सियासी नेताओं में ‘टकराव’ से कोरोना महामारी फैलाने वाले मुख्य ‘किरदार’ बेलगाम

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संजय सक्सेना

लखनऊ। राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप एक ऐसा ओछा हथकंडा है,जिसके सहारे स्याह को सफेद और सफेद को स्याह कर देने का कुच्रक बेहद चालाकी और मक्कारी से हर समय चलाया जाता है। नेता और दल न तो समय देखते हैं, न मौका, उन्हें अपने प्रतिद्वंदी को नीचा दिखाने में ही सुकून मिलता है। सियासी दोषारोपण की राजनीति की वजह से ही कई ऐसे राजपाश नहीं हो पाते हैं जिस पर से पर्दा उठने से कई गुनाहगार जेल की सलाखों के पीछे पहुंच सकते हैं। महामारी के दौर में भी यहीे सब देखने को मिल  रहा है। इसी के चलते उन लोगों के ऊपर शिकंजा नहीं कसा जा पा रहा है जो जीवन रक्षक दवाओं,इंजेक्शन, उपकरणों और आक्सीजन की कालाबाजारी में लगे हैं। झूठ का सहारा लेकर कोरोना पीड़ितों को मौत के मुंह में ढकेलने की साजिश रचते हैं। इसकी सबसे बड़ी बानगी पिछले दिनों तब देखने को मिली जब लखनऊ के एक प्रतिष्ठित प्राइवेट के अस्पताल के मालिकों ने अपने यहां आक्सीजन नहीं होने का बोर्ड चस्पा कर दिया। सरकार को इस बात की भनक लग गई कि अस्पताल वाले झूठ बोल रहे हैं। जांेच कराई गई तो पता चला कि अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन उपलब्ध था। इसके बाद अस्पताल ने माफी मांग कर अपना पल्ला झाड़ लिया,लेकिन सवाल यही है कि ऐसे अस्पताल संचालकों के खिलाफ रासुका की कार्रवाई क्यों नहीं हुई। जब आक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों पर रासुका लग सकती है तो इनका गुनाह तो और भी बड़ा हुआ। बात यहीं तक सीमित नहीं है। आज पूरे देश में कई छोटे ही नहीं,बड़े-बड़े निजी अस्पतालों के संचालक तक आक्सीजन की कमी का रोना रो रहे हैं,लेकिन क्या यह जरूरी नहीं था कि यह समय रहते अपने यहां आक्सीजन प्लांट लगा लेते। एक-एक मरीज से लाखों रूपए के बिलों की वसूली करने वाले इन फाइव स्टार अस्पतालों की आमदनी दिन दूनी रात चैगनी बढ़ती है। अरबों रूपए की इनकी प्रापट्री होती है, वेतन के नाम पर करोड़ो रूपए प्रतिमाह लेते हैं,लेकिन अपने यहां 60-70 लाख रूपए की मामूली लागत से आक्सीजन प्लांट लगाने की इन्होंने न जानें क्यों कभी कोशिश नहीं की।कल कांगे्रस की सरकार थी,आज मोदी सरकार है,कल कोई और सरकार होगी, जब भी इस तरह की समस्याए आएगी तो विपक्षी दल इन बातों को अनदेखा करके सत्तारूढ़ दल को कोसना-काटना शुरू कर देते हैं,जिसके चलते तमाम गुनाहागार बच निकलते हैं। आज जो प्राइवेट अस्पताल वाले आक्सीजन की कमी का रोना पीटना मचाए हुए हैं,उन्हें क्या इस बात का अहसास नहीं था कि कोरोना की दूसरी लहर में आक्सीजन की कमी एक बड़ा फैक्टर होगा। फिर इन्होंने इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया।आखिर अस्पताल वालों से अधिक स्टीक जानकारी किसके पास होगी,फिर भी यह लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और अब आक्सीजन की कमी पर ड्रामेंबाजी कर रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। निजी अस्पताल मालिकों द्वारा अपने यहां आक्सीजन प्लांट नहीं लगाए जाने की वजह भी है। इनके लिए वेंटीलेजर,सीटी स्कैन,अल्ट्रासाउड आदि मशीनें एसी रूम आदि सुविधाएं तो मोटी कमाई का जरिया होती हैं,लेकिन आक्सीजन प्लांट लगाने से भला क्या कमाई होगी। इसी लिए आक्सीजन प्लांट लगाना निजी अस्पताल मालिकों की प्राथमिकता में रहा ही नहीं दूसरी तरफ सरकार ने भी कोई ऐसे सख्त कायदे-कानून नहीं बनाए हैं जिसके चलते निजी अस्पतालों की मनमर्जी पर शिकंजा कसा जा सके। इनकी कोई जबावदेही नहीं हैं। इसी लिए तो कहीं अस्पताल में मरीज को भर्ती नहीं किया जा रहा है तो कहीं मरीज के मर जाने के बाद भी उसके परिवार वालों से मोटी कमाई का रास्ता खुला रखा जाता है। यहां तक की मरे हुए शख्स के लिए अस्पताल वाले परिवार से जूस और अन्य चीजें मंगाते रहते हैं। इन्हीं तमाम वजहों से लगता है कि निजी अस्पताल के मालिक महामारी का भी फायदा उठाने में लगे हैं। उन्हें पता है कि नेता तो आपस में उलझे हैं,ऐसे में उनके ऊपर कौन सवाल उठाएगा।
    यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि देश में जो हालात हैं,उसका मुकाबला करने के लिए सभी राजनैतिक दलों को एकजुट होकर काम करना चाहिए। इससे सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि जनता में विश्वास जगेगा दूसरे महामारी के नाम पर लूटपाट करने वालों पर भी शिकंजा कसेगा,जिस दिन महामारी के दौर में लूटपाट करने वालों को पता चल जाएगा कि उन्हें कहींे से कोई राजनैतिक संरक्षण नहीं मिलेगा,उसी दिन से इनके होश ठिकाने आ जायेंगे,लेकिन इसके उलट हो क्या रहा है।नेतागण नीचा दिखाने की सियासत में फंसे हैं।कांग्रेस के शासन वाले राज्यों-पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ झारखंड ने 01 मई से शुरू होने वाले अगले चरण के टीकाकरण अभियान पर अभी से जिस तरह संदेह जताना शुरू कर दिया है, उससे यही लगता है कि देश में आपदा के समय भी ओछी राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है। बस कोई 19 तो कोई 20 है। कांगे्रस शासित चार राज्यों ने एक मई से टीकाकरण अभियान की हवा निकालने की अभी से तैयारी कर ली है। इसी लिए तो राज्य की कांगे्रसी सरकारें  केंद्र सरकार पर टीकों पर कब्जा कर लेने का अरोप लगा रही है। मकसद येनकेन प्रकारेणः केवल संकीर्ण राजनीतिक हित साधना है। यदि थोड़ी देर को यह मान भी लिया जाए कि इस आरोप में कुछ सत्यता है तो सवाल उठेगा कि आखिर अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों के सामने वैसी कोई समस्या क्यों नहीं, जैसी इन चार राज्यों के समक्ष कथित तौर पर आने जा रही है? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केंद्र सरकार अपने हिस्से के टीके राज्यों को देने के लिए ही खरीद रही है। वास्तव में यह पहली बार नहीं, जब कांग्रेस की ओर से कोरोना संक्रमण अथवा टीकाकरण को लेकर क्षुद्र राजनीति की जा रही। कांगे्रस नेता राहुल गांधी तो टीकाकरण अभियान की तुलना नोटबंदी तक से कर चुके हैं। उन्हें हमेशा की तरह यही लगता है कि मोदी सरकार टीकाकरण अभियान के सहारे अपने पंूजीपति दोस्तों को फायदा पहुंचा रहे हैं।व
      इससे हास्यास्पद क्या हो सकता है कि जो कांगे्रस पिछले वर्ष कोरोना महामारी के समय लॉकडाउन लगाने से लेकर मोदी सरकार को कोस रही थी,वही अब पूछ रही है कि मोदी सरकार लाॅकडाउन क्यों नहीं लगा रही है। कांगे्रस की नियत में खोट साफ दिखाई देती है। वह देश की अर्थव्यवस्थाा चैपट होते देखना चाहती है ताकि मोदी सरकार को कोसने का उसे मौका मिल सकें।  यह दुखदः है कि चाहें लाॅकडाउन की बात हो या फिर अन्य कदमों की अथवा टीकाकरण अभियान शुरू करने तक के केंद्र सरकार के फैसले रहे हों, कांग्रेस ने हर एक पर चुन-चुनकर सवाल उठाए। उन मामलों को लेकर भी सवाल उठाए गए, जिनमें ऐसा करने की गुंजाइश भी नहीं थी।

