कविता उत्तराखण्ड महान है | September 12, 2013 / September 12, 2013 | 1 Comment on उत्तराखण्ड महान है | डा. राज सक्सेना पग-पग पर पावन नवगंगा, कण – कण देव समान है | हरित हिमालय से संपूरित , उत्तराखण्ड महान है | गौरवमय गिरिराज, गोमुखी- गंगा का श्री-द्वार है | शिवसमसुन्दर,श्रेष्टसुसज्जित, कनखलमय , हरिद्वार है | सांध्यआरती गंगा-तट की, पुलकित, पुण्य प्रमाण है | हरितहिमालय […] Read more » उत्तराखण्ड महान है |
विविधा दशा और सम्भावनाएं-बाल साहित्य की September 4, 2013 / September 4, 2013 | 1 Comment on दशा और सम्भावनाएं-बाल साहित्य की डा.राज सक्सेना डा.राज सक्सेना बाल साहित्य लेखन कोई बच्चों का खेल नहीं है | व्यापक क्षेत्र के बावजूद सीमित सीमाओं ने इसे कठिन बना दिया है | इसे हम इस तरह भी कह सकते हैं कि बच्चों के लिये लिखने की कला लगभग ऐसी ही है जैसे बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करना कितना […] Read more » बाल साहित्य
विधि-कानून भारत में भ्रष्टाचार क्या शिष्टाचार हो चुका है August 13, 2013 / August 14, 2013 | 1 Comment on भारत में भ्रष्टाचार क्या शिष्टाचार हो चुका है डा.राज सक्सेना देश में आए दिन सत्तारूढ़ दल के खुलने वाले आर्थिक घोटालों के प्रति सत्तारूढ़ दल का बेशर्मी से उसे नकार कर अपनी ही किसी एजेंसी को जाँच सौंप कर जाँच रिपोर्ट आने तक खुद को स्वयं ईमानदार घोषित कर दूसरों को बेईमान कह कर गरियाना अब जनता को कुछ अजीब […] Read more » भारत में भ्रष्टाचार क्या शिष्टाचार हो चुका है
कविता मृदु-मंगल उपहार हो August 3, 2013 | Leave a Comment डा.राज सक्सेना मधुमय-मधुर कमल पांखों का, परिपूरित आगार हो | संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो | कज्जलकूट केश, कोमलतम्, गहन-बरौनी, अविरलभंगिम | मृगछौने सम, नयन सलोने, नहीं ठहरते, चंचल अग्रिम | तीव्र नासिका, अधर अछूते, अमृत-मयी बहार हो | संरचना सुन्दर संविद की , श्रुत – संगत उपहार हो […] Read more » मृदु-मंगल उपहार हो
विविधा व्यंग्य जाम-स्तुति August 2, 2013 / August 2, 2013 | Leave a Comment डा.राज सक्सेना वह सुरा – पात्र दो दयानिधे,जब मूड बने तब भर जाए | है आठ लार्ज, कोटा अपना,बिन – मांगे पूरा कर जाए | प्रातः उठते ही हैम – चिकन, फ्राइड फिश से हो ब्रेकफास्ट | हो मट्न लंच में हे स्वामी, मैं बटरचिकन से करूं लास्ट | मिलजाय डिनर बिरयानी का,संग […] Read more » जाम-स्तुति
विविधा विश्व-पटल पर भारत,भारतीय,भारती July 29, 2013 | 4 Comments on विश्व-पटल पर भारत,भारतीय,भारती डा.राज सक्सेना विश्व में विडम्बनाएं सर्वत्र उपलब्ध हैं किन्तु सम्भवतः भारत विडम्बनाओं का देश बन कर रह गया है | इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि एक देश के तीन-तीन प्रचलित नाम हों | क्या विश्व के किसी देश में यह सम्भव हो सकता है कि उसके एक से – एक से अधिक […] Read more » विश्व-पटल पर भारत
कविता ‘पदमावत’चौपाई हो ? July 26, 2013 | 3 Comments on ‘पदमावत’चौपाई हो ? डा.राज सक्सेना ‘सतसईया’ का दोहा हो या, ‘पदमावत’चौपाई हो ? या बच्चन की ‘मधुशाला’की,सबसे श्रेष्ठ रुबाई हो ? केश-कज्जली ,छवि कुन्दन सी, चन्दन जैसी गंध लिये | देवलोक से पोर-पोर में, भर लाई क्या छंद प्रिये | चातक चक्षु,चन्द्रमुख चंचल,चन्दनवन से आई हो ? या बच्चन की […] Read more » 'पदमावत'चौपाई हो ?
