-मनमोहन कुमार आर्य
श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौंधा-देहरादून में आज शुक्रवार, दिनाक 7-7-2023 को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का 76वां जन्म दिवस श्रद्धा के वातारण में स्वामी जी उपस्थिति, गुरुकुल के समस्त ब्रह्मचारियों, भारतीय आर्य भजनोपदेशक परिषद, दिल्ली के पदाधिकारियों एवं सदस्यों सहित स्थानीय अतिथियों की उपस्थिति में आयुष्काम-यज्ञ, भजन, व्याख्यान एवं प्रीति-भोज आदि के आयोजन सहित सम्पन्न किया गया। अपरान्ह 4.00 बजे से आयुष्काम यज्ञ का आयोजन किया गया। यज्ञ गुरुकुल की भव्य एवं विशाल यज्ञशाला में सम्पन्न किया गया। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती यज्ञ के मुख्य यजमान थे, यज्ञ के ब्रह्मा गुरुकुल के युवा विद्वान आचार्य डा. शिवकुमार जी थे तथा यज्ञ में मन्त्रोच्चार गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ का संचालन गुरुकुल के प्राचार्य आचार्य डा. धनंजय आर्य जी ने बहुत ही उत्तमता से किया और यज्ञ के मध्य में महत्वपूर्ण दिशानिर्देश भी श्रोताओं को किये। यज्ञ के अवसर पर यज्ञशाला का समस्त परिसर गुरुकुल के सभी आचार्यों एवं ब्रह्मचारियों, भारतीय आर्य भजनोपरिषद के भजनीकों सहित स्थानीय अतिथियों से भरा हुआ था। वातावरण अत्यन्त धार्मिक एवं श्रद्धा से भरा हुआ था। यज्ञशाला में प्रवचन-वेदि पर आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान नेता स्वामी आर्यवेश जी एवं व्याकरणाचार्य डा. यज्ञवीर जी की गौरवमय उपस्थिति भी आयोजन की सफलता में चार-चांद लगा रही थी। हम भी परिवार सहित इस आयोजन मंे उपस्थित हुए एवं इस महनीय आयोजन में उपस्थित होकर हमें अतीव प्रसन्नता हुई। यज्ञ में सामान्य यज्ञ के मन्त्रों की आहुतियों सहित वेद के आयुष्काम-सूक्त के मन्त्रों से भी आहुतियां दी गईं। यज्ञ की पूर्णाहुति होने पर आर्यसमाज के शीर्ष नेता स्वामी आर्यवेश जी ने स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी को उनके चरण स्पर्श कर अपनी शुभकामनायें दी तथा यज्ञशाला में उपस्थिति बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोताओं की ओर से भी स्वामी जी को शुभकामनायें एवं बधाई दी।
यज्ञ के बाद के आयोजन में गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने स्वरचित एक शुभकामना-गीत का सामूहिक गायन किया। हिन्दी भाषा के समवेत गीत के बाद ब्रह्मचारियों ने संस्कृत भाषा में लिखित एक विशेष गीत को मिलकर गाया। ग्वालियर के आर्य भजनोपदेशक पं. अशोक आचार्य ने भी इस अवसर पर जन्म दिवस विषयक पं. सत्यपाल पथिक जी लिखित एक गीत को हारमोनियम एवं ढोलक वाद्ययन्त्रों की संगति सहित प्रस्तुत किया। इस गीत की पहली पंक्ति थी ‘जन्म दिन आज शुभ आया है बधाई हो बधाई हो, खुशी का दिन है छाया बधाई हो बधाई हो।।’ गुरुकुल के पूर्व विद्यार्थी एवं सम्प्रति गुरुकुल के आचार्य डा. शिवकुमार जी ने स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के सम्मान में संस्कृत भाषा में काव्य में लिखित एक गीत को पढ़कर प्रस्तुत किया। इसके पश्चात गुरुकुल के वरिष्ठ प्रमुख आचार्य एवं व्याकरणाचार्य डा. यज्ञवीर जी ने अपनी तथा गुरुकुल की ओर से स्वामी जी को शुभकामनायें दी। डा. यज्ञवीर जी स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के विद्यार्थी जीवन के सहपाठी हैं। डा. यज्ञवीर जी ने कहा कि ईश्वर स्वामी प्रणवानन्द जी को स्वस्थ रखें। उन्होंने कहा कि स्वामी जी भावी जीवन में कुछ और गुरुकुल खोलें। इसके उत्तर में स्वामी जी ने कहा कि वह शीघ्र ही दो गुरुकुलांे का आरम्भ करेंगे जिनमें से एक गुरुकुल कन्या गुरुकुल होगा।
