बुलाती है गलियों की यादें मगर , अब अपनेपन से कोई नहीं बुलाता । इमारतें तो बुलंद हैं अब भी लेकिन , छत पर सोने को कोई बिस्तर नहीं लगाता । बेरौनक नहीं है चौक – चौराहे पर अब कहां लगता है दोस्तों का जमावड़ा । मिलते – मिलाते तो कई हैं मगर हाथ के साथ दिल भी मिले , इतना कोई नहीं भाता । पीपल – बरगद की छांव पूर्व सी शीतल मगर अब इनके नीचे कोई नहीं सुस्ताता । घनी हो रही शहर की आबादी लेकिन महज कुशल क्षेम जानने को अब कोई नहीं पुकारता
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों में तारकेश कुमार ओझा का जन्म 25.09.1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। हालांकि पहले नाना और बाद में पिता की रेलवे की नौकरी के सिलसिले में शुरू से वे पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर मे स्थायी रूप से बसे रहे। साप्ताहिक संडे मेल समेत अन्य समाचार पत्रों में शौकिया लेखन के बाद 1995 में उन्होंने दैनिक विश्वमित्र से पेशेवर पत्रकारिता की शुरूआत की। कोलकाता से प्रकाशित सांध्य हिंदी दैनिक महानगर तथा जमशदेपुर से प्रकाशित चमकता अाईना व प्रभात खबर को अपनी सेवाएं देने के बाद ओझा पिछले 9 सालों से दैनिक जागरण में उप संपादक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।