“भूदान आंदोलन” जिसने बदल दिया लाखों लोगों का जीवन

दीपक कुमार त्यागी

देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज को सकारात्मक नयी दिशा देने वाले सामाजिक योद्धा, प्रसिद्ध गांधीवादी नेता तथा महान संत “आचार्य विनोबा भावे” का नाम भारत के इतिहास में एक ऐसी महान शख्सियत के रूप में स्वर्णाक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज है, जिनका देश व समाज हितकारी चिंतन, ओजस्वी व्यक्तित्व के प्रकाश पुंज से युगों-युगों तक देश व समाज का मार्गदर्शन होता रहेगा। एक सच्चे संत की तरह जीवन जीने वाले “आचार्य विनोबा भावे” एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली ऐसी महान शख्सियत थे, जिन्होंने देश के आम व खास सभी वर्ग के लोगों को जीवनपर्यंत एक नज़ीर बनकर सिखाया की हमारे देश में भी राजनीति में आए बिना ही किस प्रकार से आम जनमानस की सेवा की जा सकती है, उन्होंने जीवन भर भारतीय राजनीति से ओछी राजनीति, सिद्धांतहीनता व अन्य प्रकार की सभी गंदगियों को दूर करने के लिए प्रयास किया थे। वैसे आज के समय की बात करें उनके जैसी शानदार शख्सियत का भारतीय राजनीति में मिलना ही असंभव है, लेकिन उस दौर में भी देश में उनके जैसे व्यक्तित्व वाली चंद ही शख्सियत रही हैं, जिनके लिए जीवनपर्यंत अपनी पूर्ण निष्ठाभाव से, सिद्धांतों के प्रति पूर्ण ईमानदारी व निस्वार्थ भाव से आम जनमानस की सेवा करना हर हाल व परिस्थिति में सर्वोपरी रहा हो और देश व समाज हित के लिए जिन्होंने अपना जीवन पूर्णतः निस्वार्थ भाव से समर्पित कर दिया हो।

“आचार्य विनोबा भावे” ने महात्मा गांधी से प्रेरित हो कर देश में व्याप्त विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराइयों जैसे कि असमानता और गरीबी आदि को खत्म करने के लिए जीवनपर्यंत निरंतर अथक प्रयास किये थे। वह समाज के दबे-कुचले वर्ग के लोगों के अधिकारों के लिए काम करते थे। उन्होंने देशवासियों के बीच सर्वोदय शब्द को उछाला जिसका मतलब था “सबका विकास”। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए उन्होंने सर्वोदय आंदोलन के तहत कई कार्यक्रमों को लागू करने का कार्य किया था जिन कार्यक्रम में से एक “भूदान आंदोलन” भी था।”

देश की महान शख्सियत “आचार्य विनोबा भावे” के द्वारा 18 अप्रैल 1951 को चलाया गया एक वैचारिक आंदोलन जो कि “भूदान आंदोलन” के नाम से भारतीय इतिहास में दर्ज है, यह एक ऐसा बहुत बड़ा व धरातल पर पूर्णतः सफल वैचारिक आंदोलन है, जिसने देश के लाखों लोगों में यह भाव जगाने का कार्य किया की भूमि व देश के सभी प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों पर समाज के हर वर्ग के लोगों का समान रूप से पूरा हक है। उन्होंने अपने जीवन काल में लाखों भूमिहीन परिवारों को “भूदान आंदोलन” के माध्यम से भूमि दिलवाने का कार्य सफलतापूर्वक किया था।

*”देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज इस “भूदान आंदोलन” की शुरुआत 18 अप्रैल 1951 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश राज्य (फिलहाल तेलंगाना राज्य) के
नलगोंडा जिले के पोचमपल्ली गाँव से हुई थी। हिंसाग्रस्त यह क्षेत्र कम्यूनिस्ट चरमपंथियों का गढ़ माना जाता था, इस गाँव में चार हत्याएं हो चुके थी और आस-पास के गाँवों को मिलाकर दो वर्ष के अंदर इस इलाके में 22 हत्याएं हो चुकी थीं। इस गाँव में
पहुंचने के बाद “आचार्य विनोबा भावे” जब हरिजनों की बस्ती में पहुंचे तो एक-एक घर में जाकर उन्होंने अपनी आंखों से वहां के लोगों की हालत को देखा, उस क्षेत्र के गरीब हरिजनों ने उन्हें अपना दुःख सुनाते हुए कहा कि “हम बहुत गरीब हैं आप हमें थोड़ी जमीन दिलाइये, उस पर मेहनत करके हम अपना पेट भर सकेंगे।” “आचार्य विनोबा भावे” ने जब उनसे पूछा कि आपको कितनी जमीन चाहिए, तो गरीब हरिजनों ने आचार्य से कहा कि हमारे 40 परिवार हैं हमें 80 एकड़ जमीन भी मिल जाए, तो हमारे परिवारों के सम्मानजनक जीवन-यापन के लिए यह बहुत है।

