भारत के  वे “लाल” यशस्वी,सचमुच बड़े “बहादुर” थे ।

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भारत के यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी को *
सादर समर्पित श्रद्धा-सुमन
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भारत के  वे “लाल” यशस्वी,सचमुच बड़े “बहादुर” थे ।
क़द  छोटा, इंसान बड़े  थे ,  देश-प्रेम  हित आतुर थे ।।
पले अभावों में थे लेकिन,मन से बड़े उदारमना ।
कर्त्तव्यों में निष्ठा थी,निज कष्टों को नहीं गिना ।।
काशी विद्यापीठ में  शिक्षा पाई , वे  थे सच्चे ज्ञानी ।
त्याग-तपस्या में थे आगे,संस्कृति भारत की ही जानी ।।
स्वतन्त्रता हित जेल गए,पर धैर्य न छोड़ा ,शान्त रहे।
बढ़ा मनोबल ललिता जी का, उनसे ऐसे वचन कहे ।।
यू.पी. के गृह-मंत्री थे वे ,पर घर में खादी चलती थी ।
बड़ी सादगी से जीवन में, उनकी संतति भी पलती थी ।।
बने  केन्द्र में रेल-मिनिस्टर, सावधान थे बड़े सजग ।
दुर्घटना जब घटी रेल  की, त्यागपत्र दे हुए अलग ।।
गाँधी के सच्चे अनुयायी, मितभाषी प्यारे थे सबको ।
प्रधान मंत्री बन कर भी तो, गर्व नहीं छू पाया उनको ।।
देख देश में कमी अन्न की, एक समय का किया उपवास ।
मानी  बात सभी  ने उनकी , उन्हें  दिलाया  था  विश्वास ।।
था  अभिमान  नहीं  उनको  पर , स्वाभिमान  प्यारा   था ।
“जय जवान और जय किसान” ही, उनका नूतन नारा था ।।
किया पड़ोसी  ने  जब  हमला, भेजी  सेना जोश  भरी ।
सेना लाहौर तक जा पहुँची, विजयपताका भी फहरी।।
“ताशकन्द समझौते” ने ,शास्त्री जी का दिल तोड़ दिया ।
देश-रत्न उस  वर्चस्वी  ने , अपना जीवन  त्याग  दिया ।।
अमर  रहेंगे  शास्त्री जी  तो , भारत  के  इतिहास  में ।
याद रहेगी युगों युगों तक , भारतीय जन के मानस में।।
०-०-०-०-०-०-०-०
शास्त्री जी के                               – शकुन्तला बहादुर
जन्मदिवस पर-

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

4 COMMENTS

  1. प्रणाम दीदी , मैं आपकी शिष्या सुनीता तिलहरी । बहुत प्रसन्नता हो रही है आप का सूत्र पाकर । साथ ही इस सुंदर कविता ने मन मोह लिया । पुन: सादर प्रणाम ।

  2. कवयित्री शकुन्तला जी–
    बहुत बहुत सुन्दर. झांसीवाली रानी की शैली का स्मरण करा दिया.
    और अंत्य प्रास (?) भी कुशलता से मिलाया और निभाया है.
    ऐसी कविता में, एक ओर तथ्य और फिर उस का कविता का गठन सँभालना कठिन माना जाता है.
    लय में होने से भी यह ओजस्वी मंचन की कविता बन गयी है.
    शास्त्री जी के सारे गुण भी वर्णित हुए, और वो भी कविता में।आप ने सब संभव कर दिया.
    अनुमान है; कि, यह कविता आप को जानकारों में बहुत सम्मान दिलाएगी.
    शास्त्री जी पर लिखी गयी कविताओं में यह कविता भी अमरत्व की श्रेणी की कविता है.

    शुभेच्छाएँ.–मधुसूदन

    • आदरणीय मधुसूदन जी ,
      आपकी वैदुष्यपूर्ण आशीर्वादात्मक समीक्षा से मन प्रफुल्लित हो गया । आपके ये उत्साहवर्धक वचन मेरे लिये सदा प्रेरक रहेंगे । तदर्थ आभारी हूँ ।
      – शकुन्तला बहादुर

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