राजनीति

बिहार नए इतिहास को रचने को तैयार !

-गंगा प्रसाद-

bihar

बिहार में चुनावी बिगुल बज गया है, राजनीति पार्टियों के बीच एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर तेजी पकड़ने लगा है, ये बात सही है कि राजनीति हर बार एक नया इतिहास रचती है, इसी कड़ी में बिहार एक बार फिर से एक नया इतिहास रचने को तैयार खड़ा है

2014 लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ा और 272 प्लस के आकड़े को भी पार कर गया, इतना ही नहीं इसके बाद 5 राज्यों में चुनाव हुए जिसमें दो राज्यों हरियाणा और झारखंड में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है और दो राज्यों जिसमें महाराष्ट्र में कोयलेशन के साथ बीजेपी की सरकार है जबिक जम्मू कश्मीर की सरकार में भी बीजेपी शामिल है। बचा दिल्ली तो उसको तो सब जानते हैं कि दिल्ली के चुनाव ने बीजेपी ने जमकर भद पिटवाई है।

अब बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। जिसके लिए राजनीतिक पार्टियों की तैयारियां जोरों पर हैं। एक बात और है कि बिहार की राजनीति जातिवाद पर आधारित राजनीति होती है. जिसको लेकर हर दल सभी जातियों को ध्यान में रखते हुए कोई भी फैसला लेते हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश के महू से बाबासाहब के जन्म स्थाली जाकर दलित कार्ड खेला है। जबकि मध्यप्रदेश सरकार महू में ही डॉक्टर आंबेडकर इंस्टीट्यूट बना रही है। जिसे राज्य सरकार विश्वविद्यालय का दर्जा देगी। वहीं पीएम मोदी ने पहले सरदार पटेल को आगे किया। लेकिन पीएम मोदी उनको गुजराती मानते है यही कारण है कि सरदार पटेल का स्मारक भी गुजरात में बनाया जा रहा है। मोदी सरदार को देश का नहीं गुजरात का मानते हैं इसलिए मोदी ने सरदार को गुजरात तक ही सीमित कर दिया। इसके बाद गांधी को सामने लाया गया तो गांधी ने पीएम को झाडू कड़ा दिया जो अब छोडने का नाम नहीं ले रहा है। गांधी को किनारे लगा कर चंद्रशेखर आजाद को सामने लाया गया उनके गुमसुदगी और उनके सामान को सब के सामने लाने का मुद्दा सामने लाया गया वो भी जोर नहीं पकड़ा तो उसे पश्चिम बंगाल के लिए संभाल कर रख लिया गया। इसके बाद पीएम मोदी ने बाबा साहब को चुना जिसके सहारे बिहार में दलित कार्ड खेल कर बीजेपी के खिलाफ खड़े राजनीतिक दलों को सबक सिखाने की तैयारी जोरों पर है। इतनी सिद्दत से बाबा साहब पर सभी राजनीतिक दलों का जो प्यार उमड रहा है उससे सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या बिहार में चुनाव ना होते तो बाबा साहब कोई याद करता?

तो चलिए इतिहास मे चलते हैं इसके पहले किसने बाबा साहब के नाम का यूज किया था।  विश्वनाथ प्रताप सिंह की 1989 में सरकार बनी थी। और उसी समय राममंदिर को लेकर लालकृष्ण आड़वानी ने रथ यात्रा की थी इस रथ यात्रा के पक्ष में वीपी सिंह नहीं थे और अटल जी से इस बारे में बात भी की थी कि आड़वाणी जी को रथ यात्रा करने से कुछ दिनों के लिए रोक लिया जाए लेकिन बात बनी नहीं और बीजेपी कमंडल और वीपी सिंह मंडल की राजनीति करने को मजबूर हुए तभी वीपी सिंह ने सत्ता में रहते हुए बाबा साहब को भारत रत्न बनाया और उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया। इतना ही नहीं उनके जन्मदिन पर राष्ट्रीय छुट्टी भी घोषित कर दी गई। इन सब चीजों के बाद भी वीपी सिंह अपनी सरकार तो नहीं बचा पाए थे, लेकिन वीपी सिंह ने सत्ता में रहते हुए बाबा साहब का खुलकर समर्थन किया था।

उसके बाद से बाबा साहब के नाम पर राजनीति तो होती आई है यूपी में मायावती और बिहार में अब जीतन राम मांझी बाबा साहब के नाम पर राजनीति कर रहे हैं इसी को देखते हुए पीएम मोदी ने भी बाबा साहब के नाम को उछालकर दलित कार्ड खेल दिया है। इससे ये तो साबित ही होता है कि बिहार जो बीजेपी के खिलाफ कोयलेशन बनाया गया है उसको कमजोर कर बीजेपी फायदा उठाना चाहती है।

क्योंकि बिहार में लालू और नीतीश कभी साथ हुआ करते थे लेकिन 1994 में नीतीश लालू की कार्यशैली से परेशान होकर अलग हो गए। और 1997 में अपनी समता पार्टी के साथ बीजेपी से दोस्ती की थी। और 2005 में नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी की मदद से सरकार में काबिज हुए और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार पीएम मोदी का विरोध कर बीजेपी से नाता तोड कर अलग हो गए। और लालू यादव के शासन काल को जंगल राज बताने वाले नीतीश कुमार आज उसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। लेकिन एक बात साफ है कि जिस जंगलराज का विरोध कर नीतीश कुमार बिहार में काबित हुए आज उसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं तो आगे आने वाले समय में क्या फिर से जंगलराज कायम होगा? एक बात तो साफ है कि लालू ने जिस तरह से कहा  है कि जहर का घूटपीकर कोयलेशन में और नीतीश को मुख्यमंत्री के पद के लिए आगे कर रहे हैं। इसकी घोषणा भी मुलायम सिंह यादव ने किया लालू ने एक बार नाम तक नहीं लिया। नीतीश भी मजबूरी को समझ रहे हैं इसीलिए तो दिल्ली में राहुल गांधी से मिलकर कांग्रेस को भी इस कोयलेशन में सामिल कर रहे हैं। इसी से कांग्रेस का भी महत्व बढ़ गया।

लेकिन फिर भी इन सब बातों के बाद भी नीतीश कुमार को लालू यादव ने अब तक जिस तरह से नाकों चने चबाने को मजबूर कर दिया है उसी तरह से आगे भी नीतीश कुमार को लालू यादव नाको चने चबाने के लिए मजबूर करते रहेंगे और इसी की सह पर लालू यादव जंगल राज को बढ़ावा देंगे और तब नीतीश कुमार या दो मजबूरी की दुहाई देंगे या फिर इस कोयलेशन को दरकिनार कर अलग राह पकड़ लेंगे।