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प्रेम जनमेजय

प्रेम जनमेजय
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प्रेम जनमेजय व्यंग्य-लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं। व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विध मानने वाले प्रेम जनमेजय आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं । जन्म 18 मार्च, 1949 , इलाहाबाद, उ.प्र., भारत। प्रकाशित कृतियां: व्यंग्य संकलन- राजधानी में गंवार, बेर्शममेव जयते, पुलिस! पुलिस!, मैं नहीं माखन खायो, आत्मा महाठगिनी, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं, शर्म मुझको मगर क्‍यों आती! डूबते सूरज का इश्क, कौन कुटिल खल कामी । संपादन: प्रसिद्ध व्यंग्यपत्रिका 'व्यंग्य यात्रा' के संपादक बींसवीं शताब्दी उत्कृष्ट साहित्य: व्यंग्य रचनाएं। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित 'हिंदी हास्य व्यंग्य संकलन ' श्रीलाल शुक्ल के साथ सहयोगी संपादक। बाल साहित्य -शहद की चोरी , अगर ऐसा होता, नल्लुराम। नव-साक्षरों के लिए खुदा का घडा, हुड़क, मोबाईल देवता। पुरस्कारः 'व्यंग्यश्री सम्मान' -2009 कमला गोइनका व्यंग्यभूषण सम्मान2009 संपादक रत्न सम्मान- 2006 ;हिंदी हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान -1997 अंतराष्ट्रीय बाल साहित्य दिवस पर 'इंडो रशियन लिट्रेरी क्लब 'सम्मान -1998