दरअसल, ांग्रेस का एक मात्र मकसद येन-केन प्रकारेण केंद्रीय सत्ता को नीचा दिखाना है, इसलिए उसके नेताओं ने कभी लॉकडाउन लगाने में देरी को लेकर सवाल उठाए तो कभी कहा कि उसे खत्म क्यों नहीं किया जाता? इसी तरह उन मसलों को लेकर भी केंद्र सरकार को घेरा गया, जिनके लिए राज्य सरकारें जवाबदेह थीं। आखिर इसे क्या कहेंगे कि कांग्रेस टीकाकरण अभियान को गति देने के लिए तो संकल्पित दिख रही है, लेकिन उसके कई बड़े नेताओं ने इस तथ्य को सार्वजनिक करना उचित नहीं समझा कि खुद उन्होंने टीका लगवा लिया है या नहीं ? कांग्रेसी नेता केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने टीका बनाने अथवा उनका उत्पादन करने वाली भारतीय कंपनियों को कठघरे में खड़ा करने का भी काम इस हद तक किया कि उन्हें इस सवाल से दो-चार होना पड़ा कि क्या वे टीका बनाने वाली विदेशी कंपनियों की पैरवी कर रहे हैं? वैसे तो कोई भी दल ऐसा नहीं, जिसने कोरोना संकट के समय संकीर्ण राजनीति का परिचय न दिया हो, लेकिन इस मामले में कांग्रेस का कोई जोड़ नहीं। शायद उसे यह बुनियादी बात पता ही नहीं कि गहन संकट के समय राजनीतिक क्षुद्रता का परिचय देकर पार्टी को नुकसान पहुंचाने के अलावा और कुछ हासिल नही होगा।  

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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