“आचार्य विनोबा भावे” ने उनसे कहा कि वह सरकार से बात करके उन्हें जमीन दिलाने की कोशिश करेंगे, लेकिन आचार्य स्वयं अपने इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं थे, वह सरकारों के काम करने के ढुलमुल रवैए को अच्छी तरह से जानते थे। उन्होंने समस्या के निदान के लिए गाँव के जमींदारों से अपील करते हुए कहा कि क्या आप में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि इन गरीब हरिजन भाइयों की मदद कर सकें? अगर इन्हें जमीन मिल जाए तो यह लोग उस पर मेहनत करने के लिए तैयार हैं। “आचार्य विनोबा भावे” की इस अपील पर रामचन्द्र रेड्डी नाम के एक भाई सामने आए और बोले कि मेरे पिताजी चाहते थे कि हमारी 200 एकड़ जमीन में से आधी जमीन कुछ सुपात्र लोगों में बांट दी जाए, कृपा कर मेरी 100 एकड़ जमीन का दान आप स्वीकार कीजिए, यह सुनकर “आचार्य विनोबा भावे” की आंखों से आंसू की अविरल धारा बह निकली, हालांकि जिसने भी इस बात को सुना उन लोगों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, तो रामचन्द्र रेड्डी ने तुरंत ही लिखकर दे दिया कि मैं 100 एकड़ जमीन गरीब हरिजनों को दान में देता हूं। इस ऐतिहासिक घटना से भारत के त्याग और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। यहीं से “आचार्य विनोबा भावे” का भूदान आंदोलन शुरू हो गया। हालांकि यह आंदोलन 13 वर्षों तक निरंतर चलता रहा और इस ने सफलता के नये आयाम स्थापित करें। इस आंदोलन के दौरान “आचार्य विनोबा भावे” ने पूरे देश का भ्रमण किया। उन्होंने 58,741 किलोमीटर का सफर देश के विभिन्न हिस्सों में तय किया और इस “भूदान आंदोलन” के माध्यम से वह गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में जमींदारों से हासिल करने में सफल रहे, उनको जमींदारों से भूदान के रूप से ग्राम के ग्राम मिले थे। जिन जमीनों में से 13 लाख एकड़ जमीन को भूमिहीन किसानों के बीच बांट दिया गया था। “आचार्य विनोबा भावे” के इस “भूदान आंदोलन” की न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में भी बहुत प्रशंसा हुई थी, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि भूदान में मिली कुछ भूमि तो उस समय लोगों में बांट दी गयी थी, लेकिन बाकी बहुत सारी भूमि ऐसी है जिसकी अवैध रूप से बंदरबांट हुई है, सरकार को भूदान में मिली जमीनों की जांच करवाकर उससे अवैध कब्जे हटवाकर “आचार्य विनोबा भावे” को सच्ची श्रद्धांजलि देनी चाहिए।

“वैसे देखा जाये तो “आचार्य विनोबा भावे” का “भूदान आंदोलन” आज़ाद भारत में घटित एक ऐसा बेहद महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जिसने देश के करोड़ों लोगों के जीवन के स्तर को पूर्णतः बदलने का कार्य बेहद सफलतापूर्वक किया था।”

उनके इस आंदोलन ने भूमिहीनों को भूमि दिलवा कर उनके जीवन को बेहद सरल बनाने का कार्य किया था। 15 नवंबर 1982 को “आचार्य विनोबा भावे” का निधन हो गया था और उन्हें वर्ष 1983 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था। हालांकि देश में आज जिस तरह की जाति व धार्मिक आधारित राजनीतिक अतिवाद का माहौल व्याप्त है, उस स्थिति में “आचार्य विनोबा भावे” के ओजस्वी व्यक्तित्व से युवा राजनेताओं को अवश्य सीखना चाहिए, लेकिन अफसोस आज उनके ओजस्वी विचारों व “भूदान आंदोलन” जैसे वैचारिक आंदोलनों का देश में जिक्र तक नहीं होता है, यह स्थिति बहुत सारे देशभक्त लोगों के दुःख पहुंचाने का कार्य करता है और समाज के बहुत सारे लोगों को प्रेरणा स्रोत व्यक्तित्व मिलने के एक श्रेष्ठ अवसर से वंचित करने का कार्य करती है।

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