लेख व्यंग्य सोसल साइट्स और वसुधैव कुटुबंकम की अवधारणा November 22, 2020 / November 22, 2020 | Leave a Comment विज्ञान और तकनीकी विकास के इस युग में कई आविष्कारों ने हमारे दैनिक जीवन में आवष्यक या अनावश्यक ढंग से घुसपैठ की है । कुछ ने लाभ पहुंचाए हैं तो कुछ ने नुकसान । कुछ के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता (रिसर्च चल रही है) । सोसल साइटस को हम ससम्मान ‘कुछ नहीं […] Read more » concept of Vasudhaiva Kutubankam Social sites सोसल साइट्स सोसल साइट्स और वसुधैव कुटुबंकम
लेख स्वास्थ्य-योग विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस October 3, 2020 / October 3, 2020 | Leave a Comment विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्रति वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाता है, जिसका उद्देश्य पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य के समर्थन में प्रयास करना है। इसी क्रम में सम्पूर्ण विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह (4-10 अक्टूबर) मना रहा […] Read more » World Mental Health Day विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
लेख स्वीकार्यता का महत्व July 5, 2020 / July 5, 2020 | 1 Comment on स्वीकार्यता का महत्व हमारे जीवन की बहुत सी बाधाओं और समस्याओं का कारण स्वीकार्यता का अभाव है । स्वीकार ना कर पाने के कारण हम जीवन में ठहराव, गतिहीनता, अनावश्यक घर्षण को आमंत्रण देते हैं । हम प्रत्येक वस्तु, ब्यक्ति, विचार अथवा परिस्थिति को बिना आवश्यक सोच विचार के अस्वीकार कर देते हैं । विचार आया नहीं […] Read more » Importance of acceptance स्वीकार्यता का महत्व
विश्ववार्ता समाज सुख और दु:ख June 9, 2020 / June 9, 2020 | Leave a Comment जीवन सुखमय है अथवा दु:खमय यह प्रश्न समय समय पर मानव मस्तिष्क में कौंधता रहता है । विशेषकर जीवन के कष्टदायक क्षणों में । ऐसे क्षणों में जब ब्यक्ति ब्यथित होता है‚ किंकर्तब्यविमूढ़ होता है‚ अथवा परेशानियों से अनवरत घिरा होता है । लोगों के पास इससे सम्बन्धित अपने-अपने विचार और तर्क हैं । […] Read more » happiness and sadness
विश्ववार्ता समाज 21वीं सदी में ‘बचपन’ May 17, 2020 / May 17, 2020 | Leave a Comment डा. प्रदीप श्याम रंजन 21वीं सदी अपनी पूरी शक्ति से गतिमान है और इस वेग के बहाव में कई चीजें चाहे-अनचाहे अपना स्वरुप परिवर्तित कर रही हैं. संकुचित परिवार, ब्यस्त माता-पिता, ब्यस्तता से उपजा समयाभाव और समयाभाव की आभासी प्रतिपूर्ति करते तकनीकी साधनों पर अतिनिर्भरता के फलस्वरुप बचपन की एक विश॓ष किस्म विकसित होती जा […] Read more » 21वीं सदी में ‘बचपन’