पत्रकारिता दिवस का मान बढ़ाया भोपाल-इंदौर ने

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मनोज कुमार
एक पत्रकार के लिए आत्मसम्मान सबसे बड़ी पूंजी होती है और जब किसी पत्रकार को अपनी यह पूंजी गंवानी पड़े या गिरवी रखना पड़े तो उसकी मन:स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है. फिर आप किसी भी पत्रकार के लिए कोई दिन-दिवस मनाते रहिए, सब बेमानी है. हर साल हिन्दी पत्रकारिता दिवस 30 मई को मनाते हैं. यह हमारे स्वाभिमान का दिवस है. हिन्दी की श्रेष्ठता का दिवस. अंग्रेजों को देश निकाला देने का हिन्दी पत्रकारिता का गौरव दिवस लेकिन साल-दर-साल हिन्दी पत्रकारिता क्षरित होता रहा, इसमें भी कोई दो राय नहीं है. हालांकि भारत के एक बड़े वर्ग की आवाज आजादी से लेकर अब तक हिन्दी पत्रकारिता रही है और शायद आगे भी हिन्दी पत्रकारिता का ओज बना रहेगा. हिन्दी पत्रकारिता का वैभव अमर रहे, यह हम सबकी कोशिश होती है और होना भी चाहिए लेकिन हिन्दी के पत्रकारों की दशा दयनीय होती जा रही है. इस पर चिंता की जानी चाहिए. यह शायद पहली पहली बार हो रहा होगा जब हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर भोपाल और इंदौर के पत्रकारों ने ऐसी पहल की कि हिन्दी के पत्रकारों का आत्मसम्मान भी कायम रहा और आर्थिक दिक्कतों से भी राहत महसूस हुआ. आजादी के बाद हिन्दी पत्रकारिता दिवस का गौरव कायम रखने में भोपाल और इंदौर के पत्रकारों ने जो कार्य किया, वह वंदनीय है, अभिनंदनीय है.
कोरोना ने सभी सामाजिक और आर्थिक ताना-बाना को छिन्न-भिन्न कर दिया है. एक साल में कोरोना के दो बार हमले ने जैसे जिंदगी को शून्य से शुरू करने के लिए मजबूर कर दिया है. दूसरे प्रोफेशन के लोगों के पास आर्थिक संबल था और वे कम से कम गिरे नहीं. तनाव और परेशानियां उनके हिस्से में भी रही लेकिन पत्रकारों को जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा या पड़ रहा है, वह अकथ कथा है. एक तरफ अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए जान दांव पर लगाना तो दूसरी तरफ परिवार की जरूरत को पूरी करने के लिए या खुद की जिंदगी दांव पर लग जाए तो आर्थिक संबल नहीं मिल पाने का संकट. सरकार और सत्ता के सामने गिड़गिड़ाना या झुकना मंजूर नहीं और जिन संस्थानों के लिए कार्य कर रहे हैं, वे इस तरफ से लगभग आंखें मींचे हुए हैं. आत्मसम्मान कायम रहे और संकट का समाधान भी मिले, यह एक चुनौतीपूर्ण टॉस्क था. विवेकानंद जी ने कहा है कि जीते जी खुद का बोझ खुद को उठाना पड़ेगा और मरने के बाद चार कंधे तो मिल जाएंगे. इसे आप समस्या है तो समाधान है कि नजर से भी देख सकते हैं.
तकरीबन आठ वर्ष पहले पत्रकारों के एक समूह ने इस बात पर विमर्श किया कि पत्रकारों के हेल्थ को लेकर आर्थिक सुरक्षा कैसे दी जाए. इस सोच के साथ ‘भोपाल हेल्थ केयर सोसायटी’ का जन्म हुआ. सदस्य पत्रकारों से एक हजार रुपये वार्षिक सदस्यता का प्रावधान रखा गया था जिसे बाद में घटाकर 5सौ रुपये कर दिया गया. भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार और संस्था के गार्जियन डॉ. सुरेश मेहरोत्रा लगातार बड़ी आर्थिक योगदान करते रहे हैं. सोसायटी के नियमानुसार किसी भी पत्रकार को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए अन्य पत्रकारों की सहमति जरूरी है. संभवत: देश में अपनी तरह की इस इकलौती संस्था ने दिवंगत पत्रकारों को बिना किसी बड़ी औपचारिकता के दो लाख की राशि उपलब्ध करायी है. अन्य स्थितियों पर निर्भर करते हुए 15 हजार से एक लाख तक की राशि का सहयोग सदस्यों को मिलता रहा है. इस कोरोना काल में तो सोसायटी ने आगे बढक़र पत्रकारों को आर्थिक सहायता दी.
