बाबा साहेब पुरंदरे : महानाट्य जाणता राजा के ओजस्वी रचनाकार

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दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर सकता। बाबासाहेब का जाना इतिहास और संस्कृति की दुनिया में बड़ा शून्य छोड़ गया है। उनका धन्यवाद है कि आने वाली पीढ़ियां छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी रहेंगी। बाबासाहेब का काम प्रेरणा देने वाला था। मैं जब पुणे दौरे पर गया था तो उनका नाटक जनता राजा देखा, जो कि छत्रपति शिवाजी महाराज पर आधारित था। बाबासाहेब जब अहमदाबाद आते थे, तो भी मैं उनके कार्यक्रमों में हिस्सा लेने जाता था।महाराष्ट्र की माटी से निकले महान नाटककार, इतिहासकार राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के गौरव को जन जन तक पहुंचाने वाले पदमभूषण बाबा साहेब पुरंदरे जब नहीं रहे तो उनके प्रति श्रदधांजलि अर्पण करते हुए ये शब्द प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के थे। बाबा साहेब के देहावसान के बाद देश दुनिया में चारों तरफ से साहित्य, कला, संस्कृति में उनके अमिट योगदान को नम आंखों से याद किया गया। उनके द्वारा देश विदेश में अनगिनत जगह मंचित किए गए सुप्रसिद्ध नाटक जाणता राजा  भारत के गौरवशाली इतिहास का गान दुनिया भर में कर चुका है। करोड़ों लोगों तक शिवाजी महाराज के आदर्श जीवन चरित्र और उत्कृष्ट व्यक्तित्व की झांकी पहुंची है।
शिवाजी महाराज पर लिखीं प्रेरक कहानियांवीर शिवाजी महाराज के उदात्त जीवन चरित्र का करोड़ों लोगों में जयघोष करने वाले बाबा साहेब पुरंदरे जन्मजात प्रतिभा थे। उन्होंने 12 साल की अल्पआयु में ही लेखन शुरु कर दिया था। उन्हें प्रारंभ से ही इतिहास, कला, संस्कृति व नाटकों में रुचि थी। उन्होंने बचपन से ही महाराष्ट्र की माटी से निकले वीर सपूत शिवाजी महाराज के महान व्यक्तित्व पर लेखन शुरु कर दिया था। उन्होंने शिवाजी महाराज के प्रेरक जीवन से जुड़ी अनेक कहानियां लिखीं।  इन कहानियांें को आगे चलकर संकलित किया गया एवं इनके जरिए लोगों को शिवाजी के शासनकाल और उनकी उत्तम शासन व्यवस्था के बारे में सहज सरल भाषा में प्रेरक जानकारियां मिली। इसके साथ ही उन्होंने कई किलों के बारे में एक इतिहास व संस्कृति के मर्मज्ञ के रुप में निरंतर लेखन किया। जनता का राजा महानाट्य से जन जन तक पहुंचे शिवाजीएक इतिहकासकार, नाट्य निर्देशक व कलाकार के रुप में उन्हें शिवाजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जन जन तक पहुंचाने के लिए याद किया जाता है। उन्होंने अपनी अभिरुचि और शोध को एक मंच देते हुए सन 1985 में जनता का राजा नाटक प्रस्तुत किया। इस नाटक को महाराष्ट्र में बहुत प्रसिद्धि मिली। जनता राजा में बाबा साहेब ने दिखाया कि वीर शिवाजी महाराज का गौरवशाली और गरिमापूर्ण राज्य किस तरह का था। शिवाजी के शासनकाल की भव्यता कैसी थी। उस समय हिन्दवी स्वराज के लिए शिवाजी महाराज ने कैसे वीरता का जयघोष किया था एवं मुगलों से लोहा लिया था। मूल रुप से मराठी में बने इस नाटक को समूचे महाराष्ट्र में बहुत पसंद किया गया। राष्ट्रवाद की अलख जन जन तक पहुंचाने वाले इस नाटक की अपार लोकप्रियता महाराष्ट्र के बाद पूरे देश के चारों कोनों में फैली। हाथी, घोड़े व उंटों के साथ भव्य पंडाल, आकर्षक साज सज्जा, महाराष्ट्रीय वेशभूषा जाणता राजा नाटक की विशेषता थी।
विदेशों तक पहुंची हिन्दवी स्वराज की अलखओजस्वी संवाद, कुशल निर्देशन और भव्यता से परिपूर्ण यह नाटक आगे चलकर बाबा साहेब पुरंदरे की पहचान बन गया। जनता राजा का देश भर में जाणता राजा नाम से भव्य मंचन हुआ। इस नाटक की खासियत रही कि बाबा साहेब पुरंदरे हर नाट्य प्रस्तुति के समय खुद दर्शक दीर्घा में बैठकर प्रस्तुति को आंकते थे। उन्होंने बढ़ती उम्र को नजरअंदाज करते हुए दशकों तक जाणता राजा महानाट्य मंचन का कुशल निर्देशन किया। आगे चलकर भारत के बाहर विदेशों तक जाणता राजा का भव्य मंचन हुआ जिसने भारत के बाहर रहने वाले अप्रवासी भारतीयों को अपनी संस्कृति पर गौरवांन्वित होने का मौका दिया वहीं दुनिया भर के अनगिनत लोग शिवाजी महाराज के प्रेरक व्यक्तित्व एवं आदर्श शासन व्यवस्था से परिचित हुए।

ग्वालियरवासियों की सुखद स्मृति में बसा है जाणता राजाजाणता राजा का करीब दो दशक पहले ग्वालियर में भी भव्य मंचन हुआ था। जीवाजी विश्वविद्यालय के खेल मैदान में लगे इस महानाट्य के मंचन के समय वीर शिवाजी महाराज के किरदार की हिन्दवी स्वराज के लिए हुंकार आज भी तमाम ग्वालियरवासियों को याद होगी। इस महानाट्य के मंचन के दौरान हाथी, घोड़े, उंट से लेकर भव्य सेट, ,आकर्षक महाराष्ट्रीय नृत्य अनेक ग्वालियरवासियों की स्मृति का अमिट हिस्सा हैं। इस महानाट्य के जरिए सेवा को समर्पित एक अच्छा प्रयास भी ग्वालियर में शुरु हुआ था जो निरंतर जारी है। बाबा साहेब के देहावसान के बाद आज वे सभी सुंदर और भव्य दृश्य हम सबकी आंखों में फिर से जीवित हो उठे हैं। भारत के महान इतिहास, कला संस्कृति, साहित्य, व रंगमंच को देश दुनिया में गौरव के साथ पहुंचाने वाले पूज्य बाबा साहेब पुरंदरे जी की पावन स्मृति को बारंबार नमन .

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