गुरुकुल के पूर्व विद्यार्थी एवं सम्प्रति हरिद्वार के एक महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डा. रवीन्द्र कुमार आर्य ने स्वामी जी के सम्मान में संस्कृत में मंगलवचनों का मौािखक वाचन किया। उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने अपने जीवन में जो गुरुकुल खोले थे वह अपने उद्देश्य से ‘आर्ष व्याकरण के अध्ययन-अध्यापन के कार्य‘ से भटक गये हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में आर्यसमाज के अनेक गुरुकुलों ने स्वयं को सीबीएसई के पाठ्यक्रम से सम्बद्ध कर लिया है। श्री आर्य ने कहा कि स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी द्वारा संचालित एवं संस्थापित सभी गुरुकुल आर्ष पाठविधि से अपने गुरुकुल में वेद एवं वैदिक साहित्य की शिक्षा ब्रह्मचारियों को दे रहे हैं। डा. रवीन्द्र आर्य जी ने कहा कि हमें ऋषि दयानन्द के आरम्भ किये गये कार्यों को आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि जिन गुरुकुलों ने आर्ष पाठविधि के स्थान पर सीबीएसई पाठ्यक्रम को अपनाया है इसका कारण उन गुरुकुलों का उद्देश्य धनोपार्जन करना है। डा. रवीन्द्र आर्य जी ने कहा की वर्तमान के अनेक गुरुकुलों के लिए ऋषि दयानन्द की आर्ष शिक्षा प्रणाली गौण वा उपेक्षित हो गई है। उन्होंने कहा कि वही गुरुकुल वास्तविक में गुरुकुल हैं जहां ऋषि दयानन्द की आर्ष पाठ विधि से अध्ययन अध्यापन कराया जाता है। अपने सम्बोधन में डा. रवीन्द्र आर्य ने स्वामी प्रणवानन्द जी के स्वस्थ एवं निरोग जीवन की कामना की। उन्होंने कहा कि हम दीर्घकाल तक उनके मार्गदर्शन में कार्य करते रहें। उन्होंने आगे कहा कि स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती आर्ष परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नरत हैं। स्वामी प्रणवानन्द जी का मानना है कि हमें भविष्य में आर्ष पाठ विधि के साथ कोई समझौता नहीं करना है। हमारे सभी गुरुकुलों में आर्ष पाठविधि से ही पठन-पाठन कराया जाता रहेगा।
प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री योगेश दत्त आर्य जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘जरुरत परिवर्तन की है, परिवर्तन की है घड़ी आत्म चिन्तन की है।’ बहिन अमृता शास्त्री जी ने भी एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मेरा आना भी हो मधुमय, मेरा जाना भी हो मधुमय। मेरी बात जो निकले तो वेदामृत सी अनुभव हो।।’ बहिन जी ने दूसरा भजन भी प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘जन्म दिन की आपको बधाई हो, है प्रभु से कामना सुखदायी हो।’
