बेजां हंगामा मचा रहे शिक्षामित्र

पीयूष द्विवेदी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यूपी के १.७५ लाख शिक्षामित्रों की बतौर सहायक अध्यापक नियुक्तियां रद्द क्या कर दीं गईं कि ये शिक्षामित्र ऐसे हंगामा मचाने लगे जैसे उनके साथ कोई बड़ा अन्याय हो गया हो, जबकि वास्तविकता ये है कि इन शिक्षामित्रों में से अधिकांश शिक्षामित्र ऐसे हैं जिनकी शैक्षिक योग्यता शिक्षामित्र होने के लायक भी नहीं है। shikshmitraबावजूद इसके यूपी सरकार द्वारा स्नातक शिक्षामित्रों को बिना शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के सीधे सहायक अध्यापक नियुक्त करने की योजना तैयार कर ली गई। वो तो गनीमत रही कि इस सम्बन्ध में न्यायालय में याचिकाएं डालीं गईं और फिर उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों पर यह कहते हुए विराम लगा दिया कि “जिन शिक्षामित्रों को नियमित किया गया है, वह न तो एनसीटीई द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता रखते हैं और न ही उनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर हुई है। राज्य सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में नया रूल 16 ए जोड़कर न्यूनतम अर्हता को संशोधित करने का अधिकार हासिल कर लिया। सरकार का यह कार्य गैरकानूनी है। इसके फलस्वरूप ऐसे योग्य अभ्यर्थी जो एनसीटीई द्वारा निर्धारित न्यूनतम अर्हता पूरी करते हैं, उनके अधिकारों का हनन हुआ है।“ इससे पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी यूपी सरकार को सख्त निर्देश देते हुए कहा गया था कि बगैर टीईटी उत्तीर्ण शिक्षामित्रों की बतौर सहायक अध्यापक नियुक्ति नहीं की जा सकती; यह एनसीटीई के नियमों के विरुद्ध है। अब वस्तुस्थिति ऐसी है और शिक्षामित्र हंगामा ऐसे मचा रहे हैं जैसे सहायक अध्यापक पद उनका अधिकार हो जो कि न्यायालय ने उनसे छीन लिया है। आत्महत्या, कक्षाओं के बहिष्कार से लेकर सड़कों पर तरह-तरह के विरोध प्रदर्शनों तक शिक्षामित्रों का हंगामा जारी है। एक विचित्र मामला तो ऐसा भी आया कि शिक्षामित्र पत्नी की सहायक अध्यापक पर नियुक्ति रद्द होने के बाद पति ने उसे घर से ही निकाल दिया। यह सब हंगामा मोटे तौर पर सिर्फ इसलिए है कि ये शिक्षामित्र शिक्षक पात्रता परीक्षा से गुजरे बिना नियुक्ति चाहते हैं। दरअसल बात यह है कि इनमे से अधिकांश लोगों की बतौर शिक्षामित्रों नियुक्तियां भी योग्यता के आधार पर कम जुगाड़ और भ्रष्टाचार के आधार पर अधिक हुई है। लिहाजा जुगाड़ के द्वारा शिक्षामित्र बने ये लोग टीईटी पात्रता परीक्षा का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इन्हें पता है कि अगर पात्रता परीक्षा के तहत नियुक्ति हुई तो अधिकांश शिक्षामित्र नियुक्ति से वंचित रह जाएंगे। क्योंकि योग्यता का तो इनमे निरपवाद रूप से सर्वाधिक अभाव है।
