगन से ही कोई काम संभव हो पाता है चाहे वह कलात्मक हो या फिर संरचनात्मक या अन्य […] Read more » 1 मई- अंतर्राष्ट्रीय श्रम world labour day अंतर्राष्ट्रीय श्रम/मजदूर दिवस विश्व उन्नति
लेख नृत्य के नाम पर अश्लीलता परोसना ‘शर्मनाक’ April 29, 2019 / April 29, 2019 | Leave a Comment (29 अप्रैल – अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस विशेष) निर्भय कर्ण एक कथन है कि ‘मनुष्य जब खुश होता है, तो वह नृत्य करने लगता है। जड़ हो या चेतन सब आनंद में विभोर होकर अपने अंदर के तनाव या विषाद को नृत्य कर समाप्त कर सकता है। इसलिए तो जिसे भी नाचना न आता है, उनके भी हाथ-पैर थिरकने लगते […] Read more » world dance day अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस
राजनीति अबकी बार किसकी सरकार April 24, 2019 / April 24, 2019 | Leave a Comment निर्भय कर्ण भारत में 17वें लोकसभा के लिए 7 चरणों में चुनाव हो रहा है। इसमें 89 करोड़ 88 लाख मतदाता अपना मत डालेंगे, इस मायने में यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव कहा जा रहा है जिसके लिए 10 लाख मतदान केंद्र की व्यवस्था की गयी है। साथ ही ईवीएम, वीवीपैट आदि में कुल मिलाकार एक करोड़ से ज्यादा कर्मचारी चुनाव को सफलता दिलाएंगे। इससे […] Read more »
समाज क्यूं दूर होते जा रहे हैं ‘किताबों’ से April 23, 2019 / April 23, 2019 | Leave a Comment (विश्व पुस्तक तथा कापीराइट दिवस-23 अप्रैल विशेष) निर्भय कर्ण विलियम स्टायरान ने कभी कहा था कि ‘एक अच्छी किताब के कुछ पन्ने आपको बिना पढ़े ही छोड़ देना चाहिए ताकि जब आप दुखी हों तो उसे पढ़ कर आपको सुकुन प्राप्त हो सके’। यह बातें उनके दौर में और आज से 4-5 वर्ष पूर्व तक काफी सटीक था लेकिन […] Read more »
विश्ववार्ता नेपाल एक बार फिर गृहयुद्ध की ओर March 10, 2017 / March 10, 2017 | 2 Comments on नेपाल एक बार फिर गृहयुद्ध की ओर नेपाल में मानवाधिकार बार-बार आरोपों के घेरे में घिरती रही है। और एक बार फिर सप्तरी कांड से मानवाधिकार के ऊपर प्रश्नचिह्न खड़ा हुआ है। सप्तरी कांड में जिस प्रकार शहीदों व घायलों को गोली लगी है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि नेपाली पुलिस नियम-कानून जानती ही नहीं है। या जानती है तो नियम-कानून को ताक पर रखकर वहां काम करती है। अधिकतर को कमर के ऊपर पेट, छाती, गर्दन, मस्तिश्क में गोली व चोट लगा है। Read more » Featured नेपाल गृहयुद्ध प्रधानमंत्री केपी ओली मधेश विरोधी बयानबाजी मधेशी मोर्चा संघीय गठबंधन
समाज समाज को तोड़ती जातियां March 21, 2016 | 2 Comments on समाज को तोड़ती जातियां निर्भय कर्ण जाति एक ऐसा मुद्दा जिससे कोई भी देश अब तक अछूता न रह सका है। कहीं यह धर्म के रूप में तो कहीं समुदाय के रूप में तो कहीं यह क्षेत्रवाद के रूप में निकल कर आता है लेकिन उपरोक्त इन तीनों में सभी प्रकार के जाति निवास करती है। एक समय ऐसा […] Read more » casteism breaking our society casteism in our society concept of casteism Featured social structure broken समाज को तोड़ती जातियां
विश्ववार्ता नेपाल में मानवाधिकार व नियम-कानून को किनारे कर किया जा रहा दमन September 5, 2015 | Leave a Comment निर्भय कर्ण मधेशी व थारू आंदोलन का एक महीना पूरा होने वाला है और जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे-वैसे आंदोलन थमने के बजाय उग्र रूप ही लेती जा रही है। इसके पीछे हकीकत यह है कि सत्ता पक्ष आंदोलनकारी की मांगों को सहज स्वीकारने के पक्ष में नहीं है। सूत्रों की मानें तो […] Read more » Featured नेपाल