कविता मनमोहक है July 23, 2013 / July 23, 2013 | 4 Comments on मनमोहक है डा.राज सक्सेना अभिशाप बुढापा कभी न था,यह तो गरिमा का पोषक है | आनन्द इसी में जीने का,यह शिखर रूप का द्योतक है | क्यों रखें अपेक्षा औरों से, अब तक भी तो हम जीते थे | हम कुंआ खोदते […] Read more » मनमोहक है
दोहे हिंद स्वराज मातृ-भूमि वन्दना -राज सक्सेना July 22, 2013 | 2 Comments on मातृ-भूमि वन्दना -राज सक्सेना भरत-भूमि,भव-भूति प्रखण्ड | उन्नत, उज्ज्वल, भारतखण्ड | सकल-समन्वित,श्रमशुचिताम, शीर्ष-सुशोभित,श्रंग-शताम | विरल-वनस्पति, विश्रुतवैभव, पावन,पुण्य-प्रसून,शिवाम | हरित-हिमालय, हिमनद-खण्ड | उन्नत, उज्ज्वल, भारतखण्ड | नासिक्, मथुरा, पंच-प्रयाग् ,भक्ति-भरित,भव-भूमिप्रभाग | सोमनाथ, श्रीनगर, सांईजी, कन्या – अन्तरीप संभाग | धीर, धवल-ध्वज, धराप्रखण्ड | उन्नत, उज्ज्वल, भारतखण्ड | सर्व-सुलभ, श्रुत-श्रेष्ठ विहार, केरल, कर्नाटक, […] Read more » मातृ-भूमि वन्दना -राज सक्सेना
धर्म-अध्यात्म क्या बन्दर थे हनुमान July 22, 2013 / July 22, 2013 | 10 Comments on क्या बन्दर थे हनुमान – डा.राज सक्सेना आम मान्यता है और जगह-जगह मन्दिरों में स्थापित हनुमान जी की मूर्तियों को देख कर 99.999 प्रतिशत […] Read more » क्या बन्दर थे हनुमान
विविधा कैसे सुलझे ये कठिन पहेली July 20, 2013 | 4 Comments on कैसे सुलझे ये कठिन पहेली डा.राज सक्सेना जब से मैंने अण्डमान यात्रा की है,एक यक्ष-प्रश्न मेरे सम्मुख सदैव नाचता रहा है | काव्य-शास्त्र में रुचि रख्नने वाला हरएक साहित्यप्रेमी काव्य की गहराई तक घुसकर छंद,शेर,मुक्तक,गीत या कविता में गहराई तक जाकर निहितार्थ समझता है या फिर समझने का प्रयास करता है तभी उसे उसमें – आनन्द आता है या फिर […] Read more » कैसे सुलझे ये कठिन पहेली
दोहे उत्तराखण्ड-विनाश पर कुछ दोहे July 19, 2013 / July 19, 2013 | 2 Comments on उत्तराखण्ड-विनाश पर कुछ दोहे डा.राज सक्सेना बोतल में गंगा भरी, बुझी न अनबुझ प्यास | नदियों को झीलें बना,अदभुत किया विकास || खण्ड-खण्ड पर्वत किये, खीँच-खीँच कर खाल | कब्रगाह घाटी बनी, होकर झील विशाल || मन्दिर पूरा बच गया, बची नहीं टकसाल | बना शिवालय क्षेत्र सब, शव-आलय बेहाल || यह थी केवल बानगी, […] Read more » उत्तराखण्ड-विनाश