-बी.आर.कौंडल-
शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे भगवान् का रूप होते हैं परन्तु इस बात पर सहमति नहीं है कि किस उम्र का मनुष्यरूप बच्चा माना जाए व उसका क्या आधार हो | इस सम्बंध में विभिन्न देशों में विभिन्न उम्र को आधार मानकर बच्चे को परिभाषित किया गया है | भारतवर्ष में यह उम्र 18 साल से कम मानी गई है | यह उम्र समय-समय पर घटती-बढ़ती रही है | एक समय था जब 18 साल तक के बच्चे की बौद्धिक क्षमता इतनी विकसित नही मानी जाती थी कि वह अच्छे-बुरे की पहचान कर सके | परन्तु आज समय बदल गया है तथा बच्चों का बौद्धिक विकास बड़ी तीव्र गति से हो रहा है | अत: अब प्रश्न उठता है कि क्या बच्चे के बौद्धिक क्षमता को बालिग़ होने का पैमाना माना जाए या फिर बच्चे की उम्र को ? भारतीय दंड संहिता की धारा 82 में लिखा है कि 7 साल का बच्चा यदि कोई भी गुनाह करता है तो वह गुनाहगार नही माना जा सकता | जबकि आज आई.एस.आई.एस. जैसे आतंकवादी तीन साल के बच्चों को भी हथियार चलाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं | जबकि जुविनाइल जस्टिस एक्ट -2000 में यह प्रावधान किया गया है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों के गुनाह भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत नही अपितु जुविनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों के अंतर्गत निपटाये जायेंगे | जुविनाइल जस्टिस एक्ट में प्रावधान है कि 18 साल से नीचे के बच्चे को नाबालिग मान कर उसे ज्यादा से ज्यादा तीन साल के लिए दंडित किया जा सकता है और इस अवधि में वह जेल में नही बल्कि सुधार गृह में रखा जायेगा | हमारा कॉन्ट्रैक्ट एक्ट भी कहता है कि 18 साल से नीचे के व्यक्ति की सहमति को स्वतंत्र व बिना दबाव की सहमति नही माना जा सकता | अत: 18 साल से नीचे का बच्चा यदि कोई समझौता करता है तो उसे वैद्ध नही माना जाता |
अब बड़ा प्रश्न उठता है कि जब 18 साल से नीचे के बच्चे बौद्धिक क्षमता के चलते जघन्य अपराध करना शुरू कर दे तो उससे कैसे निपटा जाए ? क्या उसे बिना सजा दिए व केवल सुधारवादी तरीकों से एक अच्छा इंसान बनाया जा सकता है या फिर उन्हें उनके गुनाहों की वही सजा दी जाए जो 18 साल से ऊपर की उम्र वालों को दी जाती है | क्या उन्हें उम्र के आधार पर या उनके बौद्धिक विकास की क्षमता के आधार पर सजा का पात्र या अपात्र समझा जाए| निर्भया काण्ड के बाद इस बात पर एक बहस छिड़ गई थी कि आज के समय में जिस गति से बच्चों का बौद्धिक विकास हो रहा है व उसमें अच्छा-बुरा समझने की क्षमता आ रही है, वर्तमान में नाबालिग की परिभाषा में आने वाले बच्चों की उम्र 18 साल से घटा कर 16 साल कर दी जाए | परन्तु इस सुझाव पर बच्चों के मानवाधिकार के संरक्षक विचारकों के विरोध के चलते सरकार किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाई | इसी के साथ यह विचार भी निकल कर आया कि नाबालिग को सजा का पात्र व अपात्र घोषित करने का निर्णय गुनाह की प्रकृति व किस्म को ध्यान में रखते हुए जज के विवेक पर छोड़ देना चाहिए | लेकिन इस बात पर भी कोई सहमति नही बन पायी | मोदी सरकार ने इस सम्बंध में एक बिल कैबिनेट में रखा लेकिन सदस्य मंत्री इस पर एक राय नही बना पाए| परिणामस्वरूप बिल संसद में पेश नहीं किया जा सका | हाल में एक फौजदारी मुकद्दमे की सुनाई करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने सरकार को सलाह दी है कि जुविनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के प्रावधानों के ऊपर दोबारा गौर किया जाए | खासकर उस सूरत में जब नाबालिग जघन्य गुनाहों में संलिप्त हो | स्पष्ट है कि अब अस्पष्ट रूप से माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इस बात पर मोहर लगा दी है कि जुविनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के प्रावधानों में आवश्यक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है | अर्थात् नाबालिग मानने का तराजू केवल उम्र पर ही नही बल्कि अन्य कारणों पर भी निर्भर हो सकता है | अर्थात् नाबालिग की उम्र 18 साल से कम करने पर भी विचार किया जा सकता है | अत: अब केन्द्रीय सरकार पर निर्भर है कि क्रिमिनल जस्टिस एक्ट पर दोबारा गौर करने की सलाह के अनुरूप कार्य करती है या नाबालिगों को खुले आम बेटियों की आबरू लुटने व कत्ल करने के आज़ादी बरकरार रखती है |
Very nice.
Sir Punjab varg pe kya apne koi blog likha hai ?
Abhi likhna hai, intzaar karein.