आर्यसमाज के विद्वान एवं शीर्ष नेता स्वामी आर्यवेश जी ने अपना व्याख्यान प्रसिद्ध वेदमन्त्र ‘ओ३म् विश्वानि देव सवितुर्दुरितानी परासुव। यद् भद्रं तन्न आसुव।।’ से किया। स्वामी जी ने कहा कि हमारे भजनोपदेशक आर्यसमाज के मीडिया मैन हैं जो देश के दूरस्थ भागों में जाकर वेदों एवं ऋषि दयानन्द का सन्देश पहुंचाते हैं। स्वामी आर्यवेश जी ने स्वामी प्रणवानन्द जी के शतायु होने की कामना की। उन्होंने कहा कि स्वामी प्रणवानन्द जी खतरनाक से खतरनाक बीमारी से संघर्ष कर चुके हैं। स्वामी जी ने अपने जीवन में अनेक बार कई साध्य व असाध्य रोगों से संघर्ष किया है और वह हर बार उनको परास्त कर स्वस्थ हुए हैं। स्वामी आर्यवेश जी विगत जून, 2023 में आयोजित गुरुकुल महाविद्यालय, पौंधा के वार्षिक उत्सव में सम्पन्न हुए दीक्षान्त समारोह का उल्लेख किया और उसकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि सभी देश के महाविद्यालयों को गुरुकुल में आयोजित दीक्षान्त समारोह को देखना चाहिये और इसका अनुकरण करना चाहिये। इस दीक्षान्त समारोह की एक विशेषता यह थी सभी स्नातकों ने स्वदेशी वस्त्रों वा वेशभूषा को धारण किया था। समारोह से पूर्व यज्ञ किया गया था तथा सभी कार्यक्रम भारतीय विधि विधान से किए गये थे। स्वामी जी ने भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब समस्त देश में प्राचीन वैदिक भारतीय आर्ष शिक्षा प्रणाली सहित पाणिनीय अष्टाध्यायी एवं ऋषिकृत व्याकरण ग्रन्थों को अपनाया जायेगा, इस प्रणाली से देश के छात्र छात्रायें अध्ययन करेंगे तभी भारत विश्व गुरु सकेगा। स्वामी आर्यवेश जी ने स्वामी दयानन्द की अध्ययन प्रक्रिया के साथ उनके द्वारा स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी से वेद व्याकरण अष्टाध्यायी महाभाष्य पद्धति से अध्ययन किए जाने का परिचय भी विस्तार से दिया। उन्होंने कहा कि देश के छात्र छात्राओं द्वारा संस्कृत, हिन्दी और देश की अन्य भाषाओं का अध्ययन विदेशी भाषा अंग्रेजी के अध्ययन से पहले किया जाना आवश्यक है। स्वामी जी ने पाश्चात्य जीवन शैली एवं परम्पराओं के बढ़ने पर दुःख प्रकट किया। स्वामी जी ने कहा कि विदेशी परम्पराओं में ढली हमारी युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति की पोषक कभी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि आर्ष शिक्षा प्रणाली पर आधारित हमारे गुरुकुलों का महत्व पाश्चात्य शिक्षा पद्धति पर आधारित विद्यालयों से कहीं अधिक है जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। स्वामी आर्यवेश जी ने श्रोताओं को बताया कि स्वामी प्रणवानन्द जी ऋषि दयानन्द के ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि आदि ग्रन्थ यात्राओं में भी अपने पास रखते हैं और नियमित इनका अध्ययन करते हैं। उन्होंने विश्वासपूर्वक कहा कि स्वामी प्रणवानन्द जी 100 वर्ष की आयु पूरी करेंगे। स्वामी जी के नेतृत्व में आर्ष शिक्षा का विस्तार होता रहे, नये-नये गुरुकुलों की श्रृंखला देश में स्थापित होती रहे, इसके लिए स्वामी आर्यवेश जी ने स्वामी प्रणवानन्द जी को अपनी शुभकामनायें दीं और अपने वक्तव्य को विराम दिया।