पर्यावरण पर्यावारण शिक्षा को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता June 5, 2015 | Leave a Comment -निर्भय कर्ण- पर्यावरण शिक्षा के बिना पर्यावरण संरक्षण की कल्पना नहीं की जा सकती। पर्यावरण शिक्षा से न केवल इसके संरक्षण के बारे में विशेष ज्ञान प्राप्त होता है बल्कि इससे संबंधित अनेक पहलूओं के बारे में भी जानकारीमिलती है। जिस प्रकार वातावरण में प्रदूषण विकराल रूप धारण करता जा रहा है उस हिसाब से पर्यावरण शिक्षा अतिआवश्यक और महत्वपूर्ण होती जा रही है। पिछले साल अमेरिका की राष्ट्रीय महासागर और वायुमंडलप्रशासन और स्क्रिप्स इंस्टीट्यूट आफ ओसिएनोग्राफी द्वारा जारी आंकड़ों में कहा गया कि वायुमंडल में कार्बनडाईआक्साइड का स्तर 400 पीपीएम (कण प्रति दस लाख) के स्तर पर पहुंच गया है। जबकि 1750 में औद्योगिकक्रांति के शुरुआत में यह स्तर 280 कण प्रति दस लाख थी। इन आंकड़ों से हम यह सहज ही समझ सकते हैं कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए किस कदर काम करने की जरूरत है और पर्यावरण शिक्षा को आगेबढ़ाने की भी। पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से इसके और प्रदूषण के बीच बढ़ती नजदीकियां के बारे में न केवल हम वाकिफ होते हैं बल्कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से कैसे बचाया जाए, इसे प्रभावित करने वाले कारक संबंधी तमामजानकारी भी हासिल होती है जिससे हम मानव इसके प्रति जागरूक एवं संवेदनशील होते है। यह जगजाहिर है कि पर्यावरण एवं प्रदूषण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध होता है जिसमें वनों की भूमिका उल्लेखनीय है और यहीसंबंध वन और जल के बीच है। वन पर्यावरण को बचाने के लिए जितना उत्तरदायी है उतना ही प्रदूषण के लिए भी। वनों के सिमटने से पर्यावरण को खतरा तो पहुंच ही रहा है साथ ही हमारे अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगाहै। इसके कारण जीवन के लिए आवश्यक हर तत्व एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए जीवों के अस्तित्व को ललकार रहे हैं। दिन-प्रति-दिन तापमान में लगातार असमानता चिंतनीय विषय बन चुका है जिसके लिए मानवगतिविधियां जिम्मेदार है। वनों का सृजन, प्रबंधन, उपयोग एवं संरक्षण की विधा को वानिकी कहा जाता है। वानिकी के सिमटने का मुख्य कारण है जनसंख्या वृद्धि। आबादी को आवास, भोजन के साथ तमाम बुनियादी चीजों की आवश्यकताहोती है। भोजन एवं अन्य चीजों की जरूरत के लिए उद्योगों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है और उद्योग के लिए जमीन सहित सभी संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। इन सब वजहों से एक तरफ तो वन सिमट रहा है तो दूसरीतरफ इससे हो रहा प्रदूषण विकराल रूप धारण करता जा रहा है चाहे वह वन प्रदूषण हो या फिर जल प्रदूषण या फिर भूमि प्रदूषण आदि। विकास के नाम पर पर्यावरण को अंधाधुंध क्षति पहुंचायी जा रही है। भारत में ही विगतनौ वर्षों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गये जबकि 25 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रत्येक साल घट रहा है। यहां यह