नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास !
सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास !!
रिश्तों की उपमा गई, गया मनों अनुप्रास !
ईर्षित सौरभ हो गए, जीवन के उल्लास !!
कहाँ हास-परिहास अब,और बातें जरूर !
मिलने ना दे स्वयं से, बैठा नाक गुरूर !!
बोये पूरा गाँव जब, नागफनी के खेत !
कैसे सौरभ ना चुभे, किसे पाँव में रेत !!
दीये से बाती रुठी, बन बैठी है सौत !
देख रहा हूँ आजकल,आशाओं की मौत !!
कहाँ सत्य का पक्ष अब, है कैसा प्रतिपक्ष !
हाँक रहा हो स्वार्थ जब, बनकर सौरभ अक्ष !!
सपने सारे है पड़े, मोड़े अपने पेट !
खेल रहा है वक्त भी, ये कैसा आखेट !!
रख दे रिश्ते ताक पर, वो कैसे बदलाव !
षडयंत्रकारी जीत से, सही हार ठहराव !!