स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने यज्ञशाला में उपस्थित सभी विद्वानों, अतिथियों एवं गुरुकुल के आचार्यों एवं ब्रह्मचारियों का उनका उनके जन्म दिवस पर सम्मान करने और उन्हें शुभकामनायें देने के लिए धन्यवाद किया। स्वामी जी ने कहा कि गुरुकुल के वरिष्ठ आचार्य डा. यज्ञवीर जी उन्हें व्यक्तिगतरूप से सबसे अधिक जानते हैं। डा. यज्ञवीर जी से उनका परिचय दिनांक 15 जून 1961 को हुआ था जब वह गुरुकुल झज्जर में एक विद्यार्थी के रूप में प्रविष्ट हुए थे। डा. यज्ञवीर जी गुरुकुल झज्जर में पहले से ही छात्र रूप में अध्ययन कर रहे थे। स्वामी जी ने बताया कि उन्होंने अपनी युवावस्था में सन् 1979 में गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली का संचालन का कार्य सम्भाला था। इससे पूर्व यह गुरुकुल आर्यसमाज के विद्वान आचार्य राजेन्द्रनाथ शास्त्री जो बाद में स्वामी सत्यानन्द योगी जी के नाम से प्रसिद्ध हुए, संचालित करते थे। स्वामी जी ने यह भी बताया कि वह वर्षों पूर्व रीढ़ की हडडी में दर्द के रोग से ग्रसित हुए थे। वह उन दिनों 9 महीनों तक पूरी तरह शय्या पर रहे। उनका यह रोग लगभग डेढ़ वर्ष में ठीक हुआ था। स्वामी जी ने बताया कि वह रोग की भावी आंशका से ग्रस्त थे परन्तु उन्हें उनके चिकित्सा डा0 मनोचा ने बताया था कि वह लिख कर दे सकते हैं कि उनकी मृत्यु जब भी होगी, इस रोग से नहीं अपितु किसी और रोग या कारण से होगी। स्वामी जी ने कहा कि अपने चिकित्सक के इन वचनों का उन पर चमत्कारिक प्रभाव हुआ और वह रोग से निश्चिन्त होने के साथ स्वस्थ होने के प्रति आशावान् हो गये थे। कुछ समय बाद वह इस रोग से पूर्णतया मुक्त वा स्वस्थ हो गये थे। ऋषिभक्त स्वामी प्रणवानन्द जी ने कहा कि मेरे जीवन में अनेक बार मुसीबर्तें आइं परन्तु उन्हें सदैव अच्छे-अच्छे सहयोग करने वाले लोग मिले। उन्होंने कहा कि स्वामी इन्द्रवेश एवं महात्मा बलदेव जी ने सदैव मुझे उत्साहित किया। स्वामी जी ने गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के संस्थापक एवं पूर्व संचालक स्वामी सत्यानन्द योगी जी को स्मरण किया और उन्हें गुरुकुल गौतमनगर का संचालन सौंपने के लिए धन्यवाद किया। स्वामी जी ने कहा कि मुझे स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने भी सदैव उत्साहित किया है। सभी गुरुदेव भी उन्हें बहुत अच्छे मिले। उनके गुरुकुलों के स्नातकों ने भी उनकी बहुत सहायता की है। स्वामी जी ने कहा कि जिस व्यक्ति को जीवन में सहयोगी मिलते हैं यह उस व्यक्ति का सौभाग्य होता है। स्वामी जी ने आगामी महीनों में एक नया कन्या गुरुकुल खोलने की घोषणा की जहां आर्ष शिक्षा पद्धति से कन्याओं को अध्ययन कराया जायेगा। स्वामी जी के व्याख्यान के बाद सभी भजनोपदेशकों को गुरुकुल पौंधा की ओर से स्टेशनरी, बैग, शाल, वाटर बाटल, नोटबुक, पैन, छाते आदि का वितरण किया गया। कार्यक्रम की समाप्ति पर सभी लोगों ने गुरुकुल में एक साथ बैठकर भोजन किया। इसी के साथ आज का कार्यक्रम समाप्त हुआ। कार्यक्रम 9 जुलाई, 2023 को आयुष्काम यज्ञ की पूर्णाहुति एवं भारतीय आर्य भजनोपदेशक परिषद के अधिवेशन के पूर्ण होने पर समाप्त होगा। स्वामी प्रणवानन्द जी तीनों दिन कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे। आचार्य डा. धनंजय आर्य और उनकी पूरी टीम ने सभी कार्यक्रमों की बहुत अच्छी व्यवस्था की है। उनको साधुवाद है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य