विविधा

भ्रष्टाचार से त्रस्त हिन्दुस्तान : धर्मनिरपेक्षता का “वरदान”

डॉ. सुरेंद्र जैन

आज भारत के सामने भ्रष्टाचार की समस्या मुँह बाये खडी है। इस मामले में नये-नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। ११० भ्रष्ट देशों की सूची में भारत अब ८७वें स्थान पर आ गया है जबकि कुछ समय पूर्व यह ८५वें स्थान पर था। अब भारत की तुलना पाकिस्तान, बोस्निया तथा सोमालिया जैसे देशों से की जा रही है। इस “प्रगति” से यह स्पष्ट हो रहा है कि यह समस्या अब लाईलाज होती जा रही है। रतन टाटा जैसे उद्योगपतियों से लेकर बाबा रामदेव जैसे संत इस पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय इस पर बहुत गंभीर टिप्पणियां कर चुका है। वह इसे प्रदूषण की तरह व्यापक व खतरनाक बता चुका है। आज यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुत गहरे समा चुका है। २जी स्पैक्ट्रम,आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी, कॉमन वैल्थ गेम्स पर अभी पूरी तरह चर्चा भी नहीं हुई थी कि बैंक ऋणों का एक नया घोटाला आम नागरिकों का दिल दहलाने लगा है। पूरा सरकारी तंत्र घोटालेबाजों को बचाने में लगा है। इन भ्रष्टाचारियों को न तो देश की सुरक्षा की चिंता है और न कारगिल के बलिदानी सैनिकों की विधवाओं के भविष्य की। ये जानवरों के चारे से लेकर इन विधवाओं की जमीन तक सब कुछ हडप जाते हैं और डकार भी नहीं लेते हैं। ये इतना पैसा हडप चुके हैं कि अब देश के बैंक कम पडने लगे हैं और ये लोग अपने काले धन को विदेशी बैंकों मे जमा करा रहे हैं।

स्विटजरलैंड धरती का स्वर्ग है कि नहीं, इस पर विवाद हो सकता है परंतु वहां के बैंक इन लोगों के निर्विवाद रूप से स्वर्ग बन चुके हैं। वहां के एक बैंक के डायरेक्टर ने जो रहस्योदघाट्न किया है वह सबको चौंकाने वाला है। उसके अनुसार वहां के बैंकों में भारतीयों का २८० लाख करोड रूपया जमा है। यदि भारत का यह पैसा भारत में वापस लाया जाता है तो इससे ३० साल तक भारत का कररहित बजट बन सकता है, भारत के लोगों के लिये ६० करोड नई नौकरियों का सृजन हो सकता है, हर गांव से दिल्ली तक ४ लेन की सडक बन सकती है, हर भारतीय को २००० रू० प्रतिमाह ६० साल तक दिये जा सकते हैं और ५०० सामाजिक प्रकल्पों को हमेशा के लिये निःशुल्क बिजली दी जा सकती है। इसके बाद भारत को किसी वर्ल्ड बैंक से कर्ज नहीं लेना पडेगा। इसका मतलब है कि भारत में गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा आदि जो भी समस्याएं हैं वे इन घोटालेबाजों के कारण से ही है। अगर भ्रष्टाचार पर रोक लगा कर यह सारा धन भारत में वापस लाया जाता है तो भारत निश्चित ही विश्व की महाशक्ति बन सकता है।

अगर इस समस्या पर गहराई से विचार किया जाये तो ध्यान में आयेगा कि भ्रष्टाचार किसी बिमारी का नाम नहीं है, यह एक बडी बिमारी का लक्षण है। सब तरह के कानूनी उपचार करने के बाद अब इस देश के चिंतक कहने लगे हैं कि देश में नैतिकता का अभाव है। नैतिकता का निर्माण कानून से नहीं हो सकता। नैतिकता जीवन मूल्यों का ही दूसरा नाम है । ये जीवन मूल्य उस समाज की उन गौरवशाली परम्पराओं से निर्माण होते हैं जो उसके महापुरूषों ने अपने आदर्श जीवन के द्वारा स्थापित की हैं। इन जीवन मूल्यों का ही दूसरा नाम धर्म है। “आत्मवत सर्व भूतेषू……”,”मातृवत परदारेषू……” जैसे आदर्श केवल पुस्तकों मे ही नहीं लिखे, हमारे महापुरूषों ने अपने जीवन में चरितार्थ भी किये हैं। केवल कानून के सहारे समाज को चरित्रवान बनाना संभव नहीं है। हर समाज में इसके लिये वहां के कुछ आदर्श रहते हैं।

दुर्भाग्य से भारत में धर्मनिरपेक्षता के आत्मघाती विचार के कारण समाज को धर्मविहीन बना दिया गया है। हमारे जीवन मूल्यों को साम्प्रदायिक कहकर लांछित किया गया और हमारे महापुरूषों को भी अपमानित कर जीवन से बाहर करने का षड्यंत्र किया गया। विदेशी हमलावरों को सम्मानित किया गया और धरतीपुत्रों को तथा उनके महान जीवन को झुठलाने का पाप किया गया। परिणाम सामने है। हमारा नेतृत्व धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धर्मशून्य बन गया और धर्महीन बनकर सब प्रकार के अधार्मिक कृत्यों को करने में अपनी शान समझने लगा। अब उसे धर्म का कोई डर नहीं रहा और कानून उसके हाथ की कठपुतली बन गया। उसका अनुसरण करने वाला समाज भी उसके मार्ग पर चलने लगा। अब उसे पितृ धर्म,भ्रातृ धर्म, पुत्र धर्म, राजधर्म आदि की कोई परवाह नहीं रही और समाज एक के बाद एक नई बिमारियों से ग्रस्त होने लगा। अब कोई कानून इन व्याधियों से मुक्त नहीं कर सकता। यदि कानूनों से कुछ भी सम्भव होता तो क्या कारण है कि आज तक किसी भी भ्रष्ट नेता को सजा नहीं हो पायी है। जब तक बडी मछलियों पर जाल नहीं कसेगा , समाज इन व्याधियों से मुक्त नहीं हो सकेगा। वे पकडी नहीं जा सकती क्योंकि समस्त धर्मनिरपेक्ष जगत उनकी रक्षा के लिये तैय्यार हो जाता है और वे इसी में अपने “धर्म” समझते हैं।

यदि भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना है तो उसके जीवन मूल्य उसे लौटाने होंगे। उसे धर्मनिर्पेक्षता के अधर्म से मुक्त कर, धर्म के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करना होगा। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद ने कहा था कि “अगर भारत को महाशक्ति बनना है तो उसे गीता और उपनिषद के मार्ग पर चलना होगा।” यह मार्ग धर्मनिरपेक्षता का नहीं धर्मावलम्बित होगा जिस पर चल कर ही भारत का भविष्य उज्जवल बन सकेगा।

(लेखक विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)