भोपाल के पत्रकारों की पहल के बाद इंदौर के पत्रकारों ने कोरोना काल में पत्रकारों को आर्थिक मदद के साथ स्वास्थ्यगत सुविधा दिलाने के लिए प्रयास शुरू किया. आईएमयू (इंदौर मीडिया यूनाइटेड) नाम से संस्था बनाकर जरूरतमंद पत्रकारों को ना केवल आर्थिक सहायता दी गई. बल्कि कोरोना पीडि़त पत्रकारों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने में यथासंभव सहयोग किया गया. आईएमयू वाट्सअप गु्रप पर प्रतिदिन बुलेटिन जारी कर पत्रकारों की स्वास्थ्य की जानकारी प्रदान करता रहा. यह पहल अनोखी थी. आईएमयू की पहल से बड़ी संख्या में पत्रकारों को स्वास्थ्य लाभ ना केवल उन्हें मिला बल्कि उनके परिजनों को भी लाभ मिला. ऐसे संकटकाल में आईएमयू संकटमोचक बनकर पत्रकारों की जीवन रक्षक का दायित्व निभाता रहा.
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने चिंता कर पहले अधिमान्य पत्रकारों को कोरोनापीडि़त होने की दशा में राज्य शासन की ओर से सहूलियत देने का ऐलान किया था. बाद में इसका विस्तार कर गैर-अधिमान्य पत्रकारों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया. कहना ना होगा कि कोरोना काल में पत्रकारों के हितचिंतक के रूप में संचालक जनसम्पर्क श्री आशुतोषप्रतापसिंह उपस्थित रहे. पीडि़त पत्रकारों को अस्पताल में बेड दिलाने, दवा-इंजेक्शन से लेकर ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के इंतजाम की भरसक कोशिश करते रहे. सबसे बड़ी बात यह रही कि अपनी व्यस्तता के बाद भी व्यक्तिगत रूप से पीडि़त पत्रकार और उनके परिजनों को फोन कर उनकी खैरियत पता करते रहे. अपने इस दायित्व में सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि श्री आशुतोषप्रतापसिंह ने छोटे-बड़े पत्रकारों में भेद ना करते हुए सभी से बात की. जनसम्पर्क की छवि सुधारने और शासन से मीडिया के दोस्ताना रिश्ते को मजबूत करने में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान एवं संचालक जनसम्पर्क की विशेष भूमिका रही. किसी भी राज्य में इस तरह की पहल करने वाला भी शायद मध्यप्रदेश ही इकलौता राज्य है.
कोरोना ने रिश्तों का ताना-बाना तोड़ा तो नए और मजबूत रिश्तों का श्रीगणेश भी किया. हिन्दी पट्टी के पत्रकारों को पहली बार एक नए अनुभव से सामना हुआ. इसका श्रेय मध्यप्रदेश में भोपाल की ‘जर्नलिस्ट हेल्थ केयर सोसायटी’ और इंदौर की आईएमयू (इंदौर मीडिया यूनाइटेड) को जाता है. पत्रकार सामूहिक पहल करें तो सोसायटी उनकी मदद के लिए आगे आती है, यह बात भोपाल-इंदौर ने स्थापित कर दिया है. इस तरह की पहल देश के हर राज्य और शहर में किए जाने की आवश्यकता है ताकि पत्रकारिता पर आंच ना आए और पत्रकारों का आत्मस्वाभिमान कायम रहे. इस बार दिल से हिन्दी पत्रकारिता दिवस की जय बोलिये

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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