उल्लेख करना दिलचस्प है कि भारत में ही अभी 27.5 करोड़ लोग वनों से होने वाली आय परनिर्भर हैं। वहीं वनों पर आश्रित पानी की बात करें तो बढ़ती जरूरतें और घटता पानी भारत ही नहीं संपूर्ण दुनिया की समस्या बन चुकी है। भारत में दुनिया की 18 फीसदी आबादी है और जल स्त्रोत केवल चार फीसद। एकअध्ययन के मुताबिक, 2050 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता वर्तमान के लगभग 1500 घनमीटर प्रति साल से घटकर 1140 घनमीटर प्रति साल रह जाएगी। इन आंकड़ों से हम सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि वनों केसिमटने से हमारे जीवन पर कितना असर पड़ रहा है और आने वाले समय में और इसका कितना व्यापक असर पड़ेगा। उपरोक्त संकटों को देखते हुए पर्यावरण शिक्षा को स्कूलों, विश्वविद्यालयों आदि जगहों में शामिल कराना दुनिया के एजेंडे में 1992 में ही आ गया था। 2005 में यूनेस्को ने अगले 10 सालों के लिए पर्यावरण के टिकाऊविकास हेतु शिक्षा नाम से नया अभियान भी शुरू किया लेकिन कुछ विशेष सफलता अब तक हाथ नहीं लगी है। यूनेस्को के टिकाऊ विकास कार्यक्रम के लिए जर्मनी की राष्ट्रीय समिति के प्रमुख गेरहार्ड डे हान का कहना था किहालांकि यह सब मुख्य रूप से स्वैच्छिक रूप से ही हो रहा है और यह शिक्षकों-स्कूलों पर निर्भर है। ये विषय स्कूलों के अधिकारिक पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। यह साफ है कि पर्यावरण शिक्षा को दुनियाभर के स्कूलों मेंअनिवार्य करना ही एक विकल्प रह गया है तभी जाकर सकारात्मक असर देखने को मिलेगा। पर्यावरण संरक्षण का कार्य विभिन्न व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा लंबे समय से किया जाता रहा है लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। इसी क्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पर्यावरणविद एम सी मेहता ने भारत केसमस्त विद्यालयों, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में पर्यावरण का अनिवार्य पाठ्यक्रम लागू करने के लिए एक याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की थी ताकि बचपन से ही विद्यार्थियों केमन में पर्यावरण संरक्षण की सोच विकसित हो सके। अंततः उच्चतम न्यायालय ने 18 दिसंबर 2003 में इस याचिका पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसके अन्तर्गत एआईसीटीई, एनसीईआरटी, यूजीसी को पर्यावरण काअनिवार्य पेपर 2004-05 सत्र से लागू करने का आदेश दिया और पालन न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात कही। लेकिन इन आदेशों का हश्र क्या है, यह सभी जानते हैं वरना प्रदूषण बढ़ने के बजाए दिन-प्रति-दिनघटता ही जाता। पर्यावरण शिक्षा से संबंधित कई कोर्सेज भी उपलब्ध हैं। इन कोर्सों को करके पर्यावरण में विशेषज्ञता हासिल करके इसमें एक उज्जवल करिअर का स्कोप है जिसे बस भूनाने की आवश्यकता है। इस हेतु युवाओं कोमागदर्शन कर प्रशिक्षण देकर पर्यावरण की बेहतरी के लिए तैयार करना होगा। समय इस बात की ओर इंगित करती है कि पर्यावरण शिक्षा को सख्ती और अनिवार्य रूप से लागू किया जाए और जीवनदायिनी पर्यावरण कोसमय रहते बचा लिया जाए। इससे न केवल पर्यावरण और प्रदूषण के बीच संतुलन कायम होगा बल्कि हमारा अस्तित्व भी बरकरार रह सकेगा। Read more » Featured पर्यावरण दिवस पर्यावारण पर्यावारण शिक्षा को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता