बाबा का निधन : बाबा ब्रम्हलीन! : बाबा के ट्रस्ट पर विवाद के साए से श्रृद्धालुओं में चिंता

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23 नवंबर 1926 को जन्मे सत्यनारायण कालांतर में भगवान सत्य साई बन गए। उन्होंने खुद को शिरडी के फकीर साई बाबा का अवतार बताया। धीरे धीरे लोगों की आस्था बाबा में इस कदर बढ़ी कि आज देश में ही बाबा को चाहने वालों की तादाद करोड़ों मे पहुंच चुकी है। बाबा का जीवन चमत्कार और विवादों से भरा रहा है। सत्य साई बाबा पर अनेकानेक अरोप लगे, किन्तु बाबा ने कभी किसी आरोप का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा।

सत्य साई बाबा अपने आप को शिरडी वाले साई बाबा का दूसरा अवतार मानते थे और उनका मत था कि साई बाबा तीन अवतार लेंगे। बकौल सत्य साई बाबा अब साई बाबा का तीसरा अवतार कर्नाटक के मंडिया जिले के गुनपर्थी गांव में प्रेम साई के तौर पर होगा। इस तरह देखा जाए तो साई बाबा की मेहर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक अर्थात कमोबेश दक्षिण भारत पर ही ज्यादा रहेगी। वैसे कहा जाता है कि ब्रम्हलीन होने के पहले शिरडी वाले साई बाबा ने भविष्यवाणी की थी कि उनका उत्तराधिकारी मद्रास प्रेजीडेंसी में जन्मेगा। उस वक्त अनंतपुर जिला मद्रास प्रेजीडेंसी का एक अंग था।

गौरतलब है कि उत्तर भारत में त्रिकुटा की पर्वत श्रृंखलाओं में विराजी माता वेष्णो देवी का जयकारा देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में जमकर हुआ करता था। दिल्ली में माता की चौकियों और रतजगा को गिनने में ही पसीना आ जाता था। आज दिल्ली का परिदृश्य काफी हद तक बदला हुआ है। दिल्ली में माता की चौकियों का स्थान शिरडी के साई बाबा की भक्ति संध्या ने ले लिया है।

यह उतना ही सच है जितना कि दिन और रात कि साई के नाम की दुकान भारत जैसे धर्मभीरू देश में जमकर चल निकली है। जहां देखो वहां शिरडी के साई बाबा के मंदिर दिखाई पड़ जाते हैं। इन मंदिरों में आने वाले चढ़ावे के बारे में किसी को कुछ नहीं पता होता है। आज देश में तिरूपति में विराजे गोविंदा, शिरडी के साई बाबा, कटड़ा की माता वेष्णव देवी और भगवान शनि की गिनती सबसे अमीर भगवान मंे होती है।

इन चारों के नाम की दुकानें जमकर फल फूल रही हैं। लोग धर्म की आड़ में पैसे बनाने का खेल खेल रहे हैं। इसी प्रसंग में एक वाक्या बताना लाजिमी होगा। हमारे एक स्कूल के समय के मित्र दशकों बाद मिले तब हमने उनसे पूछा मित्रवर क्या कर रहे हो आजकल? प्रश्न आजीविका से संबंधित था। छूटते ही बोले -‘‘यार पुश्तैनी जमीन बेची पंद्रह लाख मिले सो सतना और मैहर के बीच चार मंदिर डाल दिए हैं।‘‘ हम आवक रह गए, मंदिर डाल दिए इस तरह बोले मानो दुकानें डाल दी हों। देश भर के साई मंदिरों मंे निन्यानवे फीसदी मंदिरों का ट्रस्ट न होना दुख की बात ही है।

बहरहाल सत्य साई बाबा ब्रम्हलीन हुए या उनका निधन हुआ यह बात कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता। चौबीसों घंटे एक खबर को ही रूमाल से तान तानकर चादर बना देने वाले समाचार चेनल रविवार सुबह से ही चीख चीख कर कह रहे थे कि सत्य साई बाबा का निधन! बचपन से ही सुना और पढ़ा है कि भगवान या संत सदा ही ब्रम्हलीन हुआ करते हैं। वे नश्वर देह त्यागते हैं, उनका निधन नहीं होता।

एक प्रश्न और दिमाग में कौंध रहा है। हो सकता है सत्य साई बाबा को भगवान मानने वाले इससे आहत हों किन्तु हमारा उद्देश्य कतई किसी को आहत करना या किसी की शख्सियत पर शंका करना नहीं है पर मानव स्वभाव है उत्सुकता की शांति आवश्यक है। प्रश्न यह कि अगर कोई भगवान है तो उसे मानव द्वारा इजाद की गई जीवनरक्षक प्रणालियों पर निर्भर रहने की आवश्यक्ता क्यों आन पड़ी, वह भी 27 दिनों तक।

सत्य साई बाबा के कुछ कर्म एसे हैं जिनकी हम क्या समूची दुनिया मुक्त कंठ से प्रशंसा करती है। उनके मानवता वाले कामों के लिए तो उन्हें सैल्यूट करने का दिल करता है। बाबा ने सत्य साई मेडिकल ट्रस्ट की स्थापना की जिसके द्वारा देश भर में 4000 से ज्यादा मेडिकल सेंटर्स संचालित हो रहे हैं, जिनमें बिना किसी शुल्क के गरीब गुरबों का इलाज होता है। पुट्टपर्थी में दो सौ बिस्तरों वाला अत्याधुनिक अस्पताल, राजकोट का हार्ट अस्पताल आदि कुछ एसे अभिनव काम है जिनके लिए सत्य साई बाबा हमेशा ही याद किए जाते रहेंगे। शिक्षा के क्षेत्र में भी सत्य साई बाबा ने खासा ध्यान दिया है। बाबा द्वारा आरंभ किए गए शिक्षण संस्थनों में न जाने कितने गरीब शिक्षा पा रहे हैं। दुनिया के चौधरी अमेरिका में बाबा के 26, तो आफ्रीका में 9, यूरोप में चार, एशिया में 17 शिक्षण संस्थान संचालित हैं।

बाबा ने सबसे उत्तम काम किया है, सुदूर ग्रामीण आंचलों में पानी की सुविधा का। बाबा ने भागीरथ का अवतार बनकर वह काम कर दिया जो देश के शासकों ने आजादी के छः दशकों बाद भी नहीं किया। आंध्रप्रदेश में सूखा ग्रस्त अंचल जिसमें 731 गांव शामिल थे में पानी की हजारों किलो मीटर लंबी लाईन 1995 में बिछवाई। बाबा के निर्देश पर यह काम महज डेढ़ साल की रिकार्ड अवधि में पूरा हुआ।

इसके अलावा बाबा ने अनंतपुर जिले में वाटर प्रोजेक्ट को पूरा किया। बाबा के प्रयासों ने करोड़ों प्यासे कंठ आज सूखे नहीं हैं। सत्या साई बाबा ने 2007 में ईस्ट और वेस्ट गोदावरी योजना को पूरा कर सरकार को सौंपा था। सत्य साई की इस कृपा से 2253 गांवों के रहवासियों को अनमोल पानी निर्बाध रूप से मिल रहा है।

सत्य साई बाबा जीते जी किवदंती बन गए थे। उनके भक्तों में अनेक मशहूर शख्सियत शामिल थीं। पूर्व महामहिम राष्ट्रपति कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, क्रिकेट के लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर, इक्कीसवीं सदी के क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर, जैसे नामों का शुमार था। बाबा के अवसान पर सूमूचे देश में शोक की लहर है। राजनेता, उद्योगपति, संत्री मंत्री सभी सत्य साई को श्रृद्धांजली दे रहे हैं आवाज नहीं आई तो कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ यानी सोनिया के आवास से। उन्होंने अब तक इस बारे में दो शब्द बोलना भी मुनासिब नहीं समझा है।

वैसे विवादों से सत्य साई बाबा का पुराना रिश्ता रहा है। सत्य साई का जीवन विवादों से घिरा ही रहा। अनेक विदेशी पर्यटकों ने सत्य साई पर समलैंगिगता और युवाओं के साथ यौन शोषण के आरोप लगाए। 1990 में एक भक्त ने उन पर सार्वजनिक तौर पर जनता को गुमराह करने के साथ ही साथ यौन शोषण का आरोप मढ दिया। हैदराबाद में एक समारोह में बाबा ने हवा में हाथ लहराकर सोने की चेन निकाली, बाद में वीडियो फुटेज में पता चला कि वह चेन बाबा की अस्तीन से ही निकली थी। मशहूर जादूगर पी.सी.सरकार ने बाबा की मौजूदगी में ही उनके आश्रम में हवा में हाथ लहराकर रसगुल्ला निकालकर विवादों को जमकर हवा दी। एक निजी समाचार चैनल ने तो बाबा के करिश्मों के बारे में लगातार कई दिन तक खबरें प्रसारित की जिनमें बाबा के चमत्कारों को हाथ की सफाई का दर्जा दिया गया था।

सत्य साई की संपत्ति का अनुमान लगाना कठिन ही है। कोई कहता है वे चालीस हजार करोड़ रूपए की संपत्ति के मालिक थे तो कोई पचपन हजार करोड़ रूपए की संपत्ति आंक रहा है। जो भी हो बाबा के निधन या ब्रम्हलीन होने के उपरांत अब उनकी संपत्ति के लिए मारकाट मचना आरंभ हो जाएगी। जिस तरह महर्षि महेश योगी के ब्रम्हलीन होने के बाद उनके परिजनों में संपत्ति को लेकर विवाद हुआ वह संतों के परिजनों को शोभा नहीं देता। बेहतर होगा सत्य साई की संपत्ति को परमार्थ के कामों में ईमानदारी से लगाया जाए।

सत्य साई के अवसान के बाद अब यक्ष प्रश्न यही बना हुआ है कि उनकी बेहिसाब संपत्ति वाले ट्रस्ट पर किसकी हुकूमत चलेगी। जो नाम अभी सामने आ रहे हैं उनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे के.चक्रवर्ती का नाम सबसे उपर है। बाबा के सबसे विश्वस्त चक्रवर्ती ने 1991 में नौकरी को टाटा कहकर बाबा की शरण अपना ली थी। इसके बाद नाम आता है सत्य साई के भाई के बेटे आर.जे.रत्नाकर का। एमबीए की डिग्रीधारी रत्नाकर को बाबा के ट्रस्ट में अधिकाधिक लोगों का समर्थन प्राप्त है। वैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अन्य अधिकारी एस.वी.गिरी का नाम भी इसके लिए चल रहा है। जानकारों का मानना है कि अगर मारकाट मची तो सरकार आंध्र प्रदेश सरकार के 1959 के हिंदु धर्म एवं परोपकारी निधि कानून का सहारा लेकर ट्रस्ट का अधिग्रहण कर सकती हैै।

हिन्दुस्तान की संस्कृति कुछ इस कदर धर्मपरायण है कि यहां की धर्मभीरू जनता धर्म के नाम पर दोनों हाथें से धन लुटाती है। तिरूपति बालाजी, वेष्णो देवी, शिरडी में जब दान पेटियां खुलती हैं तो गुप्त दान देखकर लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं। इस धन में खून पसीने से कमाए धन के साथ ही साथ अवैध तरीके से कमाया काला धन भी होता है जिससे लोग भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। जो भी हो पर यह धन है तो देश की गरीब जनता का ही। इन परिस्थितियों में सरकार पर यह जवाबदारी आहूत होती है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सत्य साई बाबा के अवसान के उपरांत उनकी संपत्ति को सही हाथों में सौंपा जाए, ताकि सत्य साई के परमार्थ लोक कल्याण के इरादों पर कोई पानी न फेर सके।

 

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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  1. सेठ साहूकारों की लौंडी पत्रकारिता को अपने ढंग से मुक्त करा लिमती खरे ने उसका समय समय पर वस्त्र हरण कर समाज में हर वर्ग के लोगों के मनोरंजन का साधन बना रखा है| एक ही विषय पर लिखे ये है दिल्ली मेरी जान तुल्य लेख में बाबा की ख्याति, बाबा पर दोषारोपण, बाबा के नाम से धर्म का व्योपार और धन कमाने के आयोजन, बाबा की मानवता और सामाजिक भलाई में उनका योगदान इत्यादि भारतीय चलचित्र के समान सभी भावों का मिश्रण अलग अलग मनोवृति के लोगों को अवश्य रिझाएगा| समय बीतते यह सभी विचार स्वयं मेरे मन में आते रहे थे| लेकिन कालांतर में यदि मेरी अपनी उपार्जित प्रौढ़ता नहीं तो बाबा का चिरकाल से समाज में योगदान ने उन्हें मेरे मानसिक क्षितिज पर ला खड़ा कर दिया है| उस दिव्य आत्मा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम|

  2. हंसी आती है लोगों द्वारा खुद को अवतार घोषित करने और अन्धविश्वासी लोगों द्वारा उसे मान लेने पर…… सोच रहा हूँ मैं भी अपने को गांधीजी या गौतम बुद्ध जी का अवतार घोषित कर लूँ….जनता का क्या है, मीडिया मैनेजमेंट करना है बस… फिर हम भी अरबों-खरबों में खेलेंगे…….धन्य है भारत की भक्त जनता की……………………..

  3. खरे जी १० जनपथ केवल और केवल पोप व पोप के समर्थकों के पक्ष में बोलने के लिए प्रतिबध है.

  4. खरे शाहब किसी की बुराई करना आसान है पर उस जैसा कर पाना मुमकिन नहीं है सभी ने अपने श्रधा सुमन बाबा को आर्पित किए जिसमे सोनिया और मनमोहन भी शामिल है

  5. बहुत अछा लिखा है खरे साहब आपने मेरा स्पष्ट मानना है की सत्य साईं एक शुद्ध परोपकारी व्यक्ति थे धर्म का सहारा उन्होंने इसलिए लिया होगा क्योंकि भारतीय लोग तर्कों के आधार पर कोई बात समझे ना समझे पर धर्म का पुट देते ही अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो जाते हैं.

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