दरअसल यूपी में शिक्षा मित्र योजना का आरम्भ सन २००१ में इस उद्देश्य के तहत किया गया था कि ग्रामीण शिक्षित लोग ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण कार्य कर सकेंगे जिससे कि प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की समस्या से कुछ निजात मिलेगी तथा अधिक से अधिक बच्चे सरकारी विद्यालयों से जुड़ेंगे। शिक्षामित्र के चयन की व्यवस्था ग्राम प्रधान के हाथ दी गई और व्यवस्था यह बनी कि चयनित शिक्षामित्रों को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा ३० दिवसीय प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। तत्पश्चात ग्राम शिक्षा समिति शिक्षामित्र को ग्राम पंचायत के अंतर्गत जिस स्कूल के लिए भी चयनित किया गया हो, उसमे शिक्षण कार्य के नी अनुमति प्रदान कर देगी। एक शिक्षामित्र के कार्य की समय सीमा भी निर्धारित हुई कि वो आरम्भ शिक्षा सत्र के अंत तक रहेगी और उसके बाद स्वतः समाप्त हो जाएगी, फिर यदि ग्राम पंचायत चाहें तो शिक्षामित्र के कार्य, व्यवहार आदि के आधार जिला स्तरीय समिति को उसका कार्यकाल बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेज सकती है। जिसके आधार पर शिक्षा मित्र का कार्यकाल पुनः अगले सत्र तक के लिए बढ़ा दिया जाएगा। अब शिक्षामित्र नियुक्ति की इस पूरी व्यवस्था ने अगर कुछ किया तो वो सिर्फ ये कि ग्राम प्रधान के छक्के-पंजे हो गए। चूंकि शिक्षामित्र नियुक्ति की पूरी शक्ति ग्राम प्रधान के हाथ में थी, सो ग्राम प्रधानों ने जमकर इस स्थिति का लाभ लिया और शिक्षामित्र की नियुक्ति के लिए लोगों से जमकर धन उगाही की। पैसे के आगे नियुक्ति की बाकी सब अहर्ताएं गौण हो गई। परिणाम यह हुआ कि जिनकों अपना नाम तक ढंग से लिखना नहीं आता था, ऐसे लोग भी शिक्षामित्र बन गए। कुछ समय बाद इन लोगों को एक उम्मीद यह भी पकड़ा दी गयी कि शिक्षामित्रों को नियमित भी किया जाएगा। और आज इतना सब विवाद बस इसी नियमितीकरण की उम्मीद के कारण पनपा है। दरअसल इनमे से अधिकांश वो लोग हैं जिन्हें शिक्षामित्र भी बिना किसी परिश्रम और योग्यता के सिर्फ पैसे के दम पर मिल गया तो इसी कारण ये सहायक शिक्षक भी वैसे ही बनना चाहते हैं। कहना गलत न होगा कि अगर इसके लिए भी कहीं से घूस देने की व्यवस्था हो तो ये लोग पीछे नहीं हटेंगे।
अब प्रश्न यह है कि आखिर क्या कारण है कि ऐसे अयोग्य शिक्षामित्रों को यूपी सरकार द्वारा सहायक अध्यापक बनाने की तयारी की जा रही थी ? दरअसल यहाँ मामला राजनीतिक हो जाता है। अब यूपी चुनाव में लगभग दो वर्ष का समय शेष है और यूपी में अखिलेश सरकार को लेकर जनता में अभी से काफी आक्रोश दिख रहा है। ऐसे में इन नियुक्तिओं को करने के पीछे यूपी सरकार की मंशा यही रही होगी कि इन शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के रूप में नियमित कर इनके मत को आगामी यूपी चुनाव के मद्देनज़र सीधे-सीधे अपने पाले में कर लिया जाय। लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाते ही यूपी सरकर की ये राजनीतिक मंशा पर तो पानी फिर गया। हालांकि प्रदेश के बच्चे अवश्य अशिक्षित शिक्षकों की भेंट चढ़ने से बच गए जो कि यूपी सरकार की राजनीतिक मंशा और सड़कों पर बेजां रुदन मचाए इन निरपवाद रूप से अयोग्य शिक्षामित्रों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

1 COMMENT

  1. ठीक कहा अपने लेकिन इसमे कुछ ऐसे भी है..जो उचित शिक्षा अहर्त भी है,और बेरोज़गारी के चलते बने है.

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