विवेक पाठक

तुम सब क्या आ गए दोस्तों
खोया बचपन लौटा लाए हो
पहले क्यों नहीं आए
बहुत कुछ लौट आता
वो पिता वो मां
वो स्कूल की घंटी
वो संडे की छुट्टी
जो अब पहले जैसा नहीं रहा
मगर तुम आ गयो हो
तो वो सब आया आया लगता है
तुम बस आते रहो
यूं ही आते रहो
क्योंकि बचपन लौटाकर ले आये हो
मेरे दोस्तों
तुम आ गए हो तो लगता है
वे बीते दिन लौट आएंगे
वे ही दिन जब दो चार सिक्के
खनका करते थे जेबों में
जब स्टीकर और नेमचिट मेरी दौलत हुआ करते थे
वो दिन जब रुठना मनाना होता था
मगर महीनों का नहीं दिनों का
जब टीचर का लिखा वैरी गुड
भरी दोपहरी सावन सा लगता था
वो सावन लौटेगा जरुर लौटेगा
क्योंकि तुम आ गए हो दोस्तों
वो दिन नहीं भूलेंगे हम कभी
जब प्रेयर में खड़ा होना सजा लगता था
मगर वो सजा कुछ ऐसी थी
कि अब मैं हमेशा वही सजा चाहता हूं
वो टीचर का डांटना फटकारना
तब भले डराता हो
मगर अब में उस डर को जीना चाहता हूं
फिर से बार बार बहुत बार
तुम लौट आओ बचपन
फिर आगोश में ले लेलो
ठीक वैसे जैसे
मेरी मां ने कभी मुझे लिया होगा अपने हाथों में
तुम जरुर लौटोगे
क्योंकि वे लौट आए हैं
वे सारे लौट आए हैं
जिन्होंने मुझे बचपना सिखाया था
वे फिर शरारत सिखा रहे हैं
मैं खुश हूं बार बार
हर बार
क्योंकि मेरे दोस्त लौट आए हैं
वे ही जो लड़का लड़की के अंतर से
अलग रहे हमेशा
मैं उन्हें हमेशा प्यार कर सकता हूं
वे मुझे हमेशा प्यार करते हैं
क्योंकि ये बहुत खास है
ये बचपन का वो मेरा दोस्ती